CTET Geography Notes in Hindi Pdf Download (LetsLearnSquad)

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Ctet Geography Notes In Hindi Pdf Download

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CTET SST Complete Notes

(सम्पूर्ण नोट्स)

1. Geography Notes in Hindi

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2. History Notes in Hindi

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3. Political Science Notes in Hindi

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Geography

(भूगोल)

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  • भूगोल (Geography) पृथ्वी की भौतिक और सांस्कृतिक विशेषताओं और उनकी अंतःक्रियाओं का अध्ययन है। उदाहरण के लिए, इसमें पहाड़ों, नदियों, जलवायु, मानव संस्कृति, राजनीति और पर्यावरणीय प्रभावों (mountains, rivers, climate, human culture, politics, and environmental impacts) का अध्ययन शामिल है। भूगोल का अध्ययन करके, हम अपने आसपास की दुनिया को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं और यह भी समझ सकते हैं कि मनुष्य इसके साथ कैसे बातचीत करते हैं।

परिचय

(Introduction)

  • आकाशीय पिंड अंतरिक्ष में वे वस्तुएँ हैं जो हमें पृथ्वी पर दिखाई देती हैं। इनमें तारे, ग्रह, चंद्रमा, क्षुद्रग्रह, धूमकेतु और बहुत कुछ शामिल हैं। इस लेख में, हम सितारों, ग्रहों और आकाशगंगाओं (galaxies) पर ध्यान केन्द्रित करेंगे।

सितारे

(Stars)

  • तारे बड़े पैमाने पर गैस के चमकीले गोले हैं जो प्रकाश और ऊष्मा उत्सर्जित करते हैं। इनका निर्माण अंतरिक्ष में गैस और धूल के बादलों के गिरने से होता है। तारे अपने द्रव्यमान और आयु के आधार पर आकार, रंग और तापमान में भिन्न होते हैं। उन्हें उनके वर्णक्रमीय प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जो उनके तापमान और रासायनिक संरचना को इंगित करता है।
  • सितारों के उदाहरणों में सूर्य (The Sun), सीरियस (Sirius), बेटेलगेस (Betelgeuse) और कई अन्य शामिल हैं।

Sirius: सीरियस रात के आकाश में सबसे चमकीला तारा है और कैनिस मेजर तारामंडल में स्थित है। यह एक बाइनरी स्टार सिस्टम है, जिसमें सीरियस ए नामक एक सफेद मुख्य-अनुक्रम तारा और सीरियस बी नामक एक छोटा सफेद बौना शामिल है। इसे डॉग स्टार के रूप में भी जाना जाता है और यह कई प्राचीन संस्कृतियों में महत्वपूर्ण है। लगभग 8.6 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर सीरियस पृथ्वी के अपेक्षाकृत करीब है, और दुनिया के अधिकांश हिस्सों से आसानी से नग्न आंखों से देखा जा सकता है।

Betelgeuse: Betelgeuse एक लाल महादानव तारा है जो नक्षत्र ओरियन में स्थित है। यह ज्ञात सबसे बड़े और सबसे चमकीले सितारों में से एक है, जिसका दायरा सूर्य से 1,000 गुना अधिक है। Betelgeuse नग्न आंखों से आसानी से दिखाई देता है और सर्दियों की रात के आकाश में एक प्रमुख विशेषता है। हाल के वर्षों में, Betelgeuse ने असामान्य डिमिंग व्यवहार प्रदर्शित किया है, जिससे इसके संभावित सुपरनोवा विस्फोट के बारे में अटकलें लगाई जा रही हैं, हालांकि इस घटना के हजारों वर्षों तक होने की उम्मीद नहीं है।

ग्रहों

(Planets)

  • ग्रह आकाशीय पिंड हैं जो एक तारे की परिक्रमा करते हैं और अपना स्वयं का प्रकाश उत्पन्न नहीं करते हैं। वे जिस तारे की परिक्रमा करते हैं, उसके प्रकाश से प्रकाशित होते हैं। हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं: बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून। वे आकार, संरचना और सूर्य से दूरी में भिन्न होते हैं। कुछ ग्रहों के चंद्रमा या वलय भी होते हैं।
  • ग्रहों के उदाहरणों में पृथ्वी, बृहस्पति और शनि (Earth, Jupiter, and Saturn) शामिल हैं।

चन्द्रमा

(Moon)

  • चंद्रमा प्राकृतिक उपग्रह हैं जो ग्रहों की परिक्रमा करते हैं। इन्हें प्राकृतिक उपग्रह भी कहा जाता है। चंद्रमा छोटे या बड़े हो सकते हैं और उनकी अलग-अलग रचनाएं और विशेषताएं हो सकती हैं।
  • उदाहरण के लिए, पृथ्वी का चंद्रमा अपने मेजबान ग्रह की तुलना में अपेक्षाकृत बड़ा है और यह चट्टान और धूल (rock and dust) से बना है।

तारामंडल

(Constellations)

  • नक्षत्र सितारों के समूह हैं जो आकाश में पहचानने योग्य पैटर्न या आकार बनाते हैं। उनका नाम जानवरों, वस्तुओं और पौराणिक आकृतियों के नाम पर रखा गया है। सदियों से नेविगेशन और कहानी कहने के लिए नक्षत्रों का उपयोग किया जाता रहा है।
  • नक्षत्रों के उदाहरणों में उरसा मेजर, ओरियन और कैसिओपिया (Ursa Major, Orion, and Cassiopeia) शामिल हैं।

आकाशगंगाओं

(Galaxies)

  • आकाशगंगाएँ सितारों, गैस और धूल की बड़ी प्रणालियाँ हैं जो गुरुत्वाकर्षण द्वारा एक साथ बंधी रहती हैं। वे आकार और आकार में भिन्न होते हैं, और उनमें अरबों तारे हो सकते हैं। हमारा सौर मंडल मिल्की वे आकाशगंगा में स्थित है, जो एक केंद्रीय पट्टी और सर्पिल भुजाओं वाली एक सर्पिल आकाशगंगा है। अन्य प्रकार की आकाशगंगाएँ भी हैं,
  • जैसे अण्डाकार और अनियमित आकाशगंगाएँ। आकाशगंगाओं के उदाहरणों में शामिल हैं एंड्रोमेडा गैलेक्सी, ट्रायंगुलम गैलेक्सी और लार्ज मैगेलैनिक क्लाउड (the Andromeda Galaxy, the Triangulum Galaxy, and the Large Magellanic Cloud)

सौरमंडल

(Solar System)

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  • सूर्य, आठ ग्रह (planets), उपग्रह (Satellite) तथा कुछ अन्य खगोलीय पिंड ( celestial bodies), जैसे क्षुद्र ग्रह (Asteroids) एवं उल्कापिंड (meteoroids) मिलकर सौरमंडल (Solar System) का निर्माण करते हैं।
  • ग्रह (Planets): ग्रह बड़े आकाशीय पिंड हैं जो सूर्य जैसे तारे की परिक्रमा करते हैं। हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं, जिनमें बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून शामिल हैं।
  • उपग्रह (Satellites): उपग्रह आकाशीय पिंड होते हैं जो किसी ग्रह या अन्य बड़े पिंड की परिक्रमा करते हैं। पृथ्वी का एक प्राकृतिक उपग्रह, चंद्रमा है, और कई कृत्रिम उपग्रह विभिन्न उद्देश्यों के लिए कक्षा में प्रक्षेपित किए गए हैं।
  • आकाशीय पिंड (Celestial Bodies): आकाशीय पिंड वे वस्तुएँ हैं जो अंतरिक्ष में मौजूद हैं, जिनमें ग्रह, चंद्रमा, क्षुद्रग्रह, धूमकेतु और तारे शामिल हैं।
  • क्षुद्रग्रह (Asteroids): क्षुद्रग्रह छोटे, चट्टानी पिंड होते हैं जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं। वे अक्सर मंगल और बृहस्पति के बीच क्षुद्रग्रह बेल्ट में पाए जाते हैं, लेकिन पूरे सौर मंडल में भी पाए जा सकते हैं।

उल्कापिंड (Meteoroids): उल्कापिंड छोटी चट्टानी या धात्विक वस्तुएँ होती हैं जो अंतरिक्ष में होती हैं और आमतौर पर क्षुद्रग्रहों से छोटी होती हैं। जब कोई उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है और जलता है, तो यह प्रकाश की एक लकीर बनाता है जिसे उल्का या शूटिंग स्टार कहा जाता है।

सौर मंडल (Solar System): सौर मंडल ग्रहों, चंद्रमाओं, क्षुद्रग्रहों, धूमकेतुओं और अन्य आकाशीय पिंडों का संग्रह है जो सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। यह मिल्की वे आकाशगंगा में स्थित है और लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पुराना होने का अनुमान है।

सूर्य

(The Sun)

  • सूर्य सौर मंडल के केंद्र में स्थित एक तारा है।
  • सूर्य के सबसे ज्यादा निकट तारा प्रोक्सिमा सेंचुरी है।
  • सूर्य सौरमंडल के केंद्र में स्थित है। यह बहुत बड़ा है एवं अत्यधिक गर्म गैसों से बना है। सूर्य, सौरमंडल के लिए प्रकाश (Light) एवं ऊष्मा (Heat) का एकमात्र स्रोत है। सूर्य पृथ्वी (Earth) से लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर है।
  • इसका व्यास (diameter) लगभग 1.39 मिलियन किलोमीटर (865,000 मील) है, जो इसे पृथ्वी से 100 गुना बड़ा बनाता है।
  • सूर्य ज्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम गैस से बना है।
  • यह प्रकाश संश्लेषण और अन्य प्रक्रियाओं के माध्यम से पृथ्वी पर जीवन के लिए ऊर्जा का स्रोत है।
  • प्रकाश की गति लगभग 3,00,000 किमी. / प्रति सेकंड है। इस गति को पृथ्वी तक पहुँचने में लगभग 8 मिनट 19 सेकेंड का समय लगता है।
  • सूर्य की ऊर्जा इसके मूल में परमाणु संलयन प्रतिक्रियाओं से आती है, जहां हाइड्रोजन परमाणु मिलकर हीलियम बनाते हैं और इस प्रक्रिया में ऊर्जा छोड़ते हैं।
  • सूर्य की सतह का तापमान लगभग 5,500 डिग्री सेल्सियस (9,932 डिग्री फ़ारेनहाइट) है, जबकि इसका मूल तापमान लगभग 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस (27 मिलियन डिग्री फ़ारेनहाइट) है।
  • सूर्य के पास एक चुंबकीय क्षेत्र है जो सनस्पॉट, सोलर फ्लेयर्स और कोरोनल मास इजेक्शन जैसी घटनाएं पैदा कर सकता है।
  • इसका गुरुत्वाकर्षण सौर मंडल को एक साथ रखता है और ग्रहों को इसके चारों ओर कक्षा में रखता है।
  • सूर्य लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पुराना है और उम्मीद की जाती है कि ईंधन खत्म होने और लाल विशालकाय तारा बनने से पहले यह अगले 5 बिलियन वर्षों तक चमकता रहेगा।

ग्रह

(Planets)

  • हमारे सौरमंडल में आठ ग्रह हैं। सूर्य से दूरी के अनुसार, वे है- बुध (Mercury), शुक्र (Venus), पृथ्वी (Earth), मंगल (Mars), बृहस्पति (Jupiter), शनि (Saturn), यूरेनस (Uranus) तथा नेप्च्यून (Neptune ) । सौरमंडल के सभी आठ ग्रह क पथ (fixed paths) पर सूर्य का चक्कर लगाते हैं। ये रास्ते दीर्घवृत्ताकार ( elongated) में फैले हु हैं। ये कक्षा (Orbits) कहलाते हैं। बुध सूर्य के सबसे नजदीक का ग्रह है।
  • ग्रह का अपने अक्ष पर घूमना घूर्णन (Rotation) कहलाता है। सूर्य के चारों ओर एक स्थिर कक्ष में पृथ्वी की गति को परिक्रमण (Revolution) कहते हैं। पृथ्वी का अक्ष खगोलीय पिण्ड (2003 UB 313, सिरस ) तथा प्लूटो ‘ बौने ग्रह ( Dwarf Planets) कहे जाते है।
  • शुक्र एवं यूरेनस को छोड़कर सभी ग्रह घड़ी की सूई के विपरीत दिशा में परिभ्रमण करते हैं। इन दोनों ग्रहों की परिभ्रमण की दिशा घड़ी की सूई की दिशा में होती है।

घूर्णन (Rotation): रोटेशन से तात्पर्य किसी वस्तु के अपने अक्ष पर घूमने से है। खगोल विज्ञान में, यह किसी ग्रह, चंद्रमा या अन्य खगोलीय पिंड का अपनी धुरी पर घूमना है। किसी खगोलीय पिंड को एक पूरा चक्कर पूरा करने में जितना समय लगता है, उसे उसका घूर्णन काल कहते हैं।

परिक्रमण (Revolution): परिक्रमण का तात्पर्य किसी वस्तु के चारों ओर किसी वस्तु की गति से है, जैसे कि एक ग्रह किसी तारे के चारों ओर परिक्रमा करता है। खगोल विज्ञान में, यह एक ग्रह, चंद्रमा या अन्य खगोलीय पिंड की अपनी कक्षा के चारों ओर गति है। किसी खगोलीय पिंड को अपनी कक्षा के चारों ओर एक पूर्ण चक्कर पूरा करने में लगने वाले समय को उसकी कक्षीय अवधि कहा जाता है।

बुध

(Mercury)

  • बुध सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है और सूर्य के सबसे निकट का ग्रह है।
  • इसका बहुत पतला वातावरण है और कोई (उपग्रह) चंद्रमा नहीं है।
  • बुध में कई चट्टानों और लकीरों के साथ एक भारी गड्ढा युक्त सतह है, यह दर्शाता है कि यह अतीत में महत्वपूर्ण भूगर्भीय गतिविधि से गुजरा है।
  • इसका एक लंबा दिन और एक छोटा वर्ष होता है, जिसमें एक दिन लगभग 176 पृथ्वी दिवस और एक वर्ष लगभग 88 पृथ्वी दिनों तक चलता है।
  • सूर्य से इसकी निकटता का मतलब है कि यह अत्यधिक तापमान भिन्नता का अनुभव करता है, जिसमें सतह का तापमान -173 डिग्री सेल्सियस से 427 डिग्री सेल्सियस (-279 डिग्री फारेनहाइट से 801 डिग्री फारेनहाइट) तक होता है।
  • ग्रह का नाम रोमन दूत देवता बुध के नाम पर रखा गया था, जो अपनी गति और चपलता के लिए जाने जाते थे।

शुक्र

(Venus)

  • शुक्र सूर्य से दूसरा ग्रह है और इसके समान आकार और संरचना के कारण अक्सर इसे पृथ्वी का “बहन ग्रह” कहा जाता है।
  • इसका घना वातावरण मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड से बना है, जिसकी सतह का दबाव पृथ्वी से 90 गुना अधिक है।
  • शुक्र की सतह बहुत गर्म है, जिसका तापमान 470°C (878°F) तक पहुँच सकता है, जो इसे सौर मंडल का सबसे गर्म ग्रह बनाता है।
  • ग्रह अधिकांश अन्य ग्रहों के विपरीत दिशा में घूमता है, शुक्र पर एक दिन एक वर्ष से अधिक समय तक रहता है।
  • शुक्र ग्रह को भोर का तारा (morning star) तथा सांझ का तारा (Evening Star) भी कहते है।
  • शुक्र का कोई चंद्रमा नहीं है और इसकी सतह की विशेषता ज्वालामुखियों, पहाड़ों और विशाल मैदानों से है।
  • इसका नाम प्यार और सुंदरता की रोमन देवी के नाम पर रखा गया है।

पृथ्वी

(The Earth)

  • पृथ्वी सूर्य से तीसरा ग्रह है और जीवन को आश्रय देने वाला एकमात्र ग्रह है।
  • इसमें एक मध्यम जलवायु और वातावरण है जो नाइट्रोजन और ऑक्सीजन से भरपूर है।
  • पृथ्वी का एक प्राकृतिक उपग्रह, चंद्रमा है, जो सौरमंडल का पांचवां सबसे बड़ा चंद्रमा है।
  • यह ध्रुवों (poles) के पास थोड़ी चपटी है। यही कारण है कि इसके आकार को भू-आभ (Geoid) कहा जाता है। भू-आभ का अर्थ है, पृथ्वी के समान आकार ।
  • इसमें एक चुंबकीय क्षेत्र है जो इसे सौर हवा से बचाता है, जो सूर्य से निकलने वाले आवेशित कणों की एक धारा है।
  • पृथ्वी का एक झुका हुआ अक्ष है, जो जलवायु में मौसमी बदलाव का कारण बनता है।
  • इसमें पहाड़ों, घाटियों, महासागरों और रेगिस्तानों सहित एक विविध परिदृश्य है।
  • पृथ्वी का नाम एंग्लो-सैक्सन शब्द “एर्डा” के नाम पर रखा गया है, जिसका अर्थ है जमीन या मिट्टी।
  • पृथ्वी के पास केवल एक उपग्रह (Satellite) है, चंद्रमा ।
  • अंतरिक्ष से देखने पर पृथ्वी नीले रंग की दिखाई पड़ती है, क्योंकि इसकी दो-तिहाई सतह पानी से ढकी हुई है। इसलिए इसे, नीला ग्रह (Blue Planet) कहा जाता है।
  • पृथ्वी अपने अक्ष पर एक घूर्णन (rotation) पूरा करने में 23 घंटे, 56 मिनट और 4.09 सेकेंड का समय लेती है।
  • यह अपने (Axis) अक्ष पर लम्बवत 23.5 डिग्री झुकी हुई है। इसके कारण इस पर विभिन्न प्रकार के मौसम आते हैं।
  • पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा (Revolution) 365 दिन 6 घंटे 48 मिनट और 45.51 सेकेंड में पूरा करती है।

उपसौर (Perihelion):- जब पृथ्वी सूर्य के बिल्कुल पास होती है तो उसे उपसौर (Perihelion) कहते हैं । उपसौर की स्थिति 3 जनवरी को होती है।

अपसौर (Aphelion):- जब पृथ्वी सूर्य से अधिकतम दूरी पर होती है तो यह अपसौर (Aphelion) कहलाता है. अपसौर की स्थिति 4 जुलाई को होती है।

मंगल

(Mars)

  • मंगल सूर्य से चौथा ग्रह है और रात के आकाश में इसकी लाल रंग की उपस्थिति के कारण अक्सर इसे “लाल ग्रह” कहा जाता है।
  • इसका एक पतला वातावरण है जो ज्यादातर कार्बन डाइऑक्साइड से बना है और इसे सौर विकिरण से बचाने के लिए कोई चुंबकीय क्षेत्र नहीं है।
  • मंगल के दो छोटे चंद्रमा, फोबोस और डीमोस (Phobos and Deimos) हैं, जो अनियमित आकार के हैं और क्षुद्रग्रहों पर कब्जा कर सकते हैं।
  • सौर मंडल में इस ग्रह का सबसे बड़ा ज्वालामुखी, ओलंपस मॉन्स और सबसे लंबी घाटी, वैलेस मेरिनेरिस है।
  • मंगल पर पानी और कार्बन डाइऑक्साइड से बनी ध्रुवीय बर्फ की टोपियां हैं, जो ग्रह के मौसम के साथ फैलती और सिकुड़ती हैं।
  • इसका नाम युद्ध के रोमन देवता के नाम पर रखा गया है, संभवतः इसके रक्त के समान दिखने वाले लाल रंग के कारण।
  • मंगल कई अंतरिक्ष एजेंसियों के लिए अन्वेषण का लक्ष्य रहा है, जिसमें कई मिशन पहले ही पूरे हो चुके हैं और कई भविष्य के लिए योजनाबद्ध हैं।

बृहस्पति ग्रह

(Jupiter Planet)

  • बृहस्पति सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है और सूर्य से पांचवां है।
  •  यह अपने अक्ष पर सबसे अधिक तेजी से परिक्रमा करने वाल ग्रह है यह मात्र 9 घन्टे 56 मिनट में अपने अक्ष पर घूर्णन पूर्ण कर लेता है।
  • यह एक गैस जायंट है और इसकी कोई ठोस सतह नहीं है। इसका वातावरण ज्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम से बना है।
  • बृहस्पति के पास एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र है जो पृथ्वी की तुलना में 20,000 गुना अधिक मजबूत है।
  • बृहस्पति के 80 से 92 चंद्रमा हैं, जिनमें चार सबसे बड़े गैलीलियन चंद्रमाओं के रूप में जाने जाते हैं: आयो, यूरोपा, गेनीमेड और कैलिस्टो।
  • बृहस्पति में चट्टान और धूल के छोटे कणों से बनी एक धुंधली वलय प्रणाली है।
  • ग्रह के पास एक बड़ा लाल धब्बा है, जो एक विशाल तूफान है जो कम से कम 400 वर्षों से उग्र हो रहा है।
  • बृहस्पति का नाम देवताओं के रोमन राजा के नाम पर रखा गया है और प्राचीन रोमनों द्वारा इसे आकाश और गड़गड़ाहट का शासक माना जाता था।

शनि ग्रह

(Saturn Planet)

टाइटन शनि ग्रह का सबसे बड़ा उपग्रह है। शनि ग्रह के 62  है ।

  • शनि सूर्य से छठा ग्रह है और अपनी विशिष्ट वलय प्रणाली के लिए जाना जाता है।
  • शनि ग्रह हमारे सौरमण्डल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है
  • इस ग्रह के चारों ओर एक (ring) वलय है।
  • यह एक गैस जायंट है और इसकी कोई ठोस सतह नहीं है। इसका वातावरण ज्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम से बना है।
  • शनि के पास एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र है जो बृहस्पति की तुलना में कमजोर है लेकिन फिर भी पृथ्वी की तुलना में काफी मजबूत है।
  • इसके कम से कम 83 (उपग्रह) चंद्रमा हैं, जिनमें सबसे बड़ा टाइटन है, जो सौर मंडल का दूसरा सबसे बड़ा चंद्रमा है।
  • शनि के वलय बर्फ और चट्टान के अनगिनत छोटे कणों से बने हैं जो ग्रह की परिक्रमा करते हैं। वलयों को कई बड़े समूहों में विभाजित किया गया है और इसमें अंतराल हैं जिन्हें कैसिनी डिवीजन के रूप में जाना जाता है।
  • ग्रह के उत्तरी ध्रुव पर एक हेक्सागोनल आकार का बादल पैटर्न है, जिसे ग्रह के वायुमंडलीय परिसंचरण के कारण माना जाता है।
  • सैटर्न (शनि) का नाम कृषि के रोमन देवता के नाम पर रखा गया है और प्राचीन रोमनों द्वारा इसे समय और फसल का शासक माना जाता था।

अरुण

(Uranus)

यूरेनस ग्रह की खोज विलियम हरचेल नें 1781 में की थी इसे लेटा हुआ ग्रह कहते हैं। यूरेनस ग्रह के 27 उपग्रह है ।

  • यूरेनस (अरुण) सूर्य से सातवां ग्रह है और सौरमंडल का तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है।
  • यह एक बर्फ का विशाल भाग है और इसका घना वातावरण है जो ज्यादातर हाइड्रोजन, हीलियम और मीथेन से बना है।
  • यूरेनस  (अरुण)  के घूर्णन की एक झुकी हुई धुरी है, जो इसके ध्रुवों को अपनी कक्षा के भाग के दौरान सूर्य की ओर इंगित करती है। इसका परिणाम चरम मौसम में होता है जो दशकों तक रहता है।
  • इसके कम से कम 27 ज्ञात चंद्रमा (उपग्रह) हैं, जिनमें पांच सबसे बड़े मिरांडा, एरियल, उम्ब्रील, टाइटेनिया और ओबेरॉन हैं।
  • यूरेनस में धूल और चट्टान के छोटे कणों से बनी एक बेहोशी की अंगूठी प्रणाली है।
  • इस ग्रह की खोज 1781 में विलियम हर्शल ने की थी और यह टेलीस्कोप का उपयोग करके खोजा जाने वाला पहला ग्रह था।
  • यूरेनस का नाम आकाश के ग्रीक देवता के नाम पर रखा गया है और यह प्राचीन यूनानी मिथक ऑरानोस से जुड़ा है, जो स्वर्ग का अवतार है।

वरुण

(Neptune)

  • नेपच्यून सूर्य से आठवां ग्रह है और सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह है।
  • यह एक बर्फ का विशाल भाग है और इसका घना वातावरण है जो ज्यादातर हाइड्रोजन, हीलियम और मीथेन से बना है।
  • नेप्च्यून में सौर मंडल में सबसे तेज़ हवाएँ हैं, जिनमें 2,100 किलोमीटर प्रति घंटे (1,300 मील प्रति घंटे) तक की हवाएँ हैं।
  • इसके कम से कम 14 ज्ञात (उपग्रह) चंद्रमा हैं, जिनमें सबसे बड़ा ट्राइटन है, जो सौर मंडल का सातवां सबसे बड़ा चंद्रमा है और एकमात्र बड़ा चंद्रमा है जो अपने ग्रह के घूर्णन के विपरीत दिशा में परिक्रमा करता है।
  • नेप्च्यून में धूल और चट्टान के छोटे कणों से बनी एक धुंधली वलय प्रणाली है।
  • प्रत्यक्ष अवलोकन के बजाय गणितीय भविष्यवाणियों के आधार पर ग्रह की खोज 1846 में अर्बेन ले वेरियर और जोहान गैले द्वारा की गई थी।
  • नेप्च्यून का नाम समुद्र के रोमन देवता के नाम पर रखा गया है और प्राचीन रोमनों द्वारा इसे महासागरों का शासक माना जाता था।

उपग्रह

(Satellite)

कुछ आकाशीय पिण्ड अपने ग्रह की परिक्रमा करते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं। अपने ग्रह की परिक्रमा करने के कारण इन्हें उपग्रह कहते हैं। जैसे चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है। यह पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है।

  • ‘मानव निर्मित उपग्रह’ :- भारत ने आर्यभट एजुसेट और ओसनसेट नामक उपग्रह बना है।
  • एक उपग्रह एक प्राकृतिक या कृत्रिम वस्तु है जो एक बड़े पिंड, जैसे कि एक ग्रह या एक तारे के चारों ओर परिक्रमा करता है।
  • प्राकृतिक उपग्रह (Natural satellites), जिन्हें चंद्रमा के रूप में भी जाना जाता है, वे वस्तुएँ हैं जो ग्रहों या बौने ग्रहों की परिक्रमा करती हैं। उदाहरणों में पृथ्वी का चंद्रमा, बृहस्पति के चार सबसे बड़े चंद्रमा और प्लूटो का चंद्रमा चारोन शामिल हैं।
  • कृत्रिम उपग्रह (Artificial satellites) ऐसी वस्तुएँ हैं जिन्हें जानबूझकर मनुष्यों द्वारा कक्षा में स्थापित किया जाता है। उनके पास संचार, नेविगेशन, मौसम निगरानी और वैज्ञानिक अनुसंधान सहित अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला है।
  • पहला कृत्रिम उपग्रह (Artificial satellites), स्पुतनिक 1, सोवियत संघ द्वारा 1957 में लॉन्च किया गया था।
  • उपग्रहों को उनकी कक्षाओं के आधार पर विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिसमें भूस्थैतिक कक्षा, निम्न पृथ्वी कक्षा, ध्रुवीय कक्षा और अण्डाकार कक्षा शामिल हैं।
  • उपग्रहों का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता है, जैसे जासूसी
  • उपग्रह जो खुफिया और टोही/सैनिक परीक्षण (reconnaissance) प्रदान करते हैं, और मिसाइल चेतावनी उपग्रह जो अन्य देशों से मिसाइल लॉन्च का पता लगाते हैं।

चंद्रमा

(The Moon)

  • चंद्रमा पृथ्वी का एक प्राकृतिक उपग्रह है और सौरमंडल का पांचवां सबसे बड़ा चंद्रमा है।
  • हमारी पृथ्वी के पास केवल एक उपग्रह (Satellite) है, चंद्रमा । इसका व्यास (Diametre) पृथ्वी के व्यास का केवल एक चैथाई है। पृथ्वी चंद्रमा की दूरी लगभग 3,84,400 km है। यह हमारी पृथ्वी के सर्वाधिक निकट स्थित आकाशीय पिण्ड है।
  • चन्द्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं होता है। यह सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है। और सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करता है। जो हमारी पृथ्वी पर लगभग 1.25 सेकेण्ड में पहुँचता है। इस प्रकाश को चाँदनी (Moon Light) कहते हैं।
  • चंद्रमा पृथ्वी का एक चक्कर लगभग 27 दिन 7 घंटे और 43 मिनट में पूरा करता है।
  • नील आर्मस्ट्रांग पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 21 जुलाई 1969 को सबसे पहले चंद्रमा की सतह पर कदम रखा।
  • ऐसा माना जाता है कि इसका गठन लगभग 4.5 अरब साल पहले हुआ था, सौर मंडल के गठन के कुछ ही समय बाद, जब मंगल के आकार की एक वस्तु पृथ्वी से टकराई और मलबे को बाहर निकाला जो बाद में चंद्रमा बनाने के लिए एकत्रित हुआ।
  • चंद्रमा की सतह गड्ढों, पहाड़ों, घाटियों और अन्य भूगर्भीय विशेषताओं से ढकी है। इसका कोई वातावरण नहीं है, कोई तरल पानी नहीं है और कोई चुंबकीय क्षेत्र नहीं है।
  • चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी पर ज्वार का कारण बनता है और इसने ग्रह पर जीवन के विकास को प्रभावित किया है।
  • 1969 में अपोलो 11 मिशन के दौरान पहली मानव लैंडिंग के साथ, चंद्रमा का मनुष्यों और रोबोटों द्वारा पता लगाया गया है। कुल बारह अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर चहलकदमी कर चुके हैं।
  • चंद्रमा वैज्ञानिक अनुसंधान का विषय रहा है, इसके भूविज्ञान, उत्पत्ति और हीलियम -3 जैसे संसाधनों की क्षमता पर अध्ययन के साथ, एक दुर्लभ आइसोटोप जिसे परमाणु संलयन रिएक्टरों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

क्षुद्र ग्रह

(Asteroids)

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तारों (Stars), ग्रहों एवं उपग्रहों के अतिरिक्त, असंख्य छोटे पिंड (tiny bodies) भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। इन पिंडों को क्षुद्र ग्रह (Asteroids) कहते हैं। ये मंगल (Mars) एवं बृहस्पति (Jupiter) की कक्षाओं के बीच पाए जाते हैं

यहाँ क्षुद्रग्रहों के बारे में कुछ मुख्य बातें दी गई हैं:

  • क्षुद्रग्रह छोटे, चट्टानी पिंड हैं जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
  • वे आम तौर पर ग्रहों की तुलना में बहुत छोटे होते हैं, जिनका व्यास कुछ मीटर से लेकर कई सौ किलोमीटर तक होता है।
  • अधिकांश क्षुद्रग्रह क्षुद्रग्रह बेल्ट में स्थित हैं, जो मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच का क्षेत्र है।
  • कुछ क्षुद्रग्रहों में सनकी कक्षाएँ होती हैं जो उन्हें पृथ्वी के करीब ले जाती हैं, जिससे वे संभावित प्रभाव के खतरे बन जाते हैं।
  • माना जाता है कि क्षुद्रग्रह शुरुआती सौर मंडल के अवशेष हैं, और उनका अध्ययन करने से ग्रहों के निर्माण और विकास के बारे में जानकारी मिल सकती है।
  • क्षुद्रग्रह चट्टान, धातु और बर्फ सहित विभिन्न सामग्रियों से बने हो सकते हैं।
    नासा और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों ने क्षुद्रग्रहों का करीब से अध्ययन करने के लिए मिशन भेजे हैं, जिसमें उनकी सतहों पर उतरना और पृथ्वी पर नमूने वापस लाना शामिल है।
  • कुछ क्षुद्रग्रहों को उनकी संरचना के कारण मूल्यवान संसाधन माना जाता है, और उन्हें पानी, धातु और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों जैसी सामग्रियों के लिए खनन करने की योजना है।
  • लोकप्रिय संस्कृति में, क्षुद्रग्रह अक्सर विलुप्त होने के स्तर की घटनाओं से जुड़े होते हैं, क्योंकि एक बड़े क्षुद्रग्रह के प्रभाव से व्यापक तबाही हो सकती है।

उल्कापिंड

(Meteoroids)

सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों को उल्कापिंड ( Meteoroids) कहते हैं। कभी-कभी ये उल्कापिंड पृथ्वी के इतने नजदीक आ जाते हैं कि इनकी वृ (tend) पृथ्वी पर गिरने की होती है। इस प्रक्रिया के दौरा के साथ घर्षण (friction) होने के कारण ये गर्म होकर जल जाते हैं। इन्हें ही टूटता हुआ तारा कहा जाता है।

यहाँ उल्कापिंडों के बारे में कुछ मुख्य बातें दी गई हैं:

  • उल्कापिंड अंतरिक्ष में छोटी चट्टानें और मलबे होते हैं जिनका आकार धूल के कणों से लेकर छोटे क्षुद्रग्रहों तक होता है।
  • वे आमतौर पर बड़े क्षुद्रग्रहों या धूमकेतुओं के टूटने से बनते हैं।
  • जब कोई उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो वह उल्कापिंड बन जाता है, जिसे शूटिंग स्टार या टूटता हुआ तारा भी कहा जाता है।
  • उल्काएं आकाश में प्रकाश की धारियों के रूप में दिखाई देती हैं क्योंकि वे पृथ्वी के वायुमंडल के साथ घर्षण के कारण जल जाती हैं।
  • अधिकांश उल्कापिंड अपेक्षाकृत छोटे होते हैं और जमीन से टकराने से पहले पूरी तरह से जल जाते हैं, लेकिन बड़े उल्कापिंड जीवित रह सकते हैं और उल्कापिंड बन सकते हैं।
  • उल्कापिंड मूल्यवान वैज्ञानिक संसाधन हैं, क्योंकि वे सौर मंडल की संरचना और इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
  • उल्का वर्षा तब होती है जब पृथ्वी किसी धूमकेतु या क्षुद्रग्रह द्वारा छोड़े गए मलबे के निशान से गुजरती है, जिसके परिणामस्वरूप आकाश में दिखाई देने वाली उल्काओं की संख्या बढ़ जाती है।
  • कुछ उल्कापिंड प्रभाव की घटनाओं से भी जुड़े हुए हैं, जिनके पृथ्वी पर जीवन के लिए महत्वपूर्ण परिणाम हो सकते हैं।
  • उल्कापिंडों और उल्कापिंडों का अध्ययन ग्रह विज्ञान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह सौर मंडल के गठन और विकास में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

पुच्छल तारे

(Comets)

पुच्छल तारे अथवा धूमकेतु चट्टानों, बर्फ, धूल और गैस के बने आकाशीय पिण्ड होते हैं। गुरुत्वाकर्षण के कारण इस तारे का सिर सूर्य की तरफ तथा पूँछ हमेशा सूर्य से दूर बाहर की तरफ होती है, जो हमें चमकती दिखाई देती है।

यहाँ धूमकेतुओं के बारे में कुछ मुख्य बातें दी गई हैं:

  • धूमकेतु सौर मंडल में छोटे, बर्फीले पिंड हैं जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
  • वे पानी, जमी हुई गैसों, धूल और चट्टानी सामग्री के मिश्रण से बने होते हैं।
  • धूमकेतुओं की अत्यधिक दीर्घवृत्तीय कक्षाएँ होती हैं जो उन्हें सौर मंडल के सुदूर क्षेत्रों से सूर्य के अधिक निकट ले जाती हैं।
  • जैसे ही एक धूमकेतु सूर्य के करीब आता है, इसकी बर्फ और अन्य वाष्पशील पदार्थ वाष्पीकृत हो जाते हैं, जिससे एक चमकदार कोमा (गैस और धूल का बादल) और कभी-कभी एक दृश्य पूंछ बनती है जो लाखों किलोमीटर तक फैल सकती है।
  • धूमकेतु को प्रारंभिक सौर मंडल के अवशेष माना जाता है, और उनका अध्ययन उन स्थितियों और प्रक्रियाओं में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है जिनके कारण ग्रहों का निर्माण हुआ।
  • कुछ धूमकेतु उल्का वर्षा से जुड़े हैं, क्योंकि उनके मलबे के निशान पृथ्वी की कक्षा के साथ प्रतिच्छेद करते हैं।
  • नासा और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों ने धूमकेतुओं का करीब से अध्ययन करने के लिए मिशन भेजे हैं, जिसमें उनकी सतहों पर उतरना और उनकी सामग्री के नमूने एकत्र करना शामिल है।
  • धूमकेतुओं का अध्ययन ग्रह विज्ञान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह सौर मंडल के इतिहास और विकास में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • धूमकेतु हजारों वर्षों से मनुष्यों द्वारा देखे और दर्ज किए गए हैं, और विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं से जुड़े हुए हैं।

काइपर घेरा

(Kuiper-Belt)

यह नेपच्यून (Neptune) के पार सौरमण्डल के आखिरी सिरों पर एक तश्तरी के आकार की विशाल पट्टी है। इसमें असंख्य खगोलीय पिण्ड उपस्थित हैं जिनमें कई बर्फ से बने हैं। धूमकेतु इसी क्षेत्र से आते हैं । प्लूटो भी इसी मेखला में स्थित है।

यहाँ काइपर घेरा के बारे में कुछ मुख्य बातें हैं:

  • काइपर घेरा सौर मंडल का एक क्षेत्र है जो नेपच्यून से परे स्थित है, जो सूर्य से लगभग 30 से 50 खगोलीय इकाइयों (एयू) तक फैला हुआ है।
  • इसका नाम खगोलशास्त्री जेरार्ड कुइपर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने पहली बार 1950 के दशक में इसके अस्तित्व का प्रस्ताव रखा था।
  • काइपर घेरा को छोटी अवधि के धूमकेतुओं का स्रोत माना जाता है, जिनकी कक्षाएँ उन्हें 200 से कम वर्षों में सूर्य के चारों ओर ले जाती हैं।
  • काइपर घेरा कई छोटे, बर्फीले पिंडों का घर है, जिनमें प्लूटो, ह्यूमिया और माकेमेक जैसे बौने ग्रह शामिल हैं।
  • इन वस्तुओं को शुरुआती सौर मंडल के अवशेष माना जाता है, और उनका अध्ययन करने से ग्रहों के निर्माण और विकास के बारे में जानकारी मिल सकती है।
  • नासा के न्यू होराइजन्स अंतरिक्ष यान ने 2015 में प्लूटो और उसके चंद्रमाओं से उड़ान भरी थी, जो इन दूर की वस्तुओं की पहली क्लोज-अप छवियां और डेटा प्रदान करता है।
  • काइपर घेरा क्षेत्र में अतिरिक्त बौने ग्रहों और अन्य वस्तुओं का अध्ययन करने के लिए मिशन की योजनाओं के साथ, भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए भी एक लक्ष्य है।
  • काइपर घेराका अध्ययन ग्रह विज्ञान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह बाहरी सौर मंडल के इतिहास और विकास में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

