Homi Bhabha Biography in Hindi
होमी जहांगीर भाभा की जीवनी
होमी जहांगीर
भाभा का पूरा नाम |
होमी जहांगीर भाभा
|
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होमी जहांगीर भाभा
का जन्मदिन |
30 अक्टूबर, 1909 |
होमी जहांगीर भाभा
का जन्मस्थान |
मुंबई में |
होमी जहांगीर भाभा
का पद कार्य |
भारत के परमाणु उर्जा
कार्यक्रम के जनक |
होमी जहांगीर भाभा
द्वारा जीते नोबेल पुरुस्कार |
5 बार |
रॉयल सोसाइटी
का सदस्य |
1941 में मात्र
31 वर्ष की आयु में
|
पद्मभूषण से अलंकृत | वर्ष 1954 में |
होमी जहांगीर भाभा
का जन्म |
30 अक्टूबर 1909 मुंबई, भारत |
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होमी जहांगीर भाभा
की मृत्यु |
24 जनवरी 1966 मोंट ब्लांक, फ्रांस |
होमी जहांगीर भाभा
का आवास |
भारत |
होमी जहांगीर भाभा
की राष्ट्रीयता |
भारतीय |
होमी जहांगीर भाभा
की जातियता |
पारसी |
होमी जहांगीर भाभा
का क्षेत्र |
परमाणु वैज्ञानिक |
होमी जहांगीर भाभा
की संस्थान |
Cavendish Laboratories भारतीय विज्ञान संस्थानटाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान परमाणु ऊर्जा आयोग (भारत) |
होमी जहांगीर भाभा
की शिक्षा |
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से |
होमी जहांगीर भाभा
की डॉक्टरी सलाहकार |
पॉल डिराक रॉल्फ एच फाउलर |
होमी जहांगीर भाभा
की डॉक्टरी शिष्य |
बी भी श्रीकांतन |
होमी जहांगीर भाभा
की प्रसिद्धि |
भाभा स्कैटेरिंग |
होमी जहांगीर भाभा जी को विज्ञान के क्षेत्र में कई अवार्ड सम्मान पाए है जिनमे से कुछ इस प्रकार है –
- होमी भाभा भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों से कई मानद डिग्रियां प्राप्त हुईं
- 1941 में मात्र 31 वर्ष की आयु में डॉ भाभा को रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुना गया
- उनको पाँच बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया
- वर्ष में 1943 में एडम्स पुरस्कार मिला
- वर्ष 1948 में हॉपकिन्स पुरस्कार से सम्मानित
- वर्ष 1959 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने डॉ. ऑफ सांइस प्रदान की
- वर्ष 1954 में भारत सरकार ने डॉ. भाभा को पद्मभूषण से अलंकृत किया
- इनको पांच बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया।
Homi Bhabha Biography in Hindi
होमी जहांगीर भाभा की जीवनी
“मेरी सफलता इस बात पर निर्भर नहीं करती
कि कोई व्यक्ति मेरे बारे में क्या सोचता है
मैं अपने काम से क्या कर सकता हूं
उस पर मेरी सफलता निर्भर करती है”
न्यूक्लियर पावर
आज भारत को दुनिया में एक न्यूक्लियर पावर के रूप में जाना जाता है भारत और दुनिया के 9 देशों में से एक है जिसके पास न्यूक्लियर पावर है | आज हम बात करने जा रहे हैं उस साइंटिस्ट के बारे में जिन्होंने अपने प्रयासों से भारत में न्यूक्लियर पावर के रिचार्ज की नींव रखी थी | होमी जहांगीर भाभा जिन्हें हम होमी जे भाभा के नाम से जानते हैं इनका नाम तो आपने सुना ही होगा आज हम बात करेंगे उनकी उपलब्धियों और भारत के परमाणु विकास में उनके योगदान की इनके बारे में पूरी जानकारी लेने के लिए इस पोस्ट को अंत तक पढ़िए|
संस्थानों की नींव
होमी जे भाभा को फादर ऑफ इंडियन न्यूक्लियर प्रोग्राम यानि भारतीय परमाणु कार्यक्रम का जनक भी कहा जाता है उन्होंने भारत में दो प्रसिद्ध शोध संस्थानों की नींव रखी है पहली है TIFR यानी टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और दूसरी है AEET जिसका नाम बदलकर आभार एटॉमिक रिसर्च सेंटर रख दिया गया था तो चलिए इन के बारे में शुरू से जानते हैं | होमी जे भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1960 को मुंबई के पारसी परिवार में हुआ था उनका परिवार बहुत शिक्षित और धनी था | उनके पिता जहांगीर होर्मूसजी भाभा अंग्रेजों के जमाने के प्रसिद्ध लॉयर ( वकील ) थे |
दोराबजी टाटा
उनकी शुरुआती शिक्षा मुंबई के कैथ्रेडल एंड जॉन कॉनन स्कूल से हुई फिर वह एल्फिंस्टन कॉलेज में पढ़े और उसके बाद रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में एडमिशन लिए | पढ़ाई के अलावा उन्हें पेंटिंग और म्यूजिक का भी बहुत शौक था उनके पिता और उनके रिश्तेदार दोराबजी टाटा जो उस समय के बहुत बड़े उद्योगपति थे दोनों लोग मिलकर उनके ऊपर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने का दबाव बनाने लगे जिससे कि वह वापस आकर टाटा स्टील में काम कर सके|
