(Complete Notes) CTET Pedagogy Notes In Hindi Pdf Download

CTET Pedagogy Notes In Hindi Pdf Download

CTET Complete Child Development and Pedagogy

बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र Pdf download in Hindi

आज के इस आर्टिकल में हम आपको संपूर्ण बाल शिक्षा एवं शिक्षण शास्त्र के नोट्स देने जा रहे हैं Complete CTET Pedagogy Notes In Hindi Pdf Download, जिसे पढ़कर आप अपना कोई भी टीचिंग एग्जाम पास कर सकते हैं यह संपूर्ण नोट्स हैं जिन्हें आप एक क्लिक में डाउनलोड कर सकते हैं और डाउनलोड का लिंक आर्टिकल के अंत में दिया गया है |

 Note – इस वेबसाइट पर (Letslearnsquad.com) आपको सभी प्रकार के नोट्स फ्री में मिल जाएंगे | जो यूट्यूब पर आपको पैसे देकर नोट्स देते हैं यह वही नोट्स है | बल्कि उनसे ज्यादा कंटेंट तो इसमें है | आप इन नोट्स को पूरा पढ़िए और अपना एग्जाम पास करिए और फिर इन नोट्स को आने वाले स्टूडेंट्स को पास कर दें यानी कि उन्हें दे दें ताकि उनकी मदद हो जाए | उन्हें इधर-उधर भटकना न पड़े जैसे आप भटक रहे थे | मैंने तो अपना काम कर दिया यह नोट्स पास करके अब आपकी बारी है |

(कर भला तो हो भला)

(A Good Deed Always Comes Around)


आरंभ


जीन पियाजे (Jean Piaget)

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जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत –

  • जीन पियाजे एक मनोवैज्ञानिक थे | उनका जन्म 9 अगस्त सन 1896 को स्विट्जरलैंड में हुआ था 
  • इस विकास का प्रतिपादन जीन पियाजे ने ही किया था
  • जीन पियाजे ने अपने बच्चों और आस पड़ोस के बच्चों पर ज्ञानात्मक, संज्ञान, मानसिक विकास का अध्ययन किया था
  • जीन पियाजे के सिद्धांतों को अवस्था का सिद्धांत और विकासात्मक सिद्धांत भी कहा जाता है
  • जीन पियाजे का मानना है कि जिस तरीके से बच्चों में जैविक परिपक्वता आती है वैसे वैसे वह वस्तुओं के बारे में अपने दिमाग में धारणा मना लेते हैं|

परिभाषा – बच्चे नन्हे वैज्ञानिक तथा सक्रिय ज्ञान निर्माता है जो कि संसार के बारे में अपने सिद्धांतों की रचना करते हैं |

संज्ञानात्मक विकास की अवधारणा (Concept of Cognitive Development)

1.अनुकूलन  (Adaptation)

अनुकूलन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से जीव अपने पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाते हैं जैसे कि – मनुष्य पर्यावरण के अनुकूल होते हैं वैसे ही उनका चिंतन भी उन परिवर्तनों के अनुकूल होता है जो भी वे अनुभव करते हैं अनुकूलन में 2 बुनियादी प्रक्रियाएं समायोजन और समावेश शामिल है 

  • वातावरण के अनुसार अपने आपको ढालना अनुकूलन कहलाता है 
  • जीन पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास दो प्रक्रियाओं संतुलन और अनुकूलन से होता है
  • अनुकूलन में दो उप क्रियाएं समायोजन और आत्मसात करण शामिल है
  • अनुकूल में स्थितिजान्य मांगों को पूरा करने के लिए बच्चे का परिवर्तन शामिल होता है

आत्मसातकरण और समायोजन (Assimilation and Accomodation)

जीन पियाजे एक प्रमुख स्विस मनोवैज्ञानिक है जिन्होंने बच्चों के संज्ञानात्मक विकास को समझने में बहुत बड़ा योगदान दिया है उन्होंने वर्षों की अवधि में बच्चों का आकलन किया था और साथ ही कहा कि मानव व्यवहार भौतिक पर्यावरण के अनुकूलन का एक कार्य है

  •  जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया को समझने के लिए आत्मसात करने के लिए समायोजन,  आत्मसातकरण, स्कीमा और संतुलन की चार प्रक्रियाओं का प्रयोग किया था
  •  समायोजन और आत्मसातकरण की प्रक्रिया पर्यावरण के साथ होने वाली अंतः क्रियाओं का मूल आधार है

1. आत्मसातकरण (Assimilation)

  • आत्मसातकरण नई वस्तुओं या विचारों को समझने की मौजूदा क्षमता के साथ समझना है 
  • आत्मसातकरण को हम समावेश भी कह सकते हैं यह हमारे पहले से मौजूद स्कीमा में जानकारी लेने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है यह वह तरीका है जिसमें कोई व्यक्ति पूर्व मौजूदा मानसिक संरचनाओं में बिना किसी बदलाव के नई जानकारी लेता है और उसकी व्याख्या करता है |
  • आत्मसातकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक बच्चा अनुभवों और धारणाओं को मौजूदा संज्ञानात्मक संरचनाओं (स्कीमा) में अनुकूल करके समझता है

उदाहरण – मान लीजिए एक बच्चा जो गाय से परिचित है वह भैंस को देखकर चार पैर वाले जानवर (गाय) के मौजूदा स्कीमा में अधिक जानकारी जोड़कर एक अनुभव के अनुकूल होगा 

मतलब एक बच्चा है जिसने गाय देखी है और वह भैंस को देखकर कहता है कि यह भी एक गाय है तब हम उसे बताएंगे कि यह एक भैंस है तो वह अपने आप ही दिमाग में बिठा लेगा की हर चार पैर वाला जानवर गाय नहीं होती यह भैंस है क्योंकि इसका रंग ऐसा है और देखने में ऐसी है |

अब कक्षा में समझते हैं – जब शिक्षक नई अवधारणाओं का परिचय देते हैं तो वे अवधारणाओं को पहले से मौजूद ज्ञान से जोड़कर आत्मसात करने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने का प्रयास करते हैं

2. समायोजन (Accomodation)

  • समायोजन एक नई वस्तु के साथ संतुलन करने की प्रवृत्ति मतलब नई वस्तु में अनुकूल होने के लिए किसी की समझ को बदलना होता है
  • समायोजन तब होता है जब किसी व्यक्ति को नई स्थिति का उत्तर देने के लिए मौजूदा योजनाओं को बदलना चाहिए उदाहरण के लिए बच्चा अपने चूसने के तरीके को संशोधित करता है और एक नए खिलौने को चूसने को शामिल करता है
  • जब कभी आत्मसात करने की प्रक्रिया काम नहीं करती है क्योंकि नए अनुभव किसी भी मौजूदा स्कीमा में अनुकूल नहीं होते हैं तो नए अनुभव के अनुकूल होने के लिए एक नए स्कीमा विकसित करना होता है
  • एक नया स्कीमा बनाने और किसी की मौजूदा संज्ञानात्मक संरचनाओं में संशोधन करके सोचने और करने की विधियों को समायोजित करने की प्रक्रिया को समायोजन कहा जाता है |

उदाहरण – मान लीजिए आप चेन्नई में छात्रों की एक कक्षा को वर्ष के लगभग चार मौसम पढ़ा रहे हैं तो हो सकता है कि उनके पास सर्दियों के मौसम के बारे में स्कीम न हो क्योंकि चेन्नई में सर्दी का अनुभव नहीं होता है इसलिए बच्चों को नई जानकारी को व्यवस्थित करने के लिए एक नया स्कीमा बनाना होगा 

मतलब आप चेन्नई शहर में बच्चों को पढ़ा रहे हैं एक शिक्षक के तौर पर और आप उनको पढ़ाएंगे कि भारत में 4 तरह के मौसम होते हैं भारत में चार ऋतु होती हैं-

  1. शीत ऋतु 
  2. ग्रीष्म ऋतु 
  3. वर्षा ऋतु 
  4. शरद ऋतु 

जब आप उन छात्रों को शरद ऋतु के बारे में बताएंगे तब उनको यकीन नहीं होगा कि शरद ऋतु भी होती है यानी कि ठंडा मौसम भी होता है जिसमें हर समय स्वेटर पहनना होता है और इसी प्रकार वह अपने दिमाग में यह स्कीमा और बना लेंगे कि ऐसा भी एक मौसम होता है जिसमें सर्दी पड़ती है

3. संतुलन (Equilibiration)

जीन पियाजे पहले ऐसे मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने संज्ञानात्मक विकास का व्यवस्थित अध्ययन किया था जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत के अनुसार समावेश (आत्मसातकरण) समायोजन और संतुलन एक ऐसी विधि है जिसके माध्यम से बच्चे नए अनुभवों को पहले से मौजूदा अनुभूति संरचनाओं धारणाओं स्कीमा में एकीकृत करते हैं | इसके द्वारा बच्चे आत्मसातकरण और समायोजन की प्रक्रिया के बीच संतुलन कायम करते हैं |

  • संतुलन तब होता है जब एक बच्चा पुरानी और नई धारणाओं और अनुभवों के बीच सामंजस्य बनाता है और जब उसकी योजनाएं समावेश के माध्यम से सबसे नई जानकारी में समाधान कर सकती हैं |
  • असंतुलन की स्थिति तब पैदा होती है जब नई जानकारी मौजूदा मानसिक निरूपण (समावेश) में समा न सकती हो |

स्कीम्स (Schemes)

  • अनुभव या व्यवहार को संगठित करने की ज्ञानात्मक संरचना को स्कीम्स कहते हैं |

स्कीमा (Schemas)

  • जीन पियाजे ने स्कीमा को बुद्धिमान व्यवहार का बुनियादी निर्माण खंड और ज्ञान को व्यवस्थित करने का एक रूप कहां है एक स्कीमा को विश्व के जुड़े हुए मानसिक अभ्यावेदन के एक समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसका उपयोग हम स्थितियों को समझने और प्रतिक्रिया करने के लिए करते हैं | 
  • मानव के दिमाग में जो चीजें पहले से ही संरक्षित होती हैं वह उनका प्रयोग करके किसी विषय के प्रति एक धारणा बनाता है और इसे हम स्कीमा कहते हैं |

जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएं बताई है (Jean Piaget has given four stages of cognitive development)

जीन पियाजे एक स्विज़ मनोवैज्ञानिक हैं जिन्होंने अपने सिद्धांत में संज्ञानात्मक विकास का एक व्यवस्थित अध्ययन किया है जिसे 4 चरणों में वर्गीकृत किया गया है –

  • अवस्था 1: संवेदी- गामक अवस्था (जन्म 2 वर्ष)
  • अवस्था 2: पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (2 से 7 वर्ष)
  • अवस्था 3: मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (7 से 11/12 वर्ष)
  • अवस्था 4: औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (11/12 से 15 वर्ष)

1. संवेदी- गामक अवस्था (Sensory Motor Stage) (जन्म 2 वर्ष)

इस अवस्था में शिशु अपनी ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से सीखता है 

  • इस अवस्था में से शुरू अपनी इंद्रियों के साथ-साथ वस्तुओं के साथ शारीरिक संबंध का उपयोग करके दुनिया के बाद का निर्माण करते हैं जैसे कि कुछ चीजें पकड़ने खिलौने जो उसने और कदम रखने जैसे शारीरिक संबंध का उपयोग करते हैं और वह अपनी इंद्रियों जैसे सुनना और देखना का भी उपयोग करते हैं
  •  इस चरण की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है वस्तु स्थायित्व का विकास (Object Permanance) इस अवस्था में वस्तु स्थायित्व का गुण आ जाता है यानी के शिशु अपने दिमाग में वस्तुओं की छाप बनाना शुरू कर देता है जिससे वह छुपी हुई वस्तु को भी ढूंढ लेता है |

2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Sensory Motor Stage) (2 से 7 वर्ष)

यह क्रिया करने से पहले की अवस्था है इसमें बच्चा सामने वाले सामने आने वाली चीजों को देख पाएगा और समझ पाएगा लेकिन कोई क्रिया नहीं कर पाएगा 

जीन पियाजे के अनुसार पूर्व संक्रियात्मक एक ऐसी अवस्था है जिसके जिसमें एक बच्चा अवधारणाआत्मक अपरिवर्तनीयता, भाषा विकास केंद्रीकरण, अहंकेंद्रवाद और जीववाद प्राप्त करता है 

  •  बच्चों में स्मृति कल्पना और जिज्ञासा का विकास होता है |
  •  इस अवस्था में वह चीजों को प्राकृतिक प्रतीकात्मक रूप से समझने में सक्षम होते हैं जैसे कि वह खेलते समय घर-घर खेलना खेलते हैं और चाय पार्टी भी करते हैं |
  •  इस अवस्था में सोचना उदासीन है और दूसरों के दृष्टिकोण पर विचार नहीं करते हैं |

 

  • जीववाद (Animism) – जीववाद अवस्था में बच्चा सजीव और निर्जीव वस्तुओं में अंतर नहीं कर पाता है | जीववाद वह क्षमता है जो बच्चा सोचता है कि निर्जीव वस्तुओं में एक व्यक्ति की तरह जीवन और भावनाएं और इरादे होते हैं | जैसे कि जब वह खिलौने के साथ खेलता है तब है उससे बात भी करता है और उसके साथ खेलता भी है |
  • अहंकेंद्रवाद (egocentrism) – जब बच्चा यह सोचना शुरू कर देता है कि वह जो कर रहा है सोच रहा है वही सब सोचते हैं और वही ठीक है |
  • अपरिवर्तनीयता  (irreversibility) – इसमें बच्चा वस्तुओं संख्याओं समस्याओं आदि को पलटना पलटना नहीं जानता है |

जैसे कि – 

  • 4 + 5 = 9
  • 5 + 4 = ?
  1. मुद्रा संप्रत्यय (currency concept) भार, ऊंचाई, दूरी आदि की धारणा की कमी इसी अवस्था में होती है

 जैसे कि –  यदि आप बच्चे के सामने सो सो के नोट रख देंगे और एक तरफ चिल्लर रख देंगे तब उसमें से वह चिल्लर को ही चलेगा क्योंकि वह देखने में ज्यादा लगते हैं

  • केंद्रीकरण (Centralization) – जब बच्चा किसी वस्तु की सारी विशेषताओं को छोड़कर केवल एक विशेषता पर ध्यान देता है वह अवस्था केंद्रीकरण कहलाती है

3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational State) (7 से 11 वर्ष)

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बच्चा सामने रखी हुई चीजों को देखकर ही कुछ कर सकता है या उस पर चिंतन करना शुरू कर देता है |

  • इस अवस्था में अपलटावी, जीववाद,  मुद्रा, भार आदि की धारणा का गुण आ जाता है |
  • अपने स्वयं के विचारों और दूसरों के विचारों के बीच अंतर करने की क्षमता आ जाती है |
  •  बच्चे वस्तुओं को उनकी संख्या द्रव्यमान आदि के आधार पर वर्गीकृत कर सकते हैं |
  •  बच्चे वस्तुओं और घटनाओं के बारे में तार्किक रूप से सोचने की क्षमता रखते हैं |

आगमनात्मक तर्कणा (Inductive reasonin) यह भी इसी अवस्था में आता है यानी कि जब बच्चा उदाहरण के ऊपर आधारित होकर तर्क करने लगता है |

जैसे कि – 

बच्चा – हमारे लिए  पेड़ जरूरी है या नहीं है 

उत्तर – क्योंकि इससे हमें ऑक्सीजन मिलती है

4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational Stage) (11 से 15 वर्ष)

औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था संज्ञान की सर्वोच्च अवस्था है और यह अवस्था प्याजे के वर्गीकरण की चौथी अवस्था है जो लगभग 11 वर्ष की आयु से शुरू होती है और लगभग 15 वर्ष की आयु तक जारी रहती है मूर्त संक्रियात्मक में बच्चे को मुख्य रूप से चार महत्वपूर्ण संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है उनके नाम निम्नलिखित हैं |

  1.  मानसिक प्रतिनिधित्व
  2.  संरक्षण
  3.  वर्ग समावेश
  4.  बहु वर्गीकरण

इसमें बच्चा अमूर्त और वैज्ञानिक चिंतन करने लग जाता है |

यह सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है जहां मानसिक क्षमताओं को अधिकतम स्तर तक विकास किया जा सकता है काल्पनिक और निगमनात्मक तर्क के लिए सक्षम है |

अमूर्त रूप से सोचने पर आसन ज्ञान और समस्या का हल करने की क्षमता होती है |

निगमनात्मक तर्कणा –  इसमें बच्चा नियमों के ऊपर तर्क करने लगता है |

जैसे कि – गणित के सवाल मन में ही हल कर देते हैं क्योंकि नियम पता है |

पियाज़े के संज्ञानात्मक विकास के 4 चरण है :

विकास के चरण विशेषताएँ
संवेदीप्रेरक अवस्था​ 

(जन्म से 2 वर्ष)

  • इंद्रियों और क्रियाओं के माध्यम से दुनिया को देखता है

(देखना, सुनना, छूना, बोलना और प्राप्त करना आदि)

  • वस्तु स्थायित्व विकसित करता है
  • संज्ञानात्मक विकास बच्चे की इंद्रियों और गति के उपयोग से शुरू होता है
पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था

   (2-7 वर्ष)

  • चित्रों और शब्दों द्वारा वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए भाषा का उपयोग करना सीखता है
  • सोच अहंकार केंद्रित है; दूसरों के दृष्टिकोण को समझने में कठिनाई होती है
  • प्रतीकात्मक सोच विकसित करता है 
  • किसी एकल सुविधा द्वारा वस्तुओं को वर्गीकृत करता है। 
मूर्त संक्रियात्मक 

(7-11 वर्ष)

  • संख्या (आयु -6), द्रव्यमान (आयु -7) और वजन (आयु -9) की स्थिरता प्राप्त करता हैडी
  • परिचालन सोच विकसित करता है 
  • ठोस घटनाओं के बारे में तार्किक रूप से सोचना, ठोस अंकगणितीय संचालन करना
अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था

  (11 वर्ष और उस से अधिक)

  • काल्पनिक, भविष्य और वैचारिक समस्याओं से संबंधित हो जाता है
  • अमूर्त अवधारणा विकसित करता है
  • अधिक परिपक्व नैतिक तर्क के लिए संभावित 

 


लॉरेंस कोहलबर्ग (Lawrence Kohlberg)

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लॉरेंस कोहलबर्ग का नैतिकता का सिद्धांत (Lawrence Kohlberg’s Theory of Moral Development)

  • नैतिकता (Morality) नैतिकता वह गुण है जिससे हमें सही और गलत की पहचान होती है और बच्चा अपने सामाजिक परिवेश से ही नैतिकता और अनैतिकता को जानता है |
  • लॉरेंस  कोलबर्ग अमेरिका के एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने नैतिकता का सिद्धांत या नैतिक विकास का सिद्धांत दिया था |
  • लॉरेंस कोहलबर्ग अपने प्रयोग में छोटी कथाओं को उपस्थित कर उससे संबंधित नैतिक समस्याओं के संबंध में प्रश्न पूछते थे उनके द्वारा पूछे जाने वाली लघु कथाओं में से एक प्रसिद्ध लघु कथा हम आपको बताने जा रहे हैं –

यूरोप में एक महिला मौत के कगार पर थी डॉक्टरों ने कहा कि एक दवाई है जिससे शायद उसकी जान बच जाए | वह दवाई एक तरीके का रेडियम था |  जिसकी खोज उस शहर के एक फार्मासिस्ट ने तभी की थी |  दवाई बनाने का खर्च बहुत ज्यादा था और दवाई वाला दवाई बनाने के खर्च से 10 गुना ज्यादा पैसे मांग रहा था उस औरत का इलाज करवाने के लिए उसका पति “हिंज” उन सभी के पास गया जिसे वह जानता था लेकिन उसे केवल कुछ पैसे ही उधर मिले जो की दवाई के दाम से कम थे उसने दवाई वाले से कहा कि – मेरी पत्नी मरने वाली है वह उस दवाई को सस्ते में दे दे वह उसके बाकी पैसे बाद में दे देगा फिर भी दवाई वाले ने मना कर दिया | दवाई वाले ने कहा कि मैंने यह दवाई खोजी है मैं इसे बेचकर पैसे कमाऊंगा तब “हिंज” ने मजबूर होकर मौका पाते ही उसकी दुकान तोड़कर वह दवाई अपनी पत्नी के लिए चुरा ली

 इस कहानी के आधार पर लॉरेंस कोहलबर्ग ने दो बातों पर बल दिया है |

 नैतिक दुविधा (Moral Dilemma) –  सही और गलत के बारे में फैसला लेने में शामिल प्रक्रिया को नैतिक दुविधा कहते हैं | जैसे कि – हिंज अगर चोरी करेगा तो पुलिस उसे पकड़ लेगी और  चोरी नहीं करेगा तो उसकी बीवी मर जाएगी |

नैतिक तर्कणा (Moral Reasoning) –  सही और गलत में से किसी एक को चुनना जैसे कि – “हिंज” ने चोरी को चुना था |

लॉरेंस कोहलबर्ग के सिद्धांत को 3 प्राथमिक स्तरों में विभाजित किया गया है |

नैतिक विकास के प्रत्येक स्तर पर 2 चरण होते हैं –

स्तर 1. प्राक रूढ़िगत नैतिकता का स्तर / पूर्व पारंपरिक चरण  (Pre Conventional Stage) (4 – 10 वर्ष)

इस अवस्था में नैतिकता शून्य होती है यानी कि बच्चों को सही गलत के बारे में पता नहीं होता है इस अवस्था में नैतिक तर्कणा दूसरे लोगों के मानकों के अनुसार होती है 

इस अवस्था को दो भागों में बांटा गया है –

  • चरण 1 – दंड एवं आज्ञा पालन उन्मुखता –  इसमें बच्चे की नैतिकता सजा और आज्ञा पालन पर आधारित होती है जब हिंज ने चोरी की तो बच्चों ने सोचा कि अगर वह चोरी करेगा तो उसे सजा मिलेगी
  • चरण 2 – साधना आत्मक सापेक्षता तथा उन्मुखता –  इस अवस्था को जैसे को तैसा भी कहा जाता है क्योंकि इसमें  जैसा व्यवहार कोई उसके साथ करेगा वैसा ही वह खुद भी करेगा

जैसे कि एक बच्चे ने दूसरे बच्चे की पेंसिल तोड़ी तो दूसरे बच्चे ने भी उसकी पेंसिल तोड़ दी |

स्तर 2. रूडी गढ़ नैतिकता का स्तर/ पारंपरिक चरण (10 – 13 वर्ष) (Conventional Stage)

इस अवस्था में बच्चा दूसरे लोगों के मानकों को अपने अंदर समावेशित कर लेता है तथा उसी के हिसाब से सही और गलत का निर्णय करता है

 इस अवस्था को भी दो भागों में बांटा गया है –

चरण 1 – अच्छा लड़का या लड़की बनने की उन्मुखता (good boy good girl) –  इस अवस्था में बच्चे अच्छा बनने की कोशिश करते हैं और दूसरों को दिखाते हैं कि हम अच्छे हैं|

चरण 2 – कानून एवं व्यवस्था उन्मुखता (law and order orientation) – इसमें बच्चा कानून तथा सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने की भावना विकसित करता है|

 जैसे कि – रेड लाइट पार करते हुए उसके पिताजी का एक्सीडेंट हो गया था इसलिए वह ऐसा नहीं करेगा

स्तर 3. उत्तर रूडीगढ़ नैतिकता / उत्तर पारंपरिक चरण (Post Conventional Stage) (13 वर्ष से ऊपर)

इसमें निर्णय खुद से लिए जाते हैं ना कि समाज के जरिए कि क्या सही है और क्या गलत है |

इस अवस्था को भी दो भागों में बांटा गया है जो की निम्नलिखित है –

  • चरण 1 – सामाजिक अनुबंधन उन्मुखता (social contract orientation) –   इसमें किशोर यह मानते हैं कि नियम लोगों की लोगों के भले के लिए हैं अगर किसी नियम से किसी का नुकसान होता है तो ऐसे नियम को तोड़ देना चाहिए अगर रेड लाइट तोड़कर उसके पापा की जान बच सकती है तो उस नियम को तोड़ दो |
  • चरण 2 – सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत उन्मुखता (Universal ethical principle orientation) –  इसमें किशोर दूसरों के विचारों से नहीं बल्कि अपने खुद के मानकों के अनुसार व्यवहार करते हैं इसमें किशोर दूसरों के फायदों के लिए अपनी जान पर भी खेल जाते हैं |

लॉरेंस कोहलबर्ग के सिद्धांतों की कुछ मुख्य आलोचनाएं निम्नलिखित हैं –

  • लॉरेंस कोहलबर्ग का नैतिक विकास सिद्धांत पुरुषों के प्रति पक्षपाती था क्योंकि उनके अध्ययन के विषय में केवल पुरुष थे महिलाएं नहीं थी
  • पुरुषों और महिलाओं की नैतिक और मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति अलग-अलग होती है जहां पुरुष नियमों और न्याय के संदर्भ में सोचते हैं वहीं महिलाएं देखभाल और रिश्तो पर अधिक बल देती हैं
  • दूसरे शब्दों में कहें तो महिलाएं ही नहीं होती थी बल्कि पुरुषों से अलग होती थी और उनकी कार्यप्रणाली न्याय की नैतिकता के अलावा देखभाल की नैतिकता पर आधारित होती है |

नैतिक विकास के चरणकोहलबर्ग के सिद्धांत को तीन प्राथमिक स्तरों में विभाजित किया गया है। नैतिक विकास के प्रत्येक स्तर पर दो चरण होते हैं।

स्तर 1- पूर्वपरंपरागत नैतिकता (4 से 10 वर्ष): पूर्व-परंपरागत नैतिकता नैतिक विकास की प्रारंभिक अवधि है। इस आयु में, बच्चों के फैसले मुख्य रूप से वयस्कों की अपेक्षाओं और नियमों को तोड़ने के परिणामों से आकार लेते हैं। इस स्तर पर दो चरण हैं:
  • चरण 1 (आज्ञाकारिता और सजा): इस स्तर पर बच्चे नियमों को निश्चित और निरपेक्ष” के रूप में देखते हैं। नियमों का पालन करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सजा से बचने का एक तरीका है। इसमें बच्चे दूसरों के इरादे की उपेक्षा करते हैं और इसके बजाय अधिकार और नकारात्मक परिणामों के डर पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • चरण 2 (वाद्य उद्देश्य अभिविन्यास): नैतिक विकास के व्यक्तिवाद और विनिमय चरण में, बच्चे व्यक्तिगत दृष्टिकोणों को दिखाते हैं और व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने के आधार पर कार्यों का निर्णय करते हैं।
स्तर 2- पारंपरिक नैतिकता (10 से 13 वर्ष): नैतिक विकास की अगली अवधि सामाजिक नियमों की स्वीकृति से चिह्नित होती है कि क्या अच्छा है और क्या नैतिक है। इस समय के दौरान, किशोर और वयस्क अपने आदर्शों और समाज से सीखे गए नैतिक मानकों को आत्मसात करते हैं।
  • चरण 3 (अच्छा लड़काअच्छी लड़की अभिविन्यास): नैतिक विकास के पारस्परिक संबंधों का यह चरण सामाजिक अपेक्षाओं और भूमिकाओं पर खरा उतरने पर केंद्रित है। “अच्छा” होना की अनुरूपता पर जोर दिया जाता है, और इस बात पर विचार किया जाता है कि विकल्प संबंधों को कैसे प्रभावित करते हैं।
  • चरण 4 (सामाजिक व्यवस्था बनाए रखना): यह चरण यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि सामाजिक व्यवस्था बनी रहे। नियमों का पालन करके, अपने कर्तव्य का पालन करते हुए और अधिकार का सम्मान करके कानून और व्यवस्था बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
स्तर 3. उत्तरपरंपरागत नैतिकता (13 से 16 वर्ष): नैतिक विकास के इस स्तर पर, लोग नैतिकता के अमूर्त सिद्धांतों की समझ विकसित करते हैं। इस स्तर पर दो चरण हैं:
  • चरण 5 (सामाजिक अनुबंध और व्यक्तिगत अधिकार): इस स्तर पर, लोगों का मानना ​​है कि समाज को बनाए रखने के लिए कानून के नियम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन समाज के सदस्यों को इन मानकों पर सहमत होना चाहिए।
  • चरण 6 (सार्वभौमिक सिद्धांत): कोहलबर्ग का नैतिक तर्क का अंतिम स्तर सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों और अमूर्त तर्क पर आधारित है। इस स्तर पर, लोग निर्णय के इन आंतरिक सिद्धांतों का पालन करते हैं, भले ही वे कानूनों और नियमों का विरोध करते हों।

 


Lev Vygotsky (लिव वाइगोत्सकी)

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लिव वाइगोत्सकी का सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धांत (Lev Vygotsky’s sociocultural theory)

  • लिव वाइगोत्सकी एक रूसी प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धांत का प्रतिपादन किया था और वह मानते थे कि सामाजिक संपर्क विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं |
  • सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धांत बताता है कि बच्चा अपने समाज और संस्कृति के अंतः क्रिया करके सीखता है यानी कि सामाजिक अंतः क्रिया के बाद विकास होता है जबकि प्याजे यह मानते थे कि पहले विकास होता है बाद में अधिगम होता है | 
  • वाइगोत्सकी के अनुसार शिक्षण तब होता है जब बच्चे लोगों और पर्यावरण के साथ संवाद करते हैं |
  • लेव वाइगोत्सकी ने कहा था कि बच्चों के संग यादों के विकास की अन्य लोगों के साथ सामाजिक संपर्क के माध्यम से बढ़ाया जाता है विशेष रूप से वे जो अधिक कुशल होते हैं |
  • विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों एक बच्चे की क्षमताओं और व्यवहार को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं |
  • जीन पियाजे का मानना है कि पहले विकास होता है बाद में अधिगम होता है लेकिन लेव वाइगोत्सकी का मानना है कि पहले अधिगम होता है फिर बाद में विकास होता है |

लिव वाइगोत्सकी की दो महत्वपूर्ण धारणाएं हैं –

  1. ZPD (Zone of Proximal Development) समीपस्थ/निकट विकास का क्षेत्र – वास्तविक विकास के स्तर तथा संभावित विकास के स्तर के बीच के अंतर को समीपस्थ विकास का क्षेत्र कहा जाता है |

ZPD की पहचान तब की जाती है जब कोई बच्चा समस्या को हल करने के निकट पहुंच जाता है लेकिन मदद के बिना समस्याओं को खुद हल करने में असमर्थ होता है यह एक बच्चे की वर्तमान क्षमता और समस्या को हल करने की संभावित क्षमता के बीच एक अंतराल को दर्शाता है |

  • वास्तविक विकास (Real Development)
  • संभावित विकास (Potential Development)

MKO – (More Knowledgeable Other) – जो ज्यादा जानते हैं जैसे कि – अध्यापक, माता-पिता, दोस्त आदि | 

  1. Scaffolding (पाड़/ढांचा) – वयस्कों द्वारा दी जाने वाली अस्थाई सहायता या सलाह को स्कैफोल्डिंग कहते हैं |

भाषा पर लेव वाइगोत्सकी के विचार निम्नलिखित हैं –

  • लेव वाइगोत्सकी के अनुसार भाषा और चिंतन शुरू में अलग-अलग होते हैं लेकिन बाद में एक साथ हो जाते हैं |
  • लेव वाइगोत्सकी ने कहा था कि पहले भाषा आती है बाद में विचार आते हैं |
  • निजी भाषा / आंतरिक भाषा (Private Speech) – इसमें बच्चा अपने ही कार्य को निर्देश देने के लिए भाषा का उपयोग करता है |

लेव वायगोत्स्की कहते हैं कि एक बच्चा विकासशील भाषा के कार्यों में तीन चरणों के माध्यम से निम्न में प्रगति करता है: 

1) सामाजिक भाषण (Social speech) (बाहरी) (3 या 4 वर्ष की आयु से पहले)

इसका उपयोग बड़े पैमाने पर दूसरों को नियंत्रित करने या सरल अवधारणाओं को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।

2) