Major Dhyanchand Biography in Hindi – मेजर ध्यानचंद

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Major Dhyanchand Biography in Hindi

मेजर ध्यानचंद

दोस्तों इस पोस्ट में हम मेजर ध्यानचंद के बारे में सब कुछ जानेंगे Major Dhyanchand Biography in Hindi

  1. पहले ही मैच में तीन गोल
  2. ओलंपिक खेलों में 35 गोल 
  3. अंतरराष्ट्रीय मैचों में करीब 400 गोल
  4. सब मिलाकर किए गए 1000 से ज्यादा गोल का आंकड़ा

मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता है?

ऊपर दिए गए आंकड़े मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहलाने के लिए काफी है और अगर अभी भी उनके खेल को लेकर कोई शक है तो मैं उनके कैरियर की कुछ घटनाएं आपसे शेयर करने जा रहा हूं जिससे यह आपको पता चल जाएगा कि ध्यानचंद की तरह हॉकी का खिलाड़ी उनके बाद ना तो कोई हुआ है और शायद ना ही कोई होगा |

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हॉकी स्टिक से चिपकी रहती थी

दोस्तों गेंद इस तरह उनकी हॉकी स्टिक से चिपकी रहती थी कि उनकी अगेंस्ट खेल रहे खिलाड़ियों को अक्सर शक होता था कि वह किसी स्पेशल स्टिक से खेल रहे हैं यहां तक कि एक बार हालैंड में खेलते समय उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने के शक की वजह से उनकी स्टिक को भी तोड़ कर देखा गया था ध्यानचंद ने अपनी अद्भुत खेल से जर्मनी के तानाशाह हिटलर से लेकर महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन तक को अपने खेल का दीवाना बना दिया था|

महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन तक को अपने खेल का दीवाना बना दिया था

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बात है 4 अगस्त 1936 को खेले गए ओलंपिक फाइनल की जिसमें भारत और जर्मनी आमने-सामने थे मैच जर्मनी में खेला जा रहा था पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ जर्मनी का तानाशाह हिटलर भी अपनी टीम का हौसला बढ़ाने के लिए वहां मौजूद था मैच शुरू हुआ और पहले हाफ तक मुकाबला बहुत कड़ा रहा लेकिन भारत 1-0 से बढ़त बनाने में कामयाब रहा था उसके बाद सेकंड हाफ के खेल से पहले जो हुआ वह चौका देने वाला था लोग कहते हैं लोग कहते है कि जर्मनी के विशेषज्ञों ने पिच को जरूरत से ज्यादा गिला करवा दिया ताकि सस्ते जूते पहने हुए भारतीय टीम को दौड़ने और गोल करने में प्रॉब्लम हो और वह मैच हार जाएं लेकिन इसको देखकर मेजर ध्यानचंद ने अपने जूते निकाल फेके थे कि जिससे वह अच्छी तरह दौड़ते थे उसके बाद वह और उनकी टीम ने एक के बाद एक 7 और गोल दागे और मुकाबला अपने नाम कर लिया अपनी टीम की शर्मनाक हार से बौखला कर तानाशाह हिटलर खेल के बीच में ही मैदान छोड़कर चले गए|

हिटलर ने मेजर ध्यानचंद को अपने ऑफिस बुलाया

अगले दिन ध्यानचंद के अद्भुत खेल को देखते हुए हिटलर ने उन्हें अपने ऑफिस बुलाया और उन्हें पूरी तरह ऊपर से नीचे तक देखा उस समय ध्यान चंद में जूते फटे हुए पहन रखे थे | हिटलर ने उनके जूतों की तरफ इशारा करते हुए उन्हें एक अच्छी नौकरी की लालच दी और जर्मनी की ओर से खेलने के लिए कहा लेकिन इस भारत के सच्चे देशभक्त हमेशा भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा और जर्मनी के जिद्दी तानाशाह हिटलर को तुरंत मन करके वापस आ गए|

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भारत के अलावा भी दुनिया के बहुत सारे दिगज्जो ने भी मेजर ध्यानचंद की प्रतिभा का लोहा माना है

क्रिकेट के महानायक सर डॉन ब्रैडमैन ने ध्यानचंद के सम्मान में कहा कि वह क्रिकेट के रनो की भांति गोल बनाते हैं

दोस्तों मुझे उम्मीद है कि अब आप भी जानते होंगे कि ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता है?