टर्निंग प्वाइंट
कैंब्रिज में जाने को उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट भी कहा जा सकता है क्योंकि उस समय कैंब्रिज यूनिवर्सिटी कई नए आविष्कारों का केंद्र बन चुकी थी वहीं पर शोध कर रहे पॉल डीरेक से वह काफी प्रभावित हुए थे | आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि पॉल डीरेक ने पहली बार एंटीमैटर के होने की संभावना जताई थी उनके योगदान के लिए उन्हें नोबेल प्राइज मिला था |
न्यूटन स्टूडेंट शिप
उन्हीं के काम से प्रभावित होकर होमी जे भाभा को भी न्यूक्लियर रिसर्च में इंटरेस्ट आने लगा 1933 में एक महत्वपूर्ण रिसर्च पेपर पब्लिश करने के बाद उन्हें न्यूक्लियर फिजिक्स में डॉक्टरेट मिल गई | इस पेपर के कारण वह ISSAC न्यूटन स्टूडेंट शिप जीत गए इसके बाद कई सारे रिसर्च ने एक साइंटिस्ट के रूप में उनकी पहचान बना ली|
कॉस्मिक रे रिसर्च
कैंब्रिज में को रिचार्ज के साथ-साथ और उसमें भी बहुत रूचि लेते थे 1939 में वह छुट्टी पर भारत वापस आए उसी समय विश्व युद्ध भी शुरू हो गया और उन्होंने इंडिया में ही रहने का फैसला कर लिया उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में काम करने का फैसला कर लिया जिसके हेड उस समय के प्रसिद्ध साइंटिस्ट सीवी रमन जी थे उन्हें दोराबजी टाटा ट्रस्ट से रिचार्ज के लिए फंडिंग मिली जिससे उन्होंने कॉस्मिक रे रिसर्च यूनिट बनाया|
न्यूक्लियर फिजिक्स
वहीं पर काम करते समय उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि भारत में कोई एक ऐसा इंस्टिट्यूट नहीं है जहां न्यूक्लियर फिजिक्स के क्षेत्र में रिचार्ज की जा सके वह यह समझ गए थे कि भारत में भी कई ऐसे वैज्ञानिक हैं जो इस क्षेत्र में अलग-अलग काम कर रहे हैं लेकिन अलग-अलग काम करने की वजह से कोई बड़ा अविष्कार नहीं हो पा रहा है अगर कोई एक ऐसी जगह हो जहां सभी वैज्ञानिक एक साथ काम कर सके और वहां काम करने की सारी सुविधाएं मौजूद हो तो न्यूक्लियर फिजिक्स क्षेत्र में भारत बहुत आगे जा सकता है|
1200 एकड़ जमीन
यही बातें उन्होंने सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट को लिखें और उनसे इंस्टिट्यूट बनाने के लिए आर्थिक मदद की पेशकश की उनका यह प्रपोजल स्वीकार कर लिया गया है उन्होंने 1945 में मुंबई में TIFR – टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की नीव रखी | बाद में जब उन्हें लगा कि टीआईएफआर में पूरी तरह से एटॉमिक रिसर्च नहीं हो पाएगी तो उन्होंने गवर्नमेंट से एक नहीं लैब लॉटरी बनाने की रिक्वेस्ट की जिसे स्वीकार कर लिया गया और उसके लिए 1200 एकड़ जमीन अलाट कर दी गई |
भाभा स्कैटरिंग
1954 में AEET यानी एटॉमिक एनर्जी डेवलपमेंट ट्रॉम्बे में काम शुरू हो गया उनका दुनिया भर के बड़े वैज्ञानिकों से परिचय था जिन्हें वह इंडिया में बुलाते थे और इंडियन साइंटिस्ट से मिल जाते थे जिससे कि उन्हें कुछ सीखने को मिले और प्रोत्साहन मिले उन्होंने परमाणु हथियारों पर सर्च करना शुरू कर दिया भारत की आजादी के बाद 1948 में नेहरू जी ने उन्हें भारत के परमाणु कार्यक्रम का डायरेक्टर बना दिया और देश के लिए परमाणु हथियार विकसित करने की जिम्मेदारी उन्हें ऑफिशियल सौप दी | उनके द्वारा किया गया एक महत्वपूर्ण शोध भाभा स्कैटरिंग आज पूरी दुनिया में निकले थे जिसमें पढ़ाया जाता है |
AEET
1954 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था उन्होंने उस समय की एक और प्रसिद्ध साइंटिस्ट विक्रम साराभाई को स्पेस रिसर्च के लिए एक राष्ट्रीय कमेटी बनाने में बहुत सहयोग दिया था 24 जनवरी 1966 को एक प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु हो गई हालांकि उनकी मृत्यु को एक विदेशी एजेंसी की साजिश भी कहा जाता है जिससे कि भारत में बढ़ते परमाणु शोध को रोका जा सके उनकी मृत्यु के बाद AEET का नाम बदलकर भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर रख दिया गया | परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा|
आपको यह पोस्ट कैसी लगी कमेंट करके हमें बताएं| धन्यवाद ( OSP )