सूर्य ग्रहण एवं चन्द्रग्रहण

(Solar Eclipse and Lunar Eclipse)

सूर्यग्रहण (Solar Eclipse):

सूर्य ग्रहण :- जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चन्द्रमा आ जाता है तो इस स्थिति को युति (Conjunction) कहते हैं। यह अमावस्या को होती है। इस स्थिति में चन्द्रमा की छाया, पृथ्वी पर पड़ती है, जिससे सूर्यग्रहण होता है।

  • सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच से गुजरता है, सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध करता है और पृथ्वी की सतह पर छाया डालता है।
  • सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं: कुल, आंशिक और वलयाकार।
  • पूर्ण सूर्य ग्रहण में, चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है, सूर्य के कोरोना (बाहरी वातावरण) को प्रकट करता है और जमीन पर एक काली छाया बनाता है।
  • आंशिक सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा केवल आंशिक रूप से सूर्य को ढकता है, जिससे सूर्य के प्रकाश का वर्धमान आकार बनता है।
  • एक वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी से दूर होता है, और आकाश में छोटा दिखाई देता है, जिसके परिणामस्वरूप चंद्रमा के चारों ओर सूर्य के प्रकाश का एक वलय बन जाता है।
  • सूर्य ग्रहण सीधे देखने में खतरनाक हो सकते हैं, और इसके लिए उचित नेत्र सुरक्षा की आवश्यकता होती है।

चंद्रग्रहण (Lunar Eclipse):

चन्द्रग्रहण :- इसी प्रकार जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो उस स्थिति को वियुति (Opposition) कहते हैं। यह पूर्णिमा को होती है। इस स्थिति में पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है, जिससे चन्द्रग्रहण होता है।

  • चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच से गुजरती है, जिससे चंद्रमा पर छाया पड़ती है।
  • चंद्र ग्रहण दो प्रकार के होते हैं: कुल और आंशिक।
  • कुल चंद्र ग्रहण के दौरान, चंद्रमा लाल रंग का दिखाई देता है, जिसका उपनाम “ब्लड मून” होता है, क्योंकि सूरज की रोशनी पृथ्वी के वायुमंडल के माध्यम से झुकती है और फ़िल्टर करती है।
  • आंशिक चंद्र ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा का केवल एक भाग पृथ्वी की छाया में प्रवेश करता है।
  • चंद्र ग्रहण पृथ्वी पर कहीं से भी देखा जा सकता है जहां चंद्रमा दिखाई देता है, और देखने के लिए विशेष नेत्र सुरक्षा की आवश्यकता नहीं होती है।
  • चंद्र ग्रहण हजारों वर्षों से मनुष्यों द्वारा देखे और दर्ज किए गए हैं, और विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं से जुड़े हुए हैं।

ग्लोब

(Globe)

यहाँ ग्लोब के बारे में कुछ मुख्य बातें दी गई हैं:

  • एक ग्लोब पृथ्वी या अन्य खगोलीय पिंड का एक गोलाकार प्रतिनिधित्व है, जिसका उपयोग नेविगेशन, शिक्षा और सजावट के लिए किया जाता है।
  • पहला ग्लोब प्राचीन यूनानियों द्वारा बनाया गया था, जिन्होंने पृथ्वी के गोलाकार आकार को पहचाना था।
  • भूमाफियाओं और पानी के निकायों के वास्तविक आकार, आकार और स्थानों को प्रदर्शित करने के लिए ग्लोब नक्शों की तुलना में अधिक सटीक हैं।
  • कई ग्लोब में अक्षांश और देशांतर रेखाएँ, साथ ही अन्य भौगोलिक विशेषताएँ जैसे पर्वत श्रृंखलाएँ, नदियाँ और रेगिस्तान शामिल हैं।
  • ग्लोब का उपयोग जलवायु पैटर्न, वनस्पति क्षेत्रों और पृथ्वी की अन्य भौतिक और सांस्कृतिक विशेषताओं को दिखाने के लिए भी किया जा सकता है।
  • आकाशीय ग्लोब रात के आकाश में तारों और नक्षत्रों की स्थिति और गति दिखाते हैं।
  • शिक्षा और प्रदर्शन उद्देश्यों के लिए दुनिया भर में ग्लोब का उपयोग कक्षाओं, संग्रहालयों और घरों में किया जाता है।
  • आधुनिक ग्लोब को प्लास्टिक, कागज और धातु सहित विभिन्न प्रकार की सामग्रियों से बनाया जा सकता है, और इसे कई आकारों और शैलियों में उत्पादित किया जा सकता है।
  • काल्पनिक रेखा (imaginary line) जो ग्लोब को दो बराबर भागों में बाँटती है। इसे विषुवत् वृत्त (Equator) कहा जाता है।
  • पृथ्वी के उत्तर (North) में स्थित आधे भाग को उत्तरी गोलार्ध (Northern Hemisphere) तथा दक्षिण वाले आधे भाग को दक्षिणी गोलार्ध (Southe Hemisphere) कहा जाता है।
  • विषुवत् वृत्त (Equator) से ध्रुवों (Poles ) तक स्थत सभी समानांतर वृत्तों (parallel circles) को अक्षांश (समानांतर) रेखाएँ (Parallels of Latitudes) कहा जाता है। अक्षांशों (Latitudes) को अंश (Degrees) में मापा जाता है।
  1. (Tropic of Cancer) उत्तरी गोलार्ध में कर्क रेखा (23 1⁄2° उ.)
  2. (Tropic of Capricorn) दक्षिणी गोलार्ध में मकर रेखा  (23 1⁄2° द.)
  3. (Arctic Circle) विषुवत् वृत्त के 66 1⁄2° उत्तर में उत्तर ध्रुव वृत्त
  4. (Antarctic Circle) विषुवत् रेखा के 66 1⁄2° दक्षिण में दक्षिण ध्रुव वृत्त

पृथ्वी के ताप कटिबंध

(HEAT ZONES OF THE EARTH)

कर्क रेखा (Tropic of Cancer) एवं मकर रेखा (Tropic of Capricorn) के बीच के सभी अक्षांशों पर सूर्य वर्ष में एक बार दोपहर में सिर के ठीक ऊपर होता है। इसलिए इस क्षेत्र में सबसे अधिक उष्मा प्राप्त होती है तथा इसे उष्ण कटिबंध (Torrid Zone) कहा जाता है। कर्क रेखा तथा मकर रेखा के बाद किसी भी अक्षांश (Latitudes) पर दोपहर का सूर्य कभी भी सिर के ऊपर नहीं होता है। ध्रुव की तरफ सूर्य की किरणें तिरछी होती जाती हैं। इस प्रकार, उत्तरी गोलार्ध में कर्क रेखा एवं उत्तर ध्रुव वृत्त तथा दक्षिणी गोलार्ध में मकर रेखा एवं दक्षिण ध्रुव वृत्त बीच वाले क्षेत्र का तापमान मध्यम रहता है। इसलिए इन्हें, शीतोष्ण कटिबंध (Temperate Zones) कहा जाता है।

उत्तरी गोलार्ध में उत्तर ध्रुव वृत्त एवं उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण ध्रुव वृत्त एवं दक्षिणी ध्रुव के बीच के क्षेत्र में ठंड बहुत होती है। क्योंकि, यहाँ सूर्य क्षितिज (horizon) से ज्यादा ऊपर नहीं आ पाता है। इसलिए ये शीत कटिबंध (Frigid Zones) कहलाते हैं।
टोंगा द्वीप (Island) एंव हिंद महासागर में स्थित मारीशस द्वीप एक ही अक्षांश (20°00 द.) पर स्थित हैं।
  • आर्कटिक सर्कल (Arctic Circle): भूमध्य रेखा के लगभग 66.5 डिग्री उत्तर में अक्षांश का एक चक्र, सबसे उत्तरी बिंदु को चिह्नित करता है जिस पर सूर्य लगातार 24 घंटों के लिए क्षितिज से ऊपर या नीचे रह सकता है।
  • कर्क रेखा (Tropic of Cancer): भूमध्य रेखा के लगभग 23.5° उत्तर में अक्षांश का एक चक्र, जो सबसे उत्तरी बिंदु को चिह्नित करता है जिस पर सूर्य सीधे सिर के ऊपर हो सकता है।
  • भूमध्य रेखा (Equator): एक काल्पनिक रेखा जो पृथ्वी की परिक्रमा करती है और 0° अक्षांश पर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों से समान दूरी पर है।
  • मकर रेखा (Tropic of Capricorn): भूमध्य रेखा के लगभग 23.5° दक्षिण में अक्षांश का एक चक्र, सबसे दक्षिणी बिंदु को चिह्नित करता है जिस पर सूर्य सीधे सिर के ऊपर हो सकता है।
  • अंटार्कटिक वृत्त (Antarctic Circle): भूमध्य रेखा के लगभग 66.5° दक्षिण में अक्षांश का एक चक्र, सबसे दक्षिणी बिंदु को चिह्नित करता है जिस पर सूर्य 24 घंटे तक लगातार क्षितिज के ऊपर या नीचे रह सकता है।
  • उष्ण कटिबंध (Torrid Zone): कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच का क्षेत्र, गर्म तापमान और प्रचुर मात्रा में वर्षा की विशेषता है।
  • समशीतोष्ण क्षेत्र (Temperate Zones): उष्णकटिबंधीय और आर्कटिक सर्कल या अंटार्कटिक सर्कल के बीच के क्षेत्र, मध्यम तापमान और चार अलग-अलग मौसमों की विशेषता है।
  • क्षितिज (Horizon): वह रेखा जिस पर पृथ्वी की सतह और आकाश मिलते हुए प्रतीत होते हैं।
  • शीत कटिबंध (Frigid Zones): आर्कटिक सर्कल और अंटार्कटिक सर्कल के आसपास के क्षेत्र, बहुत कम तापमान और कम दिन के उजाले की विशेषता है।

याम्योत्तर या ध्रुववृत्त

(Meridian)

पृथ्वी के उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव के मिलाने वाली और उत्तर-दक्षिण दिशा में खींची गयी काल्पनिक रेखाओं को याम्योत्तर या ध्रुववृत्त (Meridian) कहते -Prime Meridian हैं। लन्दन के निकट स्थित ग्रीनविच से जाने वाली यामोत्तर को ‘प्रधान याम्योत्तर’ (Prime Meridian) माना गया है। इसका मान 0° देशांतर (longitude) है तथा यहाँ से हम 180° पूर्व या 180° पश्चिम तक गणना करते हैं। प्रमुख याम्योत्तर तथा 180° याम्योत्तर मिलकर पृथ्वी को दो समान भागों, पूर्वी गोलार्ध (Eastern Hemisphere) एवं पश्चिमी गोलार्ध (Western Hemisphere) में विभक्त करती है।

देशांतर और समय

(LONGITUDE AND TIME)

समय को मापने का सबसे अच्छा साधन पृथ्वी, चंद्रमा एवं ग्रहों की गति है। स्थानीय समय का अनुमान सूर्य के द्वारा बनने वाली परछाईं (shadow) से लगाया जा सकता है |

  • पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर चक्कर लगाती है, अतः वे स्थान जो ग्रीनिच के पूर्व में हैं, उनका समय ग्रीनविच समय से आगे होगा तथा जो पश्चिम में हैं, उनका समय पीछे होगा
  • पृथ्वी लगभग 24 घंटे में अपने अक्ष पर 360° घूम जाती है, अर्थात् वह 1 घंटे में 15° एवं 4 मिनट में 1° घूमती है। इस प्रकार जब ग्रीनविच में दोपहर के 12 बजते हैं, तब ग्रीनविच से 15° पूर्व (east) में समय होगा 15 x 4 = 60 मिनट अर्थात्, ग्रीनविच के समय से 1 घंटा आगे, अर्थात् वहाँ दोपहर का 1 बजा होगा। लेकिन ग्रीनविच से 15° पश्चिम (west) का समय ग्रीनविच समय से 1 घंटा पीछे होगा यानी, वहाँ सुबह के 11 बजे होंगे। इसी प्रकार जब ग्रीनविच पर दोपहर के 12 बजे होंगे उस समय 180° पर मध्य रात्रि (midnight) होगी।
  • किसी भी स्थान पर जब सूर्य आकाश में अपने उच्चतम बिंदु पर होता है, दोपहर में उस समय घड़ी में दिन के 12 बजते हैं। इस प्रकार, घड़ी के द्वारा दिखाया गया समय उसस्थान का स्थानीय समय (local time) होगा।
  • भारत ग्रीनविच के पूर्व 82°30′ पू. में स्थित है तथा यहाँ का समय ग्रीनविच समय से 5 घंटा 30 मिनट आगे है। इसलिए जब लंदन में दोपहर के 2 बजे होंगे, तब भारत में शाम के 7:30 बजे होंगे। (5:30+)

पृथ्वी की गति
(MOTIONS OF THE EARTH)

पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना घूर्णन (Rotation) कहलाता है। सूर्य के चारों ओर एक स्थिर कक्ष में पृथ्व की गति को परिक्रमण (Revolution) कहते हैं। पृथ्वी का अक्ष एक काल्पनिक रेखा है, जो इसके कक्षीय सतह से 66° का कोण बनाती है। वह समतल जो कक्ष के द्वारा बनाया जाता है, उसे कक्षीय समतल (orbital plane) कहते हैं।

ग्लोब पर वह वृत्त (Circle) जो दिन तथा रात को विभाजित करता है उसे प्रदीप्ति वृत्त (circle of Illumination) कहते हैं।

पृथ्वी एक वर्ष या 365 दिन और 6 घंटे में सूर्य का एक चक्कर लगाती है। हम लोग एक वर्ष 365 दिन का मानते हैं तथा 6 घंटे को इसमें नहीं जोड़ते हैं। ये 6 घंटे चार साल में 24 घंटे हो जाते है अर्थात एक दिन तो ये एक दिन फरवरी के महीने में जोड़ दिया जाता है जिस कारण फरवरी के महीने में प्रत्येक चौथे वर्ष एक दिन बढ़ जाता है और वो महीना 29 दिन का हो जाता है जिसे लीप वर्ष (Leap year) कहते है।

  • ऋतुओ (Seasons) में परिवर्तन सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन के कारण होता है।
  • 21 जून को उत्तरी गोलार्ध (Northern Hemisphere) सूर्य की तरफ झुका हुआ होता है। सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं। इसके परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में उष्मा अधिक प्राप्त होती है।
  • 21 जून को इन क्षेत्रों में सबसे लंबा दिन तथा सबसे छोटी रात होती है। पृथ्वी की इस अवस्था को उत्तर अयनांत (Summer Solstice) कहते हैं।
  • 22 दिसंबर को दक्षिण ध्रुव (South Pole) के मकर रेखा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं। और झुके होने के कारण |
  • उत्तरी ध्रुव रेखा (North Pole line) के बाद वाले भागों पर लगभग 6 महीने तक लगातार दिन रहता है।
  • दक्षिणी गोलार्ध (Southern Hemisphere) में लंबे दिन तथा छोटी रातों वाली ग्रीष्म ऋतु होती है। पृथ्वी की इस अवस्था को दक्षिण अयनांत (Winter Solstice) कहा जाता है।
  • आस्ट्रेलिया में ग्रीष्म ऋतु (summer season) में क्रिसमस का पर्व मनाया जा है |
  • 21 मार्च एवं 23 सितंबर को सूर्य की किरणें विषुवत् वृत्त ( equator) पर सीधी पड़ती हैं। इस अवस्था में कोई भी ध्रुव सूर्य की ओर नहीं झुका होता है, इसलिए पूरी पृथ्वी पर रात एवं दिन बराबर होते हैं। इसे विषुव (equinox) कहा जाता है।

मानचित्र

(MAP)

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पृथ्वी की सतह (earth’s surface) या इसके एक भाग का पैमाने के माध्यम से चपटी सतह पर खींचा गया चित्र है।

मानचित्र कई प्रकार के होते है:-

  • भौतिक मानचित्र (Physical Maps)
  • राजनीतिक मानचित्र (Political Maps )
  • थिमैटिक मानचित्र (Thematic Maps )

भौतिक मानचित्र (Physical Maps)

पृथ्वी की प्राकृतिक आकृतियों जैसे-

  • पर्वतों (mountains)
  • पठारों (plateaus)
  • मैदानों (plains)
  • नदियों (rivers )
  • महासागरों (Oceans)

आदि को दर्शाने वाले मानचित्रों को भौतिक या उच्चावच मानचित्र (Physical or relief maps) कहा जाता है।

राजनीतिक मानचित्र (Political Maps)

राजनीतिक मानचित्र वे मानचित्र होते हैं जो विभिन्न देशों या राज्यों की सीमाओं और क्षेत्रों के साथ-साथ अन्य राजनीतिक विशेषताओं जैसे राजधानी शहरों, प्रमुख शहरों और महत्वपूर्ण स्थलों को दिखाते हैं। ये मानचित्र राजनीतिक शक्ति के वितरण और विभिन्न देशों या राज्यों के बीच संबंधों को भी दिखा सकते हैं। राजनीतिक मानचित्र किसी विशेष क्षेत्र के भूगोल और राजनीति को समझने के साथ-साथ यात्रा की योजना बनाने या राजनीतिक व्यवस्थाओं और संस्थानों पर शोध करने के लिए उपयोगी हो सकते हैं।

थिमैटिक मानचित्र (Thematic Maps)

विषयगत मानचित्र वे मानचित्र होते हैं जो किसी विशिष्ट विषय या विषय पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जैसे जनसंख्या घनत्व, जलवायु, प्राकृतिक संसाधन या परिवहन नेटवर्क। ये मानचित्र डेटा का प्रतिनिधित्व करने और चुने हुए विषय के बारे में जानकारी देने के लिए विभिन्न दृश्य तत्वों, जैसे रंग, प्रतीक और छायांकन का उपयोग करते हैं। विषयगत मानचित्र एक विशिष्ट क्षेत्र या क्षेत्र के भीतर पैटर्न और संबंधों को समझने के साथ-साथ संसाधन प्रबंधन, शहरी नियोजन और अन्य अनुप्रयोगों से संबंधित निर्णय लेने के लिए उपयोगी हो सकते हैं।

कुछ मानचित्र विशेष जानकारियाँ प्रदान करते हैं जैसे-

  • सड़क मानचित्र
  • वर्षा मानचित्र
  • वन
  • उद्योगों

आदि के वितरण दर्शाने वाले मानचित्र आदि । इस प्रकार के मानचित्र को थिमैटिक मानचित्र (Thematic maps) कहा जाता है।

दिशा

(DIRECTION)

दिशा किसी अन्य बिंदु या संदर्भ के संबंध में किसी वस्तु या स्थान के उन्मुखीकरण या असर को संदर्भित करती है। इसे कार्डिनल दिशाओं (उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम), मध्यवर्ती दिशाओं (पूर्वोत्तर, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम), या कम्पास गुलाब (0-360 डिग्री) पर डिग्री का उपयोग करके वर्णित किया जा सकता है। दिशा नेविगेशन और अभिविन्यास के साथ-साथ अंतरिक्ष में वस्तुओं और घटनाओं की स्थिति और गति का वर्णन करने के लिए महत्वपूर्ण है।

अधिकतर मानचित्रों में ऊपर दाहिनी (right) तरफ तीर का निशान बना होता है, जिसके ऊपर अक्षर उ. लिखा होता है। यह तीर का निशान उत्तर दिशा को दर्शाता है। इसे उत्तर रेखा (north line) कहा जाता है। चार मुख्य दिशाओं

  • उत्तर (North)
  • दक्षिण (South)
  • पूर्व (East)
  • पश्चिम (West)

को प्रधान दिग्बिंदु (cardinal points) कहते है।

प्रतीक (SYMBOLS)

प्रतीक ग्राफ़िक या दृश्य निरूपण हैं जिनका उपयोग अर्थ या जानकारी देने के लिए किया जाता है। वे सरल या जटिल हो सकते हैं और कई रूप ले सकते हैं, जिनमें चिह्न, लोगो, चिह्न और झंडे शामिल हैं। प्रतीकों का उपयोग अक्सर अमूर्त अवधारणाओं, जैसे विचारों, भावनाओं या मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है, और विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं में आसानी से पहचाना और समझा जा सकता है। नक्शों में, प्रतीकों का उपयोग विभिन्न विशेषताओं, जैसे स्थलों, जल निकायों और परिवहन नेटवर्क को दर्शाने के लिए किया जाता है, और उपयोगकर्ताओं को भौगोलिक जानकारी को नेविगेट करने और व्याख्या करने में मदद कर सकता है।

किसी भी मानचित्र पर वास्तविक आकार एवं प्रकार में विभिन्न आकृतियों जैसे-

  • भवनों (Buildings)
  • सड़कों (The Streets)
  • पुलों (Bridges)
  • वृक्षों (The Trees)
  • रेल की पटरियों (Train tracks)
  • कुओं (Wells)

आदि को दिखाना संभव नहीं होता है। इसलिए, वे निश्चित अक्षरों, छायाओं, रंगों, चित्रों तथा रेखाओं का उपयोग करके दर्शाए जाते हैं। ये प्रतीक कम स्थान में अधिक जानकारी प्रदान करते हैं। इन प्रतीकों को रूढ़ प्रतीक (conventional Symbols) कहा जाता है इन प्रतीकों के इस्तेमाल के द्वारा मानचित्र को आसानी से खींचा जा सकता है |

  • एक छोटे क्षेत्र का बड़े पैमाने पर खींचा गया रेखाचित्र खाका (Plan) कहा जाता है।

महादवीप

(Continents)

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महाद्वीप बड़े, निरंतर भू-भाग हैं जो पृथ्वी की सतह को बनाते हैं। सात महाद्वीप हैं (नाम नीचे दिया गया है)। प्रत्येक महाद्वीप की अपनी स्थलाकृति, जलवायु, वनस्पति और जीव, और मानव आबादी सहित अद्वितीय भौतिक और सांस्कृतिक विशेषताएं हैं। दुनिया के भूगोल और इतिहास को समझने के साथ-साथ सांस्कृतिक और जैविक विविधता का अध्ययन करने के लिए महाद्वीप महत्वपूर्ण हैं।

पृथ्वी पर सात प्रमुख महाद्वीप हैं। ये विस्तृत जलराशि के द्वारा एक दूसरे से अलग हैं।

यहाँ भूमि क्षेत्र के अनुसार घटते क्रम में सात महाद्वीप हैं:

  1. Asia (एशिया)
  2. Africa (अफ्रीका)
  3. North America (उत्तरी अमेरिका)
  4. South America (दक्षिण अमेरिका)
  5. Antarctica (अंटार्कटिका)
  6. Europe (यूरोप)
  7. Australia (ऑस्ट्रेलिया)

एशिया

(Asia)

विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई भाग में फैला हुआ है। यह महाद्वीप पूर्वी गोलार्ध (Eastern Hemisphere) में स्थित है। कर्क रेखा (Tropic of Cancer) इस महाद्वीप से होकर गुजरती है। एशिया के पश्चिम में यूराल पर्वत (Ural Mountains) है जो इसे यूरोप से अलग करता है यूरोप एवं एशिया के संयुक्त भूभाग को यूरेशिया कहा जाता हैं।

  • विश्व के क्षेत्रफल का लगभग 29.5% भाग एशिया के पास है ।
  • यह विश्व के कुल क्षेत्र का लगभग 1/3 भाग पर फैला है।
  • एशिया महाद्वीप चावल, जूट, कपास, सिल्क आदि के उत्पादन में पहले स्थान पर
    है।
  • सबसे बड़ा देश – चीन (China)
  • सबसे छोटा देश – मालदीव (maldives)
  • सबसे लम्बी नदी – यांग्त्सीक्यांग (yangtzekiang)
  • सबसे ऊँचा पर्वत शिखर – माउंट एवरेस्ट ( 8848 मी. )
  • सबसे बड़ी झील – कैस्पियन सागर

अफ्रीका (Africa)

एशिया के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है। विषुवत् वृत्त या 0° अक्षांश (Equator) इस महाद्वीप के लगभग मध्य भाग से होकर गुजरती है। अफ्रीका का हु बड़ा भाग उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। यही एक ऐसा महाद्वीप है जिससे होकर कर्क, विषुवत् तथा मकर, तीनों रेखाएँ गुजरती हैं।

सहारा का रेगिस्तान (Desert ) विश्व का सबसे बड़ा गर्म रेगिस्तान है जो कि अफ्रीका में स्थित है। यह महाद्वीप चारों तरफ से समुद्रों एवं महासागरों से घिरा है।

  • विश्व की सबसे लंबी नदी नील अफ्रीका से होकर गुजरती है।
  • अफ्रीका का 1/3 भाग मरुस्थल है।
  • यहाँ केवल 10% भूमि ही कृषि योग्य है।
  • हीरा और सोना उत्पादन में अफ्रीका सबसे आगे है।
  • सबसे बड़ा देश – अल्जीरिया (algeria)
  • सबसे ऊँचा पर्वत शिखर – किलिमंजारो (5895 मी. )
  • सबसे बड़ी झील – विक्टोरिया (Victoria)
  • विश्व की सबसे बड़ी हीरे की खान किम्बरले (kimberley) इसी महाद्वीप पर स्थित है।

उत्तर अमेरिका (North America)

उत्तर अमेरिका विश्व का तीसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह दक्षिण अमेरिका से एक संकरे स्थल (Narrow Strip) से जुड़ा है जिसे पनामा स्थलसंधि (Isthmus of Panama) कहा जाता है। यह महाद्वीप पूरी तरह से उत्तरी एवं पश्चिमी गोलार्ध में स्थित है। यह महाद्वीप तीन महासागरों से घिरा है। विश्व की कुल मक्का उत्पादन का आधा भाग यहीं पैदा होता है।

  • सबसे बड़ा देश – कनाडा (Canada)
  • सबसे छोटा देश – सेंट पियरे (st pierre)
  • सबसे लम्बी नदी – मिसिसिपी – मिसौरी (Mississippi – Missouri)
  • सबसे ऊँचा पर्वत शिखर – देनाली (Denali) [ पुराना नाम – Mount Mckinley] (6194 मी. )
  • सबसे बड़ी झील (Lake) – सुपीरियर (Lake Superior) (विश्व की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील)

दक्षिण अमेरिका (South America)

दक्षिण अमेरिका संसार का चौथा बड़ा महाद्वीप है। इसका लगभग दो-तिहाई भाग विषुवत रेखा के दक्षिण में उष्ण कटिबंध में फैला है। इसका बहुत बड़ा भाग छ
है।

  • सबसे बड़ा देश – ब्राज़ील
  • सबसे छोटा देश – फ़ॉकलैंड द्वीप (Falkland)
  • सबसे लम्बी नदी – अमेज़न (Amazon)
  • सबसे ऊँचा पर्वत शिख – (Aconcagua – अकोंकागुआ / आकोंकाग्वा / एकांकागुआ)

अंटार्कटिका (Antarctica)

अंटार्कटिका संसार का पाँचवां बड़ा महाद्वीप है। जो कि दक्षिणी गोलार्ध में स्थित है। दक्षिण ध्रुव (South Pole) इस महाद्वीप के मध्य में स्थित है। चूँकि, यह दक्षिण ध्रुव क्षेत्र में स्थित है, इसलिए यह हमेशा मोटी बर्फ की परतों से ढका रहता है। यहाँ किसी भी प्रकार का स्थायी मानव निवास नहीं है। बहुत से देशों के शोध केंद्र (Research Station) यहाँ स्थित हैं। भारत के भी शोध संस्थान यहाँ हैं । इनके नाम हैं मैत्री तथा दक्षिण गंगोत्री |

  • अंटार्कटिका पृथ्वी का सबसे दक्षिणी महाद्वीप है, जो दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है।
  • यह पाँचवाँ सबसे बड़ा महाद्वीप है और इसका क्षेत्रफल लगभग 14 मिलियन वर्ग किलोमीटर है।
  • यह -10°C से -60°C तक औसत तापमान और कम वर्षा के साथ सबसे ठंडा और शुष्क महाद्वीप है।
  • अंटार्कटिका लगभग 1.6 किमी की औसत मोटाई और पृथ्वी पर सबसे बड़ी बर्फ की चादर के साथ बर्फ से ढका हुआ है।
  • यह विभिन्न प्रकार के अनूठे वन्यजीवों का घर है, जैसे कि पेंगुइन, सील और व्हेल।
  • अंटार्कटिका में कोई स्थायी मानव आबादी नहीं है, लेकिन 19वीं शताब्दी के बाद से विभिन्न देशों द्वारा वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए इसका उपयोग किया जाता रहा है।
  • शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए महाद्वीप को संरक्षित करने और राष्ट्रों के बीच वैज्ञानिक सहयोग सुनिश्चित करने के लिए 1959 में अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।
  • अंटार्कटिका में कोई शहर या कस्बे नहीं हैं, लेकिन वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए विभिन्न देशों द्वारा संचालित अनुसंधान केंद्र और क्षेत्र शिविर हैं।
  • अंटार्कटिका वैश्विक जलवायु और महासागर प्रणालियों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और इसकी पिघलने वाली बर्फ की चादरें समुद्र के स्तर में वृद्धि और समुद्र के संचलन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं।

यूरोप (Europe)

  • यूरोप महाद्वीप उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे छोटा महाद्वीप है तथा विश्व का छठा बड़ा महाद्वीप है। इसे प्रायद्वीपों का प्रायद्वीप ( Peninsula) या यूरेशिया का प्रायद्वीप कहते हैं।
  • यह महाद्वीप एशिया के पश्चिम में स्थित है। आकर्टिक वृत्त (Arctic Circle) इससे होकर गुजरता है। यह तीन तरफ से जल से घिरा है।
  • यूरोप पृथ्वी पर दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप है, जिसका क्षेत्रफल लगभग 10.18 मिलियन वर्ग किलोमीटर है।
  • यह पूर्वी गोलार्ध में स्थित है, जिसकी सीमा उत्तर में आर्कटिक महासागर, पश्चिम में अटलांटिक महासागर और दक्षिण में भूमध्य सागर से लगती है।
  • यूरोप लगभग 747 मिलियन लोगों का घर है और यह तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है।
  • यह अपनी विविध संस्कृतियों, भाषाओं और इतिहासों के लिए जाना जाता है, जिसमें कई प्रसिद्ध स्थल और आकर्षण हैं, जैसे कि एफिल टॉवर, कालीज़ीयम और एक्रोपोलिस।
  • यूरोप का एक समृद्ध इतिहास है, जिसमें रोमन साम्राज्य, पुनर्जागरण और दो विश्व युद्ध शामिल हैं।
  • यह महाद्वीप यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र जैसे कई महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों का घर है।
  • यूरोप की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में जर्मनी, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं।
  • यूरोप में एक विविध जलवायु है, दक्षिण में भूमध्यसागरीय जलवायु से लेकर उत्तर में सबआर्कटिक जलवायु तक।
  • यूरोप कला, विज्ञान और दर्शन में अपने योगदान के लिए जाना जाता है, जिसमें लियोनार्डो दा विंची, आइजैक न्यूटन और प्लेटो जैसे प्रसिद्ध व्यक्ति शामिल हैं।

आस्ट्रेलिया (Australia)

  • ऑस्ट्रेलिया एक देश और एक महाद्वीप दोनों है, आस्ट्रेलिया विश्व का सबसे छोटा महाद्वीप है, जो दक्षिणी गोलार्ध में स्थित है।
  • यह चारों तरफ से महासागरों तथा समुद्रों से घिरा है।
  • इसे द्वीपीय महाद्वीप (island continent ) कहा जाता है।
  • इसका क्षेत्रफल लगभग 7.7 मिलियन वर्ग किलोमीटर है और यह सबसे छोटा महाद्वीप है।
  • ऑस्ट्रेलिया की आबादी लगभग 25 मिलियन है, जिनमें से अधिकांश पूर्वी और दक्षिणी तटों के साथ शहरी क्षेत्रों में रहते हैं।
  • यह अपने अद्वितीय वन्य जीवन के लिए जाना जाता है, जैसे कि कंगारू, कोआला और दीवारबीज, साथ ही इसके विविध परिदृश्य, जिसमें रेगिस्तान, पहाड़ और समुद्र तट शामिल हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया के उत्तरपूर्वी तट पर स्थित ग्रेट बैरियर रीफ (Great Barrier Reef) दुनिया की सबसे बड़ी कोरल रीफ प्रणाली (coral reef system) है।
  • ऑस्ट्रेलिया में एक समृद्ध स्वदेशी संस्कृति है, जिसमें आदिवासी (Aboriginal) और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर (Torres Strait Islander) लोग भूमि के पहले निवासी हैं।
  • कोयला, लौह अयस्क और प्राकृतिक गैस सहित प्रमुख निर्यात के साथ ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था खनन, कृषि और पर्यटन द्वारा संचालित है।
  • ऑस्ट्रेलिया में सरकार की एक संघीय संसदीय प्रणाली है और यह संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है।
  • ऑस्ट्रेलिया में जलवायु विविध है, उत्तर में उष्णकटिबंधीय जलवायु और दक्षिण में समशीतोष्ण जलवायु है। देश में झाड़ियों में आग लगने और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बना रहता है।
  • ऑस्ट्रेलिया कई विश्व प्रसिद्ध आकर्षणों का घर है, जैसे कि सिडनी ओपेरा हाउस, उलुरु और ग्रेट ओशन रोड (the Sydney Opera House, Uluru, and the Great Ocean Road)

महासागर

(Ocean)

  • महासागर खारे पानी का एक विशाल निकाय है जो पृथ्वी की सतह के 70% से अधिक को कवर करता है, जिसकी कुल मात्रा लगभग 1.3 बिलियन क्यूबिक किलोमीटर है।
  • यह पाँच प्रमुख महासागरों में विभाजित है: अटलांटिक, प्रशांत, भारतीय, दक्षिणी और आर्कटिक महासागर। (the Atlantic, Pacific, Indian, Southern, and Arctic Oceans)
  • समुद्र पृथ्वी की जलवायु और मौसम के पैटर्न को विनियमित करने के साथ-साथ समुद्री जीवन की एक विस्तृत श्रृंखला का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • महासागर में विभिन्न प्रकार के निवास स्थान हैं, जिनमें प्रवाल भित्तियाँ, केल्प वन और हाइड्रोथर्मल वेंट शामिल हैं, जो सूक्ष्म प्लैंकटन से लेकर विशाल व्हेल ( a variety of habitats, including coral reefs, kelp forests, and hydrothermal vents, which support a diverse array of species, from microscopic plankton to giant whales) तक विविध प्रकार की प्रजातियों का समर्थन करते हैं।
  • मानव गतिविधियों, जैसे कि प्रदूषण और अत्यधिक मछली पकड़ना, ने समुद्र और इसके निवासियों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।
  • समुद्र भी भोजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जिसमें समुद्री भोजन दुनिया की प्रोटीन खपत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्रदान करता है।
  • देशों और महाद्वीपों को जोड़ने वाली शिपिंग लेन के साथ महासागर ने मानव परिवहन और व्यापार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • वैज्ञानिक अभी भी नई प्रजातियों की खोज कर रहे हैं और महासागर को बनाने वाली जटिल प्रणालियों को समझ रहे हैं, जिससे यह अध्ययन का एक आकर्षक और महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है।
  • महासागर में कई रहस्य हैं, जैसे मारियाना ट्रेंच की गहराई (the Marianas Trench) और मध्य महासागर की लकीरों की विशालता, जो दुनिया भर के लोगों की कल्पना पर कब्जा करना जारी रखती है।

विश्व के प्रमुख महासागर

(Major Oceans of the World)

प्रशांत महासागर (Pacific Ocean)

  • प्रशांत महासागर: दुनिया का सबसे बड़ा महासागर, 60 मिलियन वर्ग मील से अधिक क्षेत्र को कवर करता है। यह पूर्व में एशिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच और पश्चिम में उत्तर और दक्षिण अमेरिका के बीच स्थित है।
  • प्रशांत महासागर सबसे बड़ा महासागर है। यह पृथ्वी के एक- तिहाई भाग पर फैला है। पृथ्वी का सबसे गहरा भाग मेरियाना गर्त (Mariana Trench ) प्रशांत महासागर में ही स्थित है। प्रशांत महासागर लगभग वृत्ताकार (Circular shape ) है। एशिया, आस्ट्रेलिया, उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका इसके चारों ओर स्थित हैं।

अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean)

  • अटलांटिक महासागर: दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा महासागर, जो लगभग 41 मिलियन वर्ग मील में फैला है। यह पश्चिम में अमेरिका और पूर्व में यूरोप और अफ्रीका के बीच स्थित है।
  • अटलांटिक महासागर विश्व का दूसरा सबसे बड़ा महासागर है। यह अंग्रेजी भाषा के ‘S’ अक्षर के आकार का है। इसके पश्चिमी किनारे पर उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका हैं तथा पूर्वी किनारे पर यूरोप एवं अफ्रीका हैं। व्यापार की दृष्टि से यह सबसे व्यस्त महासागर है।

हिंद महासागर (Indian Ocean)

  • हिंद महासागर: दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महासागर, जो लगभग 28 मिलियन वर्ग मील को कवर करता है। यह अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच स्थित है।
  • हिंद महासागर ही एक ऐसा महासागर है जिसका नाम किसी देश के नाम पर, यानी भारत के नाम पर रखा गया है। यह महासागर लगभग त्रिभुज आकार (triangular shape) का है। इसके उत्तर में एशिया, पश्चिम में अफ्रीका तथा पूर्व में आस्ट्रेलिया स्थित हैं।

दक्षिणी महासागर (Southern Ocean)

  • दक्षिणी महासागर: इसे अंटार्कटिक महासागर के रूप में भी जाना जाता है, यह दुनिया के महासागरों में सबसे छोटा और सबसे नया है, जो लगभग 7.8 मिलियन वर्ग मील में फैला है। यह अंटार्कटिका को घेरता है और 60 डिग्री दक्षिण अक्षांश तक फैला हुआ है।
  • दक्षिणी महासागर अंटार्कटिका महाद्वीप को चारों ओर से घेरता है। यह अंटार्कटिका महाद्वीप से उत्तर की ओर 60° दक्षिणी अक्षांश ( latitude) तक फैला हुआ है।

आकर्टिक महासागर (Arctic Ocean)

  • आर्कटिक महासागर: दुनिया का सबसे छोटा महासागर, जो लगभग 5.4 मिलियन वर्ग मील में फैला है। यह उत्तरी ध्रुव पर स्थित है और यूरेशिया और उत्तरी अमेरिका से घिरा हुआ है।
  • आकर्टिक महासागर उत्तर ध्रुव वृत्त (Arctic Circle) में स्थित है तथा यह उत्तर ध्रुव के चारों ओर फैला है। यह प्रशांत महासागर से छिछले जल (shallow water) वाले एक सँकरे भाग (narrow stretch) से जुड़ा है जिसे बेरिंग जलसंधि (Berring strait) के नाम से जाना जाता है। यह उत्तर अमेरिका के उत्तरी तटों तथा यूरेशिया से घिरा है।

पर्वत

(MOUNTAINS)

