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Ram Prasad Bismil Biography in Hindi राम प्रसाद बिस्मिल

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Ram Prasad Bismil Biography in Hindi

राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी

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राम प्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय

राम प्रसाद बिस्मिल का पूरा नाम राम प्रसाद ‘बिस्मिल’
राम प्रसाद बिस्मिल का उपनाम बिस्मिल, राम, अज्ञात, आदि
राम प्रसाद बिस्मिल का पेशा स्वतंत्रता सेनानी, कवि, शायर, अनुवादक, इतिहासकार व साहित्यकार, आदि

व्यक्तिगत जीवन, परिवार , आदि

राम प्रसाद बिस्मिल की जन्मतिथि 11 जून 1897
राम प्रसाद बिस्मिल की उम्र 30 वर्ष ( मृत्यु के समय )
राम प्रसाद बिस्मिल का  जन्मस्थान शाहजहाँपुर, ब्रिटिश भारत के समय
राम प्रसाद बिस्मिल की मृत्यु तिथि 19 दिसंबर 1927 को
राम प्रसाद बिस्मिल का मृत्यु स्थान गोरखपुर जेल, ब्रिटिश भारत के समय में
राम प्रसाद बिस्मिल की मृत्यु का कारण फांसी ( सजा-ए-मौत सुनाई गयी थी )
राम प्रसाद बिस्मिल की समाधि स्थान जिला देवरिया, बरहज, उत्तर प्रदेश, भारत
राम प्रसाद बिस्मिल की राशि मिथुन राशि
राम प्रसाद बिस्मिल की राष्ट्रीयता भारतीय
राम प्रसाद बिस्मिल का मूल निवास स्थान गांव खिरनीबाग मोहल्ला, शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश में
राम प्रसाद बिस्मिल का स्कूल व विद्यालय राजकीय विद्यालय, शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश में
राम प्रसाद बिस्मिल का महाविद्यालय व विश्वविद्यालय ज्ञात नहीं
राम प्रसाद बिस्मिल की शैक्षिक योग्यता आठवीं पास है
राम प्रसाद बिस्मिल का परिवार पिता का नाम  – मुरलीधर

Table of Contents

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  • Ram Prasad Bismil Biography in Hindi
  • राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी
  • राम प्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय
  • व्यक्तिगत जीवन, परिवार , आदि
  • पसंदीदा चीजें
  • प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां
  • राम प्रसाद बिस्मिल: कुछ अल्पज्ञात तथ्य व रोचक जानकारियाँ
  • Ram Prasad Bismil Poems
  • रामप्रसाद बिस्मिल की प्रसिद्ध रचनाएँ
  • रामप्रसाद बिस्मिल की कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ :
  • Ram Prasad Bismil Biography in Hindi
  • राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी
    • “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
    • देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है
    • वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमां
    • हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है |”
  • क्रांतिकारी
  • वेस्टर्न प्रोविंसेस
  • क्रांतिकारी संगठन
  • जमुना नदी
  • देशभक्ति
  • सरकारी गवाह
  • असहयोग आंदोलन
  • अंतिम संस्कार
    • ” न चाहूं मान दुनिया में ना चाहूं स्वर्ग को जाना मुझे वरदे यही माता रहूं भारत पर दीवाना
    • करूं मैं कॉम की सेवा पड़े चाहे करोड़ों दुख अगर फिर जन्म लूंगा कर तो भारत में ही हो आना “
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माता का नाम – मूलमती

भाई का नाम – रमेश सिंह
बहन का नाम – शास्त्री देवी, ब्रह्मादेवी, भगवती देवी

दादा का नाम – नारायण लाल
दादी का नाम – विचित्रा देवी
चाचा का नाम – कल्याणमल

राम प्रसाद बिस्मिल का धर्म हिन्दू धर्म
राम प्रसाद बिस्मिल की जाति ब्राह्मण जाति
राम प्रसाद बिस्मिल का शौक/अभिरुचि पुस्तकें पढ़ना, पुस्तकें  लिखना, ज्ञान बाटना आदि
राम प्रसाद बिस्मिल के विवादित विवाद • वर्ष 1915 में, जब उन्हें आर्य समाज के संस्थापक भाई परमानन्द की फाँसी का समाचार मिला तो उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य को नष्ट करने की प्रतिज्ञा ली। रामप्रसाद ने पं॰ गेंदालाल दीक्षित के मार्गदर्शन में मातृवेदी नामक एक संगठन का गठन किया। इस संगठन की ओर से एक इश्तिहार और एक प्रतिज्ञा भी प्रकाशित की गई।

