Lala Lajpat rai biography in Hindi – ‘पंजाब केसरी’

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Lala Lajpat rai biography in HindiPunjab Kesari

लाला लाजपत राय की जीवनी – ‘पंजाब केसरी’

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लाला लाजपत राय का जन्म: 28 जनवरी, 1865

लाला लाजपत रायका जन्म स्थान: धुडिके, पंजाब

लाला लाजपत राय के माता-पिता: मुंशी राधा कृष्ण आजाद (पिता) और गुलाब देवी (माता)

लाला लाजपत राय का जीवनसाथी: राधा देवी

लाला लाजपत राय के बच्चे: अमृत राय, प्यारेलाल, पार्वती

लाला लाजपत राय की शिक्षा: सरकारी कॉलेज, लाहौर

लाला लाजपत रायकी राजनीतिक संघ: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, आर्य समाज

लाला लाजपत राय का आंदोलन: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन

लाला लाजपत राय की राजनीतिक विचारधारा: राष्ट्रवाद, उदारवाद

 

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लाला लाजपत रायके प्रकाशन:

  • द स्टोरी ऑफ माई डिपोर्टेशन (1908)
  • आर्य समाज (1915)
  • द यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका: ए हिंदू इम्प्रेशन्स (1916)
  • यंग इंडिया (1916)
  • इंग्लैंड्स डेट टू इंडिया: इंडिया (1917)
  • मृत्यु: 17 नवंबर 1928

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लाला लाजपत राय की जीवनी

जो सरकार अपनी ही बेकसूर प्रजा पर हमला करती हो उसे सभ्य कहलाने का कोई हक नहीं है याद रखना ऐसी सरकार ज्यादा दिन रात नहीं कर सकती आज मैं यह घोषणा करता हूं कि मेरे ऊपर पड़ा 1 – 1 प्रहार अंग्रेज सरकार के ताबूत की कील साबित होगा|  यह बातें पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने कही थी|

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लाला लाजपत राय का जीवन

पंजाब वीरों की धरती है लाला लाजपत राय लाल बाल और पाल की जोड़ी में से एक थे जिन्होंने अत्यंत वीरता और निस्वार्थ भावना से ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया था उनको पंजाब केसरी भी कहा जाता है लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के फिरोजपुर जिले के ढुडीके गांव में 28 जनवरी 1865 को हुआ था|

वकालत की शिक्षा

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उन्होंने गांव से अपनी शिक्षा आरंभ की और फिर लुधियाना के मिशन हाई स्कूल में पढ़ने गए वह पढ़ाई में बहुत अच्छे थे जिसकी वजह से उन्हें स्कॉलरशिप भी मिली थी बाद में उन्होंने वकालत की शिक्षा पूरी की और हिसार में प्रैक्टिस करना शुरू कर दिए वह स्वभाव से ही बड़े भावुक और सामाजिक रूप से जागरूक थे दूसरों की मदद करना उनके स्वभाव में था इसी वजह से वह स्वामी दयानंद द्वारा छोड़े गए आर्य समाज के एक आंदोलन से ज्यादा समय तक अप्रभावित नहीं रह पाए |

आर्य समाज

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आर्य समाज उन दिनों धार्मिक और सामाजिक रूढ़ियों को खत्म करने के लिए लोगों को जागरूक करने का अभियान चला रही थी | लालाजी भी आर्य समाज के साथ काफी उत्साह पूर्वक काम करने लगे उन्होंने हिसार में एक संस्कृत स्कूल खोला और लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की 1899 में जब देश में भीषण सूखा पड़ा था तब उन्होंने लोगों की मदद के लिए जान लगा दी थी|

कांग्रेस की मीटिंग

उन्होंने पहली बार 1888 में प्रयाग में कांग्रेस की मीटिंग ज्वाइन की और 1905 में कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में उनकी पहचान बनी जब उन्हें गोपाल कृष्ण गोखले के साथ बंगाल के बंटवारे की खिलाफत करने इंग्लैंड भेजा गया इसी दौरे के बाद अंग्रेजों के बारे में उनका नजरिया भी बदल गया उन्होंने कहा कि देशवासियों को इन अभिमानी शासकों की दया पर निर्भर नहीं रहना चाहिए बल्कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए खुद को ताकतवर बनाना चाहिए|

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लालाजी एक कुशल वक्ता थे स्वामी दयानंद की मृत्यु के समय दिया गया उनका भाषण आज भी याद किया जाता है वह जितना अच्छा बोलते थे उतना ही अच्छा लिखते भी थे

उन्होंने अखबार-

  • यंग इंडिया का प्रकाशन शुरू किया
  • सेल्फ डिटरमिनेशन फॉर इंडिया
  • अनहैप्पी इंडिया
  • इंग्लैंड’स डेब्ट तो इंडिया
  • जैसी किताबें भी लिखी

Colonization Bill

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वो गरीबों के मददगार थे और कैपिटल रीजन यानी पूंजीवाद और आर्थिक शोषण के खिलाफ थे वह इंडियन ट्रेड यूनियन कांग्रेस के पहले प्रेसिडेंट है उन्होंने Colonization Bill का भी विरोध किया था जिसके अनुसार अगर किसी इंसान का कोई वारिस ना हो तो उसकी संपत्ति सरकारी हो जाने का नियम बनाया जाना था|

साइमन कमीशन

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इसके लिए उन्हें 6 महीने के लिए बाहर रहने की सजा भी दी गई थी दोस्तों ने अपनी देशभक्ति के लिए बहुत सारी दिक्कतें उठानी पड़ी और कई बार जेल भी जाना पड़ा है उन्होंने मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास की बनाई स्वराज पार्टी ज्वाइन की और इसी पार्टी से चुनाव जीते इस समय तक भारत के विकास के बारे में रिपोर्ट बनाने के लिए अंग्रेज सरकार ने साइमन कमीशन का भी गठन कर लिया था|

लाठीचार्ज

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जिसका भारत में जमकर विरोध हुआ क्योंकि इसमें सिर्फ अंग्रेज थे और कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था दोस्तों लाला लाजपत राय दी इसके विरोध में थे और 30 अक्टूबर 1928 को जब साइमन कमीशन लाहौर पहुंचा तो लाला जी की अगुवाई में इसका विरोध हुआ इस विरोध को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया और पुलिस को भीड़ भगाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया|

आखिरी सांस

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एक ब्रिटिश ऑफिसर साउंडर्स ने लाला जी को बहुत मारा जिसकी वजह से वह बहुत घायल हो गये बाद में 17 नवंबर 1928 को लाला जी ने आखिरी सांस ली उनकी मौत का शौक देश भर में फैल गया और महात्मा गांधी ने कहा कि:-

“जब तक सूरज भारत के आसमान में चमक रहा है

लाला जी नहीं मर सकते

लालाजी ने जवानी से ही देश की सेवा की है

लाला जी को अपनी देशभक्ति और साहस के लिए

हमेशा याद किया जाएगा”

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