CTET Biology Complete Notes Pdf Download

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CTET Biology Complete Notes Pdf Download (Updated)

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Note:-

CTET Science के नोट्स बहुत सरे है | सभी एक पेज पर नहीं आ पा रहे है तो हमने CTET Science के नोट्स को 4 भागो में बाट दिया है – 

  1. Biology (जीवविज्ञान)
  2. Physics (भौतिक विज्ञान)
  3. Chemistry (रसायन विज्ञान)
  4. Natural Phenomenon and resources (प्राकृतिक घटनाएँ और संसाधन)

Complete CTET Biology (जीवविज्ञान) Notes

(NCERT पुस्तक पर आधारित)

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भोजन के रूप में पौधे के भाग और जंतु उत्पादन:

  • कुछ पौधों के दो या दो से अधिक भाग खाने योग्य होते हैं। उदाहरण के लिए सरसों के बीज से हमें तेल प्राप्त होता है एवं इसकी पत्तियों का उप साग बनाने के लिए किया जाता है।
  • मधुमक्खियाँ फूलों से मकरंद (मीठे रस) एकत्रित करती हैं और इसे अपने छत्ते में भंडारित फूल और का मकरंद, वर्ष के केवल कुछ समय में ही उपलब्ध होते हैं।
  • केले का पौधा जो भोजन के रूप में उपयोग किया
  • ‘कुछ’ पौधे जहरीले हो सकते |

पशु भोजन:

  • जो जंतु केवल पादप खाते हैं, उन्हें शाकाहारी कहते हैं।
  • जो जंतु केवल जंतुओं को खाते हैं, उन्हें मांसाहारी कहते हैं ।
  • जो जंतु पादप तथा दूसरे प्राणी, दोनों को ही खाते हैं, उन्हें सर्वाहारी कहते हैं ।

अलग-अलग खाद्य पदार्थ सामग्री:

  • प्रत्येक व्यंजन एक या एक से अधिक प्रकार की कच्ची सामग्री से बना होता है, जो हमें पादपोंया जंतुओं से मिलते हैं। इस कच्ची सामग्री में हमारे शरीर के लिए कुछ आवश्यक घटक होते हैं। इन घटकों को हम पोषक कहते हैं। हमारे भेजन में मुख्य पोषक – कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज लवण हैं।
  • हमारे भोजन में पाए जाने वाले मुख्य कार्बोहाइड्रेट, मंड तथा शर्करा के रूप में होते कार्बोहाइड्रेट मुख्य रूप से हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं। वसा से भी ऊर्जा मिलती है।
  • कॉपर सल्फेट विलयन, 100 मितीतीटर जल में 2 ग्राम कॉपर सल्फेट घोलने से बन जाता है।
  • 100 मिलीलीटर जल में 10 ग्राम कॉस्टिक सोडा घोलने से हमें अभीष्ठ कॉस्टिक सोडा विलयन मिल जाएगा ।

हमारे शरीर के लिए विभिन्न पोषक:

  • प्रोटीन की आवश्यकता शरीर की वृद्धि तथा स्वस्थ रहने के लिए होती है। प्रोटीनयुक्त भोजन को प्रायः ‘शरीर वर्धक भोजन कहते हैं
  • विटामिन रोगों से हमारे शरीर की रक्षा करते हैं। विटामिन हमारी आँख, अस्थियों, दाँत और मसूढ़ों को स्वस्थ रखने में भी सहायता करते है
  • विटामिन कई प्रकार के होते हैं, जिन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इनमें से कुछ को विटामिन A, विटामिन B विटामिन C, विटामिन D, विटामिन E तथा विटामिन K के नाम से जाना जाता है। विटामिनों के एक समूह को विटामिन B – कॉम्प्लैक्स कहते हैं ।
  • हमारे शरीर को सभी प्रकार के विटामिनों की अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है।
  • विटामिन A हमारी त्वचा तथा आँखों को स्वस्थ रखता है। विटामिन C बहुत-से रोगों से लड़ने में हमारी मदद करता है। विटामिन D हमारी अस्थियों और दाँतों के लिए कैल्सियम का उपयोग करने में हमारे शरीर की सहायता करता है।
  • हमारा शरीर भी सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति से विटामिन D बनाता है।
  • चावल में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा दूसरे पोषकों से अधिक होती है। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि चावल कार्बोहाइड्रेट समृद्ध भोजन है।
  • इन पोषकों के अलावा हमारे शरीर को आहारी रेशों तथा जल ही भी आवश्यकता होती है। आहारी रेशे रुक्षांश के नाम से भी जाने जाते हैं। हमारे खाने में रुक्षांश की पूर्ति मुख्यतः पादप उत्पादों से होती है। रुक्षांश के मुख्य स्रोत साबुत खाद्यान्न, दाल, आलू, ताजे फल और सब्जियाँ हैं।

Table of Vitamins

(विटामिन तालिका)

यहां प्रत्येक के उदाहरणों के साथ आवश्यक विटामिनों की एक तालिका दी गई है:

Vitamin Function Sources
Vitamin A (Retinol) दृष्टि, प्रतिरक्षा प्रणाली और त्वचा के स्वास्थ्य का समर्थन करता है गाजर, शकरकंद, पालक, केल, कलेजी, अंडे
Vitamin B1 (Thiamine) ऊर्जा चयापचय और तंत्रिका कार्य में सहायता करता है साबुत अनाज, सूअर का मांस, मेवे, बीज, फलियाँ
Vitamin B2 (Riboflavin) ऊर्जा उत्पादन और स्वस्थ त्वचा बनाए रखने के लिए आवश्यक डेयरी उत्पाद, दुबला मांस, बादाम, मशरूम
Vitamin B3 (Niacin) ऊर्जा उत्पादन और डीएनए मरम्मत के लिए महत्वपूर्ण चिकन, मछली, मूंगफली, साबुत अनाज, मशरूम
Vitamin B5 (Pantothenic Acid) फैटी एसिड के संश्लेषण और ऊर्जा चयापचय में शामिल एवोकैडो, ब्रोकोली, साबुत अनाज, चिकन
Vitamin B6 (Pyridoxine) मस्तिष्क के विकास और कार्य में सहायता करता है, और लाल रक्त कोशिका के निर्माण में मदद करता है केले, मुर्गीपालन, मछली, आलू, गढ़वाले अनाज
Vitamin B7 (Biotin) चयापचय में भूमिका निभाता है और स्वस्थ त्वचा, बाल और नाखूनों को बनाए रखने में मदद करता है अंडे की जर्दी, मेवे, बीज, शकरकंद
Vitamin B9 (Folate or Folic Acid) डीएनए संश्लेषण और कोशिका वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण, विशेषकर गर्भावस्था के दौरान पत्तेदार सब्जियाँ, फलियाँ, खट्टे फल, गरिष्ठ अनाज
Vitamin B12 (Cobalamin) तंत्रिका कार्य और डीएनए और लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन के लिए आवश्यक मांस, मछली, डेयरी उत्पाद, गढ़वाले पौधे-आधारित खाद्य पदार्थ
Vitamin C (Ascorbic Acid) प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन करता है, आयरन को अवशोषित करने में मदद करता है और त्वचा के स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है खट्टे फल, स्ट्रॉबेरी, बेल मिर्च, ब्रोकोली
Vitamin D (Calciferol) हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण और कैल्शियम अवशोषण को नियंत्रित करने में मदद करता है सूरज की रोशनी, वसायुक्त मछली (जैसे, सैल्मन, मैकेरल), गढ़वाले डेयरी उत्पाद
Vitamin E (Tocopherol) एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है, कोशिकाओं को क्षति से बचाता है Nuts, बीज, वनस्पति तेल, पालक, ब्रोकोली
Vitamin K (Phylloquinone) रक्त का थक्का जमने और हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक पत्तेदार सब्जियाँ (जैसे, केल, पालक), ब्रोकोली, ब्रसेल्स स्प्राउट्स

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि संतुलित और विविध आहार इन विटामिनों का पर्याप्त सेवन सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका है। यदि आपको विशिष्ट स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ या आहार प्रतिबंध हैं, तो किसी स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर या पंजीकृत आहार विशेषज्ञ से परामर्श करना उचित है।

संतुलित आहार:

  • कोई भी पोषक तत्व न आवश्यकता से अधिक हो और हम हमारे आहार में पर्याप्त मात्रा में रुक्षांश तथा जल भी होना चाहिए। इस प्रकार के आहार को संतुलित आहार कहते हैं।
  • छिलका उतार कर यदि सब्जियों और फलों को धोया जाता है तो यह संभव है कि उनके कुछ विटामिन नष्ट हो जाएँ।
  • सब्जियों और फलों की त्वचा में कई महत्वपूर्ण विटामिन तथा खनिज लवण होते हैं। चावल और दालों को बार-बार धेने से उनमें उपस्थित विटामिन और कुछ खनिज लवण अलग हो सकते हैं।

अभावजन्य रोग:

  • कभी-कभी भोजन में किसी विशेष पोषक की कमी हो जाती है। यदि यह कमी लंबी अवधि तक रहती है तो वह व्यक्ति उसके अभाव से ग्रसित हो सकता है। एक या अधिक पोषक तत्त्वों का अभाव हमारे शरीर में रोग अथवा विकृतियाँ उत्पन्न कर सकता है। वे रोग जो लंबी अवधि तक पोषकों के अभाव के कारण होते हैं. उन्हें अभावजन्य रोग कहते हैं ।

पादपों में पोषण

(Nutrition in Plants)

यहां पौधों के लिए आवश्यक पोषण तत्वों की एक सारगर्भित सूची है, साथ ही प्रत्येक तत्व के उदाहरण:

पोषण तत्व पौधों में कार्य स्रोत
नाइट्रोजन (N) प्रोटीन, एंजाइम, और क्लोरोफिल की सिंथेसिस के लिए आवश्यक मिट्टी में नाइट्रेट (NO3-) और अमोनियम (NH4+) आयन, कार्बन सामग्री
फॉस्फोरस (P) ऊर्जा स्थानांतरण (एटीपी), डीएनए और आरएनए सिंथेसिस में शामिल मिट्टी में फॉस्फेट (PO4^3-) आयन, जैविक फॉस्फोरस यौगिक
पोटैशियम (K) जल ग्रहण, एंजाइम सक्रियण, और प्रकाश संश्लेषण को नियमित करता है मिट्टी में पोटैशियम आयन (K+)
कैल्शियम (Ca) कोशिका दीवार संरचना, मेम्ब्रेन अखंडता, और संकेत में आवश्यक मिट्टी में कैल्शियम आयन (Ca2+)
मैग्नीशियम (Mg) क्लोरोफिल का घटक, प्रकाश संश्लेषण में शामिल मिट्टी में मैग्नीशियम आयन (Mg2+)
सल्फर (S) अमीनो एसिड, विटामिन्स, और कोएंजाइम का घटक मिट्टी में सल्फेट (SO4^2-) आयन, जैविक सामग्री
आयरन (Fe) क्लोरोफिल सिंथेसिस और इलेक्ट्रॉन संश्लेषण के लिए आवश्यक मिट्टी में आयरन आयन (Fe2+ और Fe3+)
जिंक (Zn) एंजाइम सक्रियण और हार्मोन सिंथेसिस में शामिल मिट्टी में जिंक आयन (Zn2+)
कॉपर (Cu) प्रकाश संश्लेषण में इलेक्ट्रॉन संश्लेषण के लिए आवश्यक मिट्टी में कॉपर आयन (Cu2+)
मैंगनीज (Mn) प्रकाश संश्लेषण, श्वास, और नाइट्रोजन मेटाबॉलिज़म में शामिल मिट्टी में मैंगनीज आयन (Mn2+)
बोरॉन (B) कोशिका निर्माण और शुगर परिवहन के लिए महत्वपूर्ण मिट्टी में बोरेट (BO3^3-) आयन
मोलिब्डेनम (Mo) नाइट्रोजन मेटाबॉलिज़म और एंजाइम गतिविधि के लिए आवश्यक मिट्टी में मोलिब्डेट (MoO4^2-) आयन

उदाहरण:

  • नाइट्रोजन (N): पौधों को मिट्टी में नाइट्रेट (NO3-) या अमोनियम (NH4+) आयनों से प्राप्त होता है। नाइट्रोजन-युक्त स्रोतों की मिसालें मूँगफली (जैसे कि मूँगफली, बटर) और कुछ पौधों की जड़ में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया शामिल हैं।

यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि पौधों को फोटोसिंथेसिस के लिए पानी और सूर्यकिरणों की आवश्यकता होती है, लेकिन इन्हें पारंपरिक रूप से पोषण तत्वों में नहीं शामिल किया जाता है।

  • पोषण की वह विधि, जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेषित करते हैं, स्वपोषण कहलाती है।
  • जंतु एव अन्य जीव पादपों द्वारा संश्लेषित भोजन हैं। उन्हें विषमपी कहते हैं।

पादपों में खाद्य संश्लेषण का प्रक्रम:

  • पत्तियाँ पादप की खाद्य फैक्ट्रियाँ हैं। जल एवं खनिज, वाहिकाओं द्वारा पत्तियों तक पहुँचा जाते है। ये वाहिकाएँ नती के समान होती है तथा जड़, तना, शाखाओं एवं पत्तियों तक फैली होती है।
  • पत्तियों में एक हरा वर्णक होता है, जिसे क्लोरोफिल कहते है। क्लोरोफ़िल सूर्य के प्रकाश (सौर प्रकाश) की ऊर्जा का संग्रहण करने में पत्ती ही सहायता करता है। इस ऊर्जा का उपयोग जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड से खाद्य संश्लेषण में होता है, क्योंकि खाद्य संश्लेषण सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में होता है। इसलिए इसे प्रकाश संश्लेषण कहते हैं ।
  • पत्तियों द्वारा सूर्य ऊर्जा संग्रहित की जाती है तथा पादप में खाद्य के रूप में संचित हो जाती है। अतः सभी जीवों के लिए सूर्य ऊर्जा का चरम स्रोत है।
  • प्रकाश संश्लेषण ही अनुपस्थिति में, पृथ्वी पर जीवन की कल्पना असंभव है।

कार्बन डाइऑक्साइड + जल —– सूर्य का प्रकाश / क्लोरोफिल ——- कार्बोहाइड्रेट + ऑक्सीजन

  • इस प्रक्रम में ऑक्सीजन निर्मुक्त होती है कार्बोहाइड्रेट अंतत: पत्तियों में मंड (स्टार्च) के रूप में संचित हो जाते हैं। पत्ती में स्टार्च की उपस्थिति प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम का संपन्न होना दर्शाता है। स्टार्च भी एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट है।

पादपों में पोषण की अन्य विधियाँ:

  • मनुष्य एवं अन्य प्राणियों की तरह ये पादप भी अपने पोषण के लिए अन्य पादपों द्वारा निर्मित खाद्य पर निर्भर होते हैं। वे विषमपोषी (Heterotrophic) प्रणाली का उपयोग करते हैं।
  • अमरबेल का पादप है। इसमें क्लोरोफिल नहीं होता है। ये अपना भोजन उस पादप से प्राप्त करते हैं, जिस पर आरोहित होते हैं। जिस पर ये आरोहित होते हैं, वह पादप परपोषी कहलाता है। क्योंकि अमरबेल जैसे पादप परपोषी को अमूल्य पोषकों से वॉचत करते हैं, अतः इन्हें परजीवी कहते हैं।
  • कुछ ऐसे पादप भी हैं, जो कीटो को पकड़ते हैं तथा उन्हें पचा जाते हैं।

मृतजीवी:

  • रुई के धागों के समान संरचनाएँ दिखाई पड़ें। यह जीव कवक या फंजाई कहलाते हैं। इनकी पोषण प्रणाली अथवा पोषण विधि भिन्न प्रकार की होती है। थे मृत एवं विघटनकारी (सड़नेवाली) वस्तुओं (जैव पदार्थों) की सतह पर कुछ पाचक रसों का स्राव करते हैं, तथा उसे साधारण व विलेय के रूप में परिवर्तित कर देते । तत्पश्चात् वे इस विलयन का भोजन के रूप में अवशोषण करते हैं। इस प्रकार ही पोषण प्रणाली को, जिसमें जीव किसी मृत एवं विघटित जैविक पदार्थों से पोषक तत्त्व प्राप्त करते हैं, मृतजीवी पोषण कहलाती है।
  • कवक (फंजाई) आचार, चमड़े, कपड़े एवं अन्य पदार्थो पर उगते हैं ।
  • यीस्ट एवं छत्रक जैसे अनेक कवक उपयोगी भी है | परंतु कुछ कवक पादपों, जंतुओं एवं मनुष्य में रोग उत्पन्न करते हैं। कुछ कवकों का उपयोग औषधि के रूप में भी होता है।
  • कुछ जीव एक-दूसरे के साथ रहते हैं तथा अपना आवास एवं पोषक तत्त्व एक-दूसरे के साथ बाँटते हैं। इसे सहजीवी संबंध कहते हैं। उदाहरणत: कुछ कवक वृक्षों की जड़ों में रहते हैं। वृक्ष कवक को पोषण प्रदान करते हैं, बदले में उन्हें जल एवं पोषको के अवशोषण में सहायता मिलती है।
  • लाइकेन कहे जाने वाले कुछ जीवों में दो भागीदार होते हैं। इनमें से एक शैवाल होता है तथा दूसरा कवक । शैवाल में क्लोरोफिल उपस्थित होता है, जबकि कवक में क्लोरोफिल नहीं होता | कवक शैवाल को रहने का स्थान (आवास), जल एवं पोषक तत्त्व उपलब्ध कराता है तथा बदले में शैवाल प्रकाश संश्लेषण द्वारा संश्लेषित खाद्य कवक को देता है।
  • पादपों को प्रोरीन बनाने के लिए सामान्यतः नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता होती है। फसल कटाई के बाद मृदा में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है। यद्यपि वायु में नाइट्रोजन गैस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है, परंतु पादप इसका उपयोग उस प्रकार करने में असमर्थ होते हैं, जैसे वे कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करते हैं। पौधे नाइट्रोजन को विलेय रूप में ही अवशोषित कर सकते हैं। कुछ जीवाणु जो राइजोबियम कहलाते हैं |

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प्राणियों में पोषण

(Nutrition in Animals)

यहां पशुओं के पोषण के लिए आवश्यक पोषण तत्वों की एक सूची है, साथ ही प्रत्येक तत्व के उदाहरण:

पोषण तत्व पशुओं में कार्य स्रोत
प्रोटीन ऊतकों, एंजाइम्स, और हार्मोन के निर्माण के लिए मांस, मुर्गी, मछली, डेयरी उत्पाद, अंडे, दालें
कार्बोहाइड्रेट्स शरीर के लिए मुख्य ऊर्जा स्रोत अनाज, फल, सब्जियां, दालें
वसा (लिपिड्स) ऊर्जा भंडारण, स्थायिता, और अंगों के लिए कुशनिंग का कार्य तेल, मक्खन, नट्स, सीड्स, मसालेदार मछली
विटामिन्स अनेक कार्य, सहित अनुशंसा और प्रतिरक्षण का समर्थन फल, सब्जियां, डेयरी उत्पाद, मांस, पूर्ण अनाज
खनिज हड्डी स्वास्थ्य, तंतु क्रिया, और एंजाइम क्रिया के लिए आवश्यक डेयरी उत्पाद, पत्तियों वाली सब्जियां, नट्स, सीड्स, मांस
पानी विभिन्न भौतिक प्रक्रियाओं और हाइड्रेशन के लिए आवश्यक पीने का पानी, गीले भोजन, फल, सब्जियां

उदाहरण:

  • प्रोटीन: मांस, मुर्गी, मछली, डेयरी उत्पाद, अंडे, और दालों में पाया जाता है। इन्हें पाचन के दौरान एमीनो एसिड में विभाजित किया जाता है और इस्तेमाल होते हैं विभिन्न जैविक कार्यों के लिए।
  • कार्बोहाइड्रेट्स: अनाज, फल, सब्जियां, और दालों से प्राप्त होते हैं। ये ग्लूकोज में विभाजित होते हैं, जो शरीर के लिए प्रमुख ऊर्जा स्रोत है।
  • वसा (लिपिड्स): इसमें तेल, मक्खन, नट्स, सीड्स, और मसालेदार मछली शामिल हैं। वसा ऊर्जा का संग्रहण स्रोत प्रदान करते हैं और वस्त्रीय विटामिन्स को अवशोषित करने के लिए आवश्यक हैं।
  • विटामिन्स: फल, सब्जियां, डेयरी उत्पाद, मांस, और पूर्ण अनाज में मिलते हैं। इसमें सीजी के लिए नींबू, विटामिन डी के लिए मसालेदार मछली, और गाजर में विटामिन ए की मिसालें हैं।
  • खनिज: डेयरी उत्पाद, पत्तियों वाली सब्जियां, नट्स, सीड्स, और मांस में होते हैं। इसमें हड्डी के स्वास्थ्य के लिए कैल्शियम, रक्त क्रिया के लिए आयरन, और तंतु और मांस्तिक्ष क्रिया के लिए पोटैशियम की मिसालें शामिल हैं।
  • पानी: हाइड्रेशन और विभिन्न भौतिक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक है और इसे पीने के पानी, गीले भोजन, फल, और सब्जियां से प्राप्त किया जा सकता है।

पशुओं को विकास, विकास, और समग्र स्वास्थ्य का समर्थन करने के लिए इन आवश्यक पोषण तत्वों के साथ संतुलित आहार होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। विभिन्न पशु प्रजातियों के बीच विशेष पोषण आवश्यकताएं भिन्न हो सकती हैं।

  • प्राणियों के पोषण में पोषक तत्त्वों की आवश्यकता, आहार के अंतर्ग्रहण (भोजन ग्रहण करने) ही विधि और शरीर में इसके उपयोग ही विधि सन्निहित (सम्मिलित हैं।
  • कार्बोहाइड्रेट जैसे कुछ संघटक जटिल पदार्थ हैं। अनेक जंतु इन जटिल पदार्थों का उपयोग सीधे इसी रूप में नहीं कर सकते। अतः उन्हें सरल पदार्थों में बदलना आवश्यक है, जैसा निम्न आरेख द्वारा दिखाया गया है । जटिल खाद्य पदार्थों का सरल पदार्थों में परिवर्तित होना या टूटना विखंडन कहलाता है तथा इस प्रक्रम को पाचन कहते हैं।

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मानव में पाचन

(Human Digestion)

यहां पूरी तालिका है जो मानव पाचन की प्रमुख चरणों को दर्शाती है, साथ ही उनके साथ उदाहरण:

पाचन चरण स्थान प्रमुख प्रक्रियाएं उदाहरण
आत्मसात्कर्षण मुख भोजन का सेवन सैंडविच खाना
यांत्रिक पाचन मुख और पेट चबाना और चुराना सेब चबाना, पेट का चुराना
रासायनिक पाचन मुख (लार), पेट (जठरी रस), छोटी आंत (पैंट्रिक एंजाइम्स) मैक्रोमोलेक्यूल का विघटन एमिलेज से शर्करा का विघटन, पेप्सिन द्वारा प्रोटीन का पाचन, लिपेस से वसा का विघटन
अवशोषण छोटी आंत पोषण स्रोत में संदृश्यता शर्करा से ग्लूकोज का अवशोषण, प्रोटीन से अमीनो एसिड का अवशोषण
परिवहन रक्तसंचरण पोषण स्रोतों की कोशिकाओं में ले जाना रक्तसंचरण के माध्यम से विभिन्न शरीर की कोशिकाओं में पोषण स्रोतों को पहुँचाया जाता है
निराकरण बड़ी आंत अपचित कचरा का निर्माण और निराकरण बड़ी आंत में अपचित कचरा का निर्माण और शरीर से निराकरण

उदाहरण:

  • आत्मसात्कर्षण: सैंडविच खाने में ठोस भोजन को मुख में सेवन करना शामिल है।
  • यांत्रिक पाचन: सेब चबाना यांत्रिक रूप से भोजन को छोटे, सहज से परिचित हिस्सों में विभाजित करता है।
  • रासायनिक पाचन: लार में शर्करा का विघटन, पेप्सिन में प्रोटीन का पाचन, और छोटी आंत में लिपेस से वसा का विघटन जैसी रासायनिक प्रक्रियाएं होती हैं।
  • अवशोषण: छोटी आंत में शर्करा से ग्लूकोज का अवशोषण और प्रोटीन से अमीनो एसिड का अवशोषण।
  • परिवहन: रक्तसंचरण के माध्यम से न्यूट्रिएंट्स को शरीर के विभिन्न कोशिकाओं में पहुँचाया जाता है।
  • निराकरण: अपचित कचरा बड़ी आंत में बनता है और शरीर से बाहर निकाला जाता है।

यह पूरी तालिका मानव पाचन के प्रमुख चरणों की एक सारगर्भित चित्रण प्रदान करती है, जिसमें प्रत्येक चरण की स्थान, प्रमुख प्रक्रियाएं, और उदाहरण हैं।

भोजन एक सतत् नलीसे गुजरता है, जो मुख- गुहिका से प्रारम्भ होकर गुदा तक जाती है। इस नही को विभिन्न भागों में बाँट सकते हैं:

  1. मुख-गुहिका
  2. ग्रास- नती या प्रसिका
  3. आमाशय
  4. क्षुद्रांत्र (छोटी आँत)
  5. बृहदांत्र (बड़ी आँत) जो मलाशय से जुड़ी होती है तथा गुदा
  6. मलद्वार अथवा गुदा

ये सभी भाग मिलकर आहार नाल (पाचन नही) का निर्माण करते हैं।

आमाशय की आंतरिक भित्ति, क्षुद्रांत्र तथा आहार नाल से संबद्ध विभिन्न ग्रंथियाँ जैसे कि लाला-ग्रंथि, यकृत, अग्न्याशय पाचक रस स्रावित करती हैं। पाचक रस जटिल पदार्थों को उनके सरल रूप में बदल देते हैं। आहार नाल एवं संबद्ध ग्रंथियाँ मिलकर पाचन तंत्र का निर्माण करते हैं

मुख एवं मुख – गुहिका

  • आहार को शरीर के अंदर लेने की क्रिया अंतर्ग्रहण कहलाती है।
  • प्रत्येक दाँत मसूड़ों के बीच अलग-अलग गर्तिका (सॉकेट) में फँसा होता है
  • हमारे मुख में लाला-ग्रंथि होती है, जो लाला रस (लार)
  • लाला रस चावल के मंड को शर्करा में बदल देता
  • जीभ एक मांसल पेशीय अंग है, जो पीछे की ओर मुख-गुहिका के अधर तल से जुड़ी होती है
  • हम बोलने के लिए जीभ का उपयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त यह भोजन में लार को मिलाने का कार्य करती है तथा निगलने में भी सहायता करती है। जीभ द्वारा ही हमें स्वाद का पता चलता है। जीभ पर स्वाद कलिकाएँ होती
  • हमारे दांतों का प्रथम सेट शैशवकाल में निक है तथा लगभग 8 वर्ष की आयु तक ये सभी दाँत गिर जाते हैं। इन्हें दूध के दाँत कहते हैं। इन दाँतों के स्थान पर दूसरे दांत निकलते हैं जिन्हें स्थायी दाँत कहते हैं । सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के स्थाई दाँत पूरे जीवन भर यने रहते हैं तथापि वृद्धावस्था में थे प्रायः गिरने लगते हैं ।