संगठन के लिए धन एकत्र करने के उद्देश्य से रामप्रसाद ने जून 1918 में दो तथा सितम्बर 1918 में एक; कुल मिलाकर तीन डकैतियां डालीं। मैनपुरी डकैती में शाहजहाँपुर के तीन युवक शामिल थे, जिनके सरदार रामप्रसाद बिस्मिल थे, किन्तु वे पुलिस के हाथ नहीं आए, वह तत्काल फरार हो गए। जिसके चलते स्थानीय पुलिस द्वारा उनके खिलाफ गिरफ्तारी का नोटिस जारी किया गया।

• 7 मार्च 1925 को बिचपुरी और 24 मई 1925 को द्वारकापुर में दो राजनीतिक डकैतियां डालीं। परन्तु उन्हें कुछ विशेष धन प्राप्त नहीं हो सका। इन दोनों डकैतियों में एक-एक व्यक्ति की मौके पर ही मृत्यु हो गई थी। अन्ततः उन्होंने यह निश्चय किया कि वे अब केवल सरकारी खजाना ही लूटेंगे, किसी भी रईस के घर डकैती बिल्कुल न डालेंगे।

9 अगस्त 1925 को बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोगों ने काकोरी रेलवे स्टेशन से सरकारी खजाने की लूट की। ब्रिटिश सरकार ने इस ट्रेन डकैती को गम्भीरता से लेते हुए, इसकी जाँच डी॰ आई॰ जी॰ के सहायक (सी॰ आई॰ डी॰ इंस्पेक्टर) मिस्टर आर॰ ए॰ हार्टन को सौंप दी।

पसंदीदा चीजें

राम प्रसाद बिस्मिल के पसंदीदा व्यक्ति श्री महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां

राम प्रसाद बिस्मिल की वैवाहिक स्थिति अविवाहित थे
राम प्रसाद बिस्मिल की पत्नी कोई नहीं

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राम प्रसाद बिस्मिल: कुछ अल्पज्ञात तथ्य व रोचक जानकारियाँ

  • क्या राम प्रसाद बिस्मिल धूम्रपान, आदि का सेवन करते थे ?: हाँ करते थे
  • क्या राम प्रसाद बिस्मिल मदिरापान करते थे ?: हाँ करते थे
  • बरबाई गाँव तत्कालीन ग्वालियर राज्य में चम्बल नदी के बीहड़ों के बीच स्थित तोमरघार क्षेत्र के मुरैना जिले में था और वर्तमान में यह मध्य प्रदेश में है। बिस्मिल के दादा जी नारायण लाल का पैतृक गाँव बरबाई था।
  • उनके पिता कचहरी में स्टाम्प पेपर बेचने का कार्य करते थे।
  • उनका नाम रामप्रसाद रखा गया क्युकी उनके माता-पिता राम के आराधक थे
  •  जन्म के कुछ समय बाद दो लड़कियां एवं दो लड़कों का निधन हो गया था। मुरलीधर के घर कुल 9 सन्तानें थी, जिनमें से पाँच लड़कियां एवं चार लड़के थे।
  • उनका मन खेलने में अधिक और पढ़ने में कम लगता था। बाल्यकाल से ही रामप्रसाद की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा।  इसके कारण उनके पिताजी उन्हें खूब पीटा करते थे, ताकि वह पढ़ाई-लिखाई कर के एक क्रांतिकारी बन सकें।
  • माँ के प्यार भरी सीख का भी उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उनकी माँ हमेशा प्यार से यही समझाती कि “बेटा राम! ये बहुत बुरी बात है पढ़ाई किया करो।”
  • अपने पिता की सन्दूक से चोरी के रुपयों से उन्होंने उपन्यास खरीदकर पढ़ना शुरू कर दिया एवं सिगरेट पीना, भाँग पीना, इत्यादि नशा करना शुरू कर दिया। 18 वर्ष की आयु से, रामप्रसाद को अपने पिता की सन्दूक से रुपए चुराने की लत पड़ गई थी।
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  • पुजारी के उपदेशों के कारण रामप्रसाद पूजा-पाठ के साथ ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे। उसके बाद उन्होंने उर्दू भाषा में मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण न होने पर अंग्रेजी पढ़नी शुरू की। साथ ही पड़ोस के एक पुजारी ने रामप्रसाद को पूजा-पाठ की विधि बतानी शुरू की।
  • एक पुस्तक के गम्भीर अध्ययन से रामप्रसाद के जीवन पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा। इससे उनके शरीर में अप्रत्याशित परिवर्तन हो चुका था, वह नियमित पूजा-पाठ में समय व्यतीत करने लगे थे। एक दिन उनकी मुलाकात मुंशी इन्द्रजीत से हुई। जिन्होंने रामप्रसाद को आर्य समाज के सम्बन्ध में बताया और स्वामी दयानन्द सरस्वती की लिखी पुस्तक “सत्यार्थ प्रकाश” को पढ़ने की प्रेरणा दी।
  • रामप्रसाद ने जब लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की पूरे लखनऊ शहर में शोभायात्रा निकाली, तो सभी नवयुवकों का ध्यान उनकी दृढता की ओर आकर्षित हुआ। वर्ष 1916 के कांग्रेस अधिवेशन में स्वागताध्यक्ष पं॰ जगत नारायण ‘मुल्ला’ के आदेश की धज्जियाँ बिखेरते हुए,
  • बिस्मिल की एक विशेषता यह भी थी कि वे किसी भी स्थान पर अधिक दिनों तक नहीं रखते थे |
  • उन्होंने वर्ष 1918 में, पलायन के दिनों में, प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तक “दि ग्रेण्डमदर ऑफ रसियन रिवोल्यूशन” का हिन्दी अनुवाद किया था |
  • कुछ समय बाद उन्होंने सदर बाजार में बनारसीलाल के साथ रेशमी साड़ियों का व्यापार करना शुरू किया। बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में “भारत सिल्क मैनुफैक्चरिंग कंपनी” में एक प्रबंधक के रूप में कार्य किया।
  • उन्होंने अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में वर्ष 1921 में, पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव पर मौलाना हसरत मोहनी का भरपूर समर्थन किया था। जिसके चलते पूर्ण स्वराज को पारित किया गया।
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  • चौरीचौरा कांड के पश्चात वर्ष 1922 में, किसी से परामर्श किए बिना ही जब महात्मा गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया था, तब गया कांग्रेस में बिस्मिल व उनके साथियों द्वारा गांधी जी का ऐसा विरोध किया गया कि कांग्रेस दो विचारधाराओं में बंट गई – एक उदारवादी या लिबरल और दूसरी विद्रोही या रिबेलियन।
  • विशेष सेशन जज ए० हैमिल्टन ने 115 पृष्ठ के निर्णय में प्रत्येक क्रान्तिकारी पर लगाए गए 6 अप्रैल 1927 को आरोपों पर विचार करते हुए लिखा कि यह कोई साधारण ट्रेन डकैती नहीं, अपितु ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की एक सोची समझी साजिश है।
  • हालाँकि इनमें से कोई भी अभियुक्त अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इस योजना में शामिल नहीं हुआ, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के लिए शामिल हुआ।
  • उन्हें मैनपुरी षड्यन्त्र और काकोरी कांड में दोषी पाते हुए सेशन जज ए० हैमिल्टन ने फांसी की सजा सुनाई।
  • अन्तिम समय की बातें – बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा के आखिरी अध्याय को पूर्ण करके 16 दिसम्बर 1927 को जेल से बाहर भिजवा दिया।
  • राम प्रसाद की अपने माता-पिता से अन्तिम मुलाकात हुई 18 दिसम्बर 1927 को और सोमवार प्रात:काल 6 बजकर 30 मिनट पर 19 दिसम्बर 1927 को उनको गोरखपुर जेल में फाँसी दे दी गई।
  • उनका अंतिम संस्कार राजघाट पर, राप्ती नदी के किनारे हुआ।
  • स्मृति-स्थल – बिस्मिल की अन्त्येष्टि के बाद बाबा राघव दास ने गोरखपुर के पास स्थित देवरिया जिले के बरहज नामक स्थान पर ताम्रपात्र में उनकी अस्थियों को संचित कर स्मृति-स्थल बनवाया।
  • आजादी के इस संघर्ष में उन्होंने एक देश भक्ति गीत लिखा, राम प्रसाद बिस्मिल में क्रांतिकारीयों में एक नई उमंग भरने के लिए ।
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  • स्वतन्त्र भारत में काफी खोजबीन के पश्चात् उनकी लिखी हुई प्रामाणिक पुस्तकें इस समय पुस्तकालयों में उपलब्ध हैं।
  • 11 वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं। जिनमें से 11 पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुई थीं, जिन्हे ब्रिटिश राज में ज़ब्त कर लिया गया था।
  • भारत सरकार द्वारा राम प्रसाद बिस्मिल के जन्मदिवस की वर्षगांठ पर 19 दिसंबर 1997 को एक स्मरणीय डाक टिकट को जारी किया गया था।
  • राम प्रसाद बिस्मिल की याद में भारत सरकार द्वारा, उत्तर रेलवे में “पंडित राम प्रसाद बिस्मिल रेलवे स्टेशन” को स्थापित किया गया।
  • निर्देशक विनोद गणात्रा ने राम प्रसाद बिस्मिल के जीवन पर एक फिल्म बनाई। वर्ष 2010 में,
  • राम प्रसाद बिस्मिल देशभक्ति और जूनून से भरपूर कविताएं हिन्दी और उर्दू दोनों भाषा में लिखते थे। क्युकी हिंदी और उर्दू का ज्ञान उन्हें बचपन में ही मिल गया था
  • वह अपनी ज्यादा तर लेख व कविताएं ‘बिस्मिल’, ‘राम’ और ‘अज्ञात’ के नाम से लिख व बाटा करते थे।
  • उन्होंने बहुत सी कविताए व गीत लिखे इनके लिखे जिनको क्रांतिकारियों के लिए आजादी का गाना बन गया  ( ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ और ‘सरफरोशी की तमन्ना’ )
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Ram Prasad Bismil Poems

रामप्रसाद बिस्मिल की प्रसिद्ध रचनाएँ

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सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत।

देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है।

ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार।

अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान।

हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।

खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद।

आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर।

और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर।

खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से।

सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से।

और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न।

जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम।

जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार।

क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब।

होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज।

दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है।

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून।

तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
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रामप्रसाद बिस्मिल की कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ :

• कुछ अश‍आर
• ऐ मातृभूमि! तेरी जय हो
• तराना-ए-बिस्मिल
• न चाहूं मान
• मातृ-वन्दना
• मुखम्मस
• बिस्मिल की उर्दू गजल
• बिस्मिल की अन्तिम रचना
• विद्यार्थी बिस्मिल की भावना
• सर फ़रोशी की तमन्ना
• हे मातृभूमि
• गुलामी मिटा दो
• आज़ादी
• हैफ़ जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने को
• हमारी ख़्वाहिश
• एक अन्य गीत
• फूल
• जब प्राण तन से निकलें
• हक़ीक़त के वचन
• प्रार्थना
• फाँसी की कल्पना
• भजन
• भारत जननि
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Ram Prasad Bismil Biography in Hindi

राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी

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“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमां

हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है |”

क्रांतिकारी

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आज हम बात करने जा रहे हैं महान क्रांतिकारी और हिंदी और उर्दू के मशहूर कवि श्री राम प्रसाद बिस्मिल जी के बारे में जो खासकर देशभक्ति की कविताएं ही लिखते थे बिस्मिल जी आचार्य यानी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापकों में से एक थे| उन्होंने भारत की आजादी को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए उन्होंने आचार्य में काकोरी कांड का प्लान बनाया था जिसमें पकड़े जाने के बाद ही नहीं गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गई तो चलिए दोस्तों उनके जीवन के बारे में शुरू से जानते हैं|

वेस्टर्न प्रोविंसेस

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राम प्रसाद बिस्मिल जी का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में 11 जून 1897 को हुआ था उस समय उस जगह को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस भी बोला जाता था उन्होंने अपने पिता से ही हिंदी की शिक्षा ली थी और एक मौलवी थी उर्दू सीखी थी वह देश की हालत पर बहुत चिंतित रहते थे और बचपन से ही देशभक्ति की कविताएं लिखते थे|

क्रांतिकारी संगठन

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वह आर्य समाज का भी हिस्सा बन गए थे जो उस समय सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ संघर्ष कर रही थी बिस्मिल्लाह मत्रिवेदी नाम का एक क्रांतिकारी संगठन बनाया जिसका लक्ष्य था अंग्रेजों से लोहा लेना 28 जनवरी 1918 को बिस्मिल ने पेंपलेट बनाकर बांटना शुरू किया जिसका नाम था देशवासियों के नाम संदेश संगठन के लिए फंड इकट्ठा करने के लिए 1918 में इन लोगों ने अंग्रेजों को तीन बार लूटा जब पुलिस ने इनको मैनपुरी में खोजना शुरू किया तो यह दिल्ली जाकर वह किताबें बेचने लगे जिन्हें बेचना गैरकानूनी था क्योंकि उसमें अंग्रेजो के खिलाफ लिखा हुआ था|

जमुना नदी

जब उन्हें लगा कि वह पकड़े जा सकते हैं तो वह बची हुई किताबें लेकर भाग गए एक बार वह अपने साथियों के साथ मिलकर दिल्ली और आगरा के बीच में लूट का प्लान बना रहे थे उसी समय पुलिस आ गई और दोनों तरफ से फायरिंग शुरू हो गई बिस्मिल भी जमुना नदी में कूद गए और पानी के अंदर ही तैरते हुए निकल गया बाकी लोग रेस्ट कर लिए गए और पुलिस को लगा कि बिस्मिल फायरिंग में मारे गए हालांकि कुछ दिनों बाद पुलिस को पता चल गया था कि वह जिंदा है|

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देशभक्ति

वह बाद में दिल्ली चले गए और छुपकर रहने लगे इसके बाद बिस्मिल 2 साल तक सरकार की आंखों से बचते हुए जगह-जगह घूमकर लोगों को जागरुक करते रहे और देशभक्ति की कविताएं लिखते रहें वह कांग्रेस की मीटिंग भी अटेंड करते थे जहां पूर्ण स्वराज की डिमांड को आगे बढ़ाने में उनका बहुत योगदान रहा है उसी समय असहयोग आंदोलन भी बहुत जोर शोर से चल रहा था|

सरकारी गवाह

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वह शाहजहांपुर में वापस आकर लोगों को अंग्रेजों का कोई सहयोग न करने के लिए प्रोत्साहित करने लगे उनके भाषण और उनकी कविताओं का असर लोगों पर इतना पढ़ने लगा कि लोग अंग्रेजों के खिलाफ बौखला उठे चौरी चौरा कांड में सरकारी गवाह बने बनारसी लाल के अनुसार बिस्मिल लोगों से कहते थे कि अहिंसा से आजादी कभी नहीं मिलेगी चौरी चौरा कांड में लोगों के गुस्से के लिए इनके भाषण को भी जिम्मेदार बताया गया|

असहयोग आंदोलन

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इसी कांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया जिसके कारण डिसमिल और कई क्रांतिकारी नेता कांग्रेस से नाराज हो गए बिस्मिल और लोगों के साथ मिलकर एचआरए यानी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया एचआरए नहीं काकोरी कांड का प्लान बनाया जिसे बिस्मिल लीड कर रहे थे लखनऊ के पास काकोरी में ट्रेन को रोककर उसमें मौजूद सरकारी खजाना लूट लिया गया लड़ाई में फायरिंग भी हुई और गलती से एक हिंदुस्तानी मारा गया|

अंतिम संस्कार

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इसी मामले में केस हुआ और फिर 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई अंतिम संस्कार के लिए बिस्मिल के शरीर को राप्ती नदी के पास ले जाया गया जिस जगह को आज राजघाट के नाम से जाना जाता है दोस्तों कभी-कभी सोचता हूं कि वह भी क्या दीवानगी थी इन जैसे देशभक्तों की जिन्होंने देश के लिए अपनी जान के बारे में भी नहीं सोचा

 

” न चाहूं मान दुनिया में ना चाहूं स्वर्ग को जाना मुझे वरदे यही माता रहूं भारत पर दीवाना

करूं मैं कॉम की सेवा पड़े चाहे करोड़ों दुख अगर फिर जन्म लूंगा कर तो भारत में ही हो आना “

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