Wilma Rudolf Biography in Hindi – विल्मा रूडोल्फ

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दोस्तों आज मैं बात करने जा रहा हूं एक ऐसी लड़की की जिसका जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ जन्म के समय से ही हो स्वास्थ्य समस्याओं से परेशान रही और जब 4 साल की हुई तो उन्हें पोलियो हो गया जिससे उनका एक पैर काम करना बंद कर दिया डॉक्टर ने तो यह कह दिया था कि यह लड़की अब अपने पैरों पर कभी भी नहीं चल पाएगी| Wilma Rudolf Biography in Hindi.

लेकिन दोस्तों आगे चलकर वही लड़की सिर्फ चली ही नहीं बल्कि दौड़ी और दौड़ी भी तो ऐसा दौड़ी की ओलंपिक में पूरी तीन गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया |  जी हां दोस्तों मैं बात कर रहा हूं | विल्मा रूडोल्फ की जिन्होंने अपने जज्बे जुनून और मेहनत से असंभव को भी संभव कर दिखाया है तो चलिए बिना आपका समय खराब की है हम विल्मा रूडोल्फ के इस प्रेरणादायक जीवन को शुरू से जानते हैं|

विल्मा रूडोल्फ की जीवनी

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विल्मा ग्लोडियन रूडोल्फ का जन्म 23 जून 1940 को अमेरिका के सेंट बेथलहेम नाम की जगह पर हुआ था उनके पिता ईडी रूडोल्फ एक कुली थे और माँ ब्लांच घर की आर्थिक स्थिति के खराब होने की वजह से नौकर का काम करती थी विल्मा का जन्म समय से काफी पहले हो गया था जिसकी वजह से वह बहुत कमजोर पैदा हुई थी और जन्म के समय उनका वजन केवल 4.5 पाउंड यानी करीब 2 किलो था

जन्म के समय एक सामान्य बच्चे का वजन ढाई किलो से 3 किलो होना चाहिए

दोस्तों बता दूं कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार जन्म के समय एक सामान्य बच्चे का वजन ढाई किलो से 3 किलो होना चाहिए और कमजोर पैदा होने की वजह से विल्मा बचपन से ही बेहद बीमार रहती थी वह अपने शुरुआती दिनों में निमोनिया और स्कारलेट फीवर जैसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त थी|

विल्मा की मां को उनके इलाज के लिए हर हफ्ते 80 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था

दोस्तों कैसे भी करके इन सभी बीमारियों को झेलते हुए विल्मा थोड़ी बड़ी हुई तो 4 साल की उम्र में उन्हें पोलियो हो गया और पोलियो की वजह से उन्होंने अपने बाएं पैर की ताकत खो  दी जिसके बाद विल्मा को चलने के लिए कैलीपर्स का सहारा लेना पड़ा दोस्तों उस समय नस्लभेद चरम पर था और अश्वेत अमेरिकी लोगों के इलाज के लिए बहुत ही कम हॉस्पिटल्स होते थे इसीलिए विल्मा की मां को उनके इलाज के लिए हर हफ्ते 80 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था लेकिन काफी दिनों तक इलाज चलने के बाद डॉक्टर ने भी हार मान ली और यह कह दिया कि मैं अब कभी भी अपने पैरों के बल पर नहीं चल पाएगी लेकिन उनकी मां ने कभी भी हिम्मत नहीं हारीऔर अपनी तरफ से घरेलू इलाज को जारी रखा|

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विल्मा की मां : सकारात्मक सोच वाली महिला

विल्मा की मां बहुत ही सकारात्मक सोच वाली महिला थी और वह विल्मा को हमेशा प्रेरित करती रहती थी उनका कहना था कि विल्मा अपने पैरों से जरूर चल पाएगी क्योंकि इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है बच्चों को खेलते देखकर विल्मा को भी खेलने का बहुत मन करता था लेकिन अपने विकलांगता की वजह से उन्हें हमेशा निराशा मिलती थी|

विल्मा के सवाल पूछने पर क्लास के सभी बच्चे हंसने

एक बार तो विल्मा अपने क्लास में अपनी टीचर से ओलंपिक रिकॉर्ड के बारे में सवाल पूछे लगी जिस पर सभी बच्चे हंसने लगे और टीचर ने भी उनसे पूछा कि तुम क्या करोगी खेलों के बारे में जानकर तुम्हें पता है ना कि तुम कभी भी नहीं चल सकती दोस्तों उस घटना से विल्मा की आंखें भर आई थी और वह कुछ भी नहीं बोल पाई और फिर अगले ही दिन जब खेल के पीरियड में उन सभी बच्चों से अलग कर दिया गया तभी उन्होंने दृढ़ निश्चय किया और अपने आप से बोली मां सही कहती है लगन सच्ची और इरादे बुलंद हो तो कुछ भी पॉसिबल है मैं भी ओलंपिक में एक दिन जरूर पार्टिसिपेट करूंगी और केवल पार्टिसिपेट ही नहीं बल्कि सबसे तेज रनर बनकर दिखाऊंगी अगले ही दिन से पूरी तैयारी के साथ विल्मा ने अपने पैरों में पहने कैलिपर्स को निकाल फेंका और पूरी ताकत लगाकर अपने पैरों पर चलने की कोशिश शुरू कर दी शुरुआती दिनों में तो बहुत दर्द हुआ कई बार तो गिरने की वजह से उन्हें काफी चोट भी लगी लेकिन दोस्तों:

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जब आंखों में अरमान लिया

मंजिल को अपना मान लिया

है मुश्किल क्या आसान है क्या

जब ठान लिया तो ठान लिया

 

बहुत बार गिरते संभल थे उन्होंने धीरे धीरे चलना सीखा फिर वह एक पैर में ऊंची एड़ी के जूते पहनकर खेलने लगी |

डॉक्टर ने कहा : कि बेटी तू कुछ भी कर सकती है

दोस्तों बिल्मा का इलाज कर रहे डॉक्टर कीअंबे ने कहा था कि विल्मा कभी भी कैलिपर्स के बिना नहीं चल पायेंगी लेकिन एक बार भी खुद उनके जज्बे को देखकर हैरान रह गए और उनकी आंखों में आंसू भर गए उन्होंने कहा कि बेटी तू कुछ भी कर सकती है| 

मां के समर्पण

मां के समर्पण और विल्मा की लगन के कारण 11 साल की उम्र में विल्मा पहली बार बास्केटबॉल अकेली फिर विल्मा के जज्बे को देखकर उनकी टीचर ने भी उनकी पूरी हेल्प की और इस तरह से विल्मा पूरे जोश और लगन के साथ प्रैक्टिस करने में लग गई|

आत्मविश्वास – 8 हार के बाद जीतना शुरू किया

विल्मा ने 1953 में 13 साल की उम्र में पहली बार स्कूल की ड्रेस कंपटीशन में हिस्सा लिया लेकिन वह सबसे लास्ट आई उसके बाद भी उन्होंने अपना आत्मविश्वास कभी भी नहीं कम होने दिया और पूरे जोर-शोर से अपना प्रैक्टिस जारी रखा और आखिरकार 8 हार के बाद उन्होंने जीतना शुरू किया और फिर उसके बाद से उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपनी लगन प्रैक्टिस और जज्बे के दम पर 1960 के रोम ओलंपिक में उन्हें अपने देश की तरफ से खेलने का मौका दिया गया ओलंपिक में विल्मा ने

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  • 100 मीटर दौड़
  • 200 मीटर दौड़
  • 400 मीटर रिले दौड़ में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया

सबसे पहली अश्वेत खिलाड़ी

इस तरह विल्मा अमेरिका की सबसे पहली अश्वेत खिलाड़ी बनी जिसने दौड़ की तीन कंपटीशन में गोल्ड मेडल जीते और फिर तीन गोल्ड मेडल अपने नाम कर अमेरिका वापसी पर उनका सम्मान एक बहुत बड़ी पार्टी से किया गया जिसमें पहली बार श्वेत और अश्वेत अमेरिकीयों ने एक साथ भाग लिया जिसे की विल्मा अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत मानती हैं विल्मा ने  हमेशा अपनी जीत का श्रेय अपनी मां को दिया विल्मा का कहना था कि अगर उनकी मां उनकी लिए त्याग नहीं करती तुम कुछ भी नहीं कर पाती|

दोस्तों एक बात याद रखें:

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मुश्किल इस दुनिया में कुछ भी नहीं

फिर भी लोग अपने इरादे तोड़ देते हैं

अगर सच्चे दिल से हो चाहत कुछ पाने की

तो सितारे भी अपनी जगह छोड़ देते हैं

दोस्तों इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि आपके चाहने वाले भी विल्मा रूडोल्फ के प्रेरणादायक जीवन से सीख ले सके आपका बहुमूल्य समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद| ( OSP )

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