C V Raman Biography in Hindi सी. वी. रमन की जीवनी

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सी. वी. रमन की जीवनी

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सी. वी. रमन का पूरा नाम सर – चंद्रशेखर वेंकट रमन
सी. वी. रमन का उपनाम सी.वी. रमन
सी. वी. रमन का जन्मदिन 7 नवंबर, 1888
सी. वी. रमन का जन्मस्थान तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु
सी. वी. रमन के पिता का नाम चंद्रशेखर अय्यर
सी. वी. रमन की माता का नाम पार्वती अम्मल
सी. वी. रमन की पत्नी का नाम त्रिलोकसुंदरी
सी. वी. रमन का क्षेत्र भौतिक वैज्ञानिक
सी. वी. रमन का कार्य रमन प्रभाव (Raman effect) की खोज
सी. वी. रमन की शिक्षा M.Sc. (भौतिक शास्त्र) (वर्ष – 1906)
सी. वी. रमन की संस्थान भारतीय वित्त विभाग

 

इंडियन एसोसिएशन फॉर

कल्टिवेशन ऑफ साइंस

 

भारतीय विज्ञान संस्थान

सी. वी. रमन की प्रसिद्धि रामन इफेक्ट
सी. वी. रमन की मृत्यु 21 नवम्बर, 1970, बैंगलोर
सी. वी. रमन के पुरूस्कार व सम्मान प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन प्रभाव

की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार,

‘भारत रत्न’, लेनिन पुरस्कार’

सी. वी. रमन की उपलब्दियाँ रमन प्रभाव की खोज

नोबेल पुरस्कार

भारत रत्न

सी. वी. रमन की नागरिकता भारतीय

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वैज्ञानिक सीवी रमन के पुरूस्कार व उपलब्धियां – CV Raman Awards

भारत के महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन को विज्ञान के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई पुरुस्कारों से भी नवाजा गया, जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं-

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  • साल 1924 में , वैज्ञानिक सीवी रमन को लन्दन की ‘रॉयल सोसाइटी’ का सदस्य बनाया गया।
  • 28 फ़रवरी 1928 को सी.वी रमन ने  ‘रमन प्रभाव’ की खोज की थी, इसलिए इस दिन को भारत सरकार ने हर साल ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में बनाने की घोषणा की थी।
  • साल 1929 में , सी.वी रमन ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस की 16 वें सत्र की अध्यक्षता ।
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  • साल 1929 में , सी.वी रमन को उनके अलग-अलग प्रयोगों और खोजों के कई यूनिवर्सिटी से मानद उपाधि, नाइटहुड के साथ बहुत सारे पदक भी दिए गए।
  • साल 1930 में , प्रकाश के प्रकीर्णन और ‘रमन प्रभाव’ जैसी महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें उत्कृष्ठ और प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया।
  • आपको बता दें कि वे इस पुरस्कार को पाने वाले पहले एशियाई भी थे।
  • साल 1954 में, विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया।
  • साल 1957 में , सीवी रमन को लेनिन शांति पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।
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“जो काम आपके सामने है

उसे पूरी हिम्मत और लगन से करें

तो सफलता आपके पास जरूर आएगी”

फिजिसिस्ट सीवी रमन

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आज हम बात करने जा रहे हैं भारत के प्रसिद्ध फिजिसिस्ट सीवी रमन के बारे में जिन्होंने गुलाम भारत में जन्म लेने के बावजूद अपनी काबिलियत के दम पर न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में नाम कमाया उनके द्वारा किया गया एक शोध रमन इफेक्ट या रमन स्कैटरिंग आज दुनिया भर की विज्ञान की किताबों में मौजूद है जिसके लिए 1930 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था तो चलिए इनके बारे में शुरू से जानते हैं|

जानने की इच्छा

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सी.वी रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था जो उस समय मद्रास प्रेसिडेंसी का हिस्सा था उनका पूरा नाम चंद्रशेखर वेंकटरमन था उनके पिता विज्ञान के लेक्चरर थे जिन्होंने बचपन से ही उन्हें विज्ञान के बारे में बहुत कुछ बताया था सी वी रमन जी बचपन से ही बड़े जिज्ञासु स्वभाव के थे हमारे आस पास जो भी चीजें होती हैं

वह कैसे होती हैं? और क्यों होती हैं?