पहाड़ बड़े भू-आकृतियाँ (large landforms) हैं जो आसपास के इलाके से ऊपर उठते हैं, आमतौर पर खड़ी ढलानों और ऊँची ऊँचाई के साथ। पहाड़ों के बारे में कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

  • पर्वत टेक्टोनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से बनते हैं, जैसे महाद्वीपीय प्लेटों की टक्कर या ज्वालामुखीय गतिविधि।
  • वे सभी महाद्वीपों पर पाए जाते हैं और कुछ सौ मीटर से लेकर 8,000 मीटर तक की ऊँचाई तक हो सकते हैं।
  • दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत माउंट एवरेस्ट है, जिसकी ऊंचाई हिमालय में 8,848+ मीटर है।
  • पहाड़ पौधों और जानवरों की प्रजातियों की एक विस्तृत श्रृंखला का घर हैं जो चरम स्थितियों के अनुकूल होते हैं, जैसे कि ठंडे तापमान, तेज़ हवाएँ और कम ऑक्सीजन स्तर।
  • हजारों सालों से लोग पहाड़ों में और उसके आसपास रह रहे हैं, और उन्होंने मानव इतिहास और संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए, प्राचीन यूनानियों का मानना था कि देवता ओलिंप पर्वत पर रहते थे।
  • पर्वत बाहरी मनोरंजन के लिए भी लोकप्रिय स्थान हैं, जैसे- पर्वतारोहण, लंबी पैदल यात्रा, , Paragliding, Hang Gliding, River Rafting and Skiing।
  • पहाड़ों के निर्माण का पृथ्वी की जलवायु और मौसम के पैटर्न के साथ-साथ पौधों और जानवरों की प्रजातियों के वितरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
  • पहाड़ों के क्षरण के परिणामस्वरूप घाटियों, घाटियों और अन्य भू-आकृतियों का निर्माण हो सकता है, जबकि उनकी चट्टानें पृथ्वी के इतिहास और भूविज्ञान के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रकट कर सकती हैं।
  • पहाड़ी वह स्थलीय भाग है जो कि आस- पास की भूमि से ऊँची उठी होती है। 600 मीटर से अधिक ऊँचाई एवं खड़ी ढाल वाली पहाड़ी को पर्वत कहा जाता है।
  • कुछ पर्वतों पर हमेशा जमी रहने वाली बर्फ की नदियाँ होती हैं। उन्हें हिमानी (Glaciers) कहा जाता है।
  • हिमालय, आल्प्स तथा एंडीश क्रमशः एशिया, यूरोप तथा दक्षिण अमेरिका की पर्वत शृंखलाएँ हैं

पहाड़ों के तीन मुख्य प्रकार हैं:

1. वलित पर्वत ( Fold Mountains)
2. भ्रंशोत्थ पर्वत (Block Mountains)
3. ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountains)

वलित पर्वत (Fold Mountains)

वलित पर्वत एक प्रकार के पर्वत हैं जो टेक्टोनिक प्लेट के संचलन के कारण चट्टान की परतों के मुड़ने से बनते हैं। वलित पर्वतों के बारे में कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

  • वलित पर्वत आमतौर पर टेक्टोनिक प्लेटों के किनारों के पास पाए जाते हैं, जहां दो प्लेटें टकराती हैं और एक दूसरे के खिलाफ धक्का देती हैं, जिससे चट्टान की परतें झुक जाती हैं और मुड़ जाती हैं।
  • वे आम तौर पर लंबी लकीरें और घाटियों की विशेषता रखते हैं, जिसमें लकीरें उत्थान और मुड़ी हुई चट्टान की परतों से बनी होती हैं, और घाटियों का निर्माण अपरदन और चट्टान की परतों के नीचे होने से होता है।
  • वलित पर्वतों के सबसे प्रसिद्ध उदाहरण हिमालय हैं, जो भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के टकराने से बने थे, और एंडीज (Andes), जो दक्षिण अमेरिकी प्लेट के नीचे नाज़का प्लेट के उप-विभाजन से बने थे।
  • हिमालय तथा आल्प्स वलित पर्वत हैं जिनकी सतह ऊबड़-खाबड़ तथा शिखर शंक्वाकार है। भारत की अरावली शृंखला विश्व की सबसे पुरानी वलित पर्वत शृंखला है।
  • वलित पर्वत दुनिया के अन्य भागों में भी पाए जा सकते हैं, जैसे यूरोप में आल्प्स (Alps in Europe), उत्तरी अमेरिका में रॉकीज़ (Rockies in North America) और रूस में उराल (Urals in Russia)
  • वे आम तौर पर प्राकृतिक संसाधनों, जैसे खनिजों और धातुओं में समृद्ध हैं, और हजारों वर्षों से मानव सभ्यताओं का समर्थन करते रहे हैं।
  • वलित पर्वतों के निर्माण का पृथ्वी की जलवायु और भूविज्ञान पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जैसे कि नदियों, झीलों और अन्य भू-आकृतियों के निर्माण के साथ-साथ पौधों और जानवरों की प्रजातियों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए आवासों का निर्माण।

भ्रंशोत्थ पर्वत (Block Mountains)

ब्लॉक पर्वत/ भ्रंशोत्थ पर्वत, जिसे फॉल्ट-ब्लॉक पर्वत के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रकार का पर्वत है जो टेक्टोनिक प्लेटों के संचलन से बनता है, जहाँ चट्टान का एक खंड ऊपर उठ जाता है और एक भ्रंश रेखा के साथ ऊपर की ओर बढ़ जाता है। ब्लॉक पहाड़ों के बारे में कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

  • ब्लॉक पहाड़ों (भ्रंशोत्थ पर्वत) को आमतौर पर एक तरफ खड़ी चट्टानों या ढलानों और दूसरी तरफ हल्के ढलानों या पठार की विशेषता होती है।
  • जब बहुत बड़ा भाग टूट जाता है तथा ऊध्र्वाधर (vertically) रूप से विस्थापित हो जाता है तब भ्रंशोत्थ पर्वतों का निर्माण होता है। यूरोप की राईन घाटी तथा वॉजेस पर्व भ्रंशोत्थ पर्वत के उदाहरण हैं।
  • वे अक्सर तीव्र विवर्तनिक गतिविधि के क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जैसे कि महाद्वीपीय और महासागरीय प्लेटों के बीच की सीमाएँ, या दो महाद्वीपीय प्लेटों के बीच।
  • फॉल्ट लाइन के साथ पृथ्वी की पपड़ी की गति से चट्टान का एक खंड ऊपर उठ सकता है, जबकि दूसरा ब्लॉक नीचे की ओर डूब जाता है, जिससे एक पर्वत श्रृंखला बन जाती है।
  • ब्लॉक पहाड़ों के प्रसिद्ध उदाहरणों में कैलिफोर्निया में सिएरा नेवादा रेंज, व्योमिंग में टेटन्स और जर्मनी में हार्ज़ (the Sierra Nevada range in California, the Tetons in Wyoming, and the Harz Mountains in Germany) पर्वत शामिल हैं।
  • ब्लॉक पर्वत दुनिया के अन्य भागों में भी पाए जा सकते हैं, जैसे फ्रांस में वोसगेस पर्वत और स्कॉटिश हाइलैंड्स( the Vosges Mountains in France and the Scottish Highlands)
  • अन्य प्रकार के पर्वतों, जैसे वलित पर्वतों की तुलना में वे आम तौर पर प्राकृतिक संसाधनों में कम समृद्ध हैं।
  • ब्लॉक पर्वतों के निर्माण का पृथ्वी के भूविज्ञान और जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जैसे कि पौधों और जानवरों की प्रजातियों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए नए भू-आकृतियों और आवासों का निर्माण।

ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountains)

ज्वालामुखी क्रियाओं के कारण बनते हैं। अफ्रीका का माउंट किलिमंजारो तथा जापान का फ्युजियमा इस तरह के पर्वतों के उदाहरण हैं।

ज्वालामुखीय पर्वत: जब पृथ्वी की पपड़ी में एक वेंट से मैग्मा और राख निकलती है और समय के साथ जमा हो जाती है, तो शंकु के आकार के पहाड़ों को खड़ी पक्षों के साथ बनाया जाता है। उदाहरणों में जापान में माउंट फ़ूजी, तंजानिया में माउंट किलिमंजारो और संयुक्त राज्य अमेरिका में माउंट सेंट हेलेंस शामिल हैं।

यहां भारत के कुछ प्रमुख पर्वतों की तालिका उनके राज्यों के साथ दी गई है जिनमें वे स्थित हैं:

Mountain Name States
Himalayas Jammu and Kashmir, Himachal Pradesh, Uttarakhand, Sikkim, Arunachal Pradesh
Karakoram Range Jammu and Kashmir
Pir Panjal Range Jammu and Kashmir, Himachal Pradesh
Zanskar Range Jammu and Kashmir
Dhauladhar Range Himachal Pradesh
Aravalli Range Rajasthan, Gujarat, Haryana
Satpura Range Madhya Pradesh, Maharashtra
Vindhya Range Madhya Pradesh, Uttar Pradesh
Western Ghats Gujarat, Maharashtra, Goa, Karnataka, Kerala, Tamil Nadu
Eastern Ghats Odisha, Andhra Pradesh, Tamil Nadu
Nilgiri Hills Tamil Nadu, Karnataka, Kerala
Anaimalai Hills Tamil Nadu, Kerala
Cardamom Hills Kerala, Tamil Nadu
Kanchenjunga Sikkim
Nanda Devi Uttarakhand


पठार

(PLATEAUS)

पठार चपटी चोटी वाले ऊंचे भू-आकृतियाँ हैं जो आसपास के परिदृश्य से तेजी से ऊपर उठते हैं, एक या अधिक तरफ खड़ी चट्टानों या ढलानों के साथ। यह आस-पास के क्षेत्रों से अधिक उठा हुआ होता है। पठारों की ऊँचाई कुछ सौ मीटर से लेकर कई हजार मीटर तक हो सकती है। पठारों के बारे में कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

पठार अक्सर भूगर्भीय उत्थान द्वारा बनते हैं, जहाँ विवर्तनिक बल भूमि को ऊपर उठने और उच्च, अपेक्षाकृत समतल क्षेत्र बनाने का कारण बनते हैं।

  • वे ज्वालामुखीय गतिविधि द्वारा भी बन सकते हैं, जहां लावा प्रवाह निचले इलाके को भरता है और एक सपाट सतह बनाता है।
  • तिब्बत का पठार विश्व का सबसे ऊँचा पठार है, जिसकी ऊँचाई माध्य समुद्र तल (mean sea level) से 4,000 से 6,000 मीटर तक है।
  • अफ्रीका का पठार सोना एवं हीरों के खनन (mining) के लिए प्रसिद्ध है। भारत में
  • छोटानागपुर के पठार में लोहा (iron), कोयला (coal) तथा मैंगनीज (manganese) के बहुत बड़े भंडार पाए जाते हैं।
  • पठार सभी महाद्वीपों पर पाए जा सकते हैं, और सबसे प्रसिद्ध उदाहरणों में एशिया में तिब्बती पठार, संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलोराडो पठार और भारत में डेक्कन पठार शामिल हैं
  • वे आकार में छोटे, अलग-थलग पठारों से लेकर विशाल, ऊँचे-ऊँचे क्षेत्रों तक हो सकते हैं जो हजारों वर्ग किलोमीटर को कवर करते हैं।
  • पठार प्राकृतिक संसाधनों, जैसे खनिज, धातु और जीवाश्म ईंधन से समृद्ध हो सकते हैं, और पौधों और जानवरों की प्रजातियों की एक विस्तृत श्रृंखला का समर्थन कर सकते हैं।
  • हालांकि, वे अपनी उच्च ऊंचाई, अत्यधिक तापमान और पानी की कमी के कारण मानव निवास के लिए चुनौतीपूर्ण वातावरण भी हो सकते हैं।
  • पठारों के निर्माण का पृथ्वी के भूविज्ञान और जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जैसे कि नए भू-आकृतियों का निर्माण और मौसम के पैटर्न को आकार देना।
  • पठारों का अध्ययन पृथ्वी के भूवैज्ञानिक इतिहास को समझने और उच्च-ऊंचाई वाले पारिस्थितिक तंत्रों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की भविष्यवाणी करने के लिए अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।

भारत

(India)

भारत 1.3 अरब से अधिक लोगों की आबादी के साथ दक्षिण एशिया में स्थित एक देश है, जो इसे दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश बनाता है। यह अपनी विविध संस्कृति, इतिहास और धर्मों के लिए जाना जाता है, जिसमें हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म शामिल हैं। सूचना प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और कृषि जैसे उद्योगों पर ध्यान देने के साथ भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। देश ने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और गरीबी में कमी जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन अभी भी भ्रष्टाचार, असमानता और पर्यावरण क्षरण जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है।

  • भारत एक बहुत बड़े भौगोलिक विस्तार वाला देश है। उत्तर में यह हिमालय के ऊँचे शिखरों से घिरा है। पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा दक्षिण में हिंद महासागर तक फैला है।
  • भारत का क्षेत्रफल (Area) 32,87,263 लाख वर्ग किमी. (million sq. km.) है। उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक इसका विस्तार लगभग 3200 किमी. है तथा पूर्व में अरुणाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम में कच्छ तक इसका विस्तार लगभग 2,900 किमी. तक है।
  • सात देशों अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश एवं म्यांमार (बर्मा) की स्थलीय सीमाएँ भारत की सीमाओं से जुड़ी हैं, जबकि श्रीलंका व मालदीव हिन्द महासागर में स्थित दो पड़ोसी द्वीपीय देश हैं।
  • प्रायद्वीप (peninsula) स्थल का वह भाग है जो तीन तरफ से जल से घिरा होता है
  • भारत उत्तरी गोलार्ध (Northern hemisphere) में स्थित है। कर्क रेखा देश के लगभग मध्य भाग से होकर गुजरती है।
  • पाक जलसंधि (Palk Strait) भारत को श्रीलंका से अलग करती है।
  • जलोढ़ निक्षेप (Alluvial deposits) ये नदियों के द्वारा लाई गई बहुत बारीक मिटटी होती है तथा नदी बेसिन में निक्षेपित (deposited) कर दी जाती है।
  • सहायक नदी (Tributary) एक नदी या सरिता (stream) जो कि मुख्य नदी में किसी भी तरफ से आकर मिलती है तथा अपने जल को मुख्य नदी में डालती है।
  • गंगा एवं ब्रह्मपुत्रा नदियाँ विश्व के सबसे बड़े डेल्टा का निर्माण करती हैं, जिसे
    सुन्दरबन डेल्टा कहा जाता है। इस डेल्टा की आकृति त्रिभुजाकार (triangular) है।
  • डेल्टा स्थल का वह भाग है जो नदी के मुहाने पर बनता है। जहाँ नदियाँ समुद्र प्रवेश करती हैं उस जगह को नदी का मुहाना कहा जाता है।
  • महानदी, गोदावरी, कृष्ण तथा कावेरी बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। ये नदियाँ अपने मुहाने पर उपजाऊ डेल्टा का निर्माण करती हैं। बंगाल की खाड़ी में गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदियों के मुहाने पर सुंदरबन डेल्टा स्थित है।
  • भारत में दो द्वीपसमूह (islands) हैं। लक्षद्वीप द्वीपसमूह अरब सागर में स्थित हैं।
  • ये केरल के तट से कुछ दूर स्थित प्रवाल द्वीप (coral islands) हैं। अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह भारत से दक्षिण-पूर्व (southeast) दिशा में बंगाल की खाड़ी में स्थित हैं।

भारत के राज्य एंव राजधानी

(Indian states and capitals)

यहाँ भारतीय राज्यों और उनकी राजधानियों की एक तालिका है:

State Capital
Andhra Pradesh Amaravati
Arunachal Pradesh Itanagar
Assam Dispur
Bihar Patna
Chhattisgarh Raipur
Goa Panaji
Gujarat Gandhinagar
Haryana Chandigarh
Himachal Pradesh Shimla
Jharkhand Ranchi
Karnataka Bengaluru
Kerala Thiruvananthapuram
Madhya Pradesh Bhopal
Maharashtra Mumbai
Manipur Imphal
Meghalaya Shillong
Mizoram Aizawl
Nagaland Kohima
Odisha Bhubaneswar
Punjab Chandigarh
Rajasthan Jaipur
Sikkim Gangtok
Tamil Nadu Chennai
Telangana Hyderabad
Tripura Agartala
Uttar Pradesh Lucknow
Uttarakhand Dehradun
West Bengal Kolkata

 

नोट: चंडीगढ़ एक केंद्र शासित प्रदेश है जो दो राज्यों, हरियाणा और पंजाब की राजधानी के रूप में कार्य करता है।


Indian Union Territories and their Associated States
(भारतीय केंद्र शासित प्रदेश और उनके संबद्ध राज्य)

यहां भारतीय केंद्र शासित प्रदेशों और उन राज्यों की तालिका दी गई है जिनसे वे जुड़े हुए हैं:

भारतीय केंद्र शासित प्रदेश राजधानी
अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह पोर्ट ब्लेयर
चण्डीगढ़ चण्डीगढ़
दादरा और नगर हवेली दमन
दिल्ली दिल्ली
लक्षद्वीप कवारती
पुदुच्चेरी पुदुच्चेरी
जम्मू और कश्मीर श्रीनगर (ग्रीष्मकालीन) जम्मू (शीतकालीन)
लद्दाख लेह

 

नोट: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों को 2019 में भारत सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के बाद बनाया गया था। वे सीधे संघीय सरकार द्वारा प्रशासित होते हैं और उनका कोई संबद्ध राज्य नहीं होता है।


जलवायु

(Climate)

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  • जलवायु किसी स्थान पर अनेक वर्षों में मापी गई मौसम की औसत दशा (average weather) को जलवायु कहते हैं।
  • भारत की जलवायु को मोटे तौर पर मानसूनी जलवायु कहा जाता है। मानसून शब्द अरबी भाषा मौसम से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है मौसम | भारत की स्थिति उष्ण कटिबंध (tropical region) में होने के कारण अधिकतर वर्षा मानसूनी पवन से होती है।
  • भारत में कृषि ज्यादातर वर्षा पर निर्भर है।
  • किसी स्थान की जलवायु उसकी स्थिति, ऊँचाई (Altitude), समुद्र से दूरी तथा उच्चावच (Relief) पर निर्भर करती है।
  • सबसे अधिक वर्षा मेघालय में स्थित मौसिनराम में होती है |
  • जलवायु एक विशेष क्षेत्र में या पूरे ग्रह पर तापमान, वर्षा और अन्य मौसम की स्थिति के दीर्घकालिक पैटर्न को संदर्भित करता है।
  • ज्वालामुखीय गतिविधि और सौर विकिरण में परिवर्तन जैसे प्राकृतिक कारकों के कारण पृथ्वी की जलवायु अपने पूरे इतिहास में बदलती रही है, लेकिन मानव गतिविधियों जैसे कि जीवाश्म ईंधन को जलाने और वनों की कटाई ने हाल के दिनों में इस प्रक्रिया को तेज कर दिया है।
  • जलवायु परिवर्तन बढ़ते तापमान, बर्फ के पिघलने, समुद्र के स्तर में वृद्धि, अधिक लगातार और गंभीर मौसम की घटनाओं, और पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता में परिवर्तन सहित कई तरह के प्रभाव पैदा कर रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए, देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन करने और ऊर्जा दक्षता में सुधार करने जैसे कदम उठा रहे हैं।
  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC – United Nations Framework Convention on Climate Change) सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों को दूर करने के लिए अधिकांश देशों द्वारा हस्ताक्षरित एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है।

प्राकृतिक वनस्पति

(NATURAL VEGETATION)

  • प्राकृतिक वनस्पति उन पौधों की प्रजातियों को संदर्भित करती है जो मानव हस्तक्षेप या खेती के बिना एक क्षेत्र में बढ़ती हैं।
  • किसी क्षेत्र में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पति का प्रकार जलवायु, मिट्टी, स्थलाकृति और पानी की उपलब्धता जैसे कारकों से प्रभावित होता है।
  • विश्व के प्रमुख प्राकृतिक वनस्पति प्रकारों में वन, घास के मैदान, रेगिस्तान, टुंड्रा और जलीय वनस्पति शामिल हैं।
  • वन सबसे व्यापक प्राकृतिक वनस्पति प्रकार हैं और कार्बन पृथक्करण, जैव विविधता संरक्षण, और मिट्टी और जल संरक्षण जैसी महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करते हैं।
  • घास के मैदानों में घासों का वर्चस्व है और अर्ध-शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जैसे कि अफ्रीकी सवाना और अमेरिकी घास के मैदान।
  • घास, झाडियाँ तथा पौधे जो बिना मनुष्य की सहायता के उपजते हैं उन्हें प्राकृतिक वनस्पति कहा जाता है।
  • रेगिस्तान कम वर्षा और विरल वनस्पति वाले क्षेत्र हैं, और सहारा और अरब प्रायद्वीप जैसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • टुंड्रा ध्रुवीय क्षेत्रों में पाया जाता है और एक छोटे से बढ़ते मौसम और कम तापमान की विशेषता है, जिसमें वनस्पति जैसे काई, लाइकेन और छोटी झाड़ियाँ होती हैं।
  • जलीय वनस्पति उन पौधों को संदर्भित करती है जो महासागरों, झीलों और नदियों जैसे जल निकायों में उगते हैं और जलीय जंतुओं के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करते हैं।

वन्य प्राणी

(WILD LIFE)

  • वन विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का निवास होता है।
  • बाघ (tiger) हमारा राष्ट्रीय पशु है। यह देश के विभिन्न भागों में पाया जाता है। गुजरात के गिर वन में एशियाई शेरों का निवास है। हाथी तथा एक सींग वाले गैंडे असम के जंगलों में पाए जाते हैं। हाथी, केरल एवं कर्नाटक में भी मिलते हैं।
  • ऊँट भारत के रेगिस्तान तथा जंगली गधा कच्छ के रन में पाए जाते हैं। जंगली बकरी, हिम तेंदुआ, भालू आदि हिमालय के क्षेत्र में पाए जाते हैं।
  • भारत में पक्षियों की भी ऐसी ही प्रचुरता है।
  • मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है।
  • भारत में साँपों की सैकड़ों प्रजातियाँ पाई जाती हैं। उनमें कोबरा एवं करैत प्रमुख हैं। कुछ पक्षी पिंटेल बत्तख, कर्लियू, फ्लेमिंगो, ओस्प्रे, लिटिल स्टिंट प्रत्येक वर्ष सर्दी के मौसम में हमारे देश आते हैं। सबसे छोटी लिटिल स्टिंट जिसका वजन लगभग 15 ग्राम होता है आर्कटिक प्रदेश से 8000 किलोमीटर की दूरी तय करके भारत आती हैं।
  • प्रत्येक वर्ष अक्टूबर माह का पहला सप्ताह, वन्य जीव सप्ताह के रूप में मनाया जाता है।
  • प्रवासी पक्षी :- पेलिकन, साइबेरियन सारस, स्टोर्क, फ्लेमिंगो, पिनटेल बत्तख, इत्यादि प्रत्येक वर्ष सर्दी के मौसम में हमारे देश में आते हैं। साइबेरियन सारस साइबेरिया से दिसम्बर के महीने में आते हैं। तथा मार्च के आरम्भ तक रहते हैं।
  • वन्यजीव अपने प्राकृतिक आवास में रहने वाले सभी गैर-पालतू जानवरों को संदर्भित करता है।
  • वन्यजीव पारिस्थितिक संतुलन और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और भोजन, दवा और मनोरंजन जैसे विभिन्न लाभ प्रदान करते हैं।
  • वन्य जीवन के खतरों में निवास स्थान का नुकसान और विखंडन, अवैध शिकार और अवैध वन्यजीव व्यापार, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और मानव-वन्यजीव संघर्ष शामिल हैं।
  • संरक्षण प्रयासों में संरक्षित क्षेत्र जैसे राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभ्यारण्य, आवास बहाली, कैप्टिव प्रजनन और पुन: परिचय कार्यक्रम, और समुदाय-आधारित संरक्षण पहल शामिल हैं।
  • लुप्तप्राय प्रजातियां वे हैं जो कम जनसंख्या संख्या या उनके आवास के लिए खतरों के कारण विलुप्त होने के खतरे में हैं, और संरक्षण के प्रयास उनके विलुप्त होने को रोकने पर केंद्रित हैं।
  • कुछ प्रतिष्ठित और लुप्तप्राय वन्यजीव प्रजातियों में हाथी, बाघ, शेर, गैंडे, गोरिल्ला, व्हेल और समुद्री कछुए शामिल हैं।

पारितंत्र

(Ecosystem)

वह तंत्र होता है जिसमें समस्त जीवधारी आपस में एक-दूसरे के साथ तथा पर्यावरण के उन भौतिक (Physical) एवं रासायनिक कारकों (Chemical factors) के साथ परस्पर क्रिया करते हैं जिसमें वे निवास करते हैं। ये सब ऊर्जा (Energy) और पदार्थ के स्थानांतरण द्वारा सम्बंधित हैं।

  • एक पारिस्थितिकी तंत्र जीवित जीवों (पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों) का एक दूसरे और उनके निर्जीव पर्यावरण (जैसे मिट्टी, पानी और हवा) के साथ बातचीत करने का एक समुदाय है।
  • पारिस्थितिक तंत्र बहुत विविध हो सकते हैं, प्रवाल भित्तियों से लेकर जंगलों तक घास के मैदानों से लेकर रेगिस्तान तक।
  • पारितंत्र मनुष्यों को कई महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करते हैं, जिनमें स्वच्छ हवा और पानी, भोजन, कपड़े और आश्रय के लिए सामग्री शामिल हैं।
  • वनों की कटाई, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी मानवीय गतिविधियाँ पारिस्थितिक तंत्र और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।
  • जैव विविधता की रक्षा और क्षतिग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करने जैसे संरक्षण प्रयास इन महत्वपूर्ण सेवाओं को बनाए रखने और पर्यावरण को और नुकसान से बचाने में मदद कर सकते हैं।

पर्यावरण

(ENVIRONMENT)

  • पर्यावरण हमारे आसपास की प्राकृतिक दुनिया को संदर्भित करता है, जिसमें हवा, पानी, मिट्टी और जीवित जीव शामिल हैं।
  • जीवित प्राणी के चारों ओर पाए जाने वाले लोग, स्थान, वस्तुएँ एवं प्रकृति (Nature) को पर्यावरण कहते हैं।
  • यह प्राकृतिक एवं मानव निर्मित (human made) जैसे- स्थल परिघटनाओं (phenomena) का मिश्रण है।
  • जीवाश्म ईंधन जलाने, वनों की कटाई और प्रदूषण जैसी मानवीय गतिविधियों का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें जलवायु परिवर्तन, निवास स्थान का विनाश और जैव विविधता का नुकसान शामिल है।
  • पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता के प्रयासों का उद्देश्य हमारे नकारात्मक प्रभाव को कम करके और अधिक टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देकर भविष्य की पीढ़ियों के लिए पर्यावरण और इसके संसाधनों की रक्षा करना है।
  • स्थायी प्रथाओं के उदाहरणों में अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना, कचरे को कम करना और पुनर्चक्रण करना और प्राकृतिक आवासों की रक्षा करना शामिल है।
  • पर्यावरण की देखभाल करना न केवल अपने लिए बल्कि मनुष्यों और अन्य जीवित जीवों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण है जो जीवित रहने के लिए पर्यावरण पर निर्भर हैं।

पृथ्वी के प्रमुख परिमंडल

(Major Domains of The Earth)

पृथ्वी का ठोस भाग (solid portion) जिस पर हम रहते हैं उसे भूमंडल (Lithosphere) कहा जाता है। गैस की परतें, जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरती हैं उसे वायुमंडल (Atmosphere) कहा जाता है, जहाँ ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा दूसरी गैसें पाई जाती हैं। पृथ्वी के बहुत बड़े भाग पर जल पाया जाता है जिसे जलमंडल (Hydrosphere) कहा जाता है। जलमंडल में जल की सभी अवस्थाएँ जैसे- बर्फ, जल एवं जलवाष्प (water vapour ) सम्मिलित हैं।

  • पृथ्वी को चार प्रमुख डोमेन में बांटा गया है: स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल और जीवमंडल ( lithosphere, hydrosphere, atmosphere, and biosphere)
  • लिथोस्फीयर पृथ्वी की ठोस बाहरी परत है जिसमें महाद्वीप और समुद्री पपड़ी शामिल हैं।
  • जलमंडल में महासागरों, नदियों, झीलों और भूजल सहित पृथ्वी पर मौजूद सभी जल शामिल हैं।
  • वायुमंडल पृथ्वी के चारों ओर गैसों की परत है, जिसमें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड शामिल हैं, जो जीवन का समर्थन करते हैं और पृथ्वी को हानिकारक विकिरण से बचाते हैं।
  • (Biosphere) जीवमंडल पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों और अन्य डोमेन के साथ उनकी बातचीत को संदर्भित करता है।
  • ये डोमेन आपस में जुड़े हुए हैं और लगातार परस्पर क्रिया कर रहे हैं, एक डोमेन में परिवर्तन दूसरों को प्रभावित करते हैं।
  • इन डोमेन का अध्ययन भूविज्ञान, मौसम विज्ञान और पारिस्थितिकी जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है, और पृथ्वी को बनाने वाली जटिल प्रणालियों को समझने में हमारी सहायता करता है।

जीवमंडल (Biosphere) एक सीमित क्षेत्र है, जहाँ स्थल, एवं हवा एक साथ मिलते है, जहाँ सभी प्रकार के जीवन पाए जाते है।

  • पृथ्वी की सतह को दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है। बड़े स्थलीय भूभागों (landmasses) को महाद्वीपों (continents) के नाम से जाना जाता है तथा बड़े जलाशयों को महासागरीय बेसिन ( ocean basins) के नाम से जाना जाता है।
  • विश्व के सभी महासागर ( oceans) आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए है।
  • समुद्री जल का तल सभी जगह समान होता है। स्थल की ऊंचाई को समुद्र तल से मापा जाता है। जिसे शून्य (zero) माना जाता है।
  • विश्व का सबसे ऊँचा शिखर माउंट एवरेस्ट समुद्र तल से 8,848 मीटर ऊँचा है।
  • विश्व का सबसे गहरा भाग प्रशांत महासागर का मेरियाना गर्त है, जिसकी गहराई 11,022 मीटर है।

प्राकृतिक पर्यावरण

(The Natural Environment)

  • प्राकृतिक पर्यावरण गैर-मानव निर्मित परिवेश को संदर्भित करता है जिसमें जीवित जीव मौजूद होते हैं, जिसमें हवा, पानी, मिट्टी और जीवित जीव शामिल हैं। सभी मिलकर प्राकृतिक पर्यावरण बनाते हैं।
  • यह अपक्षय (weathering), अपरदन (erosion) और प्लेट टेक्टोनिक्स (plate tectonics) जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा आकार लिया गया है, और समय के साथ लगातार बदल रहा है।
  • जैव विविधता, या जीवित जीवों की विभिन्न प्रजातियों की विविधता, प्राकृतिक पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण पहलू है और स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने और मनुष्यों को महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक है।
  • प्रदूषण, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन जैसी मानवीय गतिविधियाँ प्राकृतिक पर्यावरण और इसकी जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।
  • मानव और अन्य जीवित जीवों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना महत्वपूर्ण है, और एक स्थायी भविष्य को बनाए रखने के लिए प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित और पुनर्स्थापित करने के प्रयास आवश्यक हैं।
  • पृथ्वी की ठोस पर्पटी (Solid layer) या कठोर ऊपरी परत को स्थलमंडल (Lithosphere) कहते हैं। यह चट्टानों (The rocks) एवं खनिजों (Minerals) से बना होता है एवं मिट्टी की पतली परत से ढंका होता है। यह पहाड़, पठार, मैदान, घाटी आदि जैसी विभिन्न स्थलाकृतियों (Topography) वाला विषम धरातल होता है।
  • पारिस्थितिकी, भूविज्ञान और पर्यावरण विज्ञान जैसे क्षेत्रों में प्राकृतिक पर्यावरण का अध्ययन महत्वपूर्ण है, और हमें उन जटिल प्रणालियों को समझने में मदद करता है जो हम जिस दुनिया में रहते हैं उसे बनाते हैं।

स्थलमंडल

(Lithosphere)

  • लिथोस्फीयर पृथ्वी की ठोस बाहरी परत है, जो क्रस्ट और मेंटल के सबसे ऊपरी हिस्से से बनी है।
  • यह टेक्टोनिक प्लेटों में विभाजित है, जो समय के साथ एक दूसरे के साथ चलती हैं और परस्पर क्रिया करती हैं, जिससे पहाड़ों, ज्वालामुखियों और भूकंप जैसी सुविधाओं का निर्माण होता है।
  • स्थलमंडल धातु और जीवाश्म ईंधन जैसे खनिज संसाधनों से समृद्ध है, जो मानव उद्योग और प्रौद्योगिकी के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • खनन और ड्रिलिंग जैसी मानवीय गतिविधियों का स्थलमंडल और इसके पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • स्थलमंडल का अध्ययन भूविज्ञान और भूभौतिकी जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है और हमें पृथ्वी की सतह और उसके इतिहास को आकार देने वाली प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है।यह वह क्षेत्र है, जो हमें वन,
  • कृषि एवं मानव बस्तियों के लिए भूमि, पशुओं को चरने के लिए घासस्थल प्रदान करता है। यह खनिज संपदा (Mineral wealth) का भी एक स्रोत है।

जलमंडल

(Hydrosphere)

  • जल के क्षेत्र को जलमंडल कहते हैं। जलमंडल पृथ्वी पर महासागरों, नदियों, झीलों, भूजल, समुद्र, महासागर और वायुमंडलीय जल वाष्प सहित सभी पानी को संदर्भित करता है।
  • पानी पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक है, और जलमंडल जलवायु और मौसम के पैटर्न को विनियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • प्रदूषण, अत्यधिक मछली पकड़ने और जलवायु परिवर्तन जैसी मानवीय गतिविधियों का जलमंडल और इसके पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • जलमंडल और इसके पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए समुद्री जैव विविधता की रक्षा और प्रदूषण को कम करने जैसे संरक्षण प्रयास महत्वपूर्ण हैं।
  • जलमंडल का अध्ययन समुद्र विज्ञान, जल विज्ञान और जलवायु विज्ञान जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है, और हमें पृथ्वी के जल चक्र को बनाने वाली जटिल प्रणालियों को समझने में मदद करता है।

वायुमंडल

(Atmosphere)

  • पृथ्वी के चारों ओर फैली वायु की पतली परत को वायुमंडल कहते हैं। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational force) अपने चारों ओर के वायुमंडल को थामे रखता है।
  • यह सूर्य की झुलसाने वाली गर्मी एवं हानिकारक किरणों से हमारी रक्षा करता है।
  • इसमें कई प्रकार की गैस, धूल-कण एवं जलवाष्प (water vapour) उपस्थित रहते हैं। वायुमंडल में परिवर्तन होने से मौसम एवं जलवायु में परिवर्तन होता है।
  • वायुमंडल पृथ्वी के चारों ओर गैसों की परत है, जिसमें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य शामिल हैं।
  • यह ऑक्सीजन प्रदान करके, हमें हानिकारक विकिरण से बचाकर, और जलवायु और मौसम के पैटर्न को नियंत्रित करके पृथ्वी पर जीवन का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जीवाश्म ईंधन जलाने और वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियों से वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि हो सकती है, जो ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में योगदान करती हैं।
  • वातावरण के स्वास्थ्य को बनाए रखने और मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और वायु गुणवत्ता की रक्षा जैसे संरक्षण प्रयास महत्वपूर्ण हैं।
  • मौसम विज्ञान, जलवायु विज्ञान और वायुमंडलीय विज्ञान जैसे क्षेत्रों में वातावरण का अध्ययन महत्वपूर्ण है, और हमें उन जटिल प्रणालियों को समझने में मदद करता है जो पृथ्वी के मौसम और जलवायु पैटर्न को बनाती हैं।

जैवमंडल

(Biosphere)

  • पादप (Plant) एवं जीव-जंतु (fauna) मिलकर जैवमंडल या सजीव संसार का निर्माण करते हैं।
  • यह पृथ्वी का वह संकीर्ण क्षेत्र (Narrow area) है, जहाँ स्थल, जल एवं वायु मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं।

जीवमंडल

(Biosphere)

  • बायोस्फीयर पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों और एक दूसरे के साथ और पृथ्वी के अन्य डोमेन के साथ उनकी बातचीत को संदर्भित करता है।
  • इसमें गहरे समुद्र से लेकर वर्षावनों तक और रेगिस्तान से लेकर ध्रुवीय क्षेत्रों तक विस्तृत पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं।
  • जैव विविधता, या जीवित जीवों की विभिन्न प्रजातियों की विविधता, जीवमंडल का एक महत्वपूर्ण पहलू है और स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने और मनुष्यों को महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक है।
  • वनों की कटाई, अत्यधिक मछली पकड़ने और प्रदूषण जैसी मानवीय गतिविधियाँ जीवमंडल और इसकी जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।
  • जीवमंडल के स्वास्थ्य को बनाए रखने और मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा और क्षतिग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करने जैसे संरक्षण प्रयास महत्वपूर्ण हैं।
  • जीवमंडल स्थल, जल तथा हवा के बीच का एक सीमित भाग है। यह वह भाग है जहाँ जीवन मौजूद है।
  • यहाँ जीवों की बहुत सी प्रजातियाँ हैं, जो कि सूक्ष्म जीवों (microbes) तथा बैक्टीरिया से लेकर बडे स्तनधारियों (huge mammals) के आकार में पाई जाती हैं।
  • मनुष्य सहित सभी प्राणी, जीवित रहने के लिए एक-दूसरे से तथा जीवमंडल से जुड़े हुए हैं।
  • जीवमंडल के प्राणियों को मुख्यतः दो भागों जंतु जगत (animal kingdom) एवं पादप-जगत (plant Kingdom) में विभक्त किया जा सकता है।
  • जीवमंडल का अध्ययन पारिस्थितिकी, संरक्षण जीव विज्ञान और पर्यावरण विज्ञान जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है, और हमें उन जटिल प्रणालियों को समझने में मदद करता है जो उस दुनिया को बनाती हैं जिसमें हम रहते हैं।

पृथ्वी का आंतरिक भाग

(The interior of the earth)

संरचना और भौतिक गुणों में अंतर के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग को कई परतों में विभाजित किया गया है। परतें हैं, सबसे बाहरी से अंतरतम तक:

  • क्रस्ट (Crust): यह पृथ्वी की सबसे बाहरी परत है, जिसकी गहराई कुछ किलोमीटर से लेकर 70 किलोमीटर तक है। यह अपेक्षाकृत पतली और कठोर प्लेटों से बना होता है जो अंतर्निहित मेंटल पर तैरती हैं।
  • पृथ्वी का आंतरिक भाग कई परतों से बना है, जिसमें क्रस्ट, मेंटल, बाहरी कोर और आंतरिक कोर शामिल हैं। एक प्याज की तरह पृथ्वी भी एक के ऊपर एक संकेंद्री परतों (Concentric Layers) से बनी है।
  • पपड़ी सबसे बाहरी परत है और ठोस चट्टान से बनी है। यह महासागरों के नीचे सबसे पतला और महाद्वीपों के नीचे सबसे मोटा है। पृथ्वी की सतह की सबसे ऊपरी परत को पर्पटी (Crust) कहते हैं। यह सबसे पतली परत होती है।
  • मेंटल (Mantle) क्रस्ट के नीचे की परत है और यह गर्म, ठोस चट्टान से बनी होती है जो लंबे समय तक धीरे-धीरे बहती है। यह पृथ्वी के अधिकांश आयतन का निर्माण करता है।
  • मेंटल पृथ्वी की परत है जो क्रस्ट के नीचे स्थित है और लगभग 2,900 किलोमीटर की गहराई तक फैली हुई है। मेंटल ज्यादातर ठोस चट्टान से बना है, लेकिन यह तीव्र गर्मी और दबाव में धीरे-धीरे बह सकता है।
  • बाहरी कोर (Outer Core) लोहे और निकल की एक तरल परत होती है जो ठोस आंतरिक कोर को घेरे रहती है। यह लगभग 2,300 किलोमीटर मोटा है और विद्युत प्रवाहकीय तरल पदार्थों की गति के माध्यम से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करता है।
  • आंतरिक कोर (Inner Core) पृथ्वी के केंद्र में लोहे और निकल का एक ठोस गोला है।
  • आंतरिक कोर पृथ्वी की सबसे भीतरी परत है, लोहे और निकल का एक ठोस गोला जिसकी त्रिज्या लगभग 1,220 किलोमीटर है। यह बेहद गर्म है, तापमान 5,500 डिग्री सेल्सियस से अधिक है।
  • यह महाद्वीपीय संहति में 35 किलोमीटर एवं सतह में केवल 5 किलोमीटर तक है।
  • पृथ्वी के आंतरिक भाग में रेडियोधर्मी क्षय और ग्रह के निर्माण से अवशिष्ट ऊष्मा द्वारा ऊष्मा उत्पन्न होती है।
  • मेंटल के संचलन और टेक्टोनिक प्लेटों की गति सहित पृथ्वी के आंतरिक भाग में हलचल, ज्वालामुखी और भूकंप जैसी प्रक्रियाओं को संचालित करती है।
  • भूविज्ञान, भूभौतिकी और भूकम्प विज्ञान जैसे क्षेत्रों में पृथ्वी के आंतरिक भाग का अध्ययन महत्वपूर्ण है, और हमें उन प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है जो पृथ्वी की सतह और उसके इतिहास को आकार देती हैं।

पृथ्वी के आंतरिक भाग के अध्ययन को भूभौतिकी कहा जाता है, और यह ग्रह के इतिहास, गतिशीलता और प्राकृतिक संसाधनों को समझने में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।


महाद्वीपीय संहति

(Continental code)

मुख्य रूप से सिलिका एवं ऐलुमिना जैसे खनिजों से बनी है। इसलिए इसे (Si – Silica तथा l-alumina [SL] ) कहा जाता है।

महासागर की पर्पटी (Ocean crust) मुख्यतः

  • महासागर की पपड़ी समुद्र तल की सबसे बाहरी परत है, जो ठोस चट्टान से बनी होती है जो आम तौर पर महाद्वीपीय क्रस्ट की तुलना में छोटी और पतली होती है।
  • यह मध्य-महासागर की लकीरों पर बनता है, जहाँ मैग्मा पृथ्वी के आवरण से उगता है और नए महासागर की पपड़ी बनाने के लिए ठंडा होता है।
  • सिलिका एवं मैग्नीशियम की बनी है; इसलिए इसे (Si – Silica and Me – Magnesium) कहा जाता है।
  • पर्पटी के ठीक नीचे मैंटल होता है जो 2900 किलोमीटर की गहराई तक फैला होता है। इसकी सबसे आंतरिक परत क्रोड है, जिसकी त्रिज्या (radius) लगभग 3500 किलामीटर है। यह मुख्यतः निकल एवं लोहे की बनी होती है तथा इसे निफे (नि- निकिल तथा फे- फैरस) कहते हैं।
  • केंद्रीय क्रोड (Central core) का तापमान ( Temperature) एवं दाब (Pressure) काफ़ी उच्च होता है।
  • महासागर की पपड़ी महाद्वीपीय पपड़ी की तुलना में पतली है, आमतौर पर केवल कुछ किलोमीटर मोटी होती है, और बेसाल्टिक चट्टान से बनी होती है।
  • महासागर की पपड़ी की आयु मध्य-महासागर की लकीरों से इसकी दूरी के आधार पर भिन्न होती है, जिसमें सबसे पुरानी समुद्री पपड़ी लगभग 200 मिलियन वर्ष पुरानी है।
  • प्लेट टेक्टोनिक्स (plate tectonics) में महासागर की पपड़ी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह दो प्रकार की क्रस्ट (दूसरी महाद्वीपीय क्रस्ट) में से एक है जो पृथ्वी के लिथोस्फीयर को बनाती है और टेक्टोनिक प्लेटों के संचलन में शामिल होती है।
  • भूविज्ञान, भूभौतिकी और समुद्र विज्ञान जैसे क्षेत्रों में समुद्र की पपड़ी का अध्ययन महत्वपूर्ण है, और हमें उन प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है जो पृथ्वी की सतह और उसके इतिहास को आकार देती हैं।

शैल

(Rocks)

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पृथ्वी की पर्पटी अनेक प्रकार के शैलों से बनी है। पृथ्वी की पर्पटी बनाने वाले खनिज पदार्थ के किसी भी प्राकृतिक पिंड को शैल (Rocks) कहते हैं। शैल या चट्टान खनिजों के मिश्रण से बना पदार्थ है।

मुख्य रूप से शैल तीन प्रकार की होती हैं-

1. आग्नेय (Igneous) शैल
2. अवसादी (Sedentary) शैल
3. कायांतरित (Metamorphic) शैल

1. Igneous Rock आग्नेय चट्टान: पृथ्वी की सतह के नीचे या ऊपर पिघली हुई चट्टान सामग्री के जमने से बनती है। उदाहरणों में ग्रेनाइट, बेसाल्ट और ओब्सीडियन शामिल हैं।

आग्नेय (Igneous) शैल :- आग्नेय शैल दो प्रकार की होती हैं :-

  1. अंतर्भेदी शैल (Intersection rock) 
  2. बर्हिभेदी शैल (barbicide rock)

आग की तरह लाल द्रवि मैग्मा (Liquefied magma) ही लावा होता है जो पृथ्वी के आंतरिक भाग से निकलकर सतह पर आता है। जब द्रवित लावा पृथ्वी की सतह पर आता है, यह तेज़ी से ठंडा होकर ठोस बन जाता है। पर्पटी पर इस प्रकार से बने शैल को बर्हिभेदी आग्नेय शैल कहते हैं। इनकी संरचना बहुत महीन दानों वाली होती है। उदाहरण के लिए – बेसाल्ट । दक्कन पठार बेसाल्ट शैलों से ही बना है।

  • द्रवित मैग्मा कभी-कभी भू-पर्पटी के अंदर गहराई में ही ठंडा हो जाता है। इस प्रकार ठोस शैलों को अंतर्भेदी आग्नेय शैल कहते हैं। धीरे-धीरे ठंडा होने के कारण ये बड़े दानों का रूप ले लेते हैं। ग्रेनाइट ऐसे ही शैल का एक उदाहरण है। आग्नेय शैलों की रचना भू- गर्भ से निकलने वाले तत्वों और तरल पदार्थों के ठण्डा होकर जमने के फलस्वरूप हुई है। ये तरल पदार्थ पृथ्वी के आंतरिक भागों में गर्म एवं पिघले हुए रूप में रहते हैं। इसे ‘मैग्मा’ कहते हैं। जब यह मैग्मा पृथ्वी के धरातल पर पहुँचता है तो ‘लावा’ कहलाता है। ग्रेनाइट, बेसाल्ट, गैब्रो और डायोराइट आग्नेय शैल के प्रमुख उदाहरण हैं। पृथ्वी की भू-पर्पटी का दो-तिहाई भाग आग्नेय शैलों से बना है। आग्नेय चट्टानों को प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं क्योंकि इन्हीं चट्टानों से अन्य चट्टानों का भी निर्माण होता है।

2. Sedimentary Rock तलछटी चट्टान: तलछट या जैविक सामग्री के संचय और लिथिफिकेशन से निर्मित। उदाहरणों में बलुआ पत्थर, शेल और चूना पत्थर शामिल हैं।

परतदार शैल या अवसादी शैल (Sedimentary rocks) :- आग्नेय शैल छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होकर अवसादी शैल का निर्माण करते हैं। पृथ्वी के ऊपर तीन चैथाई भाग में परतदार शैल पायी जाती है। ‘लोयस’ का जमाव वायु निर्मित- अवसादी चट्टान का सबसे प्रमुख उदाहरण है। हिमालय पर्वत जो भारत का पहरेदार कहलाता है, इसमें अवसादी चट्टानें पाई जाती हैं। बालू का पत्थर, स्लेट, चूने का पत्थर, कोयला, खडिया मिट्टी आदि चट्टानें अवसादी चट्टान के उदाहरण हैं। अवसादी चट्टानों में खनिज तेल, कोयला एवं अन्य प्रकार के बहुमूल्य खनिज पाए जाते हैं।

3. Metamorphic Rock कायांतरित चट्टान: गर्मी, दबाव या रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से पहले से मौजूद चट्टान के परिवर्तन से निर्मित। उदाहरणों में संगमरमर, स्लेट और गनीस शामिल हैं।

रूपान्तरित शैल (Metamorphic rock) :- ये चट्टानें अन्य चट्टानों के रूप परिवर्तन के फलस्वरूप निर्मित होती हैं। अवसादी शैल तथा आग्नेय शैल में दाब व ताप द्वारा परिवर्तन के फलस्वरूप रूपान्तरित शैल का निर्माण होता है। जैसे भू-परत के नीचे दाब व ताप द्वारा शैल से स्लेट, डोलोमाइट तथा खडिया मिट्टी (चॉक) अत्याधिक ताप के कारण संगमरमर में बदल जाती है। कोयला हीरे में बदल जाता है। संगमरमर चूने के पत्थर का रूपान्तरित शैल है।

अपरदन

(Erosion)

पृथ्वी की सतह के ‘टूटकर घिस जाने को अपरदन ( erosion) कहते हैं। अपरदन की क्रिया के द्वारा सतह नीची हो जाती है तथा निक्षेपण (deposition) की प्रक्रिया के द्वारा इनका फिर से निर्माण होता हैं। ये दो प्रक्रियाएँ बहते हुए जल, वायु तथा बर्फ के द्वारा वायु, जल आदि अपरदित पदार्थ को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं, और फलस्वरूप एक स्थान पर निक्षेपित करते हैं। अपरदन एवं निक्षेपण के ये प्रक्रम पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न स्थलाकृतियों (Topography) का निर्माण करते हैं।

  • कटाव वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा चट्टान, मिट्टी और तलछट को एक स्थान से दूसरे स्थान पर हवा, पानी और बर्फ जैसी प्राकृतिक शक्तियों द्वारा ले जाया जाता है।
  • कटाव कई प्रकार के होते हैं, जिनमें जल अपरदन, वायु अपरदन और हिमनद अपरदन शामिल हैं।
  • पानी का कटाव तब होता है जब पानी बहता है, जैसे कि नदियाँ या समुद्र की लहरें, विस्थापित होती हैं और तलछट और मिट्टी को बहा ले जाती हैं। इससे घाटी और नदी डेल्टा जैसी सुविधाओं का निर्माण हो सकता है।
  • हवा का कटाव तब होता है जब हवा मिट्टी और तलछट को बहा ले जाती है, आमतौर पर उन क्षेत्रों में जहां बहुत कम वनस्पति या उजागर मिट्टी होती है। इससे रेत के टीलों जैसी विशेषताओं का निर्माण हो सकता है।
  • हिमनदों का क्षरण तब होता है जब हिमनद पूरे परिदृश्य में चले जाते हैं और चट्टान और तलछट उठाते हैं और परिवहन करते हैं। इससे यू-आकार की घाटियों जैसी सुविधाओं का निर्माण हो सकता है।
  • अपरदन के पर्यावरण पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हो सकते हैं। यह नए भू-आकृतियाँ और आवास बना सकता है, लेकिन इससे मिट्टी का क्षरण, उपजाऊ मिट्टी का नुकसान और पानी की गुणवत्ता में कमी भी हो सकती है।
  • वनों की कटाई, खनन और निर्माण जैसी मानवीय गतिविधियाँ अपरदन और इसके नकारात्मक प्रभावों को बढ़ा सकती हैं।
  • भूविज्ञान, भू-आकृति विज्ञान और पर्यावरण विज्ञान जैसे क्षेत्रों में कटाव का अध्ययन महत्वपूर्ण है, और हमें उन प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है जो पृथ्वी की सतह को आकार देती हैं और मनुष्य इसके नकारात्मक प्रभावों को कैसे कम कर सकते हैं।
  • विश्व की सबसे गहरी खान दक्षिण अफ्रीका में स्थित है तथा इसकी गहराई लगभग 4 किलोमीटर है। तेल की खोज में इंजीनियर 6 किलोमीटर गहराई तक खोद चुके हैं। पृथ्वी के केंद्र तक पहुँचने के लिए (जो बिलकुल असंभव है ) समुद्र की सतह पर 6000 किलोमीटर गहराई तक खोदना होगा ।
  • पृथ्वी के आयतन (Volume) का केवल 1 प्रतिशत हिस्सा ही पर्पटी (Crust) है। 84 प्रतिशत मैंटल एवं 15 प्रतिशत हिस्सा क्रोड है। पृथ्वी की त्रिज्या (radius) 6371 किलोमीटर है।
  • इग्नियस : लैटिन शब्द इग्निस, जिसका अर्थ होता है अग्नि ।
  • सेडिमेंट्री : लैटिन शब्द सेडिमेंटम, जिसका अर्थ होता है स्थिर ।
  • मेटामोरफ़िक : ग्रीक शब्द मेटामोरफोस, जिसका अर्थ होता है रूप परिवर्तन |
  • जीवाश्म (Fossils) : शैलों की परतों में दबे मृत पौधों एवं जंतुओं के अवशेषों को जीवाश्म कहते हैं।

धरातल के रूप

(Ground form)

  • हिमालय, आल्पस, राकीज, एण्डीज आदि मोड़दार (वलित) पर्वत के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • भारत में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत, ब्लॉक पर्वत के तथा नर्मदा व तापी नदियाँ भ्रंश-घाटी के उदाहरण हैं।
  • V आकार की घाटी :- नदी पर्वतीय क्षेत्र में अपनी तली को काटकर उसे गहरा करती है। इससे अंग्रेजी के अक्षर V के आकार की घाटी का निर्माण होता है। जब V आकार की घाटी गहरी एवं संकरी होती है तो उसे गार्ज कहते हैं। हिमालय पर्वत में सिन्धु सतलज तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के गॉर्ज हैं।
  • जल प्रपात :- जब नदी का जल ऊँचाई से खड़े ढाल के सहारे अधिक वेग से नीचे
    गिरता है, तो इसे जल प्रपात कहते हैं। विश्व का सबसे ऊँचा जल प्रपात दक्षिणी अमेरिका के वेनेजुएला का ‘एंजेल’ है। भारत के कुछ प्रमुख जल प्रपात शरावती नदी पर जोग, कावेरी नदी पर शिवसमुद्रम, नर्मदा नदी पर कपिलधारा एवं धुंआधार आदि
    हैं।
  • डेल्टा :- नदी के सागर में गिरने से पहले ‘विसर्प’ (Meander) (टेढ़े-मेढ़े रास्तों) के कारण उसके बहने की गति अधिक धीमी पड़ जाती है, इस कारण ‘डेल्टा’ का निर्माण होता है। गंगा, ब्रह्मपुत्र का डेल्टा संसार के प्रमुख डेल्टाओं में से एक है।
  • गुफा या सुंरग :- वर्षा का कुछ जल चट्टान और मिट्टी में प्रवेश कर जाता है। पहाड़ों में कहीं-कहीं चूने की चट्टानें मिलती हैं, जिसमें जल रिस कर चट्टान के भीतर पहुँच जाता है तथा रासायनिक अपक्षय द्वारा चूने को घुला कर दूर बहा ले जाता है। जिससे पहाड़ी में गुफा या सुंरग बन जाती है।
  • हिमानी :- ऊँचे पर्वतों पर जब कोई बर्फ का बड़ा खण्ड ढाल पर खिसकता है तो उसे ‘हिमानी’ या हिमनद कहते हैं। पहाड़ी भाग में हिमानी सपाट चौड़ी खड़े ढाल वाली घाटियों का निर्माण करती है, तो इनका आकार अंग्रेजी के U अक्षर की तरह होता है। पहले से बनी v आकार की घाटी को हिमानी U आकार की घाटी में बदल देती है।
  • हिमोढ (Moraine) :- जब हिमानी चट्टानों को घर्षित कर उसका चूर्ण पर्वत के निचले भागों में जमा कर देता है तो इन्हें हिमोढ (Moraine) कहा जाता है।
  • बालुका स्तूप :- मरुस्थलीय प्रदेशों में जब पवन के मार्ग में कोई बाधा होती है तब पवन का वेग कम हो जाता है जिससे पवन के साथ उड़ने वाले पदार्थ धरातल पर गिरकर बालू के टीलों का निर्माण करते हैं। इन्हें ‘बालुका स्तूप’ कहते हैं।
  • छत्रक शिला :- पवन द्वारा उड़ाए गए बालू के कणों द्वारा अपरदन का कार्य धरातल से कुछ मीटर ऊँचाई तक अधिक होता है। इस प्रक्रिया में पवन निचले भाग को घिस देती है परन्तु ऊपरी भाग छतरी के आकार का हो जाता है, जिसे ‘छत्रक शिला’ कहते हैं।

भकप

(Earthquake)

  • भूकंप पृथ्वी की सतह का अचानक हिलना या कांपना है।
  • ज्वालामुखी (Volcano) भू-पर्पटी (Earth’s crust) पर खुला एक ऐसा छिद्र (Hole) होता है, जिससे पिघले हुए पदार्थ अचानक निकलते हैं। इसी प्रकार, स्थलमंडलीय प्लेटों के गति करने पर पृथ्वी की सतह पर कंपन (vibration) होता है। यह कंपन पृथ्वी के चारों ओर गति कर सकता है। इस कंपन को भूकंप कहते हैं।
  • यह आमतौर पर टेक्टोनिक गतिविधि के परिणामस्वरूप पृथ्वी की परत में संग्रहीत ऊर्जा की रिहाई के कारण होता है।
  • भू-पर्पटी के नीचे वह स्थान जहाँ कंपन आरंभ होता है, उदगम केंद्र (Origin Center) कहलाता है। उदगम केंद्र के भूसतह पर उसके निकटतम स्थान को अधिकेंद्र (epicenter) कहते हैं। अधिकेंद्र के निकटतम भाग में सर्वाधिक हानि होती है एवं अधिकेंद्र से दूरी बढ़ने के साथ भूकंप की तीव्रता धीरे-धीरे कम होती जाती है।
  • ऊर्जा भूकंपीय तरंगों के रूप में जारी होती है, जो पृथ्वी के माध्यम से यात्रा करती हैं और जमीन को हिलाती हैं।
  • भूकंप की गंभीरता को रिक्टर स्केल पर मापा जाता है, जो 1 से 10 तक होता है।
  • भूकंप से बहुत अधिक क्षति हो सकती है, जिसमें ढही हुई इमारतें, भूस्खलन और सुनामी शामिल हैं।
  • सीस्मोलॉजिस्ट भूकंप का अध्ययन करते हैं और उन्हें मापने और समझने के लिए सीस्मोमीटर जैसे विभिन्न उपकरणों का उपयोग करते हैं।
  • भूकंप का मापन करने वाले यंत्र को भूकंपलेखी (Seismometer) या (Seismograph) कहते हैं। भूकंप की तीव्रता रिएक्टर स्केल (Reactor scale) पर मापी जाती है। जिस भूकंप की तीव्रता (intensity) 2.0 अथवा उससे कम होती है, उसका प्रभाव नहीं के बराबर होता है। जिस भूकंप की तीव्रता 5.0 होती है, वह वस्तुओं के गिरने से क्षति पहुँचा सकता है। जिस भूकंप की तीव्रता 6.0 अथवा उससे अधिक होती है, बहुत शक्तिशाली और जिसकी तीव्रता 7.0 अथवा अधिक होती है, वह सर्वाधिक शक्तिशाली समझा जाता है।
  • दुनिया में कहीं भी भूकंप आ सकते हैं, लेकिन कुछ क्षेत्र, जैसे कि प्रशांत रिम, दूसरों की तुलना में उनके लिए अधिक प्रवण हैं।
  • भूकंप के लिए तैयार रहना एक आपातकालीन योजना और आपूर्ति, और भूकंप के दौरान और बाद में क्या करना है, यह जानने के लिए महत्वपूर्ण है।

जलप्रपात

(Waterfall)

  • जलप्रपात एक प्राकृतिक विशेषता है जहां परिदृश्य में एक ऊर्ध्वाधर बूंद पर पानी बहता है।
  • वे आमतौर पर लंबे समय तक कटाव से बनते हैं, क्योंकि पानी नरम चट्टान की परतों को घिस देता है और कठोर परतों को खड़ा छोड़ देता है।
  • पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर वर्षावनों तक, कई अलग-अलग प्रकार के वातावरण में जलप्रपात पाए जा सकते हैं।
  • दुनिया के कुछ सबसे प्रसिद्ध झरनों में नियाग्रा फॉल्स, विक्टोरिया फॉल्स और एंजेल फॉल्स (Niagara Falls, Victoria Falls, and Angel Falls) शामिल हैं।
  • सबसे ऊँचा जलप्रपात दक्षिण अमेरिका के वेनेजुएला का एंजेल जलप्रपात है।
  • अन्य जलप्रपात उत्तरी अमेरिका में कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की सीमा पर स्थित नियाग्रा जलप्रपात है
  • अफ्रीका में जांबिया एवं जिंबाबवे की सीमा पर स्थित विक्टोरिया जलप्रपात है।
  • झरने आकार और आकार में भिन्न हो सकते हैं, छोटे झरनों से लेकर सैकड़ों फीट की विशाल बूंदों तक।
  • वे एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण हैं, और बहुत से लोग लंबी पैदल यात्रा और झरनों की खोज का आनंद लेते हैं।
  • जलप्रपात पर्यावरण और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं, कुछ प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करते हैं और पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं और नीचे की ओर प्रवाह करते हैं।
  • कुछ संस्कृतियाँ झरनों को पवित्र या आध्यात्मिक स्थानों के रूप में देखती हैं, और वे पूरे इतिहास में कला और साहित्य का विषय रहे हैं।

नदी

(River)

  • नदी के जल से दृश्य भूमि का अपरदन होता है । जब नदी किसी खड़े ढाल वाले स्थान से अत्यधिक कठोर शैल या खड़े ढाल वाली घाटी में गिरती है, तो यह जलप्रपात बनाती है।
  • जब नदी मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है, तो वह मोडदार मार्ग पर बहने लगती है। नदी के इन्हीं बड़े मोड़ों को विसर्प ( estuary) कहते हैं। इसके बाद विसर्पो के किनारों पर लगातार अपरदन एवं निक्षेपण शुरू हो जाता है विसर्प लूप के सिरे निकट आते जाते हैं। समय के साथ विसर्प लूप नदी से कट जाते हैं और एक अलग झील बनाते हैं, जिसे चापझील भी कहते हैं।
  • नदी के उत्थित तटों को तटबंध (embankment) कहते हैं। समुद्र तक पहुँचते-पहुँ नदी का प्रवाह (Flow) धीमा हो जाता है तथा नदी अनेक धाराओं ( Streams ) में विभाजित हो जाती है, जिनको वितरिका (distributary) कहा जाता है। यहाँ नी इतनी धीमी हो जाती है कि यह अपने साथ लाए मलबे का निक्षेपण करने लगती है। प्रत्येक वितरिका अपने मुहाने का निर्माण करती है। सभी मुहानों के अवसादों के संग्रह से डेल्टा का निर्माण होता है।
  • सिन्धु नदी-तन्त्र की मुख्य नदी सिन्धु और सहायक नदियाँ झेलम, चिनाव, सतलज, रावी, ब्यास आदि हैं। यह नदीतन्त्र जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में फैला है। सिन्धु नदी का उद्गम स्थल, तिब्बत में मानसरोवर झील के निकट है।
  • गंगा नदी-तन्त्र की मुख्य नदी गंगा और सहायक नदियाँ यमुना, घाघरा, गण्डक, गोमती, कोसी, आदि हैं। यह नदी – तन्त्र, उत्तरी मैदान के अधिकांश भाग में फैला है। गंगा नदी का उद्गम स्थल, हिमालय में स्थित गंगोत्री हिमनद है।
  • ब्रह्मपुत्र नदी – तन्त्र की मुख्य नदी ब्रह्मपुत्र और सहायक नदियाँ लुहित, दिबांग, तिस्ता, आदि हैं। यह नदी-तन्त्र अरुणाचल प्रदेश और असम में विस्तृत है। ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम स्थल भी तिब्बत में मानसरोवर झील के निकट है।
  • ब्रह्मपुत्र नदी, चीन, भारत और बांग्लादेष में बहती है। इसे चीन में सांगपो और बांग्लादेष घना या मुना नाम से पुकारा जाता है।
  • गंगा नदी को बांग्लादेष में पद्मा नाम से पुकारा जाता है। नर्मदा और तापी नदियों का बहाव पश्चिम की ओर है और वह अपने जल का विसर्जन अरब सागर में करती हैं।
  • पूर्वी तटीय मैदान में महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियाँ बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरने से पूर्व डेल्टा (Delta) का निर्माण करती हैं। पूर्वी तटीय मैदान की मुख्य झीलें घिरका, कोलेल, पुलीकट, आदि हैं।
  • त्रिभुजाकार भू-भाग ही डेल्टा कहलाता है। गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदियाँ विश्व के सबसे बड़े डेल्टा ‘सुन्दरवन’ का निर्माण करती हैं।

यहां भारत की कुछ प्रमुख नदियों की तालिका उन राज्यों के साथ दी गई है जहां से होकर वे बहती हैं:

River Name States
Ganges Uttarakhand, Uttar Pradesh, Bihar, Jharkhand, West Bengal
Yamuna Uttarakhand, Himachal Pradesh, Uttar Pradesh, Haryana, Delhi
Brahmaputra Arunachal Pradesh, Assam
Godavari Maharashtra, Telangana, Andhra Pradesh
Krishna Maharashtra, Karnataka, Andhra Pradesh
Narmada Madhya Pradesh, Gujarat
Tapti Madhya Pradesh, Maharashtra
Mahanadi Chhattisgarh, Odisha
Cauvery Karnataka, Tamil Nadu
Sabarmati Rajasthan, Gujarat
Indus Jammu and Kashmir
Chenab Jammu and Kashmir
Jhelum Jammu and Kashmir
Beas Punjab
Ravi Himachal Pradesh, Punjab

 

समुद्री तरंग के कार्य

(Functions Of The Sea Wave)

  • समुद्री तरंग के अपरदन एवं निक्षेपण (Erosion and deposition) तटीय स्थलाकृतियाँ बनाते हैं। समुद्री तरंगें लगातार शैलों से टकराती रहती हैं, जिससे दरार विकसित होती है। समय के साथ ये बड़ी और चौड़ी होती जाती हैं। इनको समुद्री गुफा (Sea cave) कहते हैं।
  • इन गुफाओं के तटीय मेहराब बड़े होते जाने पर इनमें केवल छत ही बचती है, जिससे तटीय मेहराब (Coastal arch) बनते हैं। लगातार अपरदन छत को भी तोड़ देता है और केवल दीवारें बचती हैं। दीवार जैसी इन आ को स्टैक कहते हैं।

हिमनद के कार्य

(Glaciar works)

  • हिमनद अथवा हिमानी बर्फ की नदियाँ होती हैं। हिमनद अपने नीचे की कठोर चट्टानों से गोलाश्मी मिट्टी और पत्थरों को अपरदित कर देती है और गोलाश्मी मिट्टी एवं पत्थरों से भूदृश्य का अपरदन करती है। हिमनद गहरे गर्तो का निर्माण करते हैं। पर्वतीय क्षेत्र में बर्फ पिघलने से उन गर्तो में जल भर जाता है और वे सुंदर झील (Lake) बन जाते हैं। हिमनद के द्वारा लाए गए पदार्थ, जैसे- छोटे-बड़े शैल, रेत एवं तलछट मिट्टी निक्षेपित होते हैं। ये निक्षेप हिमनद हिमोढ़ का निर्माण करते हैं।

यहाँ भारत की कुछ प्रमुख झीलों की एक तालिका दी गई है, साथ ही वे जिस राज्य में स्थित हैं:

Lake Name State
Dal Lake Jammu and Kashmir
Chilika Lake Odisha
Vembanad Lake Kerala
Loktak Lake Manipur
Wular Lake Jammu and Kashmir
Pulicat Lake Andhra Pradesh and Tamil Nadu
Sambhar Lake Rajasthan
Hussain Sagar Telangana
Pichola Lake Rajasthan
Bhimtal Lake Uttarakhand
Pushkar Lake Rajasthan
Nainital Lake Uttarakhand
Fateh Sagar Lake Rajasthan
Upper Lake Madhya Pradesh
Lower Lake Madhya Pradesh
Suraj Tal Himachal Pradesh
Chandra Taal Himachal Pradesh
Pangong Tso Lake Ladakh
Tsomgo Lake Sikkim
Gurudongmar Lake Sikkim
Umiam Lake Meghalaya
Dhebar Lake Rajasthan
Damdama Lake Haryana
Berijam Lake Tamil Nadu
Pookode Lake Kerala
Powai Lake Maharashtra

 

Please note that this is not an exhaustive list, and there are many more lakes in India.

पवन के कार्य

(Works Of The Wind)

  • रेगिस्तान में पवन, अपरदन एवं निक्षेपण का प्रमुख कारक है। रेगिस्तान में छत्रक के आकार के शैल देखे जा सकते है, जिन्हें सामान्यतः छत्रक शैल (Mushroom rock) कहते हैं।
  • पवन शैल के ऊपरी भाग की अपेक्षा निचले भाग को आसानी से काटती है। इसलिए ऐसी शैल के आधार संकीर्ण एवं शीर्ष विस्तृत होते हैं। पवन चलने पर यह अपने साथ रेत (sand) को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाती है। जब पवन का रुकता है तो यह रेत गिरकर छोटी पहाड़ी बनाती है। इनको बालू टिब्बा (Sand dune) कहते हैं।
  • जब बालू कण महीन एवं हल्के होते हैं, तो वायु उनको उठाकर अत्यधिक दूर ले जा सकती है। जब ये बालू कण विस्तृत क्षेत्र में निक्षेपित हो जाते है, तो इसे लोएस कहते हैं। चीन में विशाल लोएस निक्षेप पाए जाते हैं।

वायुमंडल में पायी जाने वाली गैसें

(Atmosphere)

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  • नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन ऐसी दो गैसें हैं, जिनसे वायुमंडल का बड़ा भाग बना है ।
  • नाइट्रोजन, वायु में सबसे अधिक पाई जाने वाली में सबसे अधिक पाई जाने वाली गैस है लगभग 78%,
  • ऑक्सीजन की मात्रा लगभग 21%, है।
  • ऑर्गन की मात्रा लगभग 0.93% है।
  • कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा लगभग 0.03% हमारे वायुमंडल में पायी जाती है।
  • इन अन्य सभी गैसों के अलावा धूल के छोटे-छोटे कण भी हवा में मौजूद होते हैं।

नाइट्रोजन (Nitrogen)

नाइट्रोजन वायु में सर्वाधिक पाई जाने वाली गैस है। जब हम साँस लेते हैं तब फेफड़ों (lungs) में कुछ नाइट्रोजन भी ले जाते हैं और फिर उसे बाहर निकाल देते हैं। परंतु पौधों को अपने जीवन के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। वे सीधे वायु से नाइट्रोजन नहीं ले पाते। मृदा (Soil) तथा कुछ पौधों की जड़ों में रहने वाले जीवाणु (Bacteria) वायु से नाइट्रोजन लेकर इसका स्वरूप बदल देते हैं, जिससे पौधे इसका प्रयोग कर सकें।

ऑक्सीजन (Oxygen)

ऑक्सीजन वायु में प्रचुर से मिलने वाली दूसरी गैस है। मनुष्य तथा पशु साँस लेने में वायु से ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं। हरे पादप (Green plants ), प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) द्वारा ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार वायु में ऑक्सीजन की मात्रा समान बनी रहती है। यदि हम वृक्ष काटते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है।

कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide)

कार्बन डाइऑक्साइड अन्य महत्त्वपूर्ण गैस है। हरे पादप अपने भोजन के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग करते हैं और ऑक्सीजन वापस देते हैं। मनुष्य और पशु कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालते हैं। मनुष्यों तथा पशुओं द्वारा बाहर छोड़ी जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पादपों द्वारा प्रयोग की जाने वाली गैस के बराबर होती है, जिससे यह संतुलन बना रहता है।
परंतु यह संतुलन कोयला तथा खनिज तेल आदि ईंधनों के जलाने से गड़बड़ा जाता है। वे वायुमंडल में प्रतिवर्ष करोड़ों टन कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ोतरी करते हैं। परिणामस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ा हुआ आयतन (Volume) पर मौसम तथा जलवायु को प्रभावित करता है।

कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में फैल कर पृथ्वी से विकिरित ऊष्मा (Radiated heat) को पृथ्वी पर रोककर ग्रीन हाउस प्रभाव (Green House Effect) पैदा करती है। इसलिए इसे ग्रीन हाउस गैस भी कहते हैं। और इसके अभाव में धरती इतनी ठंडी हो जाती कि इस पर रहना असंभव होता। किंतु जब कारखानों एवं कार के धुएँ से वायुमंडल में इसका स्तर बढ़ता है, तब इस ऊष्मा (Heat) के द्वारा पृथ्वी का तापमान बढ़ता है। इसे भूमंडलीय तापन (Global warming) कहते हैं।

तापमान में इस वृद्धि के कारण पृथ्वी के सबसे ठंडे प्रदेश में जमी हुई बर्फ पिघलती है। जिसके परिणामस्वरूप समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होती है, जिससे तटीय क्षेत्रों (Coastal areas) में बाढ़ आ जाती है।

गरम और ठंडी वायु (Hot And Cold Air)

जब वायु गरम होती है, तो फैलती है और हल्की होकर ऊपर उठती है। ठंडी वायु सघन और भारी होती है। इसीलिए इसमें नीचे रहने की प्रवृत्ति होती है। गरम वायु के ऊपर उठने पर आस-पास के क्षेत्रों से ठंडी वायु रिक्त स्थान को भरने के लिए वहाँ आ जाती है। इस प्रकार वायु-चक्र (Air cycle) चलता रहता है।


वायुमंडल की संरचना

(Structure Of The Atmosphere)

हमारा वायुमंडल पाँच परतों (Layers) में विभाजित है, जो पृथ्वी की सतह से आरंभ होती हैं। ये हैं – क्षोभमंडल, समतापमंडल, मध्यमंडल, बाह्य वायुमंडल एवं बहिर्मडल |

क्षोभमंडल

(Troposphere)

  • यह परत वायुमंडल की सबसे महत्त्वपूर्ण परत है।
  • हम इसी मंडल में मौजूद वायु में साँस लेते हैं।
  • मौसम की लगभग सभी घटनाएँ जैसे वर्षा, कुहरा एवं ओलावर्षण इसी परत अंदर होती हैं।
  • क्षोभमंडल पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे निचली परत है, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 7 से 20 किलोमीटर (4 से 12 मील) की ऊँचाई तक फैली हुई है।
  • यह वह परत है जहां मौसम होता है और जहां पृथ्वी का अधिकांश वायु द्रव्यमान स्थित होता है, जिसमें वायुमंडल के कुल द्रव्यमान का लगभग 75% होता है।
  • क्षोभमंडल में तापमान आमतौर पर घटते दबाव और पृथ्वी की सतह से अवशोषित गर्मी की घटती मात्रा के कारण ऊंचाई के साथ घटता जाता है।
  • क्षोभमंडल को ऊर्ध्वाधर मिश्रण द्वारा भी चित्रित किया जाता है, जहां तापमान और दबाव के अंतर के कारण वायु द्रव्यमान ऊपर और नीचे चलते हैं, जो ग्रह के चारों ओर गर्मी और नमी वितरित करने में मदद करता है।
  • क्षोभमंडल में बादल, वर्षा और वायुमंडलीय अशांति होती है, और यह वह जगह है जहां अधिकांश विमान उड़ते हैं।
  • क्षोभमंडल और उसके ऊपर की परत, जिसे समताप मंडल कहा जाता है, के बीच की सीमा को क्षोभसीमा कहा जाता है।
  • मानवीय गतिविधियाँ, जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाना और वनों की कटाई, क्षोभमंडल की संरचना को प्रभावित कर सकती हैं और वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन में योगदान कर सकती हैं।
  • मौसम के पैटर्न, वायु गुणवत्ता और जलवायु परिवर्तन को बेहतर ढंग से समझने और भविष्यवाणी करने के लिए वैज्ञानिक क्षोभमंडल और इसकी प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं।

समतापमंडल

(Stratosphere)

  • यह परत बादलों एवं मौसम संबंधी घटनाओं से लगभग मुक्त होती है।
  • इसके फलस्वरूप यहाँ की परिस्थितियाँ हवाई जहाज़ उड़ाने के लिए आदर्श होती हैं।
  • समताप मंडल की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें ओजोन गैस (Ozone gas) की परत होती है।
  • यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक गैसों से हमारी रक्षा करती है।
  • समताप मंडल पृथ्वी के वायुमंडल की दूसरी परत है, जो क्षोभमंडल के ऊपर स्थित है और लगभग 50 किलोमीटर (31 मील) की ऊँचाई तक फैली हुई है।
  • ओजोन अणुओं द्वारा पराबैंगनी विकिरण के अवशोषण के कारण समताप मंडल में तापमान ऊंचाई के साथ बढ़ता है।
  • ओजोन परत, जो उच्च ओजोन सांद्रता का क्षेत्र है, निचले समताप मंडल में स्थित है और पृथ्वी की सतह को सूर्य से हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से बचाने में मदद करती है।
  • समताप मंडल की विशेषता अपेक्षाकृत स्थिर, स्तरीकृत वायु द्रव्यमान है जो एक तेज सीमा से अलग होती है जिसे स्ट्रैटोपॉज कहा जाता है।
  • समताप मंडल में हवा बहुत शुष्क है और बादल दुर्लभ हैं। हालाँकि, कुछ प्रकार के बादल, जैसे कि रात्रिचर बादल, ऊपरी समताप मंडल में देखे जा सकते हैं।
  • समताप मंडल हवाई यात्रा के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह विमान को उच्च ऊंचाई पर उड़ान भरने की अनुमति देता है जहां कम वायु प्रतिरोध और अधिक ईंधन दक्षता होती है।
  • समताप मंडल की संरचना मानव गतिविधियों से प्रभावित हो सकती है, जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) जैसे ओजोन-क्षयकारी रसायनों की रिहाई।
  • पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में इसकी भूमिका को बेहतर ढंग से समझने और ओजोन परत में परिवर्तन और पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर उनके प्रभावों की निगरानी के लिए वैज्ञानिक समताप मंडल का अध्ययन करते हैं।

मध्यमंडल

(Mesosphere)

  • मध्यमंडल पृथ्वी के वायुमंडल की तीसरी परत है, जो समताप मंडल के ऊपर स्थित है और लगभग 85 किलोमीटर (53 मील) की ऊँचाई तक फैली हुई है।
  • मध्यमंडल में तापमान ऊंचाई के साथ कम हो जाता है, परत के शीर्ष पर -100 डिग्री सेल्सियस (-148 डिग्री फारेनहाइट) के न्यूनतम तापमान तक पहुंच जाता है।
  • मध्यमंडल की विशेषता बहुत पतली हवा है, एक दबाव के साथ जो समुद्र के स्तर पर दबाव का लगभग 1% है।
  • हवा के अणुओं के साथ घर्षण के कारण उच्च तापमान के कारण पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने वाले उल्का आमतौर पर मेसोस्फीयर में जल जाते हैं।
  • अंतरिक्ष से प्रवेश करने वाले उल्का पिंड (Meteorite) इस परत में आने पर जल जाते हैं।
  • मध्यमंडल रात के बादलों के निर्माण में भी भूमिका निभाता है, जो उच्च ऊंचाई वाले बादल होते हैं जिन्हें ध्रुवीय क्षेत्रों में रात में देखा जा सकता है।
  • मध्यमंडल की ऊपरी सीमा जिसे मेसोपॉज कहा जाता है, पृथ्वी के वायुमंडल का सबसे ठंडा बिंदु है।
  • मध्यमंडल का सीधे अध्ययन करना मुश्किल है, लेकिन वैज्ञानिक इसके गुणों का अध्ययन करने के लिए रडार और लिडार जैसी रिमोट सेंसिंग तकनीकों का उपयोग करते हैं।
  • रॉकेट लॉन्च और परमाणु विस्फोट जैसी मानवीय गतिविधियाँ, परत में नए कणों और ऊर्जा को पेश करके मेसोस्फीयर को प्रभावित कर सकती हैं।
  • मध्यमंडलको समझना उल्काओं और अंतरिक्ष मलबे के व्यवहार की भविष्यवाणी करने के साथ-साथ पृथ्वी के वातावरण और जलवायु प्रणाली को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

बाह्य वायुमंडल

(Thermosphere)

  • थर्मोस्फीयर पृथ्वी के वायुमंडल की चौथी परत है, जो मेसोस्फीयर के ऊपर स्थित है और लगभग 600 किलोमीटर (372 मील) की ऊँचाई तक फैली हुई है।
  • थर्मोस्फीयर में तापमान सौर विकिरण के अवशोषण के कारण ऊंचाई के साथ बढ़ता है, बाह्य वायुमंडल में बढ़ती ऊँचाई के साथ तापमान अत्यधिक तीव्रता से बढ़ता है। परत के शीर्ष पर 2,000 डिग्री सेल्सियस (3,632 डिग्री फारेनहाइट) तक के तापमान तक पहुंच जाता है।
  • उच्च तापमान के बावजूद, थर्मोस्फीयर में हवा बहुत पतली है, दबाव के साथ जो समुद्र के स्तर पर दबाव का लगभग 1% है।
  • थर्मोस्फीयर को अत्यधिक आयनित गैस कणों की उपस्थिति की विशेषता है, जिन्हें प्लाज्मा कहा जाता है, जो सौर विकिरण के आयनीकरण प्रभाव से बनते हैं।
  • आयनमंडल, जो ऊपरी वायुमंडल का एक क्षेत्र है जिसमें आयनों और मुक्त इलेक्ट्रॉनों की उच्च सांद्रता होती है, थर्मोस्फीयर के भीतर स्थित होता है।
  • रेडियो संचार (radio communication) के लिए इस परत का उपयोग होता है। वास्तव में पृथ्वी से प्रसारित रेडियो तरंगें (radio waves) इस परत द्वारा पुनः पृथ्वी पर परावर्तित कर दी जाती हैं।
  • थर्मोस्फीयर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन और कई अन्य अंतरिक्ष यान का भी घर है, क्योंकि यह उपग्रह संचार और अवलोकन के लिए एक आदर्श वातावरण प्रदान करता है।
  • थर्मोस्फीयर की ऊपरी सीमा, जिसे थर्मोपॉज कहा जाता है, पृथ्वी के वायुमंडल और बाहरी अंतरिक्ष के बीच की सीमा है।
  • थर्मोस्फीयर सूर्य की गतिविधि से प्रभावित होता है, जैसे कि सौर फ्लेयर्स और कोरोनल मास इजेक्शन, जो उपग्रह संचार और नेविगेशन सिस्टम में व्यवधान पैदा कर सकते हैं।
  • थर्मोस्फीयर को समझना पृथ्वी के तकनीकी बुनियादी ढांचे पर अंतरिक्ष मौसम के प्रभावों की भविष्यवाणी करने और कम करने के साथ-साथ ऊपरी वायुमंडल और सूर्य के साथ इसकी बातचीत का अध्ययन करने के लिए महत्वपूर्ण है।

बहिर्मंडल

(Exosphere)

  • वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत को बहिर्मंडल के नाम से जाना जाता है। एक्सोस्फीयर पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे बाहरी परत है, जो थर्मोस्फीयर से अंतरिक्ष तक फैली हुई है।
  • यह वायु की पतली परत होती है। हल्की गैसें जैसे- हीलियम एवं हाइड्रोजन यहीं से अंतरिक्ष में तैरती रहती हैं।
  • यह मुख्य रूप से बेहद कम घनत्व वाले हाइड्रोजन, हीलियम और अन्य हल्की गैसों से बना है, और धीरे-धीरे पतला होता जाता है जब तक कि यह अंतरिक्ष के निर्वात में विलीन न हो जाए।
  • एक्सोस्फीयर वह जगह है जहां पृथ्वी का वातावरण सौर हवा और अंतरिक्ष से विकिरण के अन्य रूपों से मिलता है।
  • पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में उपग्रह और अन्य वस्तुएँ बहिर्मंडल में स्थित हैं और इसके गुणों से प्रभावित हो सकते हैं, जैसे अवशिष्ट वायुमंडलीय कणों से खींचना।
  • एक्सोस्फीयर को सटीक रूप से परिभाषित करना मुश्किल है क्योंकि अंतरिक्ष के साथ इसकी सीमा अच्छी तरह से परिभाषित नहीं है और सौर गतिविधि और वायुमंडलीय संरचना जैसे कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है।

तापमान

(Temperature)

  • सूर्य से आने वाली वह ऊर्जा जिसे पृथ्वी रोक लेती है, आतपन (सूर्यातप) (insolation) कहलाती है। आतपन (सूर्यातप) की मात्रा भूमध्य रेखा (Equator) से ध्रुवों (poles) की ओर घटती है।
  • पृथ्वी सूर्य की ऊर्जा के 2,000,000,00 भाग का केवल एक भाग (दो अरबवाँ) ही प्राप्त करती है
  • तापमान को मापने की मानक इकाई डिग्री सेल्सियस है। इस का आविष्कार ऐंडर्स सेल्सियस ने किया था। सेल्सियस पैमाने पर जल 0° सेल्सियस पर जमता है एवं 100° सेल्सियस पर उबलता है।

वायु दाब

(Air Pressure)

  • पृथ्वी की सतह पर वायु के भार द्वारा लगाया गया दाब, वायु दाब कहलाता है। वायुमंडल में ऊपर की ओर जाने पर दाब तेजी से गिरने लगता है। समुद्र स्तर पर वायु दाब सर्वाधिक होता है और ऊँचाई पर जाने पर यह घटता जाता है। वायु का क्षैतिज वितरण (Horizontal distribution) किसी स्थान पर उपस्थित वायु के ताप द्वारा प्रभावित होता है। अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में वायु गर्म होकर ऊपर उठती है। यह निम्न दाब क्षेत्र (Low pressure area) बनाता है। निम्न दाब बादलयुक्त आकाश एवं नम मौसम के साथ जुड़ा होता है।
  • कम तापमान वाले क्षेत्रों की वायु ठंडी होती है। इसके फलस्वरूप यह भारी होती है। भारी वायु निमज्जित होकर उच्च दाब क्षेत्र बनाती है। उच्च दाब के कारण स्पष्ट एवं स्वच्छ आकाश होता है।
  • वायु सदैव उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर गमन करती है।
  • चाँद पर वायु नहीं है इसलिए वहाँ वायु दाब भी नहीं है। अंतरिक्ष यात्री जब चाँद पर जाते हैं, तो वे विशेष रूप से सुरक्षित हवा से भरी हुई अंतरिक्ष पोशाक पहनते हैं। यदि वे इस अंतरिक्ष पोशाक को न पहनें तो अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर द्वारा विपरीत बल लगने के कारण उनकी रक्त शिराएँ (blood vessels) फट सकती हैं। जिससे अंतरिक्ष यात्री रक्तस्त्रावित हो सकते हैं।

पवन

(Wind)

उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर वायु की गति को ‘पवन’ कहते हैं। पवन का नाम उसके आने की दिशा के आधार पर निर्धारित होता है। उदाहरण के लिए पश्चिम से आने वाली पवन को पश्चिमी ( पछुवा ) (westerly) पवन कहते हैं। (पछुवा)

पवन को मुख्यतः तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है।

  1. स्थायी हवाएँ (Permanent winds): ये हवाएँ पूरे वर्ष लगातार चलती हैं और भूमध्य रेखा और ध्रुवों के बीच दबाव में अंतर के कारण होती हैं। स्थायी हवाओं के उदाहरणों में व्यापारिक हवाएँ, पछुआ हवाएँ (westerlies) और ध्रुवीय पूर्वी (polar easterlies) हवाएँ शामिल हैं।
  2. मौसमी हवाएँ (Seasonal winds): ये हवाएँ ऋतु परिवर्तन के साथ दिशा और शक्ति बदलती हैं। वे भूमि और समुद्र के अलग-अलग ताप के कारण होते हैं, और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में आम हैं। मौसमी हवाओं के उदाहरणों में मानसूनी हवाएँ और समुद्री समीर शामिल हैं।
  3. स्थानीय हवाएँ (Local winds): ये हवाएँ स्थानीय कारकों जैसे स्थलाकृति, वनस्पति और तापमान के अंतर से प्रभावित होती हैं। वे छोटे पैमाने पर और अल्पकालिक होते हैं। स्थानीय हवाओं के उदाहरणों में घाटी की हवा, पहाड़ की हवा और काटाबेटिक हवा शामिल हैं।

आर्द्रता

(Moisture)

  • जब जल पृथ्वी एवं विभिन्न जलाशयों से वाष्पित (evaporates) होता है, तो यह जलवाष्प (water vapour ) बन जाता है। वायु में किसी भी समय जलवाष्प की मात्रा को ‘आर्द्रता’ कहते हैं। जब वायु में जलवाष्प की मात्रा अत्यधिक होती है, तो उसे हम आर्द्र दिन (humid day) कहते हैं। जैसे-जैसे वायु गर्म होती जाती है, इसकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता बढ़ती जाती है और इस प्रकार यह और अधिक आर्द्र हो जाती है। आर्द्र दिन में, कपड़े सूखने में काफ़ी समय लगता है एवं हमारे शरीर से पसीना आसानी से नहीं सूखता और हम असहज महसूस करते हैं।
  • जब जलवाष्प ऊपर उठता है, तो यह ठंडा होना शुरू हो जाता है। जलवाष्प संघनित होकर ठंडा होकर जल की बूंद बनाते हैं। बादल इन्हीं जल बूंदों का ही एक समूह होता है। जब जल की ये बूंदें इतनी भारी हो जाती हैं कि वायु में तैर न सकें, तब ये वर्षण (precipitation) के रूप में नीचे आ जाती हैं।
  • पृथ्वी पर जल के रूप में गिरने वाला वर्षण, वर्षा (rain) कहलाता है। ज्यादातर भौम जल (ground Water), वर्षा जल से ही प्राप्त होता है। पौधे जल संरक्षण में मदद करते हैं।

वर्षा के प्रकार

(Types of Rainfall)

वर्षा तीन प्रकार की होती है :-

  1. संवहनीय वर्षा (Convectional rain)
  2. पर्वतीय वर्षा (Mountain rain)
  3. चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic rain)

1. सवहनीय वर्षा (convectional rain) :- अधिक तापमान के क्षेत्रों में सतह के अत्यंत गर्म हो जाने के कारण होती है। अधिक तापमान एवं सूर्यतप के अत्यधिक प्राप्ति के कारण, सतह की हवाएं अत्यधिक गर्म होकर ऊपर उठने लगती है। और क्रमशः ठंडी होती जाती है। जिससे संघनन की क्रिया होती है तथा कपासी बादलों का निर्माण होता है, जिससे तीव्र एवं मूसलाधार वर्षा होती है। इस प्रकार की वर्षा गर्मियों में या दिन के गर्म समय में प्रायः होती है। यह विषुवतीय क्षेत्र (Equatorial area) तथा खासकर उत्तरी गोलार्ध के महाद्वीपों के भीतरी भागों में प्रायः होती है।

2. पर्वतीय वर्षा (mountain rain):- जब जलवाष्प से लदी हुई गर्म वायु को किसी पर्वत या पठार की ढलान के साथ ऊपर चढ़ना होता है तो यह वायु ठण्डी होने लगती है। ठण्डी होने से यह संतृप्त हो जाती है और संघनन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। संघनन के पश्चात होने वाली इस प्रकार की वर्षा को ‘पर्वतीय वर्षा कहते है। यह वर्षा उन क्षेत्रों में अधिक होती है जहाँ पर्वत श्रेणी समुद्र तट के निकट तथा उसके समानान्त हो । संसार की अधिकांश वर्षा इसी रूप में होती है।

3. चक्रवाती वर्षा (cyclonic rain):- चक्रवातों चक्रवातों के कारण होने वाली वर्षा को चक्रवाती वर्षा कहते है। इस प्रकार की वर्षा शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातीय क्षेत्रों में होती है। या चक्रवातों द्वारा होने वाली वर्षा को चक्रवातीय या वाताग्री वर्षा कहते हैं। दो विपरीत स्वभाव वाली हवाएं जब आपस में टकराती हैं तो वाताग्र का निर्माण होता है। इस वाताग्र के सहारे गर्म वायु ऊपर की ओर उठती है और वर्षा होती है। यह वर्षा मुख्य रूप से मध्य एवं उच्च अक्षांशों में होती है।

  • ‘लवणता’ (Salinity) 1000 ग्राम जल में मौजूद नमक की मात्रा होती है। महासागर की औसत लवणता, 35 भाग प्रति हजार ग्राम है।
  • इजराइल के मृत सागर (Dead sea) में 340 ग्राम प्रति लीटर लवणता होती है। तैराक इसमें प्लव (float) कर सकते हैं, क्योंकि नमक की अधिकता इसे सघन बना देती है।
  • 22 मार्च ‘विश्व जल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, जब जल संरक्षण की विभिन्न विधियों को प्रबलित किया जाता है।

महासागरीय परिसंचरण

(Ocean Circulation)

ताल (ponds) एवं झील (lakes) के शांत जल के विपरीत महासागरीय जल हमेशा गतिमान रहता है। यह कभी शांत नहीं रहता है। महासागरों की गतियों को इस प्रकार वर्गीकृत कर सकते हैं जैसे – तरंगें (waves), ज्वार-भाटा (tides) एवं धाराएँ (currents)। तूफ़ान में तेज़ वायु चलने पर विशाल तरंगें उत्पन्न होती हैं। इनके कारण अत्यधिक विनाश हो सकता है। भूकंप, ज्वालामुखी उद्गार (volcanic eruption), या जल के नीचे भूस्खलन (Landslides) के कारण महासागरीय जल अत्यधिक विस्थापित होता है। इसके परिणामस्वरूप 15 मीटर तक की ऊँचाई वाली विशाल ज्वारीय तरंगें उठ सकती हैं, जिसे सुनामी कहते हैं। अब तक का सबसे विशाल सुनामी 150 मीटर मापा गया था। ये तरंगें 700 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की गति से चलती हैं। 2004 के सुनामी से भारत के तटीय क्षेत्रों में अत्यधिक विनाश हुआ था। के बाद अंडमान और निकोबार
द्वीपसमूह में इंदिरा प्वाइंट डूब गया था।

  • जब समुद्री सतह पर पवन बहती है, तब तरंगें उत्पन्न होती हैं। जितनी ही तेज़ पवन बहती है, तरंगें भी उतनी ही बड़ी होती जाती हैं।

ज्वार-भाटा

(Tides)

  • दिन में दो बार नियम से महासागरीय जल का उठना एवं गिरना ‘ज्वार-भाटा’ कहलाता है। जब सर्वाधिक ऊँचाई तक उठकर जल, तट के बड़े हिस्से को डुबो देता है, तब उसे ज्वार कहते हैं। जब जल अपने निम्नतम स्तर तक आ जाता है एवं तट से पीछे चला जाता है, तो उसे भाटा कहते हैं।
  • सूर्य एवं चंद्रमा के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल (gravitational force) के कारण पृथ्वी की सतह पर ज्वार-भाटे आते हैं। जब पृथ्वी का जल चंद्रमा के निकट होता है उस समय चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल से जल अभिकर्षित होता हैं, जिसके कारण उच्च ज्वार (high Tide)आते हैं। पूर्णिमा (full moon) एवं अमावस्या (new Moon) के दिनों में सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी तीनों एक सीध में होते हैं और इस समय सबसे ऊँचे ज्वार उठते हैं।
  • इस ज्वार को बृहत् ज्वार (spring tides) कहते हैं। लेकिन जब चाँद अपने प्रथम एवं अंतिम चतुर्थांश में होता है, तो चाँद एवं सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल विपरीत दिशाओं से महासागरीय जल पर पड़ता है, परिणामस्वरूप, निम्न ज्वार-भाटा (low tides) आता है। ऐसे ज्वार को लघु ज्वार-भाटा ( neap tides) कहते हैं।
  • ज्वार पृथ्वी के महासागरों पर चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि और गिरावट है।
  • उच्च ज्वार ज्वार का चरम है, जहाँ जल स्तर अपने उच्चतम बिंदु पर होता है, जबकि निम्न ज्वार इसके विपरीत होता है, जहाँ जल स्तर अपने निम्नतम बिंदु पर होता है।
  • एक दिन में दो उच्च ज्वार और दो निम्न ज्वार आते हैं, जो लगभग 12 घंटे और 25 मिनट के अंतराल पर होते हैं।
  • ज्वार की ऊंचाई और समय स्थान, सूर्य और चंद्रमा के संरेखण और हवा और धाराओं जैसे अन्य कारकों के आधार पर भिन्न होता है।
  • वसंत ज्वार पूर्णिमा और अमावस्या के दौरान होता है जब सूर्य और चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव संरेखित होता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च ज्वार आते हैं। नीप ज्वार पहली और तीसरी तिमाही के चंद्रमा के
  • दौरान होता है जब सूर्य और चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव समकोण पर होता है, जिसके परिणामस्वरूप निम्न ज्वार आते हैं।
  • ज्वार का तटीय पारिस्थितिक तंत्र और मछली पकड़ने, नौवहन और मनोरंजन जैसी मानवीय गतिविधियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

महासागरीय धाराएँ

(OCEAN CURRENTS)

  • महासागरीय धाराएँ, निश्चित दिशा में महासागरीय तह पर नियमित रूप से बहने वाली जल की धाराएँ होती हैं।
  • महासागरीय धाराएँ गर्म या ठंडी हो सकती गर्म महासागरीय धाराएँ, भूमध्य रेखा निकट उत्पन्न होती हैं एवं ध्रुवों की ओर प्रवाहित होती हैं। ठंडी धाराएँ, ध्रुवों या उच्च अक्षांशों से उष्णकटिबंधीय या निम्न अक्षांशों की ओर प्रवाहित होती हैं। लेब्राडोर महासागरीय धाराएँ, शीत जलधाराएँ होती हैं: जबकि गल्फस्टीम गर्म जलधाराएँ होती हैं।
  • महासागरीय धाराएँ, किसी क्षेत्र के तापमान को प्रभावित करती हैं। गर्म धाराओं से स्थलीय सतह का तापमान गर्म हो जाता है। जिस स्थान पर गर्म एवं शीत जलधाराएँ मिलती हैं, वह स्थान विश्वभर में सर्वोत्तम मत्स्यन क्षेत्र माना जाता है। जापान के आस- पास एवं उत्तर अमेरिका के पूर्वी तट इसके कुछ उदाहरण हैं।
  • जहाँ गर्म एवं ठंडी जलधाराएँ मिलती हैं, वहाँ कुहरे वाला मौसम बनता है।
  • महासागरीय धाराएँ पृथ्वी के महासागरों के भीतर पानी की बड़े पैमाने पर गति हैं, जो हवा, तापमान और लवणता सहित कारकों के संयोजन से संचालित होती हैं।
  • महासागरीय धाराएँ दो मुख्य प्रकार की होती हैं: सतही धाराएँ, जो हवा द्वारा संचालित होती हैं और समुद्र की ऊपरी परत को प्रभावित करती हैं, और गहरी धाराएँ, जो तापमान और लवणता में अंतर से संचालित होती हैं और समुद्र की गहरी परतों को प्रभावित करती हैं।
  • सतह की धाराएँ आमतौर पर गहरी धाराओं की तुलना में तेज़ और अधिक पूर्वानुमानित होती हैं, और ग्रह के चारों ओर गर्मी और ऊर्जा के पुनर्वितरण के लिए जिम्मेदार होती हैं।
  • समुद्र की धाराओं की दिशा और शक्ति कई कारकों से प्रभावित होती है, जिसमें कोरिओलिस प्रभाव (जिसके चलते धाराएं मुड़ जाती हैं), समुद्र तल का भूगोल और हवाओं की स्थिति और तीव्रता शामिल हैं।
  • कुछ प्रमुख सतह धाराओं में गल्फ स्ट्रीम, कुरोशियो करंट और अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट शामिल हैं। कुछ प्रमुख गहरी धाराओं में उत्तरी अटलांटिक गहरा पानी, अंटार्कटिक तल का पानी और प्रशांत गहरा पानी शामिल हैं।
  • समुद्री धाराओं का जलवायु और मौसम के पैटर्न के साथ-साथ समुद्री जीवन के वितरण और प्रवास के पैटर्न पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

प्राकृतिक वनस्पति

(Natural Vegetation)

स्थल की ऊँचाई एवं वनस्पति की विशेषताएँ एक-दूसरे से संबंधित होती हैं। ऊँचाई में परिवर्तन के साथ जलवायु में परिवर्तन होता है तथा इसके कारण प्राकृतिक वनस्पति में भी बदलाव आता है। वनस्पति की वृद्धि तापमान एवं नमी पर निर्भर करती है। इसके अलावा यह ढाल एवं मिट्टी की परत की मोटाई जैसे कारकों पर भी निर्भर करती है। इन घटकों में अंतर के कारण किसी स्थान की प्राकृतिक वनस्पति की सघनता एवं प्रकार में भी परिवर्तन होता है।

आमतौर पर प्राकृतिक वनस्पति को निम्न तीन मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है :

  1. वन (Forest ) : वन वृक्षों के वर्चस्व वाले क्षेत्र हैं, जो उष्णकटिबंधीय वर्षावनों से लेकर समशीतोष्ण पर्णपाती वनों तक हो सकते हैं। वे आमतौर पर उच्च स्तर की वर्षा प्राप्त करते हैं और पौधों और जानवरों की प्रजातियों की एक विविध श्रेणी होती है। वन विभिन्न प्रकार की पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करते हैं, जिनमें कार्बन भंडारण, जल विनियमन और वन्य जीवन के लिए आवास शामिल हैं।
  2. घास के मैदान (Grasslands): घास के मैदान घास और अन्य जड़ी-बूटियों के पौधों के प्रभुत्व वाले क्षेत्र हैं, जिनमें कुछ या कोई पेड़ नहीं हैं। वे उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण दोनों क्षेत्रों में पाए जाते हैं और वनों की तुलना में निम्न स्तर की वर्षा प्राप्त करते हैं। घास के मैदान कई प्रकार के शाकाहारी जीवों जैसे मृग और बाइसन के घर हैं और पशुओं को चराने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
  3. झाड़ियाँ (Shrubs): झाड़ियाँ कम उगने वाले लकड़ी के पौधों, जैसे कि झाड़ियों और झाड़ियों के प्रभुत्व वाले क्षेत्र हैं। वे विभिन्न प्रकार की जलवायु में पाए जाते हैं, जिनमें रेगिस्तान, शुष्क क्षेत्र और भूमध्यसागरीय जलवायु शामिल हैं। झाड़ियाँ सूखे और अन्य कठोर परिस्थितियों के अनुकूल होती हैं और छिपकलियों और छोटे स्तनधारियों जैसे वन्यजीवों के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करती हैं।कुल मिलाकर, ये तीन प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने, वन्य जीवन के लिए आवास प्रदान करने और वानिकी, कृषि और पशुचारण जैसी गतिविधियों के माध्यम से मानव आजीविका का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

वन

(Forest)

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उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests)

  • उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन: ये भूमध्य रेखा के पास उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले घने जंगल हैं, जहाँ वर्षा अधिक होती है और तापमान साल भर गर्म रहता है। वे चौड़े पत्तों वाले ऊंचे पेड़ों की विशेषता हैं जो एक घने छत्र का निर्माण करते हैं, जो पौधों और जानवरों की प्रजातियों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए आवास प्रदान करते हैं। उदाहरणों में दक्षिण अमेरिका में अमेज़ॅन वर्षावन और अफ्रीका में कांगो बेसिन शामिल हैं।
  • इन वनों को उष्णकटिबंधीय वर्षा वन (tropical rainforests) भी कहते हैं। ये घने वन भूमध्य रेखा एवं उष्णकटिबंध के पास पाए जाते हैं। ये गर्म क्षेत्र होते हैं एवं पूरे वर्ष यहाँ अत्यधिक वर्षा होती है। चूंकि यहाँ का मौसम कभी शुष्क नहीं होता, इसलिए यहाँ के पेड़ों की पत्तियाँ पूरी तरह नहीं झड़ती। इसलिए इन्हें सदाबहार (evergreen) कहते हैं। काफी घने वृक्षों की मोटी वितान के कारण दिन के समय भी सूर्य का प्रकाश वन के अंदर तक नहीं पहुँच पाता है। आमतौर पर यहाँ दृढ़ काष्ठ वृक्ष (Hardwood trees) जैसे रोज़वुड, आबनूस ( ebony ), महोगनी आदि पाए जाते हैं।
  • ब्राजील के उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन इतने विशाल हैं कि ये ऊपर से देखने पर पृथ्वी के फेफड़े की तरह प्रतीत होते हैं।

उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन (Tropical Deciduous Forests)

  • उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन: ये वन एक विशिष्ट शुष्क मौसम वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। वे पेड़ों की विशेषता हैं जो पानी के संरक्षण के लिए शुष्क मौसम के दौरान अपने पत्ते गिरा देते हैं और अक्सर सदाबहार और पर्णपाती प्रजातियों का मिश्रण होता है। उदाहरणों में मेडागास्कर के वन और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के शुष्क वन शामिल हैं।
  • उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन मानसूनी वन (monsoon forests) होते हैं जो भारत, उत्तरी आस्ट्रेलिया एवं मध्य अमेरिका के बड़े हिस्सों में पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में मौसमी परिवर्तन होते रहते हैं। जल संरक्षित रखने के लिए शुष्क मौसम में यहाँ के वृक्ष पत्तियाँ झाड़ देते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले दृढ़ काष्ठ वृक्षों में साल, सागवान (teak), नीम तथा शीशम हैं। दृढ़ काष्ठ वृक्ष, फर्नीचर, यातायात एवं निर्माण सामग्री बनाने के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। इन प्रदेशों में आमतौर पर पाए जाने वाले जानवर हैं- बाघ, शेर, हाथी, गोल्डन लंगूर एवं बंदर आदि ।
  • ‘ऐनाकोंडा’, विश्व का सबसे बड़ा साँप, उष्णकटिबंधीय वर्षावन में पाया जाता है। यह मगरमछ जैसे बड़े जानवर को मार और खा सकता

शीतोष्ण सदाबहार वन (Temperate Evergreen Forests)

  • समशीतोष्ण सदाबहार वन: ये वन समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ हल्की, बरसाती सर्दी और ठंडी गर्मी होती है। पाइन, स्प्रूस और फ़िर जैसे शंकुधारी पेड़ों की विशेषता है, जो साल भर अपनी सुइयों को बनाए रखते हैं। उदाहरणों में कैलिफोर्निया के तटीय रेडवुड वन और प्रशांत नॉर्थवेस्ट के समशीतोष्ण वर्षावन शामिल हैं।
  • शीतोष्ण सदाबहार वन मध्य अक्षांश के तटीय प्रदेशों में स्थित हैं। ये सामान्यतः महाद्वीपों के पूर्वी किनारों पर पाए जाते हैं-जैसे दक्षिण-पूर्व अमेरिका, दक्षिण चीन एवं दक्षिण-पूर्वी ब्राजील। यहाँ बांज, चीड़ एवं यूकेलिप्टस जैसे दृढ़ एवं मुलायम दोनों प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं।

शीतोष्ण पर्णपाती वन (Temperate Deciduous Forests)

  • समशीतोष्ण पर्णपाती वन: ये वन अलग-अलग मौसम वाले समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहाँ पेड़ पतझड़ में अपने पत्ते खो देते हैं और वसंत में उन्हें फिर से उगाते हैं। उन्हें ओक, मेपल और बीच जैसे चौड़े पेड़ों के मिश्रण की विशेषता है। उदाहरणों में पूर्वी उत्तरी अमेरिका और यूरोप के जंगल शामिल हैं।
  • उच्च अक्षांश की ओर बढ़ने पर अधिक शीतोष्ण पर्णपाती वन मिलते हैं। ये उत्तर-पूर्वी अमेरिका, चीन, न्यूज़ीलैंड, चिली एवं पश्चिमी यूरोप के तटीय प्रदेशों में पाए जाते हैं। ये अपनी पत्तियाँ शुष्क मौसम में झाड़ देते हैं। यहाँ पाए जाने वाले पेड़ हैं-बांज, ऐश, बीच, आदि । हिरण, लोमड़ी, भेड़िये, यहाँ के आम जानवर हैं। फ़ीजेंट तथा मोनाल जैसे पक्षी भी यहाँ पाए जाते हैं।
  • भूमध्यसागरीय वृक्ष (Mediterranean trees) शुष्क ग्रीष्म ऋतु में स्वयं को ढा लेते हैं। उनकी मोटी छाल एवं पत्तियाँ वाष्पोत्सर्जन को रोकती हैं।
  • भूमध्यसागरीय प्रदेश (Mediterranean Region) को फलों की कृषि के कारण ‘विश्व का फलोद्यान’ भी कहा जाता है।

शंकुधारी वन

(Coniferous Forest)

शंकुधारी वन, जिन्हें बोरियल या टैगा वन (boreal or taiga forests) के रूप में भी जाना जाता है, शंकुधारी सदाबहार पेड़ों के प्रभुत्व की विशेषता है जो ठंड और कठोर परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं। यहाँ शंकुधारी वनों के बारे में कुछ मुख्य बातें हैं:

  • शंकुधारी वन उत्तरी गोलार्द्ध के उच्च अक्षांशों (50°- 70°) में भव्य शंकुधारी वन पाए जाते हैं। इन्हें ‘टैगा’ भी कहते हैं।
  • ये वन अधिक ऊँचाइयों पर भी पाए जाते हैं। ये लंबे, नरम काष्ठ वाले सदाबहार वृक्ष होते हैं।
  • इन वृक्षों के काष्ठ का उपयोग लुगदी बनाने के लिए किया जाता है, जो सामान्य तथा अखबारी कागज़ बनाने के काम आती है।
  • नरम काष्ठ का उपयोग माचिस एवं पैकिंग के लिए बक्से बनाने के लिए भी किया जाता है। चीड़, देवदार आदि इन वनों के मुख्य पेड़ हैं।
  • भूगोल: शंकुधारी वन उत्तरी गोलार्ध में पाए जाते हैं, जो अलास्का और कनाडा से स्कैंडिनेविया और रूस तक फैले हुए हैं।
  • जलवायु: इन वनों में लंबी, ठंडी सर्दियाँ और छोटी, ठंडी गर्मियाँ होती हैं। इन क्षेत्रों में औसत तापमान -5°C से 5°C के आसपास रहता है।
  • वनस्पति: सदाबहार वृक्षों में शंकुधारी जंगलों का प्रभुत्व है, जिनमें स्प्रूस, फ़िर, पाइन और लार्च शामिल हैं। इन पेड़ों में सुई जैसी पत्तियाँ होती हैं, जो उन्हें पानी बचाने और ठंड के मौसम का सामना करने में मदद करती हैं। शंकुधारी जंगलों में पाए जाने वाले अन्य पौधों में झाड़ियाँ, काई और लाइकेन शामिल हैं।
  • वन्य जीवन: शंकुधारी जंगलों में पशु जीवन विविध है और ठंडे मौसम के अनुकूल है। आम जानवरों में मूस, कारिबू, भेड़िये, भालू, लिनेक्स, रजत लोमड़ी, मिक, ध्रुवीय भालू और पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • मानव प्रभाव: शंकुधारी वन इमारती लकड़ी उद्योग और मनोरंजन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं, जैसे शिविर लगाना, लंबी पैदल यात्रा और मछली पकड़ना। हालांकि, वनों की कटाई और तेल ड्रिलिंग जैसी मानवीय गतिविधियों का इन पारिस्थितिक तंत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

उदाहरण: कैनेडियन बोरियल फ़ॉरेस्ट, जिसे नॉर्थ वुड्स के नाम से भी जाना जाता है, कनाडा के लगभग 60% हिस्से को कवर करता है और यह पृथ्वी पर सबसे बड़ा अक्षुण्ण वन है। यह विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का घर है, जिनमें कारिबू, भेड़िये और घड़ियाल भालू शामिल हैं, साथ ही साथ 300 से अधिक स्वदेशी समुदाय भी हैं। वन वानिकी उद्योग के लिए महत्वपूर्ण संसाधन भी प्रदान करते हैं, लकड़ी, लुगदी और कागज उत्पादों का उत्पादन करते हैं।

घासस्थल

(GRASSLANDS)

घास के मैदान घास और अन्य जड़ी-बूटियों वाले पौधों के प्रभुत्व वाले पारिस्थितिक तंत्र हैं जिनमें कुछ या कोई पेड़ नहीं हैं। यहाँ तीन प्रकार के घास के मैदानों के बारे में कुछ मुख्य बातें दी गई हैं:

उष्णकटिबंधीय घासस्थल (Tropical grasslands)

  • उष्णकटिबंधीय घास के मैदान: इसे सवाना के रूप में भी जाना जाता है, उष्णकटिबंधीय घास के मैदान उच्च तापमान और मौसमी वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। वे लंबी घास, बिखरे हुए पेड़, और ज़ेबरा, जिराफ और हाथी जैसे शाकाहारी जानवरों की एक विस्तृत श्रृंखला की विशेषता हैं।
  • ये वन भूमध्य रेखा के किसी भी तरफ उग जाते हैं और भूमध्य रेखा के दोनों ओर से उष्णकटिबंध क्षेत्रों तक फैले हैं। यहाँ वनस्पति निम्न से मध्य वर्षा वाले क्षेत्रों में पैदा होती है।
  • यह घास काफ़ी ऊँची लगभग 3 से 4 मीटर की उँचाई तक बढ़ सकती है। अफ्रीका का सवाना घासस्थल इसी प्रकार का है।
  • सामान्य रूप से उष्णकटिबंधीय घासस्थल में हाथी, जेबरा, जिराफ़, हिरण, तेंदुआ आदि जानवर पाए जाते हैं |
  • उदाहरण: तंजानिया में सेरेन्गेटी मैदान और केन्या में मसाई मारा प्रसिद्ध सवाना हैं जो जंगली जानवरों, ज़ेब्रा और अन्य चरने वाले जानवरों के बड़े झुंडों का घर हैं।

शीतोष्ण घासस्थल (Temperate grasslands)

  • समशीतोष्ण घास के मैदान: ये घास के मैदान मध्यम से कम वर्षा और ठंडी सर्दियों वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। उन्हें छोटी घास, कुछ पेड़, और विभिन्न प्रकार के चरने वाले जानवरों, जैसे बाइसन, प्रोनहॉर्न और कंगारू की विशेषता है।
  • ये मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों और महाद्वीपों के भीतरी भागों में पाए जाते हैं। यहाँ की घास आमतौर पर छोटी एवं पौष्टिक होती है ।
  • शीतोष्ण प्रदेशों में सामान्यतः जंगली भैंस, बाइसन, एंटीलोप पाए जाते हैं।
  • उदाहरण: उत्तरी अमेरिका के महान मैदान, टेक्सास से कनाडा तक फैले हुए, समशीतोष्ण घास के मैदानों का एक प्रमुख उदाहरण हैं जो कभी बाइसन और प्रॉनहॉर्न के बड़े झुंडों का घर थे।

कँटीली झाड़ियाँ (Thorny bushes)

  • कँटीली झाड़ियाँ: ये घास के मैदान कम वर्षा और गर्म तापमान वाले शुष्क क्षेत्रों में पाए जाते हैं। उन्हें कांटेदार झाड़ियों और झाड़ियों की विशेषता है जो पानी के संरक्षण और ऊंटों और मृग जैसे जानवरों को चरने से बचाने के लिए अनुकूलित हैं।
  • ये शुष्क रेगिस्तान जैसे प्रदेशों में पाई जाती हैं। उष्णकटिबंधीय रेगिस्तान, महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर पाए जाते हैं।
  • तीव्र गर्मी एवं बहुत कम वर्षा के कारण यहाँ वनस्पतियों की कमी रहती है।
  • उदाहरण: दक्षिणी अफ्रीका में कालाहारी मरुस्थल एक कंटीली झाड़ी वाला घास का मैदान है जो विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का घर है, जिनमें शेर, चीता और मीरकट शामिल हैं।

विभिन्न प्रदेशों में घासस्थल विभिन्न नामों से जाने जाते हैं:-

उष्णकटिबंधीय घासस्थल

पूर्वी अफ्रीका (Africa and Australia) सवाना (Savannah
 ब्राजील (Brazil) कंपोस (Campos)
 वेनेजुएला (Venezuela) लानोस (LLanos)

शीतोष्ण कटिबंधीय घासस्थल 

अर्जेन्टीना (Argentina) पोम्पस (Pampas )
उत्तरी अमेरिका (USA – North America) प्रेअरी (Prairies
दक्षिण अफ्रीका (South Africa) वेल्ड (Veld
मध्य एशिया (Central Asia) स्टेपी (Steppe)
आस्ट्रेलिया (Australia) डान (Downs)

 

ध्रुवीय प्रदेश

(Polar Region)

यह क्षेत्र अत्यधिक ठंडा होता है यहाँ बहुत ही सीमित प्राकृतिक वनस्पति (vegetation) मिलती है। यहाँ केवल काई, लाइकेन एवं छोटी झाड़ियाँ पाई जाती हैं। ये अल्पकालिक ग्रीष्म ऋतु के दौरान विकसित होती हैं। इसे टुंड्रा प्रकार की वनस्पति कहा जाता है। ये वनस्पतियाँ यूरोप, एशिया एवं उत्तरी अमेरिका के ध्रुवीय प्रदेशों में पाई जाती हैं। यहाँ के जानवरों के शरीर पर मोटा फ़र एवं मोटी चमड़ी होती है, जो उन्हें ठंडी जलवायु में सुरक्षित रखते हैं। यहाँ पाए जाने वाले कुछ जानवर हैं- सील, वालरस, कस्तूरी-बैल, ध्रुवीय उल्लू, ध्रुवीय भालू और बर्फीली लोमड़ी।

बस्तियाँ

(Settlements)

वे स्थान जहाँ भवन अथवा बस्तियाँ विकसित होती हैं उसे बसाव स्थान (site) कहते हैं। आदर्श बसाव स्थान के चयन के लिए प्राकृतिक दशाएँ:

  • अनुकूल जलवायु
  • जल की उपलब्धता
  • उपयुक्त भूमि उपजाऊ मिट्टी

गाँव, ग्रामीण बस्ती होती है; जहाँ लोग कृषि, मत्स्य पालन, दस्तकारी एवं पशुपालन संबंधी कार्य करते हैं। ग्रामीण बस्ती सघन या प्रकीर्ण हो सकती हैं। सघन बस्तियों में घर पास-पास बने होते हैं।

  1. प्रकीर्ण बस्तियों (Scattered settlement) में लोगों के घर दूर-दूर व्यापक क्षेत्र में फैले होते हैं। इस प्रकार की बस्तियाँ मुख्यतः पहाडी घने जंगल एवं अतिविषम जलवायु वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
  2. गर्म जलवायु (Hot climate) वाले क्षेत्रों में मिट्टी की मोटी दीवार वाले घर पाए जाते हैं, जिनकी छतें फूस की बनी होती हैं। स्थानीय सामग्री, जैसे पत्थर, पंक, चिकनी मिट्टी, तृण आदि का उपयोग घर बनाने में किया जाता है।
  3. नगरी बस्तियों (Towns) में नगर छोटी एवं शहर उनसे बड़ी बस्तियाँ होती हैं। नगरीय क्षेत्रों में लोग निर्माण, व्यापार एवं सेवा क्षेत्रों में कार्यरत होते हैं।

ऋतु-प्रवास

(Transhumance)

  • ट्रांसह्यूमन्स देहातीवाद का एक पारंपरिक रूप है जिसमें भोजन और पानी की उपलब्धता के आधार पर विभिन्न चराई के मैदानों के बीच पशुओं का मौसमी आंदोलन शामिल होता है, जो अक्सर अलग-अलग ऊंचाई पर होता है।
  • यह अभ्यास देहाती समुदायों द्वारा हजारों वर्षों से किया जाता रहा है, विशेष रूप से शुष्क या पहाड़ी क्षेत्रों जैसे कठोर या अप्रत्याशित जलवायु परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में। शुष्क मौसम के दौरान, चरवाहे अपने जानवरों को अधिक ऊँचाई पर ले जाते हैं, जहाँ घास अधिक प्रचुर मात्रा में होती है और तापमान ठंडा होता है। गीले मौसम के दौरान, वे नीचे की ओर कम ऊंचाई पर चले जाते हैं, जहां पानी और वनस्पति अधिक मात्रा में होती है।
  • ट्रांसह्यूमन्स न केवल चरवाहों और उनके परिवारों के लिए भोजन उपलब्ध कराने का एक साधन है, बल्कि चरागाह क्षेत्रों के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में भी मदद करता है, अतिवृष्टि को रोकता है और स्वस्थ चरागाहों के विकास को बढ़ावा देता है। हालांकि, शहरीकरण, भूमि उपयोग परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के कारण आधुनिक समय में यह अभ्यास तेजी से कठिन हो गया है, जिससे चरागाह भूमि का नुकसान हो रहा है और पारंपरिक प्रवासी मार्गों का विखंडन हो रहा है।
  • दक्षिणी अमेरिका के ऐंडीज पर्वत के क्षेत्र में लामा का उपयोग उसी तरह होता है, जैसे तिब्बत में याक का उपयोग होता है।

परिवहन

(Transport)

परिवहन के 4 मुख्य साधन हैं –

  1. सड़कमार्ग (Roadways)
  2. रेलमार्ग (Railways)
  3. जलमार्ग (Waterways)
  4. वायुमार्ग (Airways)
  • भारत में अनेक राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्ग हैं। भारत में एक्सप्रेस वे का निर्माण नवीनतम है। स्वर्ण चतुर्भुजीय महामार्ग (Golden Quadrilateral Connects) दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को जोड़ता है।
  • जायनिंग से ल्हासा के बीच चलने वाली गाड़ी समुद्रतल से 4,000 मीटर की उँचाई पर चलती है, जिसका सबसे ऊँचा बिंदु समुद्र तल 15072 मीटर है।

जलमार्ग

(Waterways)

मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं :-

  1. अंतर्देशीय जलमार्ग (Inland Waterways)
  2. समुद्रीमार्ग (Sea routes)

अंतर्देशीय जलमार्ग (Inland Waterways)

  • नाव्य नदियों (Navigable rivers ) एवं झीलों का उपयोग अंतर्देशीय जलमार्ग के लिए होता है।
  • कुछ महत्त्वपूर्ण अंतर्देशीय जलमार्ग हैं : गंगा – ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र, उत्तरी अमेरिका में ग्रेट लेक एवं अफ्रीका में नील नदी ।

समुद्रीमार्ग (Sea routes)

समुद्री एवं महासागरीय मार्गों का उपयोग सामान्यतः व्यापारिक माल एवं समान को एक देश से दूसरे देश में पहुँचाने के लिए करते हैं। ये मार्ग पत्तनों से जुड़े होते हैं। विश्व के कुछ महत्त्वपूर्ण पत्तन हैं – एशिया में सिंगापर एवं मुंबई, उत्तर अमेरिका में न्यूयॉर्क एवं लॉस एंजिल्स, दक्षिण अमेरिका में रियो डि जेनेरियो, अफ्रीका में डरबन एवं केपटाउन, आस्ट्रेलिया में सिडनी, यूरोप में लंदन

  • सेटेलाइट से संचार में तीव्रता आई है। तेल की खोज, वनों का सर्वेक्षण, भूमिगत खनिज संपदा, मौसम पूर्वानुमान एवं आपदा पूर्व चेतावनी आदि में सेटेलाइट सहायक होते हैं।

अमेजन बेसिन

(Amazon Basin)

  • अमेज़ॅन बेसिन दक्षिण अमेरिका में एक क्षेत्र है जो महाद्वीप के 40% को कवर करता है और आठ देशों द्वारा साझा किया जाता है: ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, वेनेजुएला, इक्वाडोर, बोलीविया, गुयाना और सूरीनाम।
  • यह अमेज़ॅन नदी का घर है, जो मात्रा के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी नदी है और नील नदी के बाद दूसरी सबसे लंबी नदी है।
  • अमेज़ॅन वर्षावन, जो अधिकांश बेसिन को कवर करता है, दुनिया का सबसे बड़ा उष्णकटिबंधीय वर्षावन है और दुनिया की अनुमानित 10% प्रजातियों का घर है।
  • बेसिन में उच्च स्तर की वर्षा के साथ एक उष्णकटिबंधीय जलवायु है और वैश्विक मौसम पैटर्न और कार्बन प्रच्छादन को विनियमित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • अमेज़ॅन बेसिन में स्वदेशी समुदाय हजारों वर्षों से रह रहे हैं और उन्होंने इसके संसाधनों का उपयोग करने के लिए स्थायी प्रथाओं का विकास किया है।
  • यह क्षेत्र वनों की कटाई, खनन और कृषि गतिविधियों से खतरों का सामना कर रहा है, जो जैव विविधता के नुकसान, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और सामाजिक संघर्ष का कारण बन रहे हैं।
  • अमेज़ॅन बेसिन को संरक्षित क्षेत्रों, सतत विकास और स्वदेशी अधिकारों के माध्यम से संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • उष्णकटिबंधीय प्रदेश (tropical region) कर्क रेखा और मकर रेखा के मध्य स्थित हैं। भूमध्य रेखा ( equator) के 10° उत्तर से 10° दक्षिण के मध्य के भाग को भूमध्यरेखीय प्रदेश कहते है। अमेज़न नदी इसी प्रदेश से होकर बहती है।
  • जिस स्थान पर कोई नदी किसी अन्य जल राशि में मिलती है उसे नदी का मुहाना (river’s mouth) कहते हैं। अमेज़न नदी में बहुत सारी सहायक नदियाँ मिलकर अमेज़न बेसिन का निर्माण करती हैं। यह नदी बेसिन ब्राजील के भागों, पेरू के कुछ भागों, बोलीविया, इक्वाडोर, कोलं तथा वेनेजुएला के छोटे भाग से अपवाहित होती है।
  • जब स्पेन के अन्वेषकों (explorers) ने इस नदी की खोज की तब सिर पर सुरक्षा कवच (हेडगियर) एवं घास के स्कर्ट पहने कुछ स्थानीय आदिवासियों ने उन पर आक्रमण किया। इन आक्रमणकारियों ने उन्हें प्राचीन रोमन साम्राज्य के अमेज़ोंस नामक महिला योद्धाओं के आक्रामक समूह की याद दिला दी। इस प्रकार यहाँ का अमेज़न पड़ा।
  • सहायक नदियाँ (Tributaries) छोटी नदियाँ होती हैं जो मुख्य नदी में मिलती हैं। मुख्य नदी अपनी सहायक नदियों के साथ जिस क्षेत्र के पानी को बहाकर ले जाती है वह उसका बेसिन अथवा जलसंग्रहण क्षेत्र कहा जाता है। अमेज़न बेसिन विश्व का सबसे बड़ा नदी बेसिन है।

वर्षा वन

(Rain Forest)

  • इन प्रदेशों में अत्यधिक वर्षा के कारण यहाँ की भूमि पर सघन वन उग जाते हैं। वन इतने सघन होते हैं कि पत्तियों तथा शाखाओं से ‘छत’ सी बन जाती है जिसके कारण सूर्य का प्रकाश धरातल तक नहीं पहुंच पाता है। यहाँ की भूमि प्रकाश रहित एवं बनी रहती है। यहाँ केवल वही वनस्पति पनप सकती है जिसमें छाया में बढ़ने की क्षमता हो। परजीवी पौधों (plant parasites) के रूप में यहाँ आर्किड एवं ब्रोमिलायड पैदा होते हैं।
  • वर्षावन में प्राणिजात की प्रचुरता होती है। टूकन, गुंजन पक्षी, रंगीन पक्षति वाले पक्षी एवं भोजन के लिए बड़ी चोंच वाले विभिन्न प्रकार के पक्षी जो भारत में पाए जाने वाले सामान्य पक्षियों से भिन्न होते हैं यहाँ पाए जाते हैं। प्राणियों में बंदर, स्लॉथ एवं चीटी खानेवाले टैपीर भी यहाँ पाए जाते हैं। साँप एवं सरीसर्प की विभिन्न प्रजातियाँ भी इन वनों में पाई जाती हैं। मगर, साँप, अजगर तथा एनाकोंडा एवं बोआ कुछ ऐस ही प्रजातियाँ हैं। इसके अतिरिक्त हजारों कीड़े-मकोड़े भी इस बेसिन में निवास करते हैं। मांस खाने वाली पिरान्या मत्स्य समेत मछलियों की विभिन्न प्रजातियाँ भी अमेजन नदी में पाई जाती हैं। इस प्रकार जीवों की विविधता की दृष्टि से यह बेसिन असाधारण रूप से समृद्ध है।
  • वर्षावन अत्यधिक मात्रा में घरों के लिए लकड़ी प्रदान करते हैं। कुछ परिवार मधुमक्खी के छत्ते के आकार वाले छप्पर के घरों में रहते हैं। जबकि कुछ लोग ‘मलोका’ कहे जाने वाले बड़े अपार्टमेंट जैसे घरों में रहते हैं जिनकी छत तीव्र ढलान वाली होती हैं।
  • वर्षावन एक घना जंगल है जिसकी विशेषता उच्च स्तर की वर्षा होती है, जो आमतौर पर भूमध्य रेखा के पास उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में स्थित होती है।
  • पृथ्वी की लगभग 6% भूमि की सतह को कवर करने के बावजूद, वर्षावन दुनिया के आधे से अधिक पौधों और जानवरों की प्रजातियों का घर हैं।
  • वे पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से ऑक्सीजन छोड़ते हैं।
  • वनों की कटाई, मुख्य रूप से कृषि, लॉगिंग और खनन के लिए, वर्षावनों के लिए एक बड़ा खतरा है, जिससे निवास स्थान का विनाश, और जैव विविधता का नुकसान होता है, और जलवायु परिवर्तन में योगदान होता है।
  • स्वदेशी समुदाय हजारों वर्षों से वर्षावनों में रहते रहे हैं और उन पर निर्भर रहे हैं और उन्होंने अपने संसाधनों का उपयोग करने के लिए स्थायी प्रथाओं का विकास किया है।
  • संरक्षण प्रयासों में संरक्षित क्षेत्र, सतत विकास और स्वदेशी भूमि अधिकार शामिल हैं, लेकिन वनों की कटाई की दर इन प्रयासों को पीछे छोड़ रही है।

ब्रोमिलायड’ एक विशेष प्रकार का पौधा है जो अपनी पत्तियों में जल को संचित रखता है। मेढ़क जैसे प्राणी इन जल के पॉकेट का उपयोग अंडा देने के लिए करते हैं।

गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन में जीवन

(Life In The Ganga-Brahmaputra Basin)

गंगा तथा ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ मिलकर भारतीय उपमहाद्वीप में गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन का निर्माण करती है। घाघरा, सोन, चंबल, गंडक, कोसी जैसी गंगा की सहायक नदियाँ एवं ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ इसमें अपवाहित होती हैं। गंगा एवं ब्रह्मपुत्र के मैदान, पर्वत एवं हिमालय के गिरिपाद तथा सुंदरवन डेल्टा इस बेसिन की मुख्य विशेषताएँ हैं। मैदानी क्षेत्र में अनेक चापझील पाई जाती हैं।

गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन, जिसे गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया की सबसे बड़ी नदी घाटियों में से एक है। यह भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और तिब्बत के कुछ हिस्सों को कवर करते हुए दक्षिण एशिया में स्थित है। इस क्षेत्र में जीवन के बारे में कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  • कृषि: गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन अपनी उपजाऊ मिट्टी और व्यापक कृषि पद्धतियों के लिए जाना जाता है। चावल प्राथमिक फसल है, लेकिन अन्य फसलें जैसे गेहूं, जूट और चाय भी उगाई जाती हैं।
  • मत्स्य पालन: गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन में नदियाँ मछली पकड़ने के एक बड़े उद्योग का समर्थन करती हैं, जिससे लाखों लोगों को आजीविका मिलती है। इन जल में हिल्सा, पाबडा और रोहू जैसी मछलियाँ आम हैं।
  • जैव विविधता: डेल्टा क्षेत्र विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों का घर है, जिनमें रॉयल बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी, भारतीय गैंडे और गंगा नदी की डॉल्फ़िन शामिल हैं। सुंदरबन मैंग्रोव वन, जो भारत और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ है, यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है और कई लुप्तप्राय प्रजातियों का घर है।
  • संस्कृति: गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व में डूबा हुआ है, गंगा नदी को हिंदुओं द्वारा पवित्र माना जाता है। यह क्षेत्र बोडो, चकमा और गारो जैसे कई स्वदेशी समुदायों का भी घर है।
  • चुनौतियां: गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन जल प्रदूषण, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन सहित कई चुनौतियों का सामना करता है। इस क्षेत्र में बाढ़ का खतरा है, और समुद्र के बढ़ते स्तर से डेल्टा के बड़े हिस्से जलमग्न होने का खतरा है।
  • पश्चिम बंगाल एवं असम में चाय के बागान मिलते हैं।
  • बिहार एवं असम के कुछ भागों में सिल्क के कीड़ों का संवर्धन कर सिल्क का उत्पादन किया जाता है।
  • डेल्टा क्षेत्र मैंग्रोव वन से घिरा है। उत्तराखंड, सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश की ठंडी जलवायु एवं तीव्र ढाल वाले भागों में चीड़, देवदार एवं फर जैसे शंकुधारी पेड़ पाए जाते हैं।
  • जनसंख्या घनत्व (Population density) का अर्थ है, एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में रहने वाले लोगों की संख्या । उदाहरण लिए उत्तराखंड का जनसंख्या घनत्व 189 है जबकि पश्चिम बंगाल का 1029 तथा बिहार का 1102 है |
  • वेदिकाओं (Terraces) का निर्माण खड़ी ढलानों पर समतल सतह बना कर कृषि करने के लिए होता है। ढलान इसलिए हटाया जाता है कि जल का प्रवाह तीव्रता से न हो।
  • सार्वभौमिक स्वच्छता कवरेज प्राप्त करने और स्वच्छता पर ध्यान केन्द्रित करने के प्रयासों में तेजी लाने के लिए भारत के प्रधानमंत्री ने 2 अक्तूबर 2014 को ‘स्वच्छ भारत मिशन’ का शुभारंभ किया।

कुल मिलाकर, गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन में जीवन इसके माध्यम से बहने वाली नदियों से निकटता से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों और सांस्कृतिक विरासत में समृद्ध है लेकिन महत्वपूर्ण पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों का सामना करता है।

सहारा रेगिस्तान

(SAHARA DESERT)

  • सहारा रेगिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा गर्म रेगिस्तान है, जो पूरे उत्तरी अफ्रीका में 3.6 मिलियन वर्ग मील से अधिक क्षेत्र में फैला है।
  • यह विश्व का सबसे बड़ा रेगिस्तान है। यह लगभग 8.54 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • सहारा रेगिस्तान ग्यारह देशों से घिरा हुआ है। ये देश हैं-अल्जीरिया, चाड, मिस्र, लीबिया, माली, मौरितानिया, मोरक्को, नाइजर, सूडान, ट्यूनिशिया एवं पश्चिमी सहारा।
  • सहारा रेगिस्तान एक समय में पूर्णतया हरा-भरा मैदान था । सहारा की गुफ़ाओं से प्राप्त चित्रों से ज्ञात होता है कि यहाँ नदियाँ तथा मगरमच्छ पाए जाते थे। हाथी, शेर, जिराफ़, शतुरमुर्ग, भेड़, पशु तथा बकरियाँ सामान्य जानवर थे। परंतु यहाँ के जलवायु परिवर्तन ने इसे बहु गर्म व शुष्क प्रदेश में बदल दिया है।
  • सहारा के अल अजीजिया क्षेत्र में, जो त्रिपोली, लीबिया के दक्षिणी भाग में स्थित है, यहाँ का सबसे अधिक तापमान 1922 में 57.7° सेल्सियस दर्ज किया गया था।
  • यह उच्च तापमान, कम वर्षा और तेज हवाओं की विशेषता है, जो इसे पृथ्वी पर सबसे प्रतिकूल वातावरणों में से एक बनाता है।
  • अपनी कठोर परिस्थितियों के बावजूद, सहारा विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों की प्रजातियों का घर है, जिनमें ऊंट, रेगिस्तानी लोमड़ी और खजूर शामिल हैं।
  • मानव आबादी हजारों वर्षों से सहारा में रहती है और खानाबदोश चरवाहा और ओएसिस कृषि जैसी प्रथाओं के माध्यम से इसकी स्थितियों के अनुकूल हो गई है।
  • रेगिस्तान का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है, प्राचीन सभ्यताओं जैसे कि मिस्र और कार्थाजियन इस क्षेत्र में पनपे हैं।
  • सहारा जलवायु परिवर्तन, अतिवृष्टि और मरुस्थलीकरण से खतरों का सामना करता है, जो मानवीय गतिविधियों के कारण उपजाऊ भूमि के रेगिस्तान में बदलने की प्रक्रिया है।
  • संरक्षण प्रयासों में वनों की कटाई, स्थायी कृषि और मरुस्थलीकरण नियंत्रण शामिल हैं, लेकिन सीमित संसाधनों और क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता के कारण इन प्रयासों को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

सहारा रेगिस्तान के बारे में कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

वनस्पतिजात एवं प्राणिजात (Flora and Fauna)

  • वनस्पति और जीव: सहारा रेगिस्तान में एक अनूठा पारिस्थितिकी तंत्र है, जो अत्यधिक गर्मी और सीमित पानी की कठोर परिस्थितियों के अनुकूल है। यह विभिन्न प्रकार के जानवरों का घर है, जैसे ऊंट, चिकारे, और रेगिस्तानी लोमड़ी, साथ ही कैक्टि, बबूल और खजूर जैसे पौधे।
  • सहारा रेगिस्तान की वनस्पतियों में कैक्टस, खजूर के पेड़ एवं ऐकेशिया पाए जाते हैं। यहाँ कुछ स्थानों पर मरूद्यान – खजूर के पेड़ों से घिरे हरित द्वीप पाए जाते हैं। ऊँट, लकड़बग्घा, सियार, लोमड़ी, बिच्छू, साँपों की विभिन्न जातियाँ एवं छिपकलियाँ यहाँ के प्रमुख जीव-जंतु हैं।

विभिन्न समुदायों के लोग (Various groups of people)

  • लोगों के विभिन्न समूह: कठोर परिस्थितियों के बावजूद, ऐसे कई समूह हैं जिन्होंने सहारा रेगिस्तान में जीवन के लिए अनुकूलन किया है। इनमें तुआरेग, बेरबर्स और बेडौइन शामिल हैं, जो खानाबदोश या अर्ध-खानाबदोश हैं और अक्सर अपने पशुओं के झुंड के साथ लंबी दूरी की यात्रा करते हैं।
  • सहारा रेगिस्तान की कष्टकारी जलवायु में भी विभिन्न समुदायों के लोग निवास करते हैं, जो भिन्न-भिन्न क्रियाकलापों में भाग लेते हैं। इनमें बेदुईन एवं तुआरेग भी शामिल हैं। चलवासी जनजाति वाले ये लोग बकरी, भेड़, ऊँट एवं घोड़े जैसे पशुधन को पालते हैं।

नील घाटी (Nile Valley)

  • नील घाटी: नील नदी सहारा के पूर्वी भाग से होकर बहती है, जिससे उपजाऊ भूमि की एक संकरी पट्टी बनती है जिसे नील घाटी कहा जाता है। यह क्षेत्र मिस्र के फिरौन सहित कई प्राचीन सभ्यताओं का घर है, जिन्होंने नदी के किनारे अपने पिरामिड और मंदिर बनवाए।
  • सहारा में मरूद्यान एवं मिस्र में नील घाटी लोगों को निवास में मदद करती है। यहाँ जल की उपलब्धता होने से लोग खजूर के पेड़ उगाते हैं। यहाँ चावल, गेहूँ, जौ एवं सेम जैसी फसलें भी उगाई जाती हैं। मिस्त्र में उगाए जाने वाली कपास (cotton) पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।

खनिज (Minerals)

  • खनिज: सहारा मरुस्थल आयरन, फॉस्फेट और यूरेनियम सहित खनिजों से समृद्ध है। इन खनिजों का अक्सर खनन किया जाता है और अन्य देशों को निर्यात किया जाता है, जो इस क्षेत्र के आर्थिक विकास में योगदान देता है।
  • तेल की खोज संपूर्ण विश्व में अत्यधिक माँग वाले, इस उत्पाद का अल्जीरिया, लीबिया एवं मिस्त्र में होने के कारण सहारा रेगिस्तान में तेजी से परिवर्तन हो रहा है। इस क्षेत्र में प्राप्त अन्य महत्वपूर्ण में लोहा, फॉस्फोरस, मैंगनीज़ एवं यूरेनियम सम्मिलित हैं।

मरूद्यान

(Oasis)

जब रेत को पवन उड़ा ले जाती है, तो वहाँ गर्त (Trough) बन जाती है। जहाँ गर्त में भूमिगत जल सतह पर आ जाता है, वहाँ मरूद्यान बनते हैं। ये क्षेत्र उपजाऊ होते हैं। लोग इनके आसपास निवास करते हैं एवं खजूर के पेड़ तथा अन्य फसलें उगाते हैं। कभी-कभी यह मरूद्यान असामान्य रूप से बड़ा भी सकता है। मोरक्को में टैफ़िलालेट मरूद्यान ऐसा ही विशाल मरूद्यान है, जो 13,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में
फैला हुआ है।

ठंडा रेगिस्तान – लद्दाख (THE COLD DESERT – LADAKH)

जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व में बृहत् हिमालय में स्थित लद्दाख एक ठंडा रेगिस्तान है। इसके उत्तर में काराकोरम पर्वत श्रेणियाँ एवं दक्षिण में जास्कर पर्वत स्थित है। लद्दाख से होकर अनेक नदियाँ बहती हैं, जिनमें सिंधु नदी प्रमुख है। ये नदियाँ गहरी घाटियों एवं महाखड्ड (gorge) का निर्माण करती हैं। लद्दाख में अनेक हिमानियाँ हैं जैसे- गैंग्री हिमानी ।

लद्दाख की ऊँचाई कारगिल में लगभग 3000 मीटर से लेकर काराकोरम में 8000 मीटर से भी अधिक पाई जाती है। अधिक ऊँचाई के कारण यहाँ की जलवायु अत्यधिक शीतल एवं शुष्क होती है। इस ऊँचाई पर वायु परत पतली होती है जिससे सूर्य की गर्मी की अत्यधिक तीव्रता महसूस होती है। ग्रीष्म ऋतु में दिन का तापमान 0° सेल्सियस से कुछ ही अधिक होता है एवं रात में तापमान शून्य से 30° सेल्सियस से नीचे चला जाता है। शीत ऋतु में यह बर्फीला ठंडा हो जाता है, तापमान लगभग हर समय -40° सेल्सियस से नीचे ही रहता है। चूंकि यह हिमालय के वृष्टि- छाया (rain shadow) क्षेत्र में स्थित है, अत: यहाँ वर्षा बहुत ही कम होती है।

  • पृथ्वी के सबसे ठंडे स्थानों में से एक ‘द्रास’, लद्दाख में स्थित है।
  • लद्दाख को खा-पा-चान भी कहते हैं जिसका अर्थ होता है हिमभूमि (snow land)
  • उत्तरी भारत में स्थित लद्दाख का ठंडा रेगिस्तान, दुनिया के सबसे ऊंचे रेगिस्तानों में से एक है और अपने अत्यधिक तापमान, कम वर्षा और अद्वितीय परिदृश्य के लिए जाना जाता है।
  • अपनी कठोर परिस्थितियों के बावजूद, रेगिस्तान कई मरुस्थलों का घर है जो मानव और पशु जीवन का समर्थन करते हैं, जैसे कि नुब्रा घाटी और ज़ांस्कर घाटी।

वनस्पतिजात एवं प्राणिजात (Flora and Fauna)

यहाँ उच्च शुष्कता (high aridity) के कारण वनस्पति विरल है। यहाँ जानवरों के चरने के लिए कहीं-कहीं पर ही घास एवं छोटी झाड़ियाँ मिलती हैं। ग्रीष्म ऋतु में सेब, खुबानी एवं अखरोट के पेड़ फल देते हैं। लद्दाख में पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ नजर आती हैं। इनमें रॉबिन, रेडस्टार्ट, तिब्बती स्नोकॉक, रैवेन एवं हूप यहाँ पाए जाने वाले सामान्य पक्षी हैं। इनमें से कुछ प्रवासी पक्षी हैं। लद्दाख के पशुओं में जंगली बकरी, जंगली भेड़, याक एवं विशेष प्रकार के कुत्ते आदि पाए जाते हैं।

  • चीरू या तिब्बती एंटीलोप एक विलुप्त प्रायः जीव है। इसका शिकार ‘शाहतूश नामक इसके ऊन के लिए होता है। जो वजन में हल्का एवं अत्यधिक गर्म होता है।
  • क्रिकेट का सबसे अच्छा बल्ला शरपत ( विलो पेड़ की लकड़ी से बनाया जाता है।
  • मनाली-लेह राजमार्ग चार दरों से गुजरता है – रोहतांग ला, बारालाचा ला, लुनगालाचा ला एवं टंगलंग ला । यह राजमार्ग केवल जुलाई से सितंबर के बीच खुलता है जब बर्फ़ को मार्ग से हटा दिया जाता है।
  • ओएस विभिन्न पौधों और जानवरों की प्रजातियों के लिए एक अद्वितीय निवास स्थान प्रदान करते हैं जो आसपास के रेगिस्तान में जीवित नहीं रह सकते हैं, जैसे खजूर, बबूल के पेड़ और इमली की झाड़ियाँ।
  • मरूद्यान पक्षियों, कीड़ों और छोटे स्तनधारियों जैसे रेगिस्तानी खरगोश और रेत लोमड़ी जैसे वन्यजीवों का भी समर्थन करते हैं, जो जीवित रहने के लिए पानी और वनस्पति पर निर्भर रहते हैं।

संसाधन

(Resources)

एक वस्तु अथवा पदार्थ की उपयोगिता अथवा प्रयोज्यता उसे एक संसाधन बनाती है। वस्तुएं उस समय संसाधन बनती हैं जब उनका कोई मूल्य होता है। “इसका प्रयोग अथवा उपयोगिता इसे मूल्य प्रदान करते हैं। सभी संसाधन मूल्यवान होते हैं। ”

संसाधनों के प्रकार (Types of Resources)

  • संसाधनों के प्रकार: संसाधन वे चीजें हैं जो मनुष्य के लिए उपयोगी या मूल्यवान हैं। उन्हें मोटे तौर पर प्राकृतिक, मानव निर्मित और मानव संसाधनों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। प्राकृतिक संसाधनों में जल, वायु, खनिज और वन जैसी चीजें शामिल हैं। मानव निर्मित संसाधनों में भवन, सड़कें और मशीनरी शामिल हैं। मानव संसाधन लोगों के ज्ञान, कौशल और क्षमताओं को संदर्भित करता है।
  • संसाधन कुछ भी हैं जिनका उपयोग मानव की जरूरतों या चाहतों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है, जैसे कि – भोजन, पानी, सामग्री, ऊर्जा और सूचना।
  • संसाधनों को कई श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिनमें प्राकृतिक संसाधन, मानव निर्मित संसाधन और मानव संसाधन शामिल हैं।

प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources)

  • प्राकृतिक संसाधन: मानव अस्तित्व और आर्थिक विकास के लिए प्राकृतिक संसाधन महत्वपूर्ण हैं। इनमें नवीकरणीय संसाधन जैसे सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के साथ-साथ गैर-नवीकरणीय संसाधन जैसे जीवाश्म ईंधन और खनिज शामिल हैं।
  • वो संसाधन जो प्रकृति से प्राप्त होते हैं और अधिक संशोधन के बिना उपयोग में लाए जाते हैं, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। वायु, जिसमें हम साँस लेते हैं, हमारी नदियों और झीलों का जल, मृदा और खनिज, सभी प्राकृतिक संसाधन हैं।
  • प्राकृतिक संसाधन वे संसाधन हैं जो प्रकृति से प्राप्त होते हैं, जैसे खनिज, तेल, गैस, जल, वायु और वन।
  • प्राकृतिक संसाधन अक्सर गैर-नवीकरणीय होते हैं और समय के साथ समाप्त हो सकते हैं, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनका संरक्षण और टिकाऊ उपयोग महत्वपूर्ण हो जाता है।

प्राकृतिक संसाधनों को विस्तृत रूप से नवीकरणीय (Renewable) और अनवीकरणीय (non-renewable) संसाधनों में किया जा सकता है।

नवीकरणीय संसाधन वे संसाधन है जो शीघ्रता से नवीकृत (Renewed) अथवा पुनः परित हो जाते हैं। इनमें से कुछ असीमित हैं और मानवीय क्रियाओं का प्रभाव नहीं होता, जैसे सौर (solar) और पवन ऊर्जा (wind energy)। लेकिन फिर भी कुछ नवीकरणीय संसाधनों, जैसे जल, मृदा और वन लापरवाही से किया गया उपयोग उनके भंडार को प्रभावित कर सकता है।

  • अनवीकरणीय संसाधन वे संसाधन है। जिनका भंडार सीमित है। भंडार के एक बार समाप्त होने के बाद उनके नवीकत अथवा पुनः पूरित होने में हजारों वर्ष लग सकते हैं। इस प्रकार के संसाधन अनवीकरणीय कहलाते हैं। कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस इसके कुछ उदाहरण हैं।
  • प्राकृतिक संसाधनों का वितरण भूभाग, जलवायु, ऊँचाई जैसे अनेक भौतिक कारकों पर निर्भर करता है। पृथ्वी पर इन कारकों में विभिन्नता होने के कारण संसाधनों का वितरण असमान है।

मानव निर्मित संसाधन (Human Made Resources)

  • मानव-निर्मित संसाधन: मानव-निर्मित संसाधन मानव द्वारा अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने और अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए बनाए गए हैं। उदाहरणों में भवन, पुल और परिवहन अवसंरचना शामिल हैं।
  • लोग प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग पुल, सड़क, मशीन और वाहन बनाने में करते हैं जो मानव निर्मित संसाधन के नाम से जाने जाते हैं। प्रौद्योगिकी (Technology) भी एक मानव निर्मित संसाधन है।
  • मानव निर्मित संसाधन वे संसाधन हैं जो मानव द्वारा बनाए जाते हैं, जैसे भवन, सड़कें, मशीनें और तकनीक।
  • मानव-निर्मित संसाधन नवीकरणीय या गैर-नवीकरणीय हो सकते हैं और अक्सर विशिष्ट मानवीय आवश्यकताओं या चाहतों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं।

मानव संसाधन (Human Resources)

  • मानव संसाधन: मानव संसाधन लोगों के ज्ञान, कौशल और क्षमताओं को संदर्भित करता है। वे आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन हैं और नवाचार और प्रगति के लिए आवश्यक हैं।
  • लोग और अधिक संसाधन बनाने के लिए प्रकृति का सबसे अच्छा उपयोग तभी कर सकते हैं जब उनके पास ऐसा करने का ज्ञान, कौशल तथा प्रौद्योगिकी उपलब्ध हो। इसलिए मनुष्य एक विशिष्ट प्रकार का संसाधन है। अतः, लोग मानव संसाधन हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य, लोगों को बहुमूल्य संसाधन बनाने में मदद करते हैं।
  • अधिक संसाधनों के निर्माण में समर्थ होने के लिए लोगों के कौशल में सुधार करना मानव संसाधन विकास कहलाता है।
  • मानव संसाधन उन लोगों को संदर्भित करता है जो वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने के लिए श्रम, कौशल, ज्ञान और रचनात्मकता प्रदान करते हैं।
  • मानव संसाधन आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक हैं और शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य देखभाल के माध्यम से इसमें सुधार किया जा सकता है।

संसाधन संरक्षण (Conserving Resources)

  • संसाधनों का संरक्षण: सतत विकास के लिए संसाधनों का संरक्षण महत्वपूर्ण है। इसमें संसाधनों का इस तरह से उपयोग करना शामिल है जो भविष्य की पीढ़ियों की अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करता है। इसमें रीसाइक्लिंग, कचरे को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने जैसी प्रथाएं शामिल हैं।
  • संसाधनों का सतर्कतापूर्वक उपयोग करना और उन्हें नवीकरण के लिए समय देना, संसाधन संरक्षण कहलाता है। संसाधनों का उपयोग करने की आवश्यकता और भविष्य के लिए उनके संरक्षण में संतुलन रखना, सततपोषणीय विकास (sustainable development ) कहलाता है।
  • संसाधनों के संरक्षण का अर्थ संसाधनों का इस तरह से उपयोग करना है जो उनकी दीर्घकालिक उपलब्धता और स्थिरता सुनिश्चित करता है।
  • संरक्षण प्रयासों में अपशिष्ट को कम करना, संसाधन दक्षता में सुधार करना और नवीकरणीय और टिकाऊ संसाधन उपयोग को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।

सततपोषणीय विकास के कुछ सिद्धांत (Some principles of sustainable development)

सतत विकास के सिद्धांत: सतत विकास एक अवधारणा है जो पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक कल्याण के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने का प्रयास करती है। सतत विकास के कुछ प्रमुख सिद्धांतों में संसाधनों का संरक्षण, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना और जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा शामिल है।

  • जीवन के सभी रूपों का आदर और देखभाल ।
  • मानव जीवन की गुणवता को बढ़ाना |
  • पृथ्वी की जीवन शक्ति और विविधता का संरक्षण करना ।
  • प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास को कम-से-कम करना ।
  • पर्यावरण के प्रति व्यक्तिगत व्यवहार और अभ्यास में परिवर्तन ।
  • समुदायों को अपने पर्यावरण की देखभाल करने योग्य बनाना ।
  • सतत विकास एक अवधारणा है जो आर्थिक विकास, सामाजिक कल्याण और पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करना चाहता है।
  • सतत विकास के सिद्धांतों में संसाधनों की खपत और बर्बादी को कम करना, नवीकरणीय ऊर्जा और सामग्रियों को बढ़ावा देना, प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करना और सामाजिक समानता और न्याय में सुधार करना शामिल हो सकता है।

कुल मिलाकर बात यह है की मानव अस्तित्व और आर्थिक विकास के लिए संसाधन आवश्यक हैं। वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए जीवन की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उन्हें स्थायी रूप से प्रबंधित करना महत्वपूर्ण है।


भूमि

(Land)

  • भूमि एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है जो मानव बस्ती, कृषि, उद्योग और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए आधार प्रदान करता है।
  • भूमि महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं भी प्रदान करती है, जैसे कार्बन पृथक्करण, जल विनियमन और जैव विविधता के लिए आवास।
  • विश्व की 90 प्रतिशत जनसंख्या भूमि क्षेत्र के 30 प्रतिशत भाग पर ही रहती है। शेष 70 प्रतिशत भूमि पर या तो विरल जनसंख्या है या वह निर्जन है।

भूमि उपयोग (Land use)