भोजन नही (ग्रसिका)

  • ग्रसिका गले एवं वक्ष से होती हुई जाती है । ग्रसिका ही भित्ति के संकुचन से भोजन नीचे ही ओर सरकता जाता है। वास्तव में, संपूर्ण आहार नाल संकुचित होती रहती है तथा यह भोजन को नीचे की ओर धकेलती रहती है |
  • कभी-कभी हमारा आमाशय खाए हुए भोजन को स्वीकार नहीं करता, फलस्वरूप वमन द्वारा उसे बाहर निकाल दिया जाता है।
  • भोजन के कण श्वास नही में प्रवेश कर जाते हैं, तो हमें घुटन का अनुभव होता है तथा हिचकी आती है या खाँसी उठती है।

आमाशय

  • आमाशय मोटी भित्ति वाली एक थैलीनुमा संरचना है। यह चपटा एवं ‘J’ ही आकृति का हो है तथा आहार नाल का सबसे चौड़ा भाग है। यह एक ओर ग्रसिका (ग्रास नही) से खाद्य प्राप्त करता है तथा दूसरी ओर क्षुद्रांत्र में खुलता है।
  • आमाशय का आंतरिक अस्तर ( सतह) श्लेष्मल, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा पाचक रस सावित करता है। श्लेष्मल आमाशय के आंतरिक अस्तर को “सुरक्षा प्रदान करता है। अम्ल अनेक ऐसे जीवाणुओं को नष्ट करता है, जो भेजन के साथ वहाँ तक पहुंच जाते हैं। साथ ही यह माध्यम को अम्तीय बनाता है जिससे पाचक रसों को क्रिया करने में सहायता मिलती है । पाचक रस (जठर रस) प्रोटीन को सरल पदार्थों में विघटित कर देता है |

क्षुद्रांत्र

  • क्षुद्रांत्र लगभग 7.5 मीटर लम्बी अत्यधिक कुंडलित नही है । यह यकृत एवं अग्न्याशय से नाव प्राप्त करती है। इसके अतिरिक्त इसकी भित्ति से भी कुछ रस नावित होते हैं।
  • यकृत गहरे लाल-भूरे रंग की ग्रंथि है, जो उदर के ऊपरी भाग में दाहिनी (दक्षिण) ओर अवस्थित होती है। यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रोथ है। यह पित्त रस नावित करती है, जो एक थैली में संग्रहित होता रहता है, इसे पित्ताशय कहते हैं । पित्त रस वसा के पाचन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • कार्बोहाइड्रेट सरल शर्करा जैसे कि ग्लूकोस में परिवर्तित हो जाते हैं। ‘वसा’, वसा अम्ल एवं ग्लिसरॉल में तथा ‘प्रोटीन’, ऐमीनो अम्ल में परिवर्तित हो जाती है।

क्षुद्रांत्र में अवशोषण

  • पचा हुआ भोजन अवशोषित होकर क्षुद्रांत्र ही भित्ति में स्थित रुधिर वाहिकाओं में चला जाता है। इस प्रक्रम को अवशोषण कहते हैं। क्षद्रांत्र की आंतरिक भित्ति पर अंगुली के समान उभरी हुई संरचनाएँ होती हैं, जिन्हें दीर्घरोम अथवा रसांकुर कहते हैं।
  • दीर्घरोम पचे हुए भेजन के अवशोषण हेतु तल क्षेत्र बढ़ा देते हैं। प्रत्येक रीर्घरोम में सूक्ष्म रुधिर वाहिकाओं का जाल फैला रहता है। दीर्घरोम की सतह से पचे हुए भोजन का अवशोषण होता है

बृहदांत्र

  • बृहदांत्र, क्षुद्रांत्र की अपेक्षा चौड़ी एवं छोटी होती है। यह लगभग 1.5 मीटर लंबी होती है। इसका मुख्य कार्य जल एवं कुछ लवणों का अवशोषण करना है। बचा हुआ अपचित पदार्थ मलाशय में चला जाता है तथा अर्धठोस मल के रूप में रहता है। समय-समय पर गुदा द्वारा यह मल बाहर निकाल दिया जाता है। इसे निष्काशन कहते है |

घास खाने वाले जंतुओं में पाचन

  • गाय, भैंस तथा घास खाने वाले (शाकाहारी) अन्य जंतुओं को देखा है वे उस समय भी लगातार जुगाली करते रहते हैं, जब वे चारा न खा रहे हों। वास्तव में वे पहले घास को जल्दी- जल्दी निगलकर आमाशय के एक भाग में भंडारित कर लेते है | यह भाग रुमेन (प्रथम आमाशय) कहलाता है। रूमिनैन्ट में आमाशय चार भागों में बँटा होता है |
  • रूमेन में भोजन का आंशिक पाचन होता है, जिसे जुगाल (कड) कहते हैं । परंतु बाद में जंतु इसको छोटे पिंडकों के रूप में पुनः मुख में लाता है तथा जिसे वह चबाता रहता है। इस प्रक्रम को रोमन्थन (जुगाली करना) कहते हैं तथा ऐसे जंतु रूमिनन्ट अथवा रोमन्शी कहलाते हैं ।
  • घास में सेलुलोस की प्रचुरता होती है। बहुत से जंतु एवं मानव सेलुलोस का पाचन नहीं कर पाते है।
  • जानवरों जैसे – घोड़ा, खरगोश आदि में क्षुद्रांत्र एवं बृहदांत्र के बीच एक थैलीनुमा बड़ी संरचना होती है जिसे अंधनाल कहते हैं। भोजन के सेलुलोस का पाचन यहाँ पर कुछ जीवाणुओं द्वारा किया जाता है, जो मनुष्य के आहार नाल में अनुपस्थित होते हैं।

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परिसंचरण तंत्र

(Circulatory System)

यहां संपूर्ण तालिका है जो संचार प्रणाली के घटक और कार्यों को उदाहरण सहित दर्शाती है:

घटक कार्य उदाहरण
हृदय संचार प्रणाली के माध्यम से रक्त को पंप करना हृदय ऑक्सीजन से भरा रक्त को शरीर में पहुंचाता है और शरीर से डिऑक्सीजनेटेड रक्त प्राप्त करता है।
रक्त नालियाँ शरीर में रक्त पंपित करना धमनियाँ हृदय से ऑक्सीजनेटेड रक्त को दूर करती हैं, जबकि शीरायें डिऑक्सीजनेटेड रक्त को हृदय की ओर लौटाती हैं। कैपिलरीज आणुओं और रक्त के बीच पोषण और गैसों की आपूर्ति को सुनिश्चित करती हैं।
रक्त ऑक्सीजन, पोषण, हार्मोन्स, और कच्चे पदार्थों को पंप करना लाल रक्त कोशिकाओं में हेमोग्लोबिन ऑक्सीजन के साथ जुड़ता है, जिससे ट्रांसपोर्ट होता है। प्लाज्मा पोषण, हार्मोन्स, और कच्चे पदार्थों को पंप करता है।
कार्डियोवास्कुलर संचारण सिस्टेमिक और पल्मोनरी संचारण सिस्टेमिक संचारण ऑक्सीजनेटेड रक्त को ऊर्जावान ऊतकों में पहुंचाता है, जबकि पल्मोनरी संचारण रक्त को फिर से ऑक्सीजन देने के लिए फुफ्फुस में भेजता है।
हृदय के अंग आत्रिय और वेंट्रिकल्स आत्रिय हृदय में रक्त को प्राप्त करते हैं, जबकि वेंट्रिकल्स रक्त को बाहर पंप करते हैं। दाहिने आत्रिय डिऑक्सीजनेटेड रक्त प्राप्त करता है, बायाँ आत्रिय ऑक्सीजनेटेड रक्त प्राप्त करता है। दाहिने वेंट्रिकल रक्त को फुफ्फुस में पंप करता है, बायाँ वेंट्रिकल रक्त को शरीर में पंप करता है।
कार्डियक साइकिल हृदय की समस्ती सिस्टोल हृदय की चढ़ाई की अवधि है, जब रक्त बाहर पंप होता है। डायस्टोल हृदय की विराम की अवधि है, जिसमें हृदय को किसी भी रक्त से भरने की अनुमति होती है।
रक्तचाप धमनियों के दीवारों के साथ रक्त की बल सिस्टोलिक चाप हृदयबाह्य दौड़ के दौरान मानक रक्तचाप है, जबकि डायस्टोलिक चाप विराम के दौरान होता है। मिमीटर में हायड्राजन (मिमीटर) में मापा जाता है।
नाड़ी धमनियों की वृद्धि और संकुचन नाड़ी धमनियों के माध्यम से बृहदता बढ़ाती है, जिसे हृदयध्वनि और रक्त की धारा द्वारा अध्यायित किया जा सकता है।
लसीका संचारण द्रव शिकायत और सुरक्षा का संभाल लसीका नालियाँ लसीका जो कीमती द्रव और अत्यधिक द्रव को रक्तवाहिनी में पिस्त करने के लिए जिम्मेदार हैं। लसीका गुदा को शोधते हैं और रक्त में संक्रमणों से शरीर को सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।

उदाहरण:

  • हृदय: हृदय ऑक्सीजनेटेड रक्त को शरीर में सिस्टेमिक संचारण के माध्यम से पहुंचाता है और शरीर से डिऑक्सीजनेटेड रक्त प्राप्त करता है पल्मोनरी संचारण के माध्यम से।
  • रक्त नालियाँ: धमनियाँ, जैसे कि आरोटा, हृदय से ऑक्सीजनेटेड रक्त को दूर ले जाती हैं, जबकि वीन्स, जैसे कि वीना केवा, डिऑक्सीजनेटेड रक्त को हृदय की ओर लौटाती हैं।
  • रक्त: लाल रक्त कोशिकाएं हेमोग्लोबिन के साथ ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट करती हैं, जबकि प्लाज्मा पोषण, हार्मोन्स, और कच्चे पदार्थों को पंप करता है।
  • कार्डियोवास्कुलर संचारण: सिस्टेमिक संचारण ऊर्जावान ऊतकों में ऑक्सीजनेटेड रक्त पहुंचाता है, और पल्मोनरी संचारण फुफ्फुस में रक्त को ऑक्सीजन देने के लिए बाइआंत्रानिक रूप से होता है।
  • हृदय के अंग: बायाँ आत्रिय डिऑक्सीजनेटेड रक्त प्राप्त करता है, और बायाँ वेंट्रिकल रक्त को शरीर में पंप करता है।
  • कार्डियक साइकिल: सिस्टोल हृदय की चढ़ाई की अवधि है, जब रक्त बाहर पंप होता है, और डायस्टोल हृदय की विराम की अवधि है, जिसमें हृदय को किसी भी रक्त से भरने की अनुमति होती है।
  • रक्तचाप: सामान्य रक्तचाप करीब 120/80 मिमीटर हायड्राजन (मिमीटर) है, जिसमें 120 सिस्टोलिक और 80 डायस्टोलिक चाप है।
  • नाड़ी: रेडिअल नाड़ी को कलाई पर महसूस किया जाता है, जिससे हृदयध्वनि और रक्त की धारा की दर को दिखाया जा सकता है।
  • लसीका संचारण: लसीका नालियाँ, जैसे कि गले के, जो लसीका में और रक्तवाहिनी में ब्रीड और अधिशेष द्रव को लसीका से लौटाने में मदद करती हैं। लसीका नोड्स पैथोजन को फिल्टर और ट्रैप करते हैं। |

यह तालिका संचार प्रणाली, इसके घटकों, कार्यों और उदाहरणों की सारांश प्रदान करता है ताकि यह स्वस्थ रहें और शरीर के महत्वपूर्ण कार्यों को बनाए रखें।

रक्त

  • रक्त वह तरल पदार्थ या द्रव है, जो रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होता है । यह पाचित भोजन को क्षुद्रांत (छोटी आँत से शरीर के अन्य भागों तक ले जाता है। फेफड़ों से ऑक्सीजन को भी रक्त ही शरीर की कोशिकाओं तक ले जाता है। रक्त शरीर में से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने के लिए उनका परिवहन भी करता
  • रक्त एक तरल से बना है जिसे प्लैज्मा कहते हैं।
  • रक्त में एक प्रकार की कोशिकाएँ – लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC – Red blood cells) होती हैं, जिनमें एक लाल वर्णक होता है, जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन को अपने साथ संयुक्त करके शरीर के सभी अंगों में और अंततः सभी कोशिकाओं तक परिवहन करता है।
  • हीमोग्लोबिन की उपस्थिति के कारण ही रक्त का रंग लाल होता है।
  • रक्त में अन्य प्रकार की कोशिकाएँ भी होती हैं, जिन्हें श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC – white blood cells ) कहते हैं। कोशिकाएँ उन रोगाणुओं को नष्ट करती हैं, जो हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं ।
  • रक्त का थक्का बन जाना उसमें एक अन्य प्रकार की कोशिकाओं की उपस्थिति के कारण होता है, जिन्हें पट्टिकाणु (प्लेटलेट्स) कहते हैं ।

रक्त वाहिनियाँ

  • शरीर में दो प्रकार की रक्त वाहिनियां पाई जाती हैं- धमनी और शिरा (Arteries and Veins)
  • धमनियाँ हृदय से ऑक्सीजन समृद्ध रक्त को शरीर के सभी भागों में ले जाती हैं। चूँकि रक्त प्रवाह तेज़ी से और अधिक दाब पर होता है, धमनियों की भितियाँ (हीवार) मोटी और प्रत्यास्थ होती हैं ।
  • प्रति मिनट स्पंदों की संख्या स्पंदन दर कहलाती है। विश्राम ही अवस्था में किसी स्वस्थ वयस्क व्यक्ति की स्पंदन दर सामान्यतः 72 से 80 स्पंदन प्रति मिनट होती है।
  • वे रक्त वाहिनियाँ, जो कार्बन डाइऑक्साइड समृद्ध रक्त को शरीर के सभी भागों से वापस हृदय में ले जाती हैं, शिराएँ कहलाती हैं। शिराओं की भित्तियाँ अपेक्षाकृत पतती होती हैं । शिराओं में ऐसे वाल्व होते हैं, जो रक्त को केवल हृदय की ओर ही प्रवाहित होने देते हैं ।
  • धमनियाँ अन्य छोटी- छोटी वाहिनियों में विभाजित होती दिखाई देती हैं। ऊतकों में पहुँचकर वे पुनः अत्यधिक पतली नलिकाओं में विभाजित हो जाती हैं, जिन्हें केशिकाएँ कहते हैं। शिकाएँ पुनः मिलकर शिराओं को बनाती हैं, जो रक्त को हृदय में ले जाती हैं।
  • फुफ्फुस धमनी हृदय से रक्त को ले जाती है, इसलिए इसे शिरा नहीं बल्कि धमनी कहते हैं । यह कार्बन डाइऑक्साइड समृद्ध रक्त को फेफड़ों में ले जाती समृद्ध रक्त को फेफड़ों से हृदय में लाती है।

हृदय

  • हृदय वह अंग है, जो रक्त द्वारा पदार्थों के परिवहन के लिए पंप के रूप में कार्य करता है | और यह निरंतर औसतन 1 मिनट में 60 – 100 बार धड़कता रहता है।
  • हृदय चार कक्षों में बँटा होता है। ऊपरी दो कक्ष अलिन्द कहलाते हैं और निचले दो कक्ष निलय कहलाते हैं | कक्षों के बीच का विभाजन दीवार ऑक्सीजन समृद्ध रक्त और कार्बन डाइऑक्साइड से समृद्ध रक्त को परस्पर मिलने नहीं देती है।

हृदय स्पंद

  • हृदय के कक्ष की भित्तियाँ पेशियों की बनी होती हैं। ये पेशियाँ लयबद्ध रूप से संकुचन और विश्रांति करती हैं। यह लयबद्ध संकुचन और उसके बाद होने वाली लयबद्ध विश्रांति दोनों मिलकर हृदय स्पंद (हार्ट बीट ) कहलाता है ।
  • चिकित्सक आपके हृदय स्पंद को मापने के लिए स्टेथॉस्कोप नामक यंत्र का उपयोग करते हैं।

मानव उत्सर्जन तंत्र

  • कोई वयस्क व्यक्ति सामान्यतः 24 घंटे में 1 से 1.8 लीटर मूत्र करता है। मूत्र में 95% जल, 2.5% यूरिया और 2.5% अन्य अपशिष्ट उत्पाद होते हैं।
  • कभी-कभी किसी व्यक्ति के वृक्क काम करना बंद कर देते हैं। ऐसा किसी संक्रमण अथवा चोट के कारण हो सकता है। वृक्क के अक्रिय हो जाने की स्थिति में रक्त में अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसे व्यक्ति की अधिक दिनों तक जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है। तथापि, यदि कृत्रिम वृक्क द्वारा रक्त को नियमित रूप से छानकर उसमें से अपशिष्ट पदार्थों को हटा दिया जाए, तो उसके जीवन काल में वृद्धि संभव है। इस प्रकार रक्त के छनन की विधि को अपोहन (डायलिसिस/dialysis) कहते है |

जल और खनिजों का परिवहन

  • पादप मूलों (जड़ों) द्वारा जल और खनिजों को अवशोषित करते हैं। मूलों में मूलरोम होते हैं। वास्तव में, मूलरोम जल में घुले हुए खनिज पोषक पदार्थों और जल के अंतर्ग्रहण के लिए मूल के सतह क्षेत्रफल को बढ़ा देते हैं। मूलरोम मृदा कणों के बीच उपस्थित जल के संपर्क में रहते हैं।
  • पादपों में मृदा से जल और पोषक तत्त्वों के परिवहन के लिए पाइप जैसी वाहिकाएँ होती हैं। वाहिकाएँ विशेष कोशिकाओं की बनी होती हैं, जो संवहन ऊतक बनाती हैं। ऊतक कोशिकाओं का वह समूह होता है, जो किसी जीव में किसी कार्य विशेष को संपादित करता है । जल और पोषक तत्त्वों के परिवहन के लिए पादपों में जो संवहन ऊतक होता है, उसे जाइलम (दारू) कहते हैं।
  • जाइलम चैनलों (नलियों) का सतत् जाल बनाता है, जो मूलों को तने और शाखाओं के माध्यम से पत्तियों से जोड़ता है और इस प्रकार बना तंत्र पूरे पादप में जल का परिवहन करता है।
  • पत्तियाँ भोजन का संश्लेषण करती हैं। भोजन को पादप के सभी भागों में ले जाया जाता है। यह कार्य एक संवहन ऊतक द्वारा किया जाता है, जिसे फ्लोएम ( पोषवाह) कहते हैं ।

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शाक, झाड़ी एवं वृक्ष

(Herbs, Bushes and Trees)

हम अधिकांश पौधों को 3 संवर्गों में वर्गीकृत कर सकते हैं। ये वर्ग हैं : शाक, झाड़ी एवं वृक्ष

  • हरे एवं कोमल तने वाले पौधे शाक कहलाते हैं। ये सामान्यतः छोटे होते हैं और अक्सर इनमे कई शाखाएँ नहीं होती |
  • कुछ पौधों में शाखाएँ तने के आधार के समीप से निकलती है तना कटोर होता है परंतु अधिक मोटा नहीं होता इन्हें झाड़ी कहते हैं।
  • कुछ पौधे बहुत ऊँचे होते हैं तथा इनके तने सुदृढ़ एवं गहरे होते हैं। इनमें शाखाएँ भूमि से अधिक ऊँचाई पर तने के ऊपरी भाग से निकलती है इन्हे वृक्ष कहते हैं |
  • कमजोर तने वाले पैधे सीधे खड़े नहीं हो सकते और ये भूमि पर फैल जाते हैं। इन्हें विसपी लता कहते हैं। जब कि कुछ पौधे सहायता से ऊपर चढ़ जाते हैं। ऐसे पौधे आरोही कहलाते हैं। ये शाक, झाड़ी और पेड़ों से भिन्न

तना

जल तने में ऊपर की ओर चढ़ता है अर्थात् तना जल का संवहन करता है। लाल स्याही टी भाँति जल में विहीन खनिज, जल के साथ तने में ऊपर पहुँच जाते हैं।

पत्ती

  • पत्ती का वह भाग जिसके द्वारा वह तने से जुड़ी होती है, पर्णवंत कहलाता है। पत्ती के चपटे हरे भाग को फलक कहते है।
  • पत्ती की इन रेखित संरचनाओं को शिरा कहते हैं। पत्ती के मध्य में एक मोरी शिरा दिखाई देती है। इसे मध्य शिरा कहते हैं। पत्तियों पर शिराओं द्वारा बनाए गए डिजाइन को शिरा- विन्यास कहते हैं । यदि यह डिजाइन मध्य शिरा के दोनों ओर जाल जैसा है, तो यह शिरा- विन्यास, जालिका रूपी कहलाता है।
  • घास की पत्तियों में यह शिराएँ एक दूसरे के समांतर हैं। ऐसे शिरा – विन्यास को समांतर शिरा- विन्यास कहते हैं
  • पत्तियाँ प्रकाश और हरे रंग के एक पदार्थ की उपस्थिति में अपना भोजन बनाती हैं। इस प्रक्रिया में जल एवं कार्बन डाइआक्साइड का उपयोग करती हैं। इस प्रक्रम को प्रकाश- संश्लेषण कहते हैं। इस प्रक्रम में ऑक्सीजन निष्कासित होती है। पत्तियों द्वारा संश्लेषित भोजन अंततः पौधे के विभिन्न भागों में मंडल के रूप में संग्रहित हो जाता है |

जड़

  • मुख्य जड़ को मूसला जड़ कहते हैं तथा छोटी जड़ो को पार्शव जड़ कहते हैं। उन पौधों की जड़ों में कोई मुख्य जड़ नहीं होती है सभी जड़ें एक समान दिखाई देती है | इन्हे जड़का जड़ अथवा रेशेदार जड़ कहते हैं।
  • जड़ें मिट्टी से जल का अवशोषण करती है तथा तना, जल एवं खनिज को पत्ती एवं पौधे के अन्य भागों तक पहुँचाता है । पतियाँ भोजन संश्लेषित करती हैं। यह भोजन तने से होकर पौधे के विभिन्न भागों में संग्रहित हो जाता है। । इस प्रकार की कुछ जड़ों जैसे- गाजर, मूली, शकरकंद, शलजम एवं टेपियोका आदि को हम खाते हैं।

पुष्प

  • खिले हुए पुष्प का प्रमुख भाग यह पुष्प की पंखुड़ियाँ हैं। विभिन्न पुष्पों की पंखुड़ियाँ अलग- अलग रंगों की होती हैं।
  • पुष्प के केंद्र में स्थित भाग को स्वीकेसर कहते हैं ।
  • एक पुष्प के अंडाशय यह स्त्रीकेसर का सबसे निचला एवं फूला हुआ भाग है।
  • अंडाशय में छोरी-छोरी गेल संरचनाएँ दिखाई देती हैं इन्हें बीजांड कहते हैं।
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मानव शरीर एवं इसकी गतियाँ

(Human body and its movements)

बिल्कुल! यहां एक पूरा तालिका है जिसमें मानव शरीर के विभिन्न गतियों को विवरण के साथ और उदाहरणों के साथ प्रस्तुत किया गया है:

गति के प्रकार विवरण उदाहरण
कूदन (Flexion)
शरीर के भागों के बीच कोण को घटित करना कोहनी मोड़ना, घुटने को छाती की ओर लाना
विस्तार (Extension)
शरीर के भागों के बीच कोण बढ़ाना हाथ को सीधा करना, पैर को आगे की ओर किक करना
Abduction एक शरीर के भाग को मध्यरेखा से दूर ले जाना हाथों को साइडवेज ले जाना, उंगलियों को छोड़ना
Adduction एक शरीर के भाग को मध्यरेखा की ओर ले जाना बांहें ओर ले जाना, उंगलियों को मिला लेना
परिस्थिति (Rotation)
एक शरीर के भाग को अपने ध्रुवाधिकार में घुमाना सिर को दाईं बायां घुमाना, टॉर्सो को घुमाना
Circumduction एक संयुक्त में गोलाकार गति हाथ के साथ गोलाकार चलना, कूल्हों के साथ गोलाकार गति बनाना
उच्चीकरण (Elevation)
शरीर के एक भाग को ऊपर उठाना कंधे को कानों की ओर उठाना
Depression शरीर के एक भाग को नीचे ले जाना कंधे को कानों से दूर ले जाना
Dorsiflexion पैर को शिन की ओर मोड़ना पैर की ऊंगलियों को शिन की ओर ले जाना
Plantarflexion पैर को शिन से दूर करना टिपटियों पर खड़ा होना, गैस पेडल दबाना
Pronation किसी भी अंग को अंदर की ओर घुमाना पैर को अंदर करना, हाथ की कई ओर करना
Supination किसी भी अंग को बाहर की ओर घुमाना हाथ की कई ओर करना, पैर को बाहर की ओर करना

उदाहरण:

  • कूदन: हाथ को कंधे की ओर ले जाने के लिए कोहनी मोड़ना।
  • विस्तार: घुटने को मोड़कर फिर से सीधा करना।
  • अबडक्शन: शरीर के मध्यरेखा से दूर पैर को उठाना।
  • एडक्शन: जांघें फैलाने के बाद उन्हें एक साथ लाना।
  • परिस्थिति: सिर को दाईं बायां घुमाना।
  • सर्कमडक्शन: हाथ के साथ गोलाकार चलना, हिप्स के साथ गोलाकार गति बनाना।
  • उच्चीकरण: कंधे को कानों की ओर उठाना।
  • नीचे आना: कंधे को कानों से दूर ले जाना।
  • डॉर्सीफ्लेक्शन: पैर की ऊंगलियों को शिन की ओर मोड़ना।
  • प्लांटरफ्लेक्शन: टिपटियों पर खड़ा होना, गैस पेडल दबाना।
  • प्रोनेशन: पैर को अंदर करना, हाथ की कई ओर करना।
  • सुपिनेशन: हाथ की कई ओर करना, पैर को बाहर की ओर करना।

यह तालिका मानव शरीर की विभिन्न गतियों की एक अच्छी सारांश प्रदान करती है, प्रत्येक गति का विवरण और उदाहरणों के साथ।


Joint

(संधि)

जहाँ पर दो हिस्से एक-दूसरे से जुड़े हों – उदाहरण के लिए कोहनी, कंधा अथवा गर्दन | इन स्थानों को संधि कहते हैं।

कंदुक – खल्लिका संधि

  • कल्पना कीजिए कि कागज का बेलन आपका हाथ है तथा गेंद इसका एक सिरा है। कटोरी कंधे के उस भाग के समान है जिससे आपका हाथ जुड़ा है। एक अस्थि का गेंद वाला गोल हिस्सा दूसरी अस्थि की कटोरी रूपी गुहिका में धंसा हुआ है इस प्रकार की संधि सभी दिशाओं में गति प्रदान करती है।

धुराग्र संधि

  • गर्दन तथा सिर को जोड़ने वाली संधि धुराग्र संधि है। इसके द्वारा सिर को आगे-पीछे या दाए – बाएं घुमा सकते हैं।
  • धुराग्र संधि में बेलनाकार अस्थि एक छल्ले में घूमती है।

हिंज संधि

  • हिंज संधि घर के किसी दरवाजे को बार-बार खोलिए और बंद कीजिए। इसके कब्जों को ध्यानपूर्वक देखिए । यह दरवाजे को आगे और पीछे की ओर
  • खुलने देता है। इससे ये पता चलता है की हिंज एक दिशा में गति होने देता है। कोहनी में हिंज संधि होती है।

अचल संधि

  • अस्थियाँ इन संधियों पर हिल नहीं सकतीं। ऐसी संधियों को अचल संधि कहते हैं। जब आप अपना मुँह खोलते हैं, तो आप अपने निचले जबड़े को सिर से दूर ले जाते हैं। ऊपरी जबड़े एवं कपाल के मध्य अचल संधि है।
  • एक्स-रे चित्र से हमें शरीर की अस्थियों की आकृति का पता चलता है।
  • अपनी अंगुलियों को मेड़िए । यह अनेक छोटी-छोटी अस्थियों से बनी है जिन्हें कारपेल कहते हैं।
  • पसलियाँ विशेष रूप से मुड़ी हुई हैं। वे वक्ष की अस्थि एवं
    मेरुदंड से जुड़कर एक बक्से ही रचना करती हैं। इस शंकुरूपी बक्से को पसली – पिंजर कहते हैं। वक्ष के दोनों तरफ 12 पसलियाँ होती हैं। हमारे शरीर के कुछ महत्वपूर्ण अंग इसमें सुरक्षित रहते हैं ।
  • मेरुदंड यह अनेक छोटी – छोटी अस्थियों से ‘बना है, जिसे कशेरुका कहते हैं ।मेरुदंड 33 कशेरुकाओं का बना होता है। पसती-पिंजर भी वक्ष क्षेत्र की इन अस्थियों से जुड़ा है।
  • खोपड़ी अनेक अस्थियों के एक-दूसरे के जुड़ने से बनी है यह हमारे शरीर के अति महत्वपूर्ण अंग, मस्तिष्क को परिबद्ध करके उसकी सुरक्षा करती है |
  • कंकाल के कुछ अतिरिक्त अंग भी हैं। जो हड्डिय जितने कटोर नहीं होते हैं और जिन्हें मेड़ा जा सकता है, उन्हें उपास्थि कहते हैं।
  • कान के ऊपरी भाग में उपास्थि होती है
  • अस्थि को गति प्रदान करने में दो पेशियाँ संयुक्त रूप से कार्य करती है
  • अपनी ऊपनी भुजा भें कुछ परिवर्तन अनुभव करते हैं दूसरे हाथ से इसे छूकर देखिए। क्या आपको कोई उभरा हुआ भाग दिखाई देता है इसे पेशी कहते हैं। संकुचित (लंबाई में कमी) – होने के कारण पेशियों उभर आती हैं।
  • संकुचन ही अवस्था में पेशी छोरी, कटोर एवं मोटी हो जाती है। यह अस्थि को खींचती है।

जंतुओं की चाल

(Movements of Animals)

केंचुआ

  • केंचुए का शरीर एक सिरे को दूसरे से सटाकर रखे गए अनेक छल्लों से बना प्रतीत होता है। के शरीर में
    अस्थियाँ नहीं होती परंतु इसमें पेशियाँ होती हैं जो इसके शरीर के घटने और बढ़ने में सहायता करती हैं।
  • इसके शरीर में चिकने पदार्थ होते हैं जो इसे चलने में सहायता करते हैं।
  • इसके शरीर में छोटे-छोटे अनेक शूक (बाल जैसी आकृति) होते हैं। ये शूक पेशियों से जुड़े होते मिट्टी में उसकी पकड़ को मजबूत बनाते हैं।
  • केंचुआ वास्तव में अपने रास्ते में आने वाली मिट्टी को खाता है। उसका शरीर अनपचे पदार्थ को बाहर निकाल देता है। केंचुए द्वारा किया गया यह कार्य मिटटी को उपजाऊ बना देता है जिससे पौधों को फायदा होता है |

घोंगा (Snail)

  • इसकी पीठ पर गोल संरचना होती है इसे कवच कहते हैं और यह घौंधे का बाह्य-कंकाल है। परंतु यह अस्थियों का बना नहीं होता। यह कवच एकल एकक होता है और यह घोंघे को चलने में कोई सहायता नहीं करता। यह घोंघे के साथ खिंचता जाता है।

तिलचट्टा

  • तिलचट्टा जमीन पर चलता है, दीवार पर चढ़ता है और वायु में उड़ता भी है। इनमें तीन जोड़ी पैर होते हैं जो चलने में सहायता करते हैं। इसका शरीर कटोर बाह्य-कंकाल द्वारा ढका होता है। यह बाह्य-कंकाल विभिन्न एककोंडी परस्पर संधियों द्वारा बनता है जिसके कारण गति संभव हो पाती है।
  • वक्ष से दो जोड़े पंख भी जुड़े होते हैं। अगले पैर संकरे और पिछले पैर चौड़े एवं बहुत पतले होते हैं। तिलचट्टे में विशिष्ट पेशियाँ होती हैं। पैर ही पेशियाँ उन्हें चलने में सहायता करती हैं। वक्ष ही पेशियाँ तिलचट्टे के उड़ने के समय उसके परों को गति देता है |

पक्षी

  • बत्तख तथा हंस जैसे कुछ पक्षी जल में तैरते भी हैं और उड़ते भी है। पक्षी इसीलिए उड़ पाते हैं क्योंकि उनका शरीर उड़ने के लिए अनुकूलित होता है।
  • उनी अस्थियों में वायु प्रकोष्ठ होते हैं जिनके कारण उनकी अस्थियाँ हल्की परंतु मजबूत होती हैं। पश्च पाद (पैरों) की अस्थियाँ चलने एवं बैठने के लिए अनुकूलित होती हैं । अग्रपाद की अस्थियाँ रूपांतरित होकर पक्षी के पंख बनाती हैं। कंधे की अस्थियाँ मजबूत होती हैं। वक्ष की अस्थियाँ उड़ने वाली पेशियों को जकड़े रखने के लिए विशेष रूप से रूपांतरित होती हैं तथा पंखों को ऊपर-नीचे करने में सहायक होती है |

मछली

  • नाव की आकृति की सीमा तक मछली जैसी है मछली का सिर एवं पूँछ उसके मध्य भाग अपेक्षा पतला एवं नुकीला होता है । शरीर ही ऐसी आकृति धारा रेखीय कहलाती है।
  • मछली का कंकाल दृढ़ पेशियों से ढका रहता है। मछती के शरीर पर और भी पंख होते हैं जो तैरते समय जल में संतुलन बनाए रखने एवं दिशा निर्धारण में सहायता करते हैं।
  • गोताखोर अपने पैरों में इन पखों की तरह के विशेष अरित्र (flipper) पहनते हैं जो उन्हें जल तैरने में सहायता करते हैं

सर्प

  • सर्प का भेरुदंड लंबा होता है। शरीर की पेशियाँ क्षीण एवं असंख्य होती हैं । वे परस्पर जुड़ी होती हैं चाहे वे दूर ही क्यों न हों। पेशियाँ भेरुदंड, पसलियों एवं त्वचा को भी एक-दूसरे से जोड़ती हैं।
  • सर्प का शरीर अनेक वलय में मुड़ा होता है। इसी कार सर्प का प्रत्येक वलय उसे आगे ही ओर धकेलता है। इसका शरीर अनेक वलय बनाता है और प्रत्येक वलय आगे को धक्का देता है, इस कारण सर्प बहुत तेज गति से आगे की ओर चलता है परंतु सरल रेखा में नहीं चलता।

आवास एवं अनुकूलन

(Habitat/Accommodation and Adaptation)

  • समुद्र में जंतु तथा पौधे लवणीय जल (खारे पानी) में रहते हैं तथा श्वसन के लिए जल में विलेय वायु ऑक्सीजन का उपयोग करते है |
  • ऊँट की शारीरिक संरचना उसे मरुस्थलीय परिस्थितियों में रहने योग्य बनाती है। ऊँट के पैर लंबे होते हैं जिससे उसका शरीर रेत की गरमी से दूर रहता है। उनमें मूत्रोत्सर्जन की मात्रा बहुत कम होती है तथा मल शुष्क होता है। उन्हें पसीना भी नहीं आता क्योंकि शरीर से जल का हास बहुत कम होता है। इसलिए जल के बिना भी वे अनेक दिनों तक रह सकते हैं।
  • मछलियों का शरीर चिकने शल्कों से ढका होता है। ये शल्क मछली को सुरक्षा तो प्रदान करते ही हैं साथ ही उन्हें जल में सुगम गति करने में भी सहायक हैं।
  • मछली के गिल (क्लोम) होते हैं जो उसे जल में श्वास लेने में सहायता करते हैं।
  • जिन विशिष्ट संरचनाओं अथवा स्वभाव की उपस्थिति किसी किसी पौधे अथवा जंतु को उसके परिवेश में रहने के योग्य बनाती है, अनुकूलन कहते हैं।
  • किसी सजीव का वह स्थान जिसमें वह रहता है, उसका आवास कहलाता है। अपने भोजन, वायु, शरण स्थल एवं अन्य आवश्यकताओं के लिए जीव अपने आवास पर निर्भर रहता है।
  • स्थल (जमीन) पर पाए जाने वाले पौधों एवं जंतुओं के आवास को स्थलीय आवास कहते हैं। वन, घास के मैदान, मरुस्थल, तरीय एवं पर्वतीय क्षेत्र स्थतीय आवास के कुछ उदाहरण हैं। जलाशय, दलदल, झील, नदियाँ एवं समुद्र, जहाँ पौधे एवं जंतु जल में रहते हैं, जलीय आवास हैं।
  • किसी आवास में पाए जाने वाले सभी जीव जैसे कि पौधे एवं जंतु उसके जैव घटक हैं। चट्टान, मिट्टी, वायु एवं जल जैसी अनेक निर्जीव वस्तुए आवास के अजैव घटक हैं। सूर्य का
    प्रकाश एवं ऊष्मा भी परिवेश के अजैव घटक है |
  • सजीव बहुत ठंडे और बहुत ऊष्ण परिवेश में भी पाए जाते हैं।
  • वे जीव ही जीवित रहते हैं जो अपने आपको बदलते परिवेश के अनुसार अनुकूलित कर लेते है |
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कुछ स्थलीय आवास

(Some Terrestrial Habitats)

मरुस्थल

  • मरुस्थल में रहने वाले चूहे एवं साँप के, ऊंट की भाति लम्बे पैर नहीं होते | दिन की तेज गरमी से बचने के लिए वे भूमि के अंदर गहरे बिलों में रहते हैं। रात्रि के समय जब तापमान में कमी आती है, तो थे जंतु बाहर निकलते हैं।
  • मरुस्थतीय पौधे वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की बहुत कम मात्रा निष्कासित करते हैं।
  • मरुस्थलीय पौधों में पत्तियाँ या तो अनुपस्थित होती हैं। अथवा बहुत छोरी होती हैं। कुछ पौधों में पत्तियाँ काँटों (शूल) का रूप ले लेती हैं।
  • इन पौधों में प्रकाश संश्लेषण सामान्यतः तने में होता है । तना एक मोरी मोमी परत से ढका होता है, जिससे पौधों को जल संरक्षण में सहायता मिलती है। अधिकतर मरुस्थलीय पौधों ही जड़ें जल अवशोषण के लिए मिट्टी में बहुत गहराई तक चली जाती हैं।

पर्वतीय क्षेत्र

  • पर्वतीय क्षेत्र में पाए जाने वाले जंतु भी वहाँ ही परिस्थितियों के प्रति अनुकूलित होते हैं
  • शरीर को गरम रखने के लिए याक का शरीर लंबे बालों से ढका होता है। पहाड़ी तेंदुए के शरीर पर फर होते हैं। यह बर्फ पर चलते समय उसके पैरों को ठंड से बचाता है। पहाड़ी बकरी के मजबूत खुर उसे ढालदार चट्टानों पर दौड़ने के लिए अनुकूलित बनाते हैं ।

कुछ जलीय आवास

(Some Aquatic Habitats)

समुद्री

  • बहुत से समुद्री जंतुओं का शरीर भी धारा-रेखीय होता है जिससे वह जल में सुगमता से चल सकते हैं। स्क्विड एवं ऑक्टोपस जैसे कुछ समुद्री जंतुओं का शरीर आमतौर पर धारा-रेखीय नहीं होता।
  • डॉलफिन एवं हवेल जैसे कुछ जंतुओं में 1 नहीं होते। ये सिर पर स्थित नासाद्वार अथवा वात-छिद्रों द्वारा श्वास लेते हैं। ये जल लंबे समय तक बिना श्वास लिए रह सकते हैं ।

मृदा

  • मृदा अनेक परतों की बनी होती है । मृदा में उपस्थित सड़े- गले जैव पदार्थ ह्यूमस कहलाते हैं। पवन, जल और
    जलवायु ही क्रिया से शैलों (चट्टानों) के टूटने पर मृदा का निर्माण होता है । यह प्रक्रम अपक्षय कहलाता है। मृदा परिच्छेदिका
  • मृदा की विभिन्न परतों से गुजरती हुई ऊर्ध्वाकाट मृदा परिच्छेदिका कहलाती है। प्रत्येक परत स्पर्श (गठन), रंग, गहराई और रासायनिक संघटन में भिन्न होती है। ये परतें संस्तर स्थितियाँ कहलाती हैं
    मृदा परिच्छेदिका को कुँए की खुदाई करते समय अथवा किसी इमारत की नींव खोदते समय भी देखा जा सकता है। इसे पहाड़ों पर, सड़कों के किनारे अथवा नदियों के खड़े किनारों पर भी देखा जा सकता है।
  • सबसे ऊपर वाली संस्तर स्थिति सामान्यतः गहरे रंग की होती है, क्योंकि यह हयूमस और खनिजों से समृद्ध होती है। हयूमस, मृदा को उर्वर बनाता है और पादपों को पोषण प्रदान करता है। यह परत सामान्यतः मृदु, सरंध्र और अधिक जल को धारण करने वाली होती है। इसे शीर्षमृदा अथवा A – संस्तर स्थिति कहते हैं |
  • छोटे पादपों की जड़ें पूरी तरह से शीर्षमृदा में ही रहती हैं। शीर्षमृदा से नीचे ही परत में ह्यूमस कम होती है, लेकिन खनिज अधिक होते हैं। यह परत सामान्यतः अधिक कटोर और अधिक संहत (घनी) होती है और B – संस्तर स्थिति या मध्यपरत कहलाती है ।
  • तीसरी परत C-संस्तर स्थिति कहलाती है, जो दरारों और विदरोंयुक्त शैलों के छोटे ढेलों की बनी होती है। इस परत के नीचे आधार शैल होता है, जो कटोर होता है और इसे फावड़े से खोदना कठिन होता है।

मृदा के प्रकार

  • शैल कणों और ह्यूमस का मिश्रण, मुदा कहलाता है। * यदि मृदा में बड़े कणों का अनुपात अधिक होता है, तो वह बलुई मृदा कहलाती है। यदि बारीक (सूक्ष्म) कणों का अनुपात अपेक्षाकृत अधिक होता है, तो यह मृण्मय मृदा कहलाती है। यदि बड़े और छोटे कणों की मात्रा लगभग समान होती हैं, तो यह दुमटी मृदा कहलाती है।
  • बालू के कण अपेक्षाकृत बड़े होते हैं। ये आसानी से एक-दूसरे से जुड़ नहीं पाते, अतः इनके बीच में काफ़ी रिक्त स्थान होते हैं। ये स्थान वायु से भरे रहते हैं ।
  • बलुई मृदा हल्दी, सुवातित और शुष्क होती है । मृत्तिका (चिकनी मिट्टी) के कण सूक्ष्म (बहुत छोटे) होने के कारण परस्पर जुड़े रहते हैं और उनके बीच रिक्त स्थान बहुत कम
    है।
  • चिकनी मिट्टी में वायु कम होती है, लेकिन यह भारी होती है, क्योंकि इसमें बलुई मृदा की अपेक्षा अधिक जल रहता है।
  • पादपों को उगाने के लिए सबसे अच्छी शीर्षमृदा दुमट है। दुमटी मृदा, बालू, चिकनी मिट्टी और गाद नामक अन्य प्रकार के मृदा कणो का मिश्रण होती है |

मृदा और फसलें

  • पवन, वर्षा, ताप, प्रकाश और आर्द्रता द्वारा मृदा प्रभावित होती है। ये कुछ प्रमुख जलवायवी (जलवायु सम्बन्धी) करक है, जो मृदा परिच्छेदिका को प्रभावित करते हैं और मृदा संरचना में परिवर्तन लाते है |
  • मृण्मय. ‘और दुमटी मृदा दोनों ही गेहूँ और चने जैसी फ़सलों की खेती के लिए उपयुक्त होती हैं। ऐसी मृदा ही जल धारण क्षमता अच्छी होती है। धान के लिए मृत्तिका एवं जैव पदार्थ से समृद्ध तथा अच्छी जल धारण क्षमता वाली मृदा आदर्श होती हैं। मसूर और अन्य दालों के लिए दुमटी मृदा की आवश्यकता होती है, जिनमें से जल की निकासी आसानी से हो जाती है।
  • गेहूँ जैसी फसलें महीन मृण्मय मृदा में उगाई जाती हैं, क्योंकि वह ह्यूमस से समृद्ध और अत्यधिक उर्वर होती है।

जीवों में श्वसन

  • कोशिका में भोजन के विखंडन के प्रक्रम में ऊर्जा मुक्त होती है। इसे कोशिकीय श्वसन कहते हैं। सभी जीवों की कोशिकाओं में कोशिकीय श्वसन होता है।
  • कोशिका के अंदर, भोजन (ग्लूकोस) ऑक्सीजन का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड और
    जल में विखंडित हो जाता है। जब ग्लूकोस का विखंडन ऑक्सीजन के उपयोग द्वारा होता है, तो यह वायवीय श्वसन कहलाता है। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में भी भोजन विखंडित हो सकता है। यह प्रक्रम अवायवीय श्वसन कहलाता है। भेजन के विखंडन से ऊर्जा निर्मुक्त होती है।
  • यीस्ट जैसे अनेक जीव, वायु की अनुपस्थिति में जीवित रह सकते हैं। ऐसे जीव अवायवीय श्वसन के द्वारा ऊर्जा प्राप्त करते हैं। इन्हें अवायवीय जीव कहते हैं ।
  • यीस्ट एक-कोशिक जीव है। रीस्ट अवायवीय रूप से श्वसन करते हैं और इस प्रक्रिया के समय ऐल्कोहॉल निर्मित करते हैं। अत: इनका उपयोग शराब (वाइन) और बियर बनाने के लिए किया जाता है।
  • हमारी पेशी-कोशिकाएँ भी अवायवीय रूप से श्वसन कर सकती हैं। लेकिन ये थोड़ी समय के लिए कर सकती है | वास्तव में यह प्रक्रम उस समय होता है, जब ऑक्सीजन की अस्थायी रूप से कमी हो जाती है। ऐसी स्थितियों में पेशी कोशिकाएँ अवायवीय श्वसन द्वारा ऊर्जा की अतिरिक्त माँग को पूरा करती हैं।
  • जब पेशियाँ अवायवीय रूप से श्वसन करती हैं । इस प्रक्रम में ग्लूकोस के आंशिक विखंडन से लैक्टिक अम्ल और कार्बन डाइऑक्साइड बनते हैं। लैक्टिक अम्ल का संचयन पेशियों में ऐंठन उत्पन्न करता है।

श्वसन

  • श्वसन या साँस लेने का अर्थ है ऑक्सीजन से समृद्ध वायु को अंदर खींचना या ग्रहण करना और कार्बन डाइऑक्साइड से समृद्ध वायु को बाहर निकालना | ऑक्सीजन से समृद्ध वायु को शरीर के अंदर लेना अंतःश्वसन और कार्बन डाइऑक्साइड से समृद्ध वायु को बाहर निकालना उच्छ्वसन कहलाता है।
  • कोई व्यक्ति एक मिनट में जितनी बार श्वसन करता है, वह उसकी श्वसन दर कहलाती है।
  • कोई वयस्क व्यक्ति विश्राम की अवस्था में एक मिनट में औसतन 15-18 बार साँस अंदर लेता और बाहर निकालता है। अधिक व्यायाम करने में श्वसन दर 25 बार प्रति मिनट तक बढ़ सकती है। जब हम व्यायाम | करते हैं, तो हम न केवल तेजी से साँस लेते हैं, बल्कि हम गहरी साँस भी लेते हैं और इस प्रकार अधिक ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं ।

श्वसित और उच्छ्वसित वायु में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का प्रतिशत:

  1. श्वसित वायु – 21% ऑक्सीजन, 0.04% कार्बन डाइऑक्साइड
  2. उच्छ्वसित वायु – 16.4% ऑक्सीजन, 4.4% कार्बन डाइऑक्साइड

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पादप में जनन

(Reproduction in Plants)

सभी जीव अपने समान जीवों का जनन करते हैं। माता-पिता से संतति का जन्म जनन कहलाता है।

जनन की विधियाँ

  • अधिकांश पादपों में मूल, तना और पत्तियाँ होती हैं। ये पादप के कायिक अंग कहलाते हैं।
  • पुष्प पादप में जनन का कार्य करते हैं। वास्तव में, पुष्प पादप के जनन अंग होते हैं। किसी पुष्प में केवल नर जनन अंग अथवा मादा जनन अंग या फिर दोनों ही जनन अंग हो सकते हैं।

अलैंगिक जनन

  • अलैंगिक जनन में नए पादप बीजों अथवा बीजाणुओं के उपयोग के बिना ही उगाए जाते हैं।
  • वो अलैंगिक जनन, जिसमें पादप के मूल, तने, पत्ती, अथवा कही (मुकुल) जैसे किसी कायिक अंग द्वारा नया पादप प्राप्त किया जाता है। चूँकि जनन पादप के कायिक भागों से होता है, इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं ।
  • कुछ पादपों की जड़ें (मूल) भी नए पादपों को जन्म दे सकती हैं। उदाहरण के लिए, शकरकंद और डालिया (डहेलिया) ।
  • कैक्टस जैसे पादप के वे भाग, जो मुख्य पादप से अलग (विलग्न) हो जाते हैं, नए पादप को जन्म देते हैं। प्रत्येक विलग्न भाग नए पादप के रूप में वृद्धि कर सकता है।
  • लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होने वाले पादप में माता-पिता (जनक) दोनों के गुण होते हैं। लैंगिक जनन के परिणामस्वरूप पादप बीज उत्पन्न

मुकुलन

  • यीस्ट जिसे केवल सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देख जा सकता है | इनके लिए पर्याप्त पोषण उपलब्ध हो, तो यीस्ट कुछ ही घंटो में वृद्धि करके गुणन (अर्थात् जनन) करने लगते है | याद रखिए कि यीस्ट एक एकल कोशिका (एककोशिक) जीव है।
  • यीस्ट कोशिका से बाहर निकलने वाला छोटे बल्ब जैसा प्रवर्ध मुकुल या कही कहलाता है। मुकुल क्रमशः वृद्धि करता है और जनक कोशिका से विलग होकर नई यीस्ट कोशिका बनाता है। नई यीस्ट कोशिका विकसित होकर परिपक्व हो जाती है और फिर नई यीस्ट कोशिकाएँ बनाती है। कभी-कभी नवीन मुकुल से नए मुकुल विकसित हो जाते हैं जिससे एक मुकुल श्रृंखला बन जाती है। यदि यह प्रक्रम चलता रहे, तो कुछ ही समय में बहुत अधिक संख्या में यीस्ट कोशिकाएँ बन जाती हैं।

खंडन

  • आपने तालाबों अथवा ठहरे हुए पानी के अन्य जलाशयों में हरे रंग के अवपंकी गुच्छे (फिसलनदार) तैरते हुए देखे होंगे। ये शैवाल हैं। जब जल और पोषक तत्त्व उपलब्ध होते हैं, तो शैवाल वृद्धि करते हैं और तेजी से खंडन द्वारा गुणन करते हैं। शैवाल दो या अधिक खंडों में विखंडित हो जाते हैं। ये खंड अथवा टुकड़े नए जीवों में वृद्धि कर जाते हैं। यह प्रक्रम निरंतर चलता रहता है और कुछ ही समय में शैवाल एक बड़े क्षेत्र में फैल जाते हैं।

बीजाणु निर्माण

  • डबलरोटी में, वायु में उपस्थित बीजाणुओं से कवक उग जाते हैं।
  • डबलरोटरी पर रुई के जाल में बीजाणुओं को देखिए बीजाणु निर्मुक्त होते हैं, तो ये वायु में तैरते रहते हैं। चूँकि ये बहुत हल्के होते हैं, इसलिए लंबी दूरी तक जा सकते हैं।
  • बीजाणु अलैंगिक जनन ही करते हैं। प्रत्येक बीजाणु उच्च ताप और निम्न आर्द्रता जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों को झेलने के लिए एक कटोर सुरक्षात्मक आवरण से ढका रहता है, इसलिए थे लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं । अनुकूल परिस्थितियों में बीजाणु अंकुरित हो जाते हैं और नए जीव में विकसित हो जाते हैं।

लैंगिक जनन

  • पुष्प पादप के जनन अंग होते हैं। पंकेसर नर जनन अंग और स्त्रीकेसर मादा जनन अंग हैं।
  • ऐसे पुष्प, जिनमें या तो केवल पुंकेसर अथवा केवल स्त्रीकेसर उपस्थित होते हैं, एकलिंगी पुष्प कहलाते हैं। जिन पुष्पों में पुंकेसर और स्त्रीकेसर दोनों ही होते हैं, वे द्विलिंगी पुष्प कहलाते हैं। मक्का, पपीता और ककड़ी या खीरे के पौधे में एकलिंगी पुष्प होते हैं, जबकि सरसों, गुलाब और पिटूनिया के पौधों में द्विलिंगी पुष्प होते हैं।
  • परागकोश में परागकण होते हैं, जो नर युग्मकों को बनाते हैं।
  • अंडाशय में एक या अधिक बीजांड होते हैं। मादा युग्मक अथवा अंड का निर्माण बीजांड में होता है। लैंगिक जनन में नर और मादा युग्मकों के युग्मन से युग्मनज़ बनता है।