चलिए आप शुरू से ध्यानचंद के बारे में जानते हैं

ध्यानचंद का जीवन परिचय 

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ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयाग उत्तर प्रदेश में हुआ था | जिसे इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था और अब उसे प्रयागराज के नाम से जाना जाता है| उनके पिता सेना में सिपाही थे बचपन में ध्यानचंद को हॉकी के खेल में कोई खास रुचि नहीं थी हां लेकिन उन्हें रेसलिंग पसंद था उन्होंने पास के ही एक साधारण से स्कूल से अपनी पढ़ाई की और उसके बाद 1922 में 16 साल की उम्र तक सेना में भर्ती हो गए सेना में भर्ती होने के बाद उनकी रूचि हॉकी में बढ़ने लगी और उनके साथ के मेजर तिवारी ने उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया धीरे-धीरे उनमें हॉकी का जैसे जुनून सा हो गया और वह अपनी ड्यूटी के बाद चांदनी रातों में भी हॉकी की प्रैक्टिस करने लगे दोस्तों बता दूं कि उनका नाम अभी तक ध्यान सिंह था लेकिन चांदनी रात में प्रैक्टिस करती हुई देख उनके साथ के सिपाहियों ने उनके नाम के बीच में चंद्र लगा दिया और वह चंद्र धीरे-धीरे बदलकर चंद हो गया तो ऐसे ध्यान सिंह ध्यानचंद बन गए उन्होंने अपने जुनून और प्रैक्टिस के बल पर अपने आप को हॉकी का सबसे बड़ा खिलाड़ी बना लिया और सेना की तरफ से खेलते हुए अपना बेस्ट परफॉर्मेंस देते गए जिसे सेना में उनकी लगातार प्रमोशन होती रही और वे एक सिपाही से मेजर बन गए|

अंतरराष्ट्रीय मैच

1926 में उन्हें अंतरराष्ट्रीय मैचों में उतारा गया जहां उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ अपना डेब्यू मैच खेला था 1927 में लंदन फॉर स्टोन फेस्टिवल में उन्होंने ब्रिटिश हॉकी टीम के खिलाफ 10 मैचों में 72 में से 36 गोल किए 1928 में नीदरलैंड के समर ओलंपिक में खेलते हुए उन्होंने तीन में से दो गोल दागे | भारत ने यह मैच 3-0 से जीतकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया था 1932 में लॉस एंजेल्स समर ओलंपिक में तो हद ही हो गई भारत ने अमेरिकी टीम को 24-1 से धूल चटा कर गोल्ड मेडल जीता इस साल ध्यानचंद ने 338 में से 135 गोल अकेले मारा था|

ओलंपिक गोल्ड मेडल और रिटायरमेंट

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वह तीन बार ओलंपिक गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे हैं 1948 तक 42 साल की उम्र तक उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मैचों में अपना योगदान दिया और फिर वह रिटायर हो गए | रिटायर होने के बाद भी वह आर्मी में होने वाले मैचों में अपना योगदान देते रहे मेजर ध्यान सिंह को वर्ष 1956 में भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया ध्यानचंद ने भारतीय हॉकी को एक नया पहचान दिया और पूरी दुनिया में ऐसी छाप छोड़ी कि वह शायद अब किसी और खिलाड़ी के लिए मुमकिन नहीं होगा|

राष्ट्रीय खेल दिवस कब मनाया जाता है?

उनकी बर्थडे यानी 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है लेकिन दोस्तों हॉकी के इस महान खिलाड़ी के आखिरी के दिन बिल्कुल भी अच्छे नहीं रहे| भारत को हॉकी के खेल में शीर्ष स्थान पर पहुंचाने वाले इस खिलाड़ी को देश भूल गया|  उन्हें लीवर का कैंसर था और पैसे की कमी की वजह से उनका इलाज ठीक से नहीं हो पाया और वह दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में 3 दिसंबर 1979 को इस दुनिया को अलविदा कह गए|

लेकिन दोस्तों मेजर ध्यानचंद को आज भी हॉकी प्रेमी – भगवान की तरह पूछते हैं आपका बहुमूल्य समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद इस पोस्ट को शेयर करके आप हमारा मनोबल बढ़ा सकते हैं| ( OSP )

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