  • भूमि उपयोग से तात्पर्य उस तरीके से है जिसमें मानव द्वारा भूमि का उपयोग किया जाता है, जिसमें कृषि, वानिकी, खनन, शहरीकरण और मनोरंजन जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
  • भूमि उपयोग के निर्णयों का पर्यावरण और समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, जैसे कि वनों की कटाई, मिट्टी का कटाव और निवास स्थान का नुकसान।
  • भूमि का उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है, जैसे कृषि, वानिकी, खनन, सड़कों और उद्योगों की स्थापना । साधारणतः इसे भूमि उपयोग कहते हैं।
  • भूमि का उपयोग भौतिक कारकों द्वारा निर्धारित किया जाता है, जैसे स्थलाकृति (topography), मृदा (soil), जलवायु (climate), खनिज (minerals) और जल (water) की उपलब्धता । मानवीय कारक जैसे जनसंख्या और प्रौद्योगिकी भी भूमि उपयोग प्रतिरूप के महत्त्वपूर्ण निर्धारक हैं।
  • स्वामित्व के आधार पर भूमि को निजी भूमि सकता है। सामुदायिक भूमि में बाँटा जा
  • निजी भूमि व्यक्तियों के स्वामित्व में होती है जबकि सामुदायिक भूमि समुदाय के स्वामित्व में होती है। सामान्य रूप से इसका उपयोग समुदाय से संबंधित व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जैसे चारा, फलों, नट या औषधीय बूटियों को एकत्रित करना । इस सामुदायिक भूमि को साझा संपत्ति साधन भी कहते हैं।

भूमि अवक्रमण (Land Degradation)

  • भूमि क्षरण का तात्पर्य प्राकृतिक या मानव-प्रेरित कारकों, जैसे कि कटाव, मरुस्थलीकरण, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण भूमि की गुणवत्ता और उत्पादकता में गिरावट से है।
  • भूमि क्षरण का पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और मानव कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जैसे कृषि उत्पादकता में कमी और प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम में वृद्धि।

सतत भूमि प्रबंधन (Sustainable Land Management)

  • सतत भूमि प्रबंधन से तात्पर्य भूमि के उपयोग से है जो पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को संतुलित करता है।
  • सतत भूमि प्रबंधन प्रथाओं में संरक्षण कृषि, कृषि वानिकी, एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली शामिल हो सकती है।

भूमि संरक्षण (Land Conservation)

  • भूमि संरक्षण से तात्पर्य भूमि के प्राकृतिक या सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के उद्देश्य से विकास या गिरावट से भूमि की सुरक्षा से है।
  • भूमि संरक्षण में संरक्षित क्षेत्र प्रबंधन, भूमि न्यास और संरक्षण सुगमता जैसी गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं। संरक्षित भूमि के उदाहरणों में राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभ्यारण्य और सांस्कृतिक विरासत स्थल शामिल हैं।

मदा

(Soil)

  • पृथ्वी के पृष्ठ पर दानेदार कणों के आवरण की पतली परत मृदा कहलाती है। यह भूमि से निकटता से जुड़ी हुई है। स्थल रूप मृदा के प्रकार को निर्धारित करते हैं। मृदा का निर्माण चट्टानों से प्राप्त खनिजों और जैव पदार्थ तथा भूमि पर पाए जाने वाले खनिजों से होता है। यह अपक्षय की प्रक्रिया के माध्यम से बनती है। खनिजों और जैव पदार्थों (organic matter) का सही मिश्रण मृदा को उपजाऊ (fertile) बनाता है।

मृदा के प्रकार

(Soil Type)

जलोढ़ मृदा (Alluvial soil) :- यह मृदा सबसे अधिक उपजाऊ होती है। यह नदियों द्वारा अपने साथ बहाकर लाए गए महीन मलबा के जमाव से बनती है। भारत का उत्तरी विशाल मैदान इसी मिट्टी से बना है। यह मैदान गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाए गये मलबों के जमाव से निर्मित है। जबकि प्रायद्वीपीय भारत में महानदी, कृष्णा, गोदावरी और कावेरी नदियों के डेल्टाई भागों में इसका जमाव है। इस मृदा में गेहूँ, चावल, गन्ना आदि फसलों की खेती की जाती है।

  • काली मृदा (Black soil) :- यह मृदा भारत में ऐसे भू-भाग पर मिलती है जहाँ प्राचीन काल में लावा का जमाव हुआ था। लावा की चट्टानां के टूटने-फूटने से इस मिट्टी का निर्माण है। इसे ‘कपासी’ या ‘रेगुर’ मिट्टी भी कहते हैं। कपास की खेती के लिए अधिक उपयुक्त होती है।
  • लेटराइट मृदा (Laterite soil) :- भारत में यह मिट्टी गर्म और अधिक वर्षा वाले स्थानों पर पाई जाती है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मृदा के पोषक तत्व पानी में घुलकर रिस-रिस कर नीचे चले जाते हैं। पोषक तत्वों के अभाव में यह मिट्टी कम उपजाऊ हो जाती है। भारत में यह मिट्टी केरल के मालावार (पश्चिमी घाट), छोटा नागपुर पठार और उत्तर-पूर्वी राज्यों में मिलती है। इस मिट्टी चाय, कॉफी, काजू आदि की बागाती कृषि की जाती है।

मृदा संरक्षण की विधियाँ

(methods of soil conservation)

  • मल्च बनाना (Mulching): पौधों के बीच अनावरित भूमि जैव पदार्थ जैसे प्रवाल से ढक दी जाती है। इससे मृदा की आर्द्रता (Humidity) रुकी रहती है।
  • वेदिका फार्म (Terrace Farmin): चौड़े, समतल सोपान अथवा वेदिका तीव्र ढालों पर बनाए जाते हैं ताकि सपाट सतह फसल उगाने के लिए उपलब्ध हो जाए। इनसे पृष्ठीय प्रवाह और मृदा अपरदन (soil erosion) कम होता है।
  • समोच्चरेखीय जुताई (Contour ploughing ): एक पहाड़ी ढाल पर समोच्च रेखाओं के सामान्तर जुताई ढाल से नीचे बहते जल के लिए एक प्राकृतिक अवरोध (Natural barrier) का निर्माण करती है।
  • रक्षक मेखलाएँ (Shelter Belts): तटीय प्रदेशों और शुष्क प्रदेशों में पवन गति रोकने के लिए वृक्ष कतारों में लगाए जाते हैं ताकि मृदा आवरण को बचाया जा सके
  • समोच्चरेखीय रोधिकाएँ (Contour bars): समोच्चरेखाओं पर रोधिकाएँ बनाने के लिए पत्थरों, घास, मृदा का उपयोग किया जाता है। धकाओं (bars) के सामने जल एकत्र करने के लिए खाइयाँ बनाई जाती हैं।
  • चट्टान बाँध (Rock dam): यह जल के प्रवाह को कम करने के लिए बनाए जाते हैं। यह नालियों की रक्षा करते हैं और मृदा क्षति को रोकते है बीज की फसल उगाना : वर्षा दोहन से मृदा को सुरक्षित रखने के लिए अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न फसलें एकांतर कतारों (Alternate queues) में  उगाई जाती है |

जल

(Water)

  • जल एक महत्त्वपूर्ण नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन (Renewable natural resources) है, भूपृष्ठ (Surface) का तीन-चौथाई भाग जल से ढका है। इसीलिए इसे ‘जल ग्रह कहना उपयुक्त है। लगभग 3.5 अरब वर्ष पहले जीवन, आदि महासागरों में ही प्रारंभ हुआ था।
  • महासागरों (Oceans) का जल लवणीय (Saline) है और मानवीय उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं है। अलवण जल (Fresh water) केवल 2.7 प्रतिशत ही है। इसका लगभग 70 प्रतिशत भाग बर्फ़ की चादरों और हिमानियों (Glaciers) के रूप में अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड और पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है। अपनी स्थिति के कारण ये मनुष्य ‘ की पहुँच के बाहर है। केवल एक प्रतिशत अलवण जल उपलब्ध है और वह मानव उपभोग के लिए उपयुक्त है। यह भौम जल, नदियों और झीलों में पृष्ठीय जल के रूप में तथा वायुमंडल में जलवाष्प (water vapour) के रूप में पाया जाता है।
  • पृथ्वी पर जल न बढ़ाया जा सकता है और न घटाया जा सकता है। इसकी कुल मात्रा स्थिर रहती है। इसकी प्रचुरता में विविधता प्रतीत होती है क्योंकि यह वाष्पीकरण, वर्षण और वाह की प्रक्रियाओं द्वारा महासागरों, वायु, भूमि और पुनः महासागरों में चक्रण द्वारा निरंतर गतिशील है। इसे ‘जल चक्र’ (water cycle) कहते हैं।
  • अशोधित (untreated) या आंशिक रूप से शोधित वाहित मल (sewage), कृषि रसायनों का विसर्जन और जल निकायों में औद्योगिक बहिःस्राव जल के प्रमुख संदूषक (contaminants) हैं। इनमें शामिल नाइट्रेट धातुएँ और पीड़कनाशी, जल को प्रदूषित कर देते हैं।

जैवमंडल

(Biosphere)

जीवमंडल (Biosphere):

  • बायोस्फीयर पृथ्वी की सतह और वायुमंडल के उन हिस्सों को संदर्भित करता है जहां जीवित जीव पाए जा सकते हैं।
  • इसमें सभी जीवित चीजें शामिल हैं, सूक्ष्म जीवों से पौधों और जानवरों के साथ-साथ पर्यावरण जिसमें वे रहते हैं।

जैव विविधता (Biodiversity):

  • जैव विविधता पृथ्वी पर जीवन की विविधता को संदर्भित करती है, जिसमें आनुवंशिक, प्रजातियाँ और पारिस्थितिकी तंत्र विविधता शामिल हैं।
  • बायोस्फीयर में पारिस्थितिक तंत्र की एक विस्तृत श्रृंखला होती है, वर्षावनों से लेकर प्रवाल भित्तियों तक, जो विविध प्रकार की प्रजातियों का समर्थन करते हैं।

पारिस्थितिक सहभागिता (Ecological Interactions):

  • पारिस्थितिक अंतःक्रियाएं विभिन्न जीवित जीवों और उनके वातावरण के बीच संबंधों को संदर्भित करती हैं।
  • इन अंतःक्रियाओं में शिकारी-शिकार संबंध, सहजीवी भागीदारी और पोषक चक्रण शामिल हो सकते हैं।

मानवीय प्रभाव (Human Impact):

  • वनों की कटाई, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी मानवीय गतिविधियाँ, जीवमंडल और इसके पारिस्थितिक तंत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं।
  • मानव प्रभाव से जैव विविधता की हानि, निवास स्थान का विनाश और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं में व्यवधान हो सकता है।

संरक्षण (Conservation):

  • संरक्षण जीवमंडल और उसके पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा और सतत प्रबंधन के प्रयासों को संदर्भित करता है।
  • संरक्षण प्रयासों में संरक्षित क्षेत्र प्रबंधन, अवक्रमित पारिस्थितिक तंत्र की बहाली, और सतत संसाधन उपयोग शामिल हो सकते हैं।
  • संरक्षण के प्रयासों के उदाहरणों में राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभ्यारण्यों की स्थापना, टिकाऊ कृषि पद्धतियां, और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना शामिल है।

पारितंत्र

(Ecosystem)

एक पारिस्थितिकी तंत्र क्या है? (What is an Ecosystem):

  • एक पारिस्थितिकी तंत्र जीवित जीवों और भौतिक वातावरण का एक समुदाय है जिसमें वे परस्पर क्रिया करते हैं।
  • पारितंत्र का आकार छोटे तालाब से लेकर बड़े जंगल तक हो सकता है, और इनमें सजीव (जैविक) और निर्जीव (अजैव) दोनों घटक शामिल हो सकते हैं।
  • जैवमंडल सभी जीवित जातियाँ जीवित रहने के लिए एक-दूसरे से परस्पर संबंधित और निर्भर रहती हैं। इस जीवन आधारित तंत्र को पारितंत्र कहते हैं।
  • भारतीय उप-महाद्वीप में जिन पशुओं का उपचार डिक्लोफिनैक, एस्प्रीन अथव इबुप्रोफेन जैसे पीडानाशी से किया जाता था, उनके अपमार्जन उपरांत गिद्ध किडनी खराब होने से मर रहे थे। पशुओं पर इन औषधियों
  • के उपयोग करने पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं तथा आरक्षित स्थान पर गिद्ध के प्रजनन के प्रयास किए जा रहे हैं।

एक पारिस्थितिकी तंत्र के घटक (Components of an Ecosystem):

  • एक पारिस्थितिकी तंत्र के जैविक घटकों में पौधे, जानवर, कवक और सूक्ष्मजीव शामिल हैं।
  • एक पारिस्थितिकी तंत्र के अजैविक घटकों में जल, वायु, मिट्टी और जलवायु जैसे भौतिक कारक शामिल हैं।

पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार (Types of Ecosystems):

  • कई अलग-अलग प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र हैं, जिनमें से प्रत्येक में जैविक और अजैविक घटकों का अपना अनूठा संयोजन है।
  • पारिस्थितिक तंत्र के उदाहरणों में उष्णकटिबंधीय वर्षावन, प्रवाल भित्तियाँ, घास के मैदान और टुंड्रा शामिल हैं।

पारिस्थितिक सहभागिता (Ecological Interactions):

  • पारिस्थितिक अंतःक्रिया एक पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न जीवित जीवों के बीच संबंधों को संदर्भित करती है।
  • इन अंतःक्रियाओं में शिकार, प्रतियोगिता, सहजीवन और पोषक चक्र शामिल हो सकते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं (Ecosystem Services):

  • पारिस्थितिक तंत्र सेवाएँ वे लाभ हैं जो मनुष्य पारिस्थितिक तंत्र से प्राप्त करते हैं, जिसमें भोजन, पानी, स्वच्छ हवा और मनोरंजन का प्रावधान शामिल है।
  • पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों जैसे कम मूर्त लाभ भी शामिल हो सकते हैं।
  • पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के उदाहरणों में मधुमक्खियों द्वारा फसलों का परागण, आर्द्रभूमियों द्वारा जल निस्पंदन और वनों द्वारा कार्बन प्रच्छादन शामिल हैं।

प्राकृतिक वनस्पति का वितरण

(Distribution Of Natural Vegetation)

वनस्पति की वृद्धि मुख्य रूप से तापमान और आर्द्रता पर निर्भर करती है। विश्व की वनस्पति के मुख्य प्रकारों को चार वर्गों में रखा जा सकता है, जैसे वन, घास स्थल, गुल्म और टुंड्रा ।

  • प्राकृतिक वनस्पति का तात्पर्य उस पौधे से है जो मानव हस्तक्षेप के बिना एक विशिष्ट क्षेत्र में बढ़ता है।
  • इसमें पेड़, झाड़ियाँ, घास और अन्य पौधों की प्रजातियाँ शामिल हैं जो स्थानीय जलवायु और मिट्टी की स्थिति के अनुकूल हैं।
  • कई अलग-अलग प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियां हैं, जिनमें से प्रत्येक विशिष्ट पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल है।
  • उदाहरणों में उष्णकटिबंधीय वर्षावन, समशीतोष्ण पर्णपाती वन, घास के मैदान और रेगिस्तान शामिल हैं।

क्षेत्र

(Area)

भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में विशाल वृक्ष उग सकते हैं। इस प्रकार वन प्रचुर जल आपूर्ति वाले क्षेत्रों में ही पाए जाते हैं। जैसे-जैसे आर्द्रता (Humidity) कम होती है वैसे-वैसे वृक्षों का आकार और उनकी सघनता कम हो जाती है। सामान्य वर्षा वाले क्षेत्रों में छोटे आकार वाले वृक्ष और घास उगती है जिससे विश्व के घास स्थलों का निर्माण होता है। कम वर्षा वाले शुष्क इस प्रकार के क्षेत्रों में पौधों की जड़ें गहरी होती हैं। वाष्पोत्सर्जन से होने वाली आर्द्रता की हानि को घटाने के लिए इन पेड़ों की पत्तियाँ काँटेदार और मोमी सतह वाली होती हैं। शीत ध्रुवीय प्रदेशों की टुंड्रा वनस्पति में मॉस और लाइकेन सम्मिलित हैं।

C.I.T.E.S

CITES (The Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora )

 

CITES क्या है? (What is CITES?)

  • CITES (जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन) सरकारों के बीच एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य लुप्तप्राय पौधों और जानवरों की प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करना है।
  • इसकी स्थापना 1975 में हुई थी और वर्तमान में इसके 183 सदस्य देश हैं।
  • सरकारों के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य प्राणी एवं पौधों के नमूनों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से उनके जीवन को कोई खतरा नहीं है। मोटे तौर पर पशुओं की 5,000
  • जातियाँ और पौधों की 28,000 जातियाँ रक्षित की गई हैं। भालू, डाल्फिन, कैक्टस, प्रवाल, आर्किड और ऐलो कुछ उदाहरण हैं।

CITES के उद्देश्य (Objectives of CITES):

  • CITES का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से जंगल में उनके अस्तित्व को खतरा न हो।
  • यह परमिट और प्रमाणपत्रों की एक प्रणाली के माध्यम से सूचीबद्ध प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करके और यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह कानूनी और टिकाऊ है, व्यापार की निगरानी करके इसे प्राप्त करना चाहता है।
  • CITES का उद्देश्य लुप्तप्राय प्रजातियों और उनके आवासों के संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।

CITES के अंतर्गत विनियम (Regulations under CITES):

  • CITES पौधों और जानवरों की 38,000 से अधिक प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करता है।
  • प्रजातियों को उनके संरक्षण के स्तर के आधार पर तीन अलग-अलग परिशिष्टों में सूचीबद्ध किया गया है। परिशिष्ट I में ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जो सबसे अधिक संकटग्रस्त हैं और कुछ परिस्थितियों को छोड़कर इन
  • प्रजातियों में व्यापार प्रतिबंधित है। परिशिष्ट II में ऐसी प्रजातियां शामिल हैं जिन्हें अनिवार्य रूप से विलुप्त होने का खतरा नहीं है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए उनका व्यापार नियंत्रित है कि यह कानूनी और
  • टिकाऊ है। परिशिष्ट III में ऐसी प्रजातियां शामिल हैं जो कम से कम एक देश में संरक्षित हैं और जिन्हें अपने व्यापार को नियंत्रित करने के लिए देशों के बीच सहयोग की आवश्यकता है।
  • सीआईटीईएस की पार्टियों को नियमों को लागू करने के लिए राष्ट्रीय कानून स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सूचीबद्ध प्रजातियों में व्यापार कानूनी और टिकाऊ है।

CITES का प्रवर्तन (Enforcement of CITES):

  • CITES का प्रवर्तन सदस्य देशों की जिम्मेदारी है, जिन्हें सूचीबद्ध प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की निगरानी और विनियमन करना आवश्यक है।
  • सीआईटीईएस की पार्टियों को जुर्माना और कारावास सहित नियमों के उल्लंघन के लिए दंड स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • सीआईटीईएस सदस्य देशों को नियमों को लागू करने में मदद करने के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है।

CITES की सफलताएँ (Successes of CITES):

  • CITES लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने में सफल रहा है और इसने कई प्रजातियों के विलुप्त होने को रोकने में मदद की है।
  • CITES से लाभान्वित होने वाली प्रजातियों के उदाहरणों में हाथी, गैंडे, बाघ और प्राइमेट्स और सरीसृप की विभिन्न प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • CITES ने लुप्तप्राय प्रजातियों और उनके आवासों के संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने में भी मदद की है और संरक्षण प्रयासों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया है।

खनिज

(Minerals)

खनिज क्या होते हैं? (What are minerals?):

  • खनिज प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पदार्थ हैं जिनकी एक निश्चित रासायनिक संरचना और भौतिक गुण होते हैं।
  • वे आम तौर पर ठोस, अकार्बनिक और लाखों वर्षों में भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं द्वारा गठित होते हैं।
  • खनिज महत्वपूर्ण संसाधन हैं जिनका निर्माण सामग्री से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक उद्योगों और उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला में उपयोग किया जाता है।
  • पृथ्वी पर चट्टानों में कई पदार्थ मिले होते हैं जो खनिज कहलाते हैं। ये खनिज पृथ्वी की चट्टान पर्पटी (Crust) पर सभी जगह फैले हुए हैं।”
  • प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाला पदार्थ जिसका निश्चित रासायनिक संघटन (Chemical composition) हो, वह एक खनिज है। खनिज सभी स्थानों पर समान रूप से वितरित नहीं हैं। वे किसी विशेष क्षेत्र में या शैल समूहों (Rock clusters) में संकेंद्रित हैं। कुछ खनिज ऐसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं जो आसानी से अभिगम्य नहीं हैं जैसे आर्कटिक महासागर संस्तर और अंटार्कटिका ।
  • खनिज विभिन्न प्रकार के भूवैज्ञानिक परिवेश में अलग-अलग दशाओं में निर्मित होते हैं। वे बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के, प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित होते हैं। वे अपने भौतिक गुणों, जैसे रंग, घनत्व, कठोरता और रासायनिक गुणों तथा वि (Solubility) के आधार पर पहचाने जा सकते हैं।

खनिजों के प्रकार (Types of minerals):

  • धातु, अधातु और ऊर्जा खनिज सहित कई प्रकार के खनिज हैं।
  • धातुओं में सोना, चांदी, तांबा, लोहा, एल्यूमीनियम और प्लेटिनम शामिल हैं।
  • अधातुओं में गंधक, नमक, जिप्सम, हीरा और कई प्रकार के रत्न शामिल हैं।
  • ऊर्जा खनिजों में कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस, साथ ही यूरेनियम और अन्य रेडियोधर्मी खनिज शामिल हैं।

खनिजों का वितरण (Distribution of minerals):

  • खनिजों को दुनिया भर में असमान रूप से वितरित किया जाता है, कुछ देशों और क्षेत्रों में कुछ खनिजों के बड़े भंडार होते हैं जबकि अन्य में बहुत कम या कोई नहीं होता है।
  • उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया बॉक्साइट, लौह अयस्क और सोने का एक प्रमुख उत्पादक है, जबकि कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में कोबाल्ट, तांबा और कोल्टन (इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में इस्तेमाल होने वाला खनिज) का बड़ा भंडार है।
  • खनिजों के वितरण के महत्वपूर्ण आर्थिक और भू-राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं, क्योंकि देश राजस्व उत्पन्न करने या रणनीतिक लाभ हासिल करने के लिए कुछ खनिजों के निर्यात पर निर्भर हो सकते हैं।

खनिजों का महत्व (Importance of minerals):

  • खनिज आधुनिक औद्योगिक और तकनीकी विकास के लिए आवश्यक हैं और उत्पादों और प्रक्रियाओं की एक विस्तृत श्रृंखला में उपयोग किए जाते हैं।
  • उनका उपयोग निर्माण सामग्री, मशीनरी, परिवहन, इलेक्ट्रॉनिक्स और कई अन्य उद्योगों में किया जाता है।
  • खनिजों का निष्कर्षण और प्रसंस्करण भी रोजगार सृजित कर सकता है और विशेष रूप से विकासशील देशों में आर्थिक विकास में योगदान कर सकता है।

खनिज उत्खनन से संबंधित मुद्दे (Issues related to mineral extraction):

  • खनिजों के निष्कर्षण के नकारात्मक पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव हो सकते हैं, जैसे कि वनों की कटाई, मिट्टी का कटाव, जल प्रदूषण और समुदायों का विस्थापन।
  • इसके अलावा, कुछ खनिजों का निष्कर्षण और व्यापार सशस्त्र संघर्ष, मानवाधिकारों के हनन और पर्यावरणीय गिरावट में योगदान कर सकता है, जैसा कि कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संघर्ष वाले खनिजों के मामले में हुआ है।
  • इन मुद्दों को हल करने के लिए, विभिन्न पहलें और नियम हैं, जैसे एक्सट्रैक्टिव इंडस्ट्रीज ट्रांसपेरेंसी इनिशिएटिव (EITI) और किम्बरली प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम, जिसका उद्देश्य एक्सट्रैक्टिव उद्योगों में पारदर्शिता, स्थिरता और जिम्मेदार प्रथाओं को बढ़ावा देना है।

खनिजों का वर्गीकरण (Classification of minerals)

  • धात्विक खनिजों में धातु कच्चे रूप में होती है। धातुएँ कठोर पदार्थ हैं, जो ऊष्मा और विद्युत को सुचालित करती हैं और जिनमें द्युति या चमक की विशेषता होती है। लौह अयस्क बॉक्साइट, मैंगनीज अयस्क इनके कुछ उदाहरण हैं। धात्विक खनिज लौह अथवा अलौह हो सकते हैं। लौह खनिजों जैसे लौह अयस्क, मैंगनीज और क्रोमाइट में लोहा होता है। अलौह खनिज में लोहा नहीं होता है किंतु कुछ अन्य धातु, यथा सोना, चाँदी, ताँबा या सीसा हो सकती है।
  • अधात्विक खनिजों में धातुएँ नहीं होती हैं। चूना पत्थर, अभ्रक और जिप्सम इन खनिजों के उदाहरण हैं। खनिज ईंधन जैसे कोयला और पेट्रोलियम भी अधात्विक खनिज है। खनिजों को खनन, प्रवेधन या आखनन द्वारा निष्कर्षित किया जा सकता है।

खनिज खनन (mining)

  • पृथ्वी की सतह के अंदर दबी शैलों से खनिजों को बाहर निकालने की प्रक्रिया खनन (mining) कहलाती है। खनिज जो कम गहराई में स्थित हैं वे पृष्ठीय स्तर को हटाकर निकाले जाते हैं, इसे विवृत खनन (open-cast mining) कहते हैं।
  • गहन वेधन जिन्हें कूपक ( shafts) कहते हैं, अधिक गहराई में स्थित खनिज निक्षेपों तक पहुँचने के लिए बनाए जाते हैं। इसे कूपकी खनन (shaft mining) कहते हैं।
  • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस धरातल के बहुत नीचे पाए जाते हैं। उन्हें बाहर निकालने के लिए गहन  कूपो की खुदाई की जाती है इसे प्रवेधन (drilling) कहते हैं। 
  • सतह के निकट स्थित खनिजों को जिस प्रक्रिया द्वारा आसानी से खोदकर निकाला जाता है, उसे आखनन ( quarrying ) कहते हैं।

अतिरिक्त

  • शैल खनिज अवयवों के अनिश्चित संघटन वाले एक या एक से अधिक खनिजों का एक समूह है।
  • शैल जिनसे खनिजों का खनन किया जाता हैं। अयस्क (Ores) कहे जाते हैं।
  • यद्यपि 2,800 से अधिक खनिजों की पहचान की है जिनमें से केवल लगभग 100 अयस्क खनिज समझे जाते हैं।
  • हरा हीरा एक दुर्लभ हीरा है |
  • विश्व की प्राचीनतम शैलें पश्चिमी आस्ट्रेलिया में हैं। वे 430 करोड़ वर्ष पूर्व पहले बने, पृथ्वी के निर्माण के मात्र 30 करोड़ वर्ष पश्चात ।

खनिजों का वितरण

(Distribution of Minerals)

  • खनिज विभिन्न प्रकार की चट्टानों में पाए जाते हैं। कुछ आग्नेय चट्टानों में पाए जाते हैं, कुछ रूपांतरित चट्टानों में और अन्य अवसादी चट्टानों में पाए जाते हैं। धात्विक खनिज आग्नेय और रूपांतरित चट्टान समूहों में पाए जाते हैं, जो बड़े पठार बनाते हैं।
  • उत्तरी स्वीडन में लौह-अयस्क, ओंटारियो (कनाडा) में तांबा और निकल जमा, और दक्षिण अफ्रीका में लोहा, निकल, क्रोमाइट और प्लैटिनम आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों में पाए जाने वाले खनिजों के उदाहरण हैं।
  • चूना पत्थर जैसे अधात्विक खनिज मैदानों और नववलित पर्वतों के अवसादी शैल समूहों में पाए जाते हैं। फ्रांस के काकेशस क्षेत्र के चूना पत्थर के भंडार, जॉर्जिया और यूक्रेन के मैंगनीज के भंडार और अल्जीरिया के फॉस्फेट बेड इसके कुछ उदाहरण हैं। कोयला और पेट्रोलियम जैसे खनिज ईंधन भी तलछटी स्तरों में पाए जाते हैं।

एशिया (Asia)

  • एशिया दुनिया का सबसे बड़ा महाद्वीप है और इसमें प्रचुर मात्रा में खनिज संसाधन हैं। कोयले, लौह अयस्क और दुर्लभ पृथ्वी धातुओं के प्रचुर भंडार के साथ चीन एशिया में खनिजों का सबसे बड़ा उत्पादक है। निकल और पैलेडियम के बड़े भंडार के साथ रूस खनिजों का एक और महत्वपूर्ण उत्पादक है। भारत लौह अयस्क, बॉक्साइट और जिंक का प्रमुख उत्पादक है।

यूरोप (Europe)

  • यूरोप विश्व में लौह अयस्क का अग्रणी उत्पादक है। रूस, यूक्रेन, स्वीडन और फ्रांस लौह अयस्क के विशाल निक्षेप वाले देश हैं। ताँबा (copper), सीसा (Lead), जस्ता (Zinc), मैंगनीज और निकेल खनिजों के निक्षेप पूर्वी यूरोप और यूरोपीय रूस में पाए जाते हैं।
  • यूरोप में धात्विक और अधात्विक खनिजों की प्रचुर विविधता है। रूस यूरोप में खनिजों का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसमें लौह अयस्क, निकल और तांबे का बड़ा भंडार है। नॉर्वे, स्वीडन और फ़िनलैंड जैसे अन्य देशों में तांबा, जस्ता और सोने का प्रचुर भंडार है।

उत्तर अमेरिका (North America)

  • उत्तर अमेरिका में खनिज निक्षेप तीन क्षेत्रों में अवस्थित हैं- ग्रेट लेक के उत्तर में कनाडियन शील्ड प्रदेश, अप्लेशियन प्रदेश और पश्चिम की पर्वत श्रृंखलाएँ। लौह अयस्क, निकेल, सोना, यूरेनियम और ताँबा का खनन कनाडियन शील्ड प्रदेश में और कोयले का अप्लेशियन प्रदेश में होता है। पश्चिमी कार्डीलेरा में ताँबा, सीसा, जस्ता, सोना और चाँदी के विशाल निक्षेप हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको प्रमुख उत्पादक होने के साथ उत्तरी अमेरिका खनिज संसाधनों से समृद्ध है। संयुक्त राज्य अमेरिका कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा उत्पादक है, जबकि कनाडा में निकल, तांबा और जस्ता का महत्वपूर्ण भंडार है। मेक्सिको चांदी और सोने का एक प्रमुख उत्पादक है।

दक्षिण अमेरिका (South America)

  • दक्षिण अमेरिका तांबे, सोने और चांदी के प्रचुर भंडार के लिए जाना जाता है।चिली दुनिया में तांबे का सबसे बड़ा उत्पादक है | जबकि पेरू चांदी, जस्ता और सोने का प्रमुख उत्पादक है। ब्राजील में लौह अयस्क और बॉक्साइट का महत्वपूर्ण भंडार है।
  • ब्राजील और बोलीविया विश्व में टिन के सबसे बड़े उत्पादकों हैं। दक्षिण अमेरिका के पास सोना, चाँदी, जस्ता, क्रोमियम, मैंगनीज, बॉक्साइट, अभ्रक, प्लैटिनम, एसबेस्टस और हीरा के विशाल निक्षेप भी हैं। खनिज तेल वेनेजुएला, अर्जेंटीना, चिली, पेरू और कोलंबिया में पाया जाता है।

अफ्रीका (Africa)

  • अफ्रीका खनिज संसाधनों से समृद्ध है और इसमें सोने, हीरे और तांबे के महत्वपूर्ण भंडार हैं। दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे और जायरे विश्व के सोने का एक बड़ा भाग उत्पादित करते हैं। ताँबा, लौह अयस्क, क्रोमियम, यूरेनियम, कोबाल्ट और बॉक्साइट दक्षिण अफ्रीका में पाए जाने वाले अन्य खनिज है। तेल नाइजीरिया, लीबिया और अंगोला में पाया जाता है।
  • दक्षिण अफ्रीका दुनिया में सोने और प्लेटिनम का सबसे बड़ा उत्पादक है, जबकि कांगो में तांबे और कोबाल्ट के बड़े भंडार हैं। जाम्बिया, घाना और तंजानिया जैसे अन्य देश भी सोने के प्रमुख उत्पादक हैं।

आस्ट्रेलिया (Australia)

  • आस्ट्रेलिया विश्व में बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक है। यह सोना, हीरा, लौह-अयस्क, टिन और निकेल का अग्रणी उत्पादक है। यह ताँबा, सीसा, जस्ता और मैंगनीज में भी संपन्न है। पश्चिम आस्ट्रेलिया के काल और कूल गार्डी क्षेत्रों में सोने के सबसे बड़े निक्षेप हैं।

अंटार्कटिका (Antarctica)

  • अंटार्कटिका एक महाद्वीप है जो बर्फ से ढका हुआ है और खनिज संसाधनों के लिए बड़े पैमाने पर इसकी खोज नहीं की गई है। हालाँकि, कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि इसमें लोहे, तांबे और कोयले के महत्वपूर्ण भंडार हो सकते हैं।
  • विभिन्न खनिज निक्षेपों, पूर्वानुमान से कुछ संभवतः विशाल, के लिए अंटार्कटिका का भूविज्ञान पर्याप्त रूप से सुप्रसिद्ध है। ट्रांस- अंटार्कटिक पर्वत में कोयले और पूर्वी अंटार्कटिका के प्रिंस चार्ल्स पर्वत के निकट लोहे के महत्त्वपूर्ण मात्रा में निक्षेपों का पूर्वानुमान किया गया है। लौह अयस्क, सोना, चाँदी और तेल भी वाणिज्यिक मात्रा में उपलब्ध हैं।

खनिजों के उपयोग (Use of minerals)

  • खनिज अनवीकरणीय संसाधन है। खनिजों का उपयोग कई उद्योगों में होता है। रत्नों के लिए प्रयोग किए जाने वाले खनिज प्रायः कठोर होते हैं। इन्हें आभूषण (Jewelry) बनाने के लिए विभिन्न शैलियों में जड़ा जाता है।
  • ताँबा एक अन्य धातु है जिसका उपयोग सिक्के से लेकर पाइप तक प्रत्येक वस्तु में किया जाता है। कंप्यूटर उद्योग में प्रयुक्त होने वाला सिलिकन, क्वार्ट्ज से प्राप्त किया जाता है।
  • ऐलुमिनियम जिसे उसके अयस्क बॉक्साइट से प्राप्त किया जाता है, का उपयोग ऑटोमोबाइल और हवाई जहाज, बोतलबंदी उद्योग, भवन निर्माण और रसोई के बर्तन तक में होता है।

ऊर्जा के परंपरागत और गैर-परंपरागत स्रोत

(Conventional and non-conventional sources of energy)

परंपरागत स्रोत (Conventional Sources) :- ऊर्जा के परंपरागत स्रोत वे हैं जो लंबे समय से सामान्य उपयोग में लाए जा रहे हैं। ईंधन (Firewood) और जीवाश्मी ईंधन परंपरागत ऊर्जा के दो मुख्य स्रोत है |

ईंधन (Firewood)

  • इसका उपयोग पकाने और ऊष्मा प्राप्त करने के लिए व्यापक रूप से होता है। हमारे देश में ग्रामीणों द्वारा उपयोग की गई पचास प्रतिशत से अधिक ऊर्जा ईंधन से प्राप्त होती है।

जीवाश्म ईंधन (Fossil fuels)

  • जैसे कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस परंपरागत ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। इ खनिजों के भंडार सीमित हैं। विश्व की बढ़ती जनसंख्या जिस दर से इनका उपयोग कर रही है वह इनके निर्माण की दर से कहीं अधिक है। इसलिए ये शीघ्र ही समाप्त होने वाले हैं।

कोयला (Coal)

  • कोयले से प्राप्त विद्युत को तापीय ऊर्जा (thermal power) कहा जाता है। कोयला लाखों वर्ष पूर्व विशाल फर्न और दलदल के पृथ्वी की परतों में दबने से बना । कोयला इसलिए अंतर्हित धूप (Buried Sunshine) के रूप में जाना जाता है।
  • विश्व में अग्रणी कोयला उत्पादक देशों में चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, रूस, दक्षिण अफ्रीका और फ्रांस हैं। भारत के कोयला उत्पादक क्षेत्र रानीगंज, पश्चिमी बंगाल में तथा झरिया, धनबाद और बोकारो झारखण्ड में है |
  • पेट्रोलियम (Petroleum)पेट्रोल और तेल दोनों की शुरुआत गाढ़े, काले द्रव से होती है जिसे पेट्रोलियम कहते है | यह शैलों की परतों के मध्य पाया जाता हैं। और इसका वेधन अपतटीय व तटीय क्षेत्रों से किया जाता हैतदुपरांत इसे परिष्करणशाला भेजा जाता है | जहाँ अपरिष्कृत पेट्रोलियम के प्रक्रमण से विभिन्न तरह के उत्पाद जैसे डीज़ल, पेट्रोल, मिट्टी का तेल, मोम, प्लास्टिक और स्नेहक तैयार किए जाते हैं। पेट्रोलियम और इससे बने उत्पादों को काला सोना कहा जाता है |
  • पेट्रोलियम के मुख्य उत्पादक देश ईरान, इराक, सऊदी अरब और कतर हैं। अन्य मुख्य उत्पादक संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, वेनेजुएला और अल्जीरिया हैं। भारत में मुख्य उत्पादक क्षेत्र असम में डिग्बोई, मुंबई में ‘बाम्बे हाई’ तथा कृष्णा और गोदावरी नदियों के डेल्टा हैं।

प्राकृतिक गैस (Natural Gas)

  • प्राकृतिक गैस रूस, नॉर्वे, यूके और नीदरलैंड में पेट्रोलियम जमा में पाई जाती है।
  • प्राकृतिक गैस के प्रमुख उत्पादक। जैसलमेर, कृष्णा-गोदावरी डेल्टा, त्रिपुरा और मुंबई के कुछ अपतटीय क्षेत्रों में भारत के पास प्राकृतिक गैस संसाधन हैं।
  • संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG – Compressed Natural Gas) एक लोकप्रिय पर्यावरण-अनुकूल ऑटोमोबाइल ईंधन है क्योंकि यह पेट्रोलियम और डीजल की तुलना में कम प्रदूषणकारी है।

जल विद्युत (Hydropower)

  • वर्षा जल या नदी जल को ऊंचाई से गिराने के लिए बांधों में संग्रहित किया जाता है। बांध के अंदर से पाइप से बहता पानी बांध के तल में स्थित टर्बाइन पर गिरता है। जनरेटर को चलाने के लिए घूर्णन ब्लेड का उपयोग किया जाता है। इसे जलविद्युत कहते हैं।
  • पानी जो बिजली पैदा करने के बाद बहता है। इसका उपयोग कृषि में किया जाता है। विश्व की एक चौथाई ऊर्जा जलविद्युत से उत्पन्न होती है। दुनिया में जलविद्युत के प्रमुख उत्पादक पैराग्वे, नॉर्वे, ब्राजील और चीन हैं। भारत में कुछ महत्वपूर्ण जलविद्युत स्टेशन
  • भाखड़ा नांगल, गांधी सागर, नागार्जुन सागर और दामोदर नदी घाटी परियोजनाएँ।

ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोत

(non-conventional sources of energy)