परागण

  • परागकण हल्के होते हैं, वह वायु अथवा जल द्वारा बहाकर ले जाए जा सकते हैं।
  • परागकणों का परागकोश से पुष्प के वर्तिकान पर स्थानांतरण परागण कहलाता है। यदि परागकण उसी पुष्प के वर्तिकान पर गिरते हैं, तो इसे स्व- परागण कहते हैं ।
  • पुष्प के परागकण उसी पादप के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकान पर गिरते हैं, तो इसे पर- परागण कहते हैं।

निषेचन

  • नर तथा मादा युग्मकों के युग्मन ( संयोग) द्वारा बनी कोशिका युग्मनज कहलाती है। युग्मनज बनाने के लिए
    और मादा युग्मों के युग्मन का प्रक्रम निषेचन कहलाता है। युग्मनज भ्रूण में विकसित होता है।
  • जनन प्रक्रम का पहला चरण शुक्राणु और अंडाणु का संलयन है। जब शुक्राणु, अंडाणु के संपर्क में आते हैं तो
  • इनमे से एक शुक्राणु अंडाणु के साथ संलयित हो जाता है। शुक्राणु और अंडाणु का यह संलयन निषेचन कहलाता है। निषेचन के समय शुक्राणु और अंडाणु संलयित होकर एक हो चरणामस्वरूप युग्मनज का निर्माण होता है।
  • वह निषेचन जो मादा के शरीर के अंदर होता है आंतरिक निषेचन कहलाता है। मनुष्य, गाय, कुत्ते तथा मुर्गी इत्यादि अनेक जंतुओं में आंतरिक निषेचन होता है।
  • नर एवं मादा युग्मक का संलयन मादा के शरीर के बाहर होता है, बाह्य निषेचन कहलाता है। यह मछली, स्टारफिश जैसे जतीय प्राणियों में होता है।

फल और बीज का विकास

  • निषेचन के पश्चात् अंडाशय, फल में विकसित हो जाता है, जबकि पुष्प के अन्य भाग मुरझाकर गिर जाते हैं। परिपक्व हो जाने पर अंडाशय फल के रूप में विकसित हो जाता है।
  • बीजांड से बीज विकसित होते हैं। बीज में एक भ्रूण होता है जो सुरक्षात्मक बीजावरण के अंदर रहता है।

बीज प्रवर्णन

  • प्रकृति में एक ही प्रकार के पादप विभिन्न स्थानों पर उगते पाए जाते है ऐसा बीजो के विभिन्न स्थानों पर प्रवीर्णन के कारण होता है |

जंतुओं में जनन

(Reproduction in animals)

नर जनन अंग

  • नर जनन अंगों में एक जोड़ा वृषण, दो शुक्राणु नलिका तथा एक शिश्न (लिंग) होते हैं। वृषण नर युग्मक उत्पन्न करते हैं जिन्हें शुक्राणु कहते हैं। वृषण लाखों शुक्राणु उत्पन्न करते हैं। शुक्राणु यद्यपि बहुत सूक्ष्म होते हैं, पर प्रत्येक में एक सिर, एक मध्य भाग एवं एक पूँछ होती है।
  • वास्तव में हर शुक्राणु में कोशिका के सामान्य संघटक पाए जाते हैं।

मादा जनन अंग

  • मादा जननांगों में एक जोड़ी अंडाशय, अंडवाहिनी (डिंब वाहिनी) तथा गर्भाशय होता है। अंडाशय मादा युग्मक उत्पन्न करते हैं जिसे अंडाणु (डिंब) कहते हैं । मानव ( स्त्रियों) में प्रति मास दोनों अंडाशयों में से किसी एक अंडाशय से एक विकसित अंडाणु अथवा डिंब
    निर्मोचन अंडवाहिनी में होता है। गर्भाशय वह भाग है जहाँ शिशु का विकास होता है। शुक्राणु की तरह अंडाणु भी एकल कोशिका है।
  • अंडाणु अति सूक्ष्म हो सकते हैं जैसे कि मनुष्य में अथवा बहुत बड़े भी होते हैं जैसे कि मुर्गी के अंडे । शुतुर्मुर्ग का अंडा सबसे विशाल होता है।

भ्रूण का परिवर्धन

  • निषेचन के परिणामस्वरूप युग्मनज बनता है जो विकसित होकर भ्रूण में परिवर्धित होता है। युग्मनज लगातार विभाजित होकर कोशिकाओं के गोले में बदल जाता है। तत्पश्चात् कोशिकाएँ समूहीकृत होने लगती हैं तथा विभिन्न ऊतकों और अंगों में परिवर्धित हो जाती हैं। इस विकसित होती हुई संरचना को भ्रूण कहते हैं |
  • गर्भाशय में भ्रूण का निरन्तर विकास होता रहता है। धीरे-धीरे विभिन्न शारीरिक अंग जैसे कि हाथ, पैर, सिर, आँखें, कान इत्यादि विकसित हो जाते हैं। भ्रूण की वह अवस्था जिसमें सभी शारीरिक भागों की पहचान हो सके गर्भ कहलाता है । जब गर्भ का विकास पूरा हो जाता है तो माँ नवजात शिशु को जन्म देती है |

जरायुज एवं अंडप्रजक जंतु

  • वह जंतु जो सीधे ही शिशु को जन्म देते हैं जरायुज जंतु कहलाते हैं। वे जंतु जो अंडे देते हैं अंडजक जंतु कहलाते हैं।

सूक्ष्मजीव

  • कुछ जीव ऐसे भी हैं जिन्हें हम केवल यंत्र की सहायता से देख सकते है और हम केवल अपनी आँखों से नहीं देख सकते है | इन्हें सूक्ष्मजीव कहते हैं ।
  • सूक्ष्मजीवों को चार मुख्य वर्गों में बाँटा गया है। यह वर्ग हैं, जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ और कुछ शैवाल ।
  • विषाणु : (वायरस) भी सूक्ष्म होते हैं परन्तु वे अन्य सूक्ष्मजीवों से भिन्न हैं। वे केवल परपोषी भें ही गुणन करते हैं अर्थात् जीवाणु, पौधे अथवा जंतु कोशिका में गुणन करते हैं । विषाणु कुछ सामान्य रोग जैसे कि जुकाम, इन्फ्लुएंजा (फ्लू) एवं अधिकतर खाँसी विषाणु द्वारा होते हैं। कुछ विशेष रोग जैसे कि पोलियो एवं खसरा भी विषाणु (वाइरस) द्वारा होते हैं।
  • अतिसार एवं मलेरिया प्रोटोजोआ द्वारा होते हैं। टायफाइ एवं क्षयरोग (TB) जीवाणु द्वारा होने वाले रोग हैं।
  • सूक्ष्मजीव एककोशिक हो सकते हैं जैसे कि जीवाणु , कुछ शैवाल एवं प्रोटोजोआ, अथवा बहुकोशिक जैसे कि कई शैवाल एवं कवक । यह बर्फीही रीत से ऊष्ण (गर्म) स्रोतों तक हर प्रकार की परिस्थिति में जीवित रहे यह मरुस्थल एवं दलदल में भी पाए जाते हैं। यह मनुष्य सहित सभी जंतुओं के शरीर के अंदर भी पाए जाते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव दूसरे सजीवों पर आश्रित होते हैं जबकि कुछ अन्य स्वतंत्र रूप से पाए जाते हैं। अमीबा जैसा सूक्ष्मजीव अकेले रह सकता है, जबकि कवक एवं जीवाणु समूह में रहते हैं ।

सूक्ष्मजीव का उपयोग

  • सूक्ष्मजीव विभिन्न कार्यों में उपयोग किए जाते हैं। इनका उपयोग दही, ब्रेड एवं केक बनाने में किया जाता है।
  • प्राचीन काल से ही सूक्ष्मजीवों का उपयोग एल्कोहल बनाने में किया जाता रहा है।
  • जीवाणुओं का उपयोग औषधि उत्पादन एवं कृषि में मृदा की उर्वरता में वृद्धि करने में किया जाता है जिससे नाइट्रोजन स्थिरीकरण होता है।
  • दही में अनेक सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं जिनमें लैक्टोबैसिलस नामक जीवाणु प्रमुख है जो दूध को दही में परिवर्तित कर देता है।
  • जीवाणु एवं रीस्ट चावल के आटे के किण्वण में सहायक होते हैं जिससे इडली एवं डोसा बनता है।
  • बड़े स्तर पर एल्कोहल, शराब एवं एसिटिक एसिड के उत्पादन में सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है। जौ, गेहूँ, चावल एवं फलों के रस में उपस्तिथ प्राकृतिक शर्करा में यीस्ट द्वारा एल्कोहल एवं शराब का उत्पादन किया जाता है
  • स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासाइक्लिन और एरिथ्रोमाइसिन सामान्य रूप से उपयोग की जाने वाली प्रतिजैविक हैं जिन्हें कवक एवं जीवाणु से उत्पादित किया जाता है।
  • एडवर्ड जेनर ने चेचक के लिए 1798 में चेचक के टीके की
    खोज की थी।
  • पोलियो ड्रॉप बच्चों को दिया जाने वाला वास्तव में एक टीका (वैक्सीन) है।
  • सूक्ष्मजीवों से टीके का उत्पादन बड़े स्तर पर किया जाता है जिसमें मनुष्य एवं अनेक जन्तुओ को अनेक रोगों से बचाया जाता है।
  • कुछ जीवाणु एवं नीले-हरे शैवाल वायुमण्डली ‘नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर सकते हैं। इस प्रकार मृदा में नाइट्रोजन का संवर्धन होता है तथा उसकी उर्वरता में वृद्धि होती है। इन्हें सामान्यतः जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकारक कहते है

हानिकारक सूक्ष्मजीव

  • सूक्ष्मजीव अनेक प्रकार से हानिकारक हैं। कुछ सूक्ष्मजीव मनुष्य, जंतुओं एवं पौधों में रोग उत्पन्न करते हैं। रोग उत्पन्न करने वाले ऐसे सूक्ष्मजीवों को रोगाणु अथवा रोगजनक कह हैं। कुछ सूक्ष्मजीव भोजन, कपड़े एवं चमड़े ही वस्तुओं को संदूषित कर देते हैं।
  • सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले ऐसे रोग जो एक संक्रमित व्यक्ति से वायु, जल, भोजन अथवा कायिक संपर्क द्वारा फैलते हैं, संचरणीय रोग कहलाते हैं। इस प्रकार के रोगों के कुछ उदाहरण हैं
    हैजा, सामान्य सर्दी-जुकाम, चिकनपॉक्स एवं क्षय रोग ।
  • कुछ कीट एवं जंतु ऐसे भी हैं जो रोगकारक सूक्ष्मजीवों के रोग-वाहक का कार्य करते हैं। घरेलू मक्खी इसका एक उदाहरण है।
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Table of Human Disease – Pathogenic Microorganism

(मानव रोग – रोगकारक सूक्ष्मजीव)

यहां एक तालिका दी गई है जिसमें कुछ सामान्य मानव रोगों के साथ-साथ उन्हें पैदा करने के लिए जिम्मेदार संबंधित रोगजनक सूक्ष्मजीवों को सूचीबद्ध किया गया है:

Disease Pathogenic Microorganism
Influenza Influenza viruses (e.g., Influenza A, B, C)
Tuberculosis (TB)
Mycobacterium tuberculosis
Malaria Plasmodium falciparum, Plasmodium vivax, Plasmodium ovale, Plasmodium malariae
COVID-19 Severe Acute Respiratory Syndrome Coronavirus 2 (SARS-CoV-2)
Strep Throat Streptococcus pyogenes
HIV/AIDS Human Immunodeficiency Virus (HIV)
Lyme Disease Borrelia burgdorferi (transmitted by ticks)
Cholera Vibrio cholerae
Dengue Fever Dengue virus (transmitted by Aedes mosquitoes)
Gonorrhea Neisseria gonorrhoeae
Salmonellosis Salmonella species
Pneumonia Streptococcus pneumoniae, Haemophilus influenzae, Mycoplasma pneumoniae
Urinary Tract Infection (UTI) Escherichia coli, Enterococcus species
Meningitis Neisseria meningitidis, Streptococcus pneumoniae, Haemophilus influenzae
Hepatitis B Hepatitis B virus
Candidiasis Candida albicans (yeast)
Tetanus Clostridium tetani
MRSA Infection Methicillin-Resistant Staphylococcus aureus
Zika Virus Zika virus (transmitted by Aedes mosquitoes)

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह एक विस्तृत सूची नहीं है, और कई बीमारियों के प्रेरक एजेंट अलग-अलग हो सकते हैं या कई सूक्ष्मजीवों के कारण हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, अनुसंधान में प्रगति से रोग के कारण के बारे में हमारी समझ में अद्यतन हो सकता है। विशिष्ट बीमारियों पर सटीक और अद्यतन जानकारी के लिए हमेशा स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों से परामर्श लें।

जंतुओं में रोगकारक जीवाणु

  • अनेक सूक्ष्मजीव केवल मनुष्य एवं पौधों में ही रोग के कारक नहीं हैं वरन् वे दूसरे जंतुओं में भी रोग उत्पन्न करते हैं। उदाहरण के लिए, एथेक्स, मनुष्य एवं मवेशियों में होने वाला भयानक रोग है जो जीवाणु द्वारा होता है। गाय में खुर एवं मुँह का रोग वायरस द्वारा होता है।
  • राबर्ट कोच ने सन् 1876 में बेसीलस एन्थेसिस नामक जीवाण की खोज की जो एन्थ्रेक्स रोग का कारक है।

खाद्य विषाक्तन

  • सूक्ष्मजीवों द्वारा संदूषित भोजन करने से खाद्य विषाक्तन हो सकता है । हमारे भोजन में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्मजीव कभी-कभी विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं। यह भोजन को
    विषाक्त बना देते हैं जिसके सेवन से व्यक्ति भयंकर रूप से रोगी हो सकता है।
  • नमक द्वारा परिरक्षण सामान्य नमक का उपयोग मांस एवं मछली के परिरक्षण के लिए का लम्बे अरसे से किया जा रहा है। जीवाणु की वृद्धि रोकने के लिए मांस तथा मछली को सूखे नमक से ढक देते हैं। नमक का उपयोग आम, आँवला एवं इमती के परिरक्षण में भी किया जाता
  • नमक एवं खाद्य तेल का उपयोग सूक्ष्मजीवों की वृद्धि रोकने के लिए सामान्य रूप से किया है। अतः इन्हें परिरक्षक कहते हैं । हम नमक अथवा खाद्य अम्ल का प्रयोग अचार
    बनाने में करते हैं जिससे सूक्ष्मजीवों की वृद्धि नहीं होती। सोडियम बेंजोएट तथा सोडियम मेटाबाइसल्फाइट सामान्य परिरक्षक हैं ।

कोशिका

  • अंगों की संरचनात्मक मूलभूत इकाई जिसे कोशिका कहते हैं। कोशिकाओं की तुलना हम ईंटों से कर सकते हैं। जिस प्रकार विभिन्न ईंटों को जोड़ कर भवन का निर्माण किया जाता है; उसी प्रकार विभिन्न कोशिकाएँ एक दूसरे से जुड़कर प्रत्येक सजीव के शरीर का निर्माण करती हैं।
  • मुर्गी का अंडा एक एकल कोशिका है तथा आकार में बड़ा होने के कारण इसे नग्न आँखों से भी देखा जा सकता है।
  • मनुष्य के शरीर में कई खरब कोशिकाएँ पाई जाती हैं जो आकृति एवं साइज़ में भिन्न होती हैं। कोशिकाओं के विभिन्न समूह अनेक प्रकार के कार्य करते हैं।
  • वह जीव जिनका शरीर एक से अधिक कोशिकाओं का बना होता है बहुकोशिक
    (multicellular- (multi = अनेक, cellular = कोशिका) कहलाते हैं ।
  • सजीवों में कोशिका का साइज़ 1 मीटर का 10 लाखवें भाग (माइक्रोमीटर अथवा माइक्रोन) के बराबर छोटा हो सकता है अथवा कुछ सेंटीमीटर लंबा भी । परन्तु अधिकतर कोशिकाएँ अति सूक्ष्मदर्शीय होती हैं,
  • सबसे छोटी कोशिका का साइज़ 0.1 से 0.5 माइक्रोमीटर है जो कि जीवाणु कोशिका है। सबसे बड़ी कोशिका तर्मुर्ग का अंडा है जिसका साइज़ 170mm x 130mm होता है। प्रत्येक अंग पुनः छोटे भागों से बना होता है जिसे ऊतक कहते हैं। ऊतक एकसमान शकाओं का वह समूह है जो एक विशिष्ट प्रकार्य करता है।

कोशिका के भाग

(Parts of the Cell)

कोशिका झिल्ली

  • कोशिका के मूल घटक हैं- कोशिका झिल्ली, कोशिका द्रव्य एवं केन्द्रक कोशिका द्रव्य एवं केन्द्रक कोशिका झिल्ली के अंदर परिबद्ध होते हैं। कोशिका झिल्ली एक कोशिका को दूसरी कोशिका एवं घेरे हुए माध्यम से अलग करती है | कोशिका झिल्ली जिसे प्लाज्मा झिल्ली भी कहते हैं।
  • प्याज की कोशिका ही सीमा कोशिका झिल्ली द्वारा परिबद्ध होती है जो एक ओर दृढ़ आवरण द्वारा आबद्ध होती है जिसे कोशिका भित्ति कहते हैं। कोशिका के केन्द्र में घनी एवं गोलाकार संरचना होती है जिसे केन्द्रक कहते हैं। केन्द्रक एवं कोशिका झिल्ली के मध्य एक जे के समान पदार्थ होता है जिसे कोशिका द्रव्य कहते हैं ।
  • पौधों में कोशिका झिल्ली के अतिरिक्त एक बाहरी मोटी परत होती है जिसे कोशिका भित्ति कहते हैं। कोशिका झिल्ली को आबद्ध करने वाली यह अतिरिक्त संरचना पौधों कोशिकाओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।

कोशिका द्रव्य

  • यह एक जैली जैसा पदार्थ है जो कोशिका झिल्ली एवं केन्द्रक के बीच पाया जाता है। कोशिका के अन्य संघटक अथवा कोशिकांग कोशिका द्रव्य में ही पाए जाते हैं। यह हैं, माइटोकांड़िया, गाल्जीकाय, राइबोसोम इत्यादि ।

केन्द्रक

  • यह गोलाकार होता है तथा कोशिका के मध्य भाग में स्थित होता है। इसे सरलतापूर्वक रंजित करके सूक्ष्मदर्शी के नीचे आसानी से देखा जा सकता है। केन्द्रक कोशिका द्रव्य से एक झिल्ली द्वारा अलग रहता है जिसे केन्द्रक झिल्ली अथवा केन्द्रकावरण कहते हैं। यह झिल्ती भी सरंध्र होती है तथा कोशिका द्रव्य एवं केन्द्रक बीच पदार्थों के आवागमन को नियंत्रित करती है।
  • उच्च आवर्धन क्षमता वाले सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने पर हमे केन्द्रक में एक छोटी सघन संरचना दिखाई देती है। इसे केन्द्रिका अथवा नूक्लिओलस कहते हैं। इसके अतिरिक्त
    केन्द्रक में धागे के समान संरचनाएँ भी होती हैं जो क्रोमोसोम अथवा गुणसूत्र कहलाते हैं । यह जीन के धारक हैं तथा आनुवंशिक गुणों अथवा लक्षणों को जनक से अगली पीढ़ी में स्थानांतरित करते हैं। गुणसूत्र कोशिका विभाजन के समय ही दिखाई देते हैं ।
  • जीन सजीव में आनुवंशिक की इकाई है। यह जनक से संतति को आनुवंशिक लक्षण के स्थानांतरण का नियंत्रण करते हैं। इसका अर्थ है कि आपके माता-पिता के कुछ लक्षण उनसे आपको प्राप्त हुए हैं। यदि आपके पिताजी की आँख भूरी है, तो संभव है कि आपकी आँख भी भूरी है |
    यदि आप माताजी के घुघराले बाल हैं तो हो सकता है आपके बाल भी धुंघराले हों।
  • ऐसी कोशिकाएँ जिनमें केन्द्रक पदार्थ केन्द्रक झिल्ली के बिना होता है प्रोकैरियोटिक कोशिका कहलाती है। इस प्रकार की कोशिकाओं वाले जीव प्रोकैरियोटस कहलाते हैं। जीवाणु और नीले-हरे शैवाल इसके उदाहरण हैं। प्याज की झिल्ली एवं गाल की कोशिकाओं जैसी कोशिकाओं में झिल्लीयुक्त सुसंगठित केन्द्रक पाया जाता है। वे यूकैरियोटिक कोशिका कहलाती हैं। ऐसी कोशिकाओं वाले जीव यकैरियोटस कहलाते हैं ।
  • ट्राडेस्केंशिया पत्ती की कोशिकाओं में आपने अनेक छोटी रंगीन संरचनाएँ देखी होंगी। वे पत्ती टी कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में छितरी रहती हैं। इन्हें प्लैस्टिड कहते हैं। यह विभिन्न रंगों के होते हैं। उनमें से कुछ में हरा रंजक उपस्थित होता है जिसे क्लोरोफिल कहते हैं ।

किशोरावस्था एवं यौवनारम्भ

  • जीवन काल की वह अवधि जब शरीर में ऐसे परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप जनन परिपक्वता आती है, किशोरावस्था (Adolescence) कहलाती है। किशोरावस्था लगभग 11 वर्ष की आयु से प्रारम्भ होकर 18 अथवा 19 वर्ष की आयु तक रहती है।
  • किशोरों को ‘टीनेजर्स’ (Teenagers) भी कहा जाता है। लड़कियों में यह अवस्था लड़कों की अपेक्षा एक या दो वर्ष पूर्व प्रारम्भ हो जाती है। किशोरावस्था की अवधि व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न होती है।
  • किशोरावस्था के दौरान मनुष्य के शरीर में अनेक परिवर्तन आते हैं। यह परिवर्तन यौवनारम्भ का संकेत हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन है, लड़के एवं लड़कियों की जनन क्षमता का विकास। किशोर की जनन परिपक्वता के साथ ही यौवनारम्भ समाप्त हो जाता है।
  • किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन हार्मोन वा नियंत्रित होते हैं। हार्मोन रासायनिक पदार्थ हैं। यह अंतःस्त्रावी ग्रंथियों अथवा अंतःस्रावी तंत्र द्वारा स्रावित किए जाते हैं। यौवनारम्भ के साथ ही वषण पौरुष हार्मोन अथवा टेस्टोस्टेरॉन का स्रवण प्रारम्भ कर देता है।
  • स्त्रावी ग्रंथियाँ हार्मोन रुधिरप्रवाह में स्रावित करती हैं जिससे वह शरीर के विशिष्ट भाग अथवा लक्ष्य-स्थल तक पहुँच सकें। लक्ष्य स्थल हार्मोन के प्रति अनुक्रिया करता है।
  • जब किशोरों के वृषण तथा अंडाशय युग्मक उत्पादित करने लगते हैं तब वे जनन के योग्य जाते हैं । युग्मक परिपक्वता एवं उत्पादन की क्षमता पुरुषों में स्त्रियों की अपेक्षा अधिक अवधि तक रहती है।
  • ऋतुस्राव लगभग 28 से 30 दिन में एक बार होता है। पहला ऋतुस्राव यौवनारम्भ में होता है जिसे रजोदर्शन कहते हैं। लगभग 45 से 50 वर्ष की
  • आयु में ऋतुस्राव होना रुक जाता है। ऋतुस्राव के रुक जाने को रजोनिवृत्ति कहते हैं ।

लिंग – निर्धारण

  • निषेचित अंडाणु अथवा युग्मनज में, जन्म लेने वाले शिशु के लिंग निर्धारण का संदेश होता है। यह संदेश निषेचित अंडाणु में धागे-सी संरचना अर्थात गुणसूत्रों में निहित होता है।
  • सभी मनुष्यों की कोशिकाओं के केन्द्रक में 23 जोड़े गुणसूत्र पाए जाते हैं। इनमें से 2 गुणसूत्र (1 जोड़ी) लिंग सूत्र हैं जिन्हें x एवं Y कहते हैं। स्त्री में दो X गुणसूत्र होते हैं जबकि पुरुष में एक X तथा एक Y गुणसूत्र होता है।
  • जब X गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडाणु को निषेचित करता है तो युग्मनज में दो X गुणसूत्र होंगे तथा वह मादा शिशु में विकसित होगा । यदि. अंडाणु को निषेचित करने वाले शुक्राणु में Y गुणसूत्र है तो युग्मनज नर शिशु में विकसित होगा |

Table of Gender Determination

(लिंग निर्धारण तालिका)

मनुष्यों में लिंग निर्धारण आमतौर पर जैविक और आनुवंशिक कारकों से जुड़ा होता है। यहां लिंग निर्धारण की मूल बातें बताने वाली एक सरल तालिका दी गई है:

Factor Determination
Chromosomes XX (female) or XY (male)
Primary Sex Organs Ovaries (female) or Testes (male)
Secondary Sex Characteristics Development of breasts, wider hips, and a higher voice in females; facial hair, deeper voice, and broader shoulders in males
Hormones Estrogen (predominant in females) or Testosterone (predominant in males)
Reproductive System Presence of uterus and ability to carry and give birth in females; production of sperm in males

Example:

  • XX गुणसूत्र, अंडाशय, स्तनों का विकास और चौड़े कूल्हे और गर्भाशय की उपस्थिति वाले व्यक्ति को आमतौर पर महिला के रूप में पहचाना जाएगा।
  • XY गुणसूत्र, वृषण, चेहरे के बालों का विकास और चौड़े कंधे और शुक्राणु पैदा करने की क्षमता वाले व्यक्ति को आमतौर पर पुरुष के रूप में पहचाना जाएगा।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि लिंग पहचान जैविक लिंग से एक अलग अवधारणा है और यह किसी व्यक्ति की अपने लिंग की आंतरिक भावना पर आधारित है, जो जन्म के समय उनके निर्दिष्ट लिंग के साथ संरेखित हो भी सकती है और नहीं भी। लिंग पहचान विविध है और इसमें पुरुष, महिला या गैर-द्विआधारी पहचान शामिल हो सकती है।


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