यह जानने की इच्छा होने हमेशा रहती थी और यह जागरूकता उनके मन में बुढ़ापे में भी उतनी ही थी जितनी कि बचपन में उनके पिता उनके सवालों के जवाब देते थे और उन्हें ज्यादा से ज्यादा विज्ञान के बारे में बताते थे यूं कह लीजिए किस वैज्ञानिक के पहले गुरु उनके पिता ही थे|

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सरकारी नौकरी

जब कॉलेज में गए तो उन्होंने कई तरह के शोध किए और रिसर्च पेपर लिखे मगर वहां मौजूद अंग्रेज प्रोफेसर उसने उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया उन्हें इस बात का एहसास होने लगा था कि भारत के गुलाम होने की वजह से यहां पर किसी सामान्य इंडियन के द्वारा कोई रिसर्च करना या लोगों तक अपने शोध को पहुंचा पाना बहुत कठिन है इसलिए वह सरकारी नौकरी में आने की कोशिश करने लगे|

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एग्जाम में टॉप

फाइनेंशियल सिविल सर्विस एग्जाम में उन्होंने टॉप कर लिया और सबसे कम उम्र के असिस्टेंट अकाउंटेंट जनरल बने उसके बाद उन्होंने लोग सुंदरी अम्मल से 1960 में शादी कर ली उनके दो लड़के थे चंद्रशेखर और राधाकृष्णन नौकरी के साथ-साथ व रिसर्च करना भी शुरू कर दिए|

प्रसिद्धि: नोबेल प्राइज

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धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि बढ़ती गई और कोलकाता यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ने उन्हें यूनिवर्सिटी में फिजिक्स प्रोफेसर की नौकरी का ऑफर दिया अपनी वर्तमान नौकरी के मुकाबले कम तनखा होने के बावजूद उन्होंने बड़ी खुशी से इस ऑफर को स्वीकार भी कर लिया एक बार उन्होंने सोचा कि समुद्र का रंग नीला क्यों होता है इस पर उन्होंने शोध करना शुरू कर दिया और कई सालों तक चले शोधों का रिजल्ट रमन इफेक्ट दुनिया के सामने आया जिसके लिए उन्हें नोबेल प्राइज मिला|

विद्रोह

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1933 में वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु के डायरेक्टर बना दिए गए इस पद को पाने वाले वह पहले भारतीय थे वरना इसके पहले वहां सिर्फ ब्रिटिश डायरेक्टर होते थे उन्होंने वहां पर पहली बार फिजिक्स का डिपार्टमेंट बनाया वह चाहते थे कि इंडिया में शोध का एक अच्छा माहौल बनाया जा सके मगर इसके कारण कई तरह के विद्रोह होने लगे जिसकी वजह से बाद में उन्होंने डायरेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया और फिजिक्स के हेड ऑफ डिपार्टमेंट के रूप में काम करते रहे|

रिटायर

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अपने रिटायर होने के 2 साल पहले 1948 में उन्होंने स्वतंत्र होकर रिचार्ज करने के लिए रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया में काम करते समय एक दिन वह बेहोश हो गए उनके दिल में कुछ परेशानी आ गई थी उस समय उन्हें बचा लिया गया डॉक्टर ने कहा कि उनके पास गिनती के कुछ ही दिन बचे हैं उन्होंने हॉस्पिटल में रहने से इंकार कर दिया क्योंकि वह अपने आखिरी दिन अपनी इंस्टिट्यूट में बिताना चाहते थे|

काम के प्रति समर्पित

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अपने काम को लेकर वह कितने समर्पित थे इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अपनी मृत्यु के 1 दिन पहले बिस्तर पर पड़े हुए ही इंस्टिट्यूट के काम के बारे में जानकारी लेने के लिए उन्होंने अपने इंस्टिट्यूट के मैनेजमेंट से मीटिंग ली 21 नवंबर 1970 को 82 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई मगर विज्ञान के क्षेत्र में उनके द्वारा दिए गए योगदान को हमेशा याद किया जाता रहेगा|

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