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ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और ज्वारीय ऊर्जा हैं जो नवीकरणीय हैं

सौर ऊर्जा (solar energy)

  • सौर कोशिकाओं में बिजली पैदा करने के लिए सूर्य से सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है। इनमें से कई सेल ताप और प्रकाश व्यवस्था के लिए बिजली उत्पन्न करने के लिए सौर पैनलों से जुड़े हैं।
  • धूप से समृद्ध उष्णकटिबंधीय देशों के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग
  • तकनीक बहुत फायदेमंद है। सौर ऊर्जा का उपयोग सोलर हीटर, सोलर कुकर और सोलर ड्रायर के साथ-साथ सामुदायिक प्रकाश व्यवस्था और ट्रैफिक सिग्नल के लिए किया जाता है।

पवन ऊर्जा (Wind energy)

  • पवन चक्कियों का उपयोग प्राचीन काल से अनाज पीसने और पानी निकालने के लिए किया जाता रहा है। वर्तमान पवन चक्कियों में, तेज़ गति वाली हवाएँ पवनचक्की को घुमाती हैं जो बिजली पैदा करने के लिए एक जनरेटर से जुड़ा होता है।
  • पवन चक्कियों के समूहों से युक्त पवन फ़ार्म तटीय क्षेत्रों और पहाड़ी घाटियों में स्थित हैं जहाँ तेज और लगातार हवाएँ चलती हैं।
  • पवन फार्म नीदरलैंड, जर्मनी, डेनमार्क, यू.के., संयुक्त राज्य अमेरिका और स्पेन में पाए जाते हैं जो पवन ऊर्जा उत्पादन में उल्लेखनीय हैं।

परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy)

  • परमाणु ऊर्जा प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रेडियोधर्मी पदार्थों जैसे यूरेनियम और थोरियम के परमाणुओं के नाभिक में संग्रहीत ऊर्जा से प्राप्त होती है। ये पदार्थ परमाणु रिएक्टरों में परमाणु विखंडन से गुजरते हैं और ऊर्जा छोड़ते हैं।
  • परमाणु ऊर्जा के सबसे बड़े उत्पादक संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप हैं। राजस्थान और झारखंड में भारत में यूरेनियम का विशाल भंडार है। केरल की मोनाजाइट रेत में थोरियम भारी मात्रा में पाया जाता है।
  • भारत में स्थित परमाणु ऊर्जा के केंद्र तमिलनाडु में कलपक्कम, महाराष्ट्र में तारापुर, राजस्थान में कोटा के पास राणा प्रताप सागर, उत्तर प्रदेश में नरोरा और कर्नाटक में कैगा हैं।

भूतापीय ऊर्जा (geothermal energy)

  • पृथ्वी से प्राप्त ऊष्मा ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं। पृथ्वी के अंदर गहराई बढ़ने के साथ तापमान में लगातार वृद्धि होती है। कभी-कभी ऊष्मीय ऊर्जा गर्म पानी के झरनों के रूप में पृथ्वी की सतह पर प्रकट हो सकती है। इस ऊष्मा ऊर्जा का उपयोग बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है।
  • वर्षों से भूतापीय ऊर्जा का उपयोग खाना पकाने, गर्म करने और नहाने के लिए गर्म पानी के स्रोत के रूप में किया जाता रहा है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में दुनिया में सबसे अधिक भू-तापीय बिजली संयंत्र हैं, इसके बाद न्यूजीलैंड, आइसलैंड, फिलीपींस और मध्य अमेरिका हैं। भारत में भूतापीय विद्युत संयंत्र हिमाचल प्रदेश में मणिकरण और लद्दाख में पुगा घाटी में स्थित हैं।

ज्वारीय ऊर्जा (Tidal energy)

  • ज्वार से उत्पन्न ऊर्जा को ज्वारीय ऊर्जा कहते हैं। समुद्र के एक संकरे मुहाने पर बांध बनाकर इस ऊर्जा का दोहन किया जाता है। उच्च ज्वार के दौरान, ज्वार की ऊर्जा का उपयोग बांध में स्थापित टरबाइन को घुमाने के लिए किया जाता है। रूस, फ्रांस और भारत में कच्छ की खाड़ी में विशाल ज्वारीय मिल क्षेत्र हैं।

बायोगैस (Biogas)

  • जैविक अपशिष्ट जैसे मृत पौधे और जानवरों के अवशेष, जानवरों का गोबर और रसोई के कचरे को बायोगैस नामक गैसीय ईंधन में परिवर्तित किया जा सकता है। बायोगैस संयंत्र में बैक्टीरिया द्वारा जैविक कचरे को विघटित किया जाता है जो अनिवार्य रूप से मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण होता है। बायोगैस खाना पकाने और बिजली उत्पादन के लिए सबसे अच्छा ईंधन है और हर साल बड़ी मात्रा में जैविक खाद का उत्पादन करती है।

आर्थिक क्रियाएँ

(Economic activities)

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  • पौधे से परिष्कृत उत्पाद तक के रूपांतरण में तीन प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ सम्मिलित हैं। ये प्राथमिक (primary), द्वितीयक (Secondary) और तृतीयक (Tertiary) क्रियाएँ हैं।
  • प्राथमिक क्रियाओं के अंतर्गत उन सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है जिनका संबंध प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादन और निष्कर्षण से है। कृषि, मत्स्यन और संग्रहण इनके अच्छे उदाहरण हैं।
  • द्वितीयक क्रियाएँ इन संसाधनों के प्रसंस्करण से संबंधित हैं। इस्पात (Steel) विनिर्माण, डबलरोटी पकाना और कपड़ा बुनना इन क्रियाओं के उदाहरण हैं। तृतीयक क्रियाएँ प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र को सेवा कार्यों द्वारा सहयोग प्रदान करती हैं। यातायात, व्यापार, बैंकिंग, बीमा और विज्ञापन तृतीयक क्रियाओं के उदाहरण हैं।

कृषि (Agriculture)

कृषि एक प्राथमिक क्रिया है। फ़सलों, फलों, सब्जियों, फूलों को उगाना और पशुधन पालन इसमें शामिल हैं। विश्व में पचास प्रतिशत लोग कृषि से संबंधित क्रियाओं में संलग्न हैं। भारत की दो-तिहाई जनसंख्या अब तक कृषि पर निर्भर है। जिस भूमि पर फ़सलें उगाई जाती हैं, (arable land) कहलाती है।

  • एग्रीकल्चर (कृषि) मृदा की जुताई, फसलों  को उगाना और पशुपालन का विज्ञान एवं कला है। इसे खेती भी कहते हैं।
  • सेरीकल्चर (रेशम उत्पादन) रेशम के कीटों का वाणिज्यिक पालन। यह कृषक की आय पूरक हो सकता है।
    पिसीकल्चर (मत्स्यपालन) विशेष रूप से निर्मित तालाबों और पोखरों में मत्स्यपालन।
  • विटिकल्चर (द्राक्षा कृषि) अंगूरों की खेती ।
    हॉर्टीकल्चर (उद्यान कृषि) वाणिज्यिक उपयोग के लिए सब्जियों, फूलों और फलों को उगाना |

कृषि तंत्र (Farm System)

कृषि या खेती को एक तंत्र के रूप में देखा जा सकता है। इसके महत्त्वपूर्ण निवेश बीज (Seeds), उर्वरक (fertilisers), मशीनरी (machinery) और श्रमिक (labour) हैं।

  • जैविक कृषि (Organic farming) इस प्रकार की कृषि में रासायनिक खादों के स्थान पर जैविक खाद और प्राकृतिक पीड़कनाशी का उपयोग किया जाता है। फ़सलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए कोई आनुवंशिक रूपांतरण (genetic modification) नहीं किया जाता है।

कृषि के प्रकार (Types of Farming)

कृषि दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत की जा सकती है।

  1. निर्वाह कृषि (Subsistence Farming)
  2. वाणिज्यिक कृषि (Commercial Farming)

निर्वाह कृषि (Subsistence Farming)

इस प्रकार की कृषि कृषक परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए की जाती है। पारंपरिक रूप से कम उपज प्राप्त करने के लिए निम्न स्तरीय प्रौद्योगिकी और पारिवारिक श्रम का उपयोग किया जाता है। निर्वाह कृषि को पुनः गहन निर्वाह कृषि (intensive subsistence agriculture) और आदिम निर्वाह कृषि (Primitive subsistence agriculture) में वर्गीकृत किया जा सकता है।

गहन निर्वाह कृषि में किसान एक छोटे भूखंड पर साधारण औज़ारों और अधिक श्रम से खेती करता है। अधिक धूप वाले दिनों से युक्त जलवायु और उर्वर मृदा वाले खेत में, एक वर्ष में एक से अधिक फ़सलें उगाई जा सकती हैं। चावल मुख्य फ़सल होती है। अन्य फ़सलों में गेहूँ, मक्का, दलहन और तिलहन शामिल हैं। गहन निर्वाह कृषि दक्षिणी, दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी एशिया के सघन जनसंख्या वाले मानसूनी प्रदेशों में प्रचलित है। आदिम निर्वाह कृषि में स्थानांतरी कृषि और चलवासी पशुचारण शामिल हैं।

स्थानांतरी कृषि (Shifting cultivation) अमेजन बेसिन के सघन वन क्षेत्रों, उष्ण कटिबंधीय अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और उत्तरी-पूर्वी भारत के भागों में प्रचलित है। ये भारी वर्षा और वनस्पति के तीव्र पुनर्जनन वाले क्षेत्र हैं। वृक्षों को काटकर और जलाकर भूखंड को साफ़ किया जाता है। तब राख को मृदा में मिलाया जाता है तथा मक्का, रतालू, आलू और कसावा जैसी फ़सलों को उगाया जाता है। भूमि की उर्वरता की समाप्ति के बाद वह भूमि छोड़ दी जाती है और कृषक नए भूखंड पर चला जाता है। स्थानांतरी कृषि को ‘कर्तन एवं दहन’ (‘slash and burn’) कृषि के रूप में भी जाना जाता है। स्थानांतरी कृषि विश्व के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से जानी जाती है।

झूमिंग उत्तर-पूर्वी भारत
मिल्पा मैक्सिको
रोका ब्राजील
लदांग मलेशिया

 

  • चलवासी पशुचारण (Nomadic herding) सहारा के अर्धशुष्क और शुष्क प्रदेशों में, मध्य एशिया और भारत के कुछ भागों जैसे राजस्थान तथा जम्मू और कश्मीर में प्रचलित है। इस प्रकार की कृषि में पशुचारक अपने पशुओं के साथ चारे और पानी के लिए स्थान से दूसरे स्थान पर निश्चित मार्गों से घूमते हैं।

 

  • यहां दुनिया भर में झूम खेती के कुछ अलग-अलग नामों को दर्शाने वाली तालिका दी गई है:
Region Name
Southeast Asia Slash-and-burn, swidden agriculture
Africa Milpa, chitemene, shifting agriculture
South America Roçado, coivara, caatinga
North America Fire-fallow, slash-and-burn, shifting cultivation
Europe Taungya, forest fallow, transhumance
Oceania Ladang, kaingin, jhum cultivation

 

यह ध्यान देने योग्य है कि इनमें से कुछ शब्द झूम खेती की विशिष्ट विविधताओं को संदर्भित कर सकते हैं, और इस तालिका में अतिरिक्त क्षेत्रीय नाम शामिल नहीं हो सकते हैं।

 

  • क्षेत्र और स्थानीय भाषा के आधार पर स्थानांतरित खेती को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। भारत में झूम खेती के कुछ अलग-अलग नाम इस प्रकार हैं:
Region Name
Northeast India Jhum, podu, kumri, dahiya, bewar, nevad, valre
Andhra Pradesh Koman, dhavi, dongarsheti
Odisha Penda, khandadhar, dongarsheti
Chhattisgarh Bewar, dohar, podu
Jharkhand Dahiya, kheti, khil, bera
Maharashtra Valre, kapas, gomal

 

यह ध्यान देने योग्य है कि इनमें से कुछ शब्द क्षेत्र में स्थानांतरित खेती की विशिष्ट विविधताओं को संदर्भित कर सकते हैं, और इस तालिका में अतिरिक्त क्षेत्रीय नाम शामिल नहीं हो सकते हैं।

वाणिज्यिक कृषि

(Commercial Farming)

वाणिज्यिक खेती के लिए पूंजी, भूमि, श्रम और प्रौद्योगिकी के महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है। मशीनीकरण, सिंचाई और उर्वरक जैसी आधुनिक कृषि पद्धतियों के उपयोग ने व्यावसायिक खेती को अधिक उत्पादक और लाभदायक बना दिया है। हालाँकि, व्यावसायिक खेती के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे कि मिट्टी का कटाव और जल प्रदूषण।

वाणिज्यिक कृषि में फ़सल उत्पादन और पशुपालन बाज़ार में विक्रय हेतु किया जाता है। इसमें विस्तृत कृष्ट क्षेत्र और अधिक पूँजी का उपयोग किया जाता है। अधिकांश कार्य मशीनों के द्वारा किया जाता है। वाणिज्यिक कृषि में वाणिज्यिक अनाज कृषि, मिश्रित कृषि और रोपण कृषि (plantation agriculture) शामिल हैं

वाणिज्यिक अनाज कृषि (Commercial Grain Farming)

  • वाणिज्यिक अनाज कृषि में फ़सलें वाणिज्यिक उद्देश्य से उगाई जाती हैं। गेहूँ और मक्का सामान्य रूप से उगाई जाने वाली फ़सलें हैं। उत्तर अमेरिका, यूरोप और एशिया के शीतोष्ण घास के मैदान वाणिज्यिक अनाज कृषि के प्रमुख क्षेत्र हैं। ये क्षेत्र सैकड़ों हेक्टेयर के बड़े फार्मों से युक्त बिरल आबादी वाले हैं। अत्यधिक ठंड वर्धनकाल को बाधित करती है और केवल एक ही फ़सल उगाई जा सकती है।
  • यह एक प्रकार की व्यावसायिक खेती है जिसमें बड़े पैमाने पर गेहूं, चावल, मक्का और जौ जैसी फसलों का उत्पादन शामिल है। फसलें मुख्य रूप से खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों, पशुधन फ़ीड निर्माताओं और निर्यात बाजारों में बिक्री के लिए उगाई जाती हैं। वाणिज्यिक अनाज की खेती में विशेषज्ञता रखने वाले देशों के उदाहरणों में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।

मिश्रित कृषि (Mixed Farming)

  • मिश्रित कृषि  में भमि का उपयोग भोजन व चारे की फसलें उगाने और पशुधन पालन के लिए किया जाता है। यह यूरोप, पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेंटीना, दक्षिण-पूर्वी आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित है।
  • यह एक प्रकार की व्यावसायिक खेती है जिसमें फसलों और पशुओं दोनों का उत्पादन शामिल है। जानवरों को खिलाने के लिए फसलें उगाई जाती हैं और जानवर फसलों के लिए खाद प्रदान करते हैं। मिश्रित खेती भूमि और संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करने में मदद करती है। मिश्रित खेती में विशेषज्ञता रखने वाले देशों के उदाहरणों में यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जर्मनी शामिल हैं।

रोपण कृषि (Plantation Agriculture)

  • वाणिज्यिक कृषि का एक प्रकार है जहाँ चाय, कहवा, काजू, रबड़, केला अथवा कपास की एकल फ़सल उगाई जाती है। इसमें पैमाने पर श्रम और पूँजी की आवश्यकता होती है। उत्प का प्रसंस्करण खेतों पर ही या निकट के कारखानों में किया जा सकता है। इस प्रकार इस कृषि में परिवहन जाल के विकास की अनिवार्यता होती है।
  • रोपण कृषि के मुख्य क्षेत्र विश्व के उष्ण कटिबंधीय प्रदेश पाए जाते हैं। मलेशिया में रबड़, ब्राजील में कहवा, भारत और श्रीलंका में चाय इसके कुछ उदाहरण हैं।
  • यह एक प्रकार की व्यावसायिक खेती है जिसमें बड़े बागानों पर चाय, कॉफी, रबर और गन्ने जैसी नकदी फसलों का बड़े पैमाने पर उत्पादन शामिल है। फसलें मुख्य रूप से दूसरे देशों में निर्यात के लिए उगाई जाती हैं। वृक्षारोपण कृषि में विशेषज्ञता वाले देशों के उदाहरणों में ब्राजील, इंडोनेशिया और केन्या शामिल हैं।

मुख्य फसलें (Major Crops)

प्रमुख फसलें वे हैं जो बड़ी मात्रा में उत्पादित होती हैं और विश्व की खाद्य आपूर्ति के लिए आवश्यक हैं। यहाँ विश्व स्तर पर उत्पादित कुछ प्रमुख फ़सलें हैं:

  • गेहूं (Wheat): गेहूं दुनिया में सबसे व्यापक रूप से उगाई जाने वाली फसलों में से एक है, और लाखों लोगों के लिए एक मुख्य भोजन है। इसका उपयोग ब्रेड, पास्ता, नूडल्स और अन्य खाद्य उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है।
  • चावल (Rice): दुनिया की आधी से अधिक आबादी के लिए चावल मुख्य भोजन है, और एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में एक प्रमुख फसल है। इसका उपयोग सुशी, रिसोट्टो और पेला सहित विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने के लिए किया जाता है।
  • मकई (मक्का) (Corn (Maize): कई देशों में मकई एक मुख्य भोजन है और इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है, जिसमें टॉर्टिला, कॉर्नब्रेड, पॉपकॉर्न और नाश्ते के अनाज शामिल हैं।
  • सोयाबीन (Soybeans): सोयाबीन मनुष्यों और पशुओं के लिए प्रोटीन का एक प्रमुख स्रोत है। उनका उपयोग टोफू, सोया दूध और अन्य खाद्य उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है, और पशु चारा और औद्योगिक उत्पादों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
  • आलू (Potatoes): आलू दुनिया के कई हिस्सों में एक मुख्य भोजन है और मैश किए हुए आलू, फ्रेंच फ्राइज़ और आलू के चिप्स सहित विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • गन्ना (Sugarcane): गन्ना उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में एक प्रमुख फसल है, और इसका उपयोग चीनी और अन्य मिठास बनाने के लिए किया जाता है।
  • कपास (Cotton): कपास एक प्रमुख फसल है जिसका उपयोग कपड़े, वस्त्र और अन्य उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है।
  • ताड़ का तेल (Palm Oil): ताड़ का तेल एक वनस्पति तेल है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के खाद्य और औद्योगिक उत्पादों में किया जाता है।

ये फसलें दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा और आजीविका सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जूट और कपास रेशेदार फ़सलें हैं। चाय और कहवा मुख्य पेय फ़सले हैं।

कृषि का विकास

(AGRICULTURAL DEVELOPMENT)

अधिक जनसंख्या वाले विकासशील देश अधिकतर गहन कृषि करते हैं, जहाँ छोटी जोतों पर सामान्यतः जीविकोपार्जन के लिए फ़सलें उगाई जाती हैं। बड़ी जोतें वाणिज्यिक कृषि के लिए अधिक उपयुक्त होती हैं जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया में।

संयुक्त राज्य अमेरिका का एक फार्म (A farm in the USA)

छोटे परिवार के स्वामित्व वाले संचालन से लेकर बड़े वाणिज्यिक खेतों तक संयुक्त राज्य अमेरिका में फार्म आकार और प्रकार में भिन्न हो सकते हैं। यहाँ एक संक्षिप्त विवरण दिया गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में एक विशिष्ट खेत कैसा दिख सकता है:

  • स्थान (Location): संयुक्त राज्य अमेरिका में फार्म सभी 50 राज्यों में पाए जा सकते हैं, लेकिन आमतौर पर खुली भूमि और उपजाऊ मिट्टी वाले ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं। वे प्रमुख शहरों के पास या अधिक दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित हो सकते हैं।
  • आकार (Size): संयक्त राज्य अमेरिका में एक फार्म का औसत आकार भारतीय फार्म की तुलना में बहुत बड़ा होता है। एक खेत का आकार कुछ एकड़ से लेकर हजारों एकड़ तक हो सकता है, जो फसलों के प्रकार या पशुधन और उत्पादन के पैमाने पर निर्भर करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, औसत खेत का आकार लगभग 440 एकड़ है।
  • फसलों के प्रकार (Type of crops): संयुक्त राज्य अमेरिका में खेतों में मकई, सोयाबीन, गेहूं, कपास, चुकंदर, फल, सब्जियां और नट्स सहित कई प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। उगाई जाने वाली फसलों के प्रकार जलवायु, मिट्टी के प्रकार और बाजार की मांग पर निर्भर करते हैं।
  • पशुधन का प्रकार (Type of livestock): संयुक्त राज्य अमेरिका में फार्म पशुधन भी बढ़ाते हैं, जैसे गोमांस और डेयरी मवेशी, सूअर, मुर्गी और भेड़। उठाए गए पशुधन का प्रकार खेत के स्थान, जलवायु और बाजार की मांग पर निर्भर करता है।
  • खेती के तरीके (Farming practices): खेती के तरीके खेत और क्षेत्र के प्रकार के आधार पर व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं। कुछ फ़ार्म पारंपरिक खेती के तरीकों का उपयोग कर सकते हैं, जबकि अन्य आधुनिक तकनीक और प्रथाओं जैसे सटीक कृषि, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों और सिंचाई प्रणालियों का उपयोग कर सकते हैं।
  • श्रम (Labor): संयुक्त राज्य अमेरिका में खेतों में रोपण, कटाई और जानवरों की देखभाल जैसे विभिन्न कार्यों को करने के लिए परिवार के सदस्यों या किराए के श्रमिकों को नियुक्त किया जा सकता है। आवश्यक श्रमिकों की संख्या खेत के आकार और प्रकार पर निर्भर करती है।
  • विपणन (Marketing): किसान अपने उत्पादों को किसानों के बाजारों या समुदाय समर्थित कृषि कार्यक्रमों के माध्यम से सीधे उपभोक्ताओं को बेच सकते हैं, या थोक विक्रेताओं या प्रोसेसर जैसे बिचौलियों को बेच सकते हैं जो फिर खुदरा विक्रेताओं या उपभोक्ताओं को उत्पाद वितरित करते हैं।

उदयोग

(Industries)

उद्योग अर्थव्यवस्था के ऐसे क्षेत्र हैं जो उपभोग के लिए वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन करते हैं। उद्योगों को उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं या सेवाओं के प्रकार या उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले कच्चे माल के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। उद्योग आर्थिक गतिविधि से संबंधित है जो माल के उत्पादन, खनिजों के निष्कर्षण या सेवाओं के प्रावधान से संबंधित है।

यहाँ कुछ बिंदु हैं जो उद्योगों का वर्णन करते हैं:

  • निर्माण उद्योग (Manufacturing Industry): इस उद्योग में कच्चे माल और विभिन्न निर्माण प्रक्रियाओं का उपयोग करके वस्तुओं का उत्पादन शामिल है। उदाहरणों में ऑटोमोबाइल, उपभोक्ता सामान, कपड़ा और इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं।
  • सेवा उद्योग (Service Industry): इस उद्योग में स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, बैंकिंग और परिवहन जैसी सेवाओं का प्रावधान शामिल है। यह कई विकसित देशों में अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा क्षेत्र है।
  • कृषि उद्योग (Agricultural Industry): इस उद्योग में फसलों, पशुधन और अन्य कृषि उत्पादों का उत्पादन शामिल है। इसमें खेती, मछली पकड़ना, वानिकी और खनन शामिल हैं।
  • निर्माण उद्योग (Construction Industry): इस उद्योग में बुनियादी ढांचे का निर्माण शामिल है, जैसे सड़कें, भवन और पुल। इसमें सीमेंट, स्टील और लकड़ी जैसे कच्चे माल का उपयोग शामिल है।
  • ऊर्जा उद्योग (Energy Industry): इस उद्योग में तेल, गैस और अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे पवन और सौर ऊर्जा सहित ऊर्जा का उत्पादन, वितरण और बिक्री शामिल है।
  • प्रौद्योगिकी उद्योग (Technology Industry): इस उद्योग में प्रौद्योगिकी आधारित वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन शामिल है, जैसे सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और दूरसंचार उपकरण।

उद्योगों का वर्गीकरण

(CLASSIFICATION OF INDUSTRIES)

उद्योगों को कच्चे माल, आकार और स्वामित्व के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है।

आकार (Size)

उद्योग के आकार का तात्पर्य निवेश की गई पूँजी की राशि, नियोजित लोगों की संख्या और उत्पादन की मात्रा से है। आकार के आधार उद्योगों को 2 भागों में बाँटा जा सकता है

  1. लघु आकार के उद्योग (Small scale industries)
  2. बृहत आकार के उद्योग (Large scale industries)
  • Cottage or household industries are small-scale industries. (कुटीर या घरेलू उद्योग छोटे पैमाने के उद्योग हैं।)

स्वामित्व (Ownership)

  • स्वामित्व के आधार पर, उद्योगों को निजी क्षेत्र, राज्य के स्वामित्व वाले या सार्वजनिक क्षेत्र, संयुक्त क्षेत्र और सहकारी क्षेत्र में वर्गीकृत किया जा सकता है। निजी क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन या तो एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा किया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन सरकार द्वारा किया जाता है जैसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड।
  • संयुक्त क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन राज्यों और व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूहों द्वारा किया जाता है। मारुति उद्योग लिमिटेड एक संयुक्त क्षेत्र के उद्योग का एक उदाहरण है। सहकारी क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन कच्चे माल के उत्पादकों या आपूर्तिकर्ताओं, श्रमिकों या दोनों के पास होता है। आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड और सुधा डेयरी सहकारी उद्यमों के सर्वोत्तम उदाहरण हैं।

औद्योगिक प्रदेश (Industrial Regions)

  • औद्योगिक क्षेत्रों का विकास तब होता है जब कई प्रकार के उद्योग एक-दूसरे के निकट स्थित होते हैं और वे अपनी निकटता के लाभों को साझा करते हैं। दुनिया के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र पूर्वोत्तर अमेरिका, पश्चिमी और मध्य यूरोप, पूर्वी यूरोप और पूर्वी एशिया हैं। प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र ज्यादातर समशीतोष्ण क्षेत्रों में, समुद्री बंदरगाहों के पास और विशेष रूप से कोयला क्षेत्रों के पास स्थित हैं।

औद्योगिक विपदा (Industrial Disaster)

  • 3 दिसंबर, 1984 को लगभग 00.30 बजे भोपाल में अब तक का सबसे भयानक औद्योगिक हादसा हुआ। यह एक तकनीकी दुर्घटना थी जिसमें यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक कारखाने से हाइड्रोजन साइनाइड और
  • प्रतिक्रियाशील उत्पादों के साथ अत्यधिक जहरीली Methyl Isocyanate (MIC) गैस का रिसाव हुआ था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 1989 में 35,598 लोगों की मृत्यु हुई थी। बचे हुए हजारों लोग अभी भी एक या एक से अधिक बीमारियों जैसे अंधापन, प्रतिरक्षा प्रणाली विकार, आंत्रशोथ आदि से पीड़ित हैं।
  • 23 दिसंबर 2005 को, गाओ किआओ, चोंगकिंग, चीन में एक गैस के कुएं में विस्फोट हुआ, जिसमें 243 लोग मारे गए और 9,000 घायल हुए, और 64,000 विस्थापित हुए। धमाके के बाद बच नहीं पाने के कारण कई लोगों की मौत हो गई। जो लोग समय रहते भागने में सफल रहे, उनकी आंखों, त्वचा और फेफड़ों में गैस की क्षति हुई।
  • उभरते उद्योगों को ‘सनराइज इंडस्ट्रीज’ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा, आतिथ्य और ज्ञान से संबंधित उद्योग शामिल हैं।
  • गलाना यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा धातुओं को उनके अयस्कों से गलनांक से ऊपर के तापमान पर गर्म किया जाता है जिससे मिश्र धातु इस्पात को उसकी असामान्य कठोरता, शक्ति और संक्षारण प्रतिरोध मिलता है।

जमशेदपुर (Jamshedpur)

  • 1947 से पूर्व भारत में केवल एक इस्पात का कारखाना था टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (टिस्को) यह निजी स्वामित्व में था। स्वतंत्राता के पश्चात् सरकार ने यह कार्य अपने हाथ में ले लिया

पिट्सबर्ग (Pittsburgh)

यह संयुक्त राज्य अमेरिका का एक महत्वपूर्ण शहर है। पिट्सबर्ग के इस्पात उद्योग में स्थानीय विशेषताएँ उपलब्ध हैं। कच्चा माल जैसे कोयला केवल पिट्सबर्ग में ही उपलब्ध है।

  • ग्रेट लेक्स के नाम सुपीरियर, ह्यूरन ओंटारियो, मिशिगन और एरी हैं। ऊपरी झील (सुपीरियर) इन पांच झीलों में सबसे बड़ी है और अन्य की तुलना में ऊपर की ओर स्थित है।
  • टेक्सटाइल शब्द लैटिन टेक्सचर से लिया गया है जिसका अर्थ है बुनना।

सूती वस्त्र उद्योग

(COTTON TEXTILE INDUSTRY)

सूती वस्त्र उद्योग विश्व के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है। सुनार काम करता है सूरत और वडोदरा के सूती वस्त्र अपनी गुणवत्ता और डिजाइन के लिए विश्व प्रसिद्ध थे। 1854 ई. में मुंबई में प्रथम सफल यंत्रीकृत कपड़ा मिल की स्थापना की गई। देश में पहला कपड़ा उद्योग 1818 ई. में कोलकाता के निकट फोर्ट गैलेस्टर में स्थापित किया गया था लेकिन कुछ समय बाद यह बंद हो गया।

अहमदाबाद (Ahmedabad)

  • अहमदाबाद गुजरात में साबरमती नदी के तट पर स्थित है। यहां पहली सूती मिल 1859 में स्थापित की गई थी। जल्द ही यह मुंबई के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा-निर्माण शहर बन गया। अहमदाबाद को अक्सर ‘भारत का मैनचेस्टर’ कहा जाता है। भारतीय कपड़ा उद्योग के कुल उत्पादन का लगभग एक तिहाई निर्यात किया जाता है।

ओसाका (Osaka)

  • ओसाका जापान का एक महत्वपूर्ण कपड़ा-निर्माण केंद्र है। इसे ‘जापान का मैनचेस्टर’ भी कहा जाता है।

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PKVY) 

  • (PKVY) को 2016 से 2020 तक एक करोड़ भारतीय युवाओं को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से 2015 में लॉन्च किया गया था। इस योजना का उद्देश्य संभावित और मौजूदा नौकरी अर्जक को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण प्रदान करके रोजगार योग्य कौशल की योग्यता को प्रोत्साहित करना है।
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) भारतीय युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने और उनकी रोजगार क्षमता में सुधार करने के लिए 2015 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक प्रमुख योजना है। यह योजना कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित की जाती है।

यहां कुछ बिंदु दिए गए हैं जो PKVY की विशेषताओं का वर्णन करते हैं:

  • इस योजना का लक्ष्य 2016 से 2020 तक चार साल की अवधि में 1 करोड़ से अधिक भारतीय युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।
  • यह योजना देश भर में विभिन्न प्रशिक्षण भागीदारों और प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करती है।
  • यह योजना युवाओं को उनके कौशल प्रशिक्षण को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है और उन्हें प्रशिक्षण के सफल समापन पर एक प्रमाण पत्र भी प्रदान करती है।
  • योजना का फोकस डिजिटल प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे नए और उभरते क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान करना है।
  • इस योजना में रिकॉग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग (RPL) का भी प्रावधान है, जो कौशल अर्जित करने वालों को अनौपचारिक रूप से या कार्य अनुभव के माध्यम से प्रमाणित होने का अवसर प्रदान करता है।
  • नई तकनीकों, मांग-संचालित कौशल और उद्यमिता के क्षेत्रों में युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने पर ध्यान देने के साथ इस योजना को पीएमकेवीवाई 3.0 के रूप में संशोधित और पुन: लॉन्च किया गया है।

Population

(जनसंख्या)

जनसंख्या का वितरण (DISTRIBUTION OF POPULATION)

  • विश्व की जनसंख्या का 90 प्रतिशत से अधिक भाग भूपृष्ठ के लगभग 30 प्रतिशत से अधिक भाग पर निवास करता है।
  • विषुवत वृत्त (Equator) के दक्षिण की अपेक्षा विषुवत वृत्त के उत्तर में हु लोग रहते हैं। विश्व की कुल जनसंख्या के लगभग तीन – चैथाई लोग दो महाद्वीपों एशिया और अफ्रीका में रहते हैं।
  • विश्व के 60 प्रतिशत लोग केवल दस देशों में रहते हैं। इन सभी देशों में 10 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं।

जनसंख्या का घनत्व (DENSITY OF POPULATION)

  • पृथ्वी पृष्ठ के एक इकाई क्षेत्र में रहने वाले लोगों की संख्या को जनसंख्या का घनत्व कहते हैं।
  • भारत की जनसंख्या का औसत घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।
  • सामान्य रूप से यह प्रतिवर्ग किलोमीटर में व्यक्त किया जाता है। संपूर्ण विश्व का औसत जनसंख्या घनत्व 51 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व दक्षिण मध्य एशिया में है। क्रमशः पूर्वी एशिया एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया में है।

जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

(Factors Affecting Population Distribution)

भौगोलिक कारक (Geographical Factors)

  • भौगोलिक कारक पृथ्वी की सतह की भौतिक विशेषताएं हैं जो मानव गतिविधियों और प्राकृतिक पर्यावरण को प्रभावित करती हैं। – स्थलाकृति, जलवायु, मृदा, जल तथा खनिज,

सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारक (Social, Cultural and Economic Factors)

  • सामाजिक कारक (Social Factors) : अच्छे आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र अत्यधिक घने बसे हैं, उदाहरण के लिए पुणे।
  • सांस्कृतिक कारक (Cultural Factors) : धर्म और सांस्कृतिक महत्ता वाले स्थान लोगों को आकर्षित करते हैं। वाराणसी, येरूसलम और वेटिकन सिटी इसके कुछ उदाहरण हैं।
  • आर्थिक कारक (Economic Factors) : औद्योगिक क्षेत्र रोजगार के अवसर प्रदान करते हैं। लोग बड़ी संख्या इन क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं। जापान में ओसाका और भारत में मुंबई, दो ही घने बसे क्षेत्र हैं।

जनसंख्या परिवर्तन (POPULATION CHANGE)

  • जन्मों को साधारणतः जन्म दर में आँका जाता है। जन्मदर अर्थात् प्रति 1000 व्यक्तियों पर जीवित जन्मों की संख्या में मापा जाता है मृत्युदर को प्रति 1000 व्यक्तियों पर मृतकों की संख्या में मापा जाता है।
  • किसी क्षेत्र विशेष में लोगों के आने-जाने को प्रवास (migration) कहते हैं।
  • एक देश के जन्म दर और मृत्यु दर के बीच के अंतर को प्राकृतिक वृद्धि दर कहते हैं।
  • उत्प्रवासी (Emigrants) वे लोग होते हैं जो देश छोड़ते हैं, आप्रवासी जो देश में आते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और (Immigrants) वे लोग होते आस्ट्रेलिया जैसे देशों में भीतरी प्रवास अथवा आप्रवास द्वारा संख्या बढ़ी है। सूडान देश एक ऐसा उदाहरण है जिसमें लोगों के बाहर चले जाने अथवा उत्प्रवास के कारण जनसंख्या में कमी का अनुभव किया गया है
  • अन्य देशों में जैसे यूनाइटेड किंगडम में निम्न जन्म दर और मृत्यु दर के कारण जनसंख्या वृद्धि की दर मंद है।

जनसंख्या संघटन

(Population composition)

जनसंख्या संरचना जनसंख्या की जनसांख्यिकीय विशेषताओं को संदर्भित करती है, हमारी यह जानने में सहायता करता है कि कितने पुरुष हैं और कितनी स्त्रियाँ हैं, वे किस आयु वर्ग के हैं, कितने शिक्षित हैं और वे किस प्रकार के व्यवसाय में लगे हैं, उनकी आय का क्या स्तर है |

यहाँ कुछ बिंदु हैं जो जनसंख्या संरचना का वर्णन करते हैं:-

  • आयु (Age): जनसंख्या संरचना में आयु एक महत्वपूर्ण कारक है। यह सामाजिक और आर्थिक परिणामों को प्रभावित कर सकता है, जैसे कि सेवानिवृत्ति दर, स्वास्थ्य देखभाल की ज़रूरतें और श्रम बल की भागीदारी। कुछ देशों में वृद्ध आबादी है, जबकि अन्य में अपेक्षाकृत युवा आबादी है। उदाहरण के लिए, जापान में बुजुर्गों का अनुपात अधिक है, जबकि नाइजीरिया में युवाओं का अनुपात अधिक है।
  • लिंग (Gender): लिंग एक अन्य महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय कारक है। यह सामाजिक और आर्थिक परिणामों को प्रभावित कर सकता है, जैसे कि शिक्षा का स्तर, श्रम शक्ति की भागीदारी और स्वास्थ्य के परिणाम। कई देशों में, पुरुषों की तुलना में महिलाओं की शिक्षा और श्रम शक्ति की भागीदारी कम है। हालाँकि, यह बदल रहा है, और कई देश लैंगिक समानता में सुधार के लिए प्रयास कर रहे हैं।
  • नस्ल और जातीयता (Race and Ethnicity): जनसंख्या संरचना में नस्ल और जातीयता भी महत्वपूर्ण कारक हो सकते हैं। वे आय स्तर और शैक्षिक प्राप्ति जैसे सामाजिक और आर्थिक परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। कुछ देशों में कई अलग-अलग नस्लीय और जातीय समूहों के साथ विविध आबादी है, जबकि अन्य में अपेक्षाकृत समरूप आबादी है।
  • शिक्षा (Education): जनसंख्या संरचना में शिक्षा एक महत्वपूर्ण कारक है। यह आय के स्तर और नौकरी के अवसरों जैसे सामाजिक और आर्थिक परिणामों को प्रभावित कर सकता है। कुछ देशों में उच्च स्तर की शिक्षा है, जबकि अन्य में अपेक्षाकृत निम्न स्तर है।
  • सामाजिक आर्थिक स्थिति (Socioeconomic status): सामाजिक आर्थिक स्थिति किसी व्यक्ति की आय, शिक्षा और व्यवसाय को संदर्भित करती है। यह सामाजिक और आर्थिक परिणामों को प्रभावित कर सकता है, जैसे स्वास्थ्य परिणाम और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच। कुछ देशों में अमीर और गरीब के बीच एक बड़ा आय अंतर है, जबकि अन्य में आय का अधिक समान वितरण है।
  • शहरीकरण (Urbanization): शहरीकरण का तात्पर्य शहरी क्षेत्रों में रहने वाली जनसंख्या के अनुपात से है। यह सामाजिक और आर्थिक परिणामों को प्रभावित कर सकता है, जैसे कि नौकरियों और सेवाओं तक पहुंच। कुछ देशों में शहरीकरण का उच्च स्तर है, जबकि अन्य में अपेक्षाकृत निम्न स्तर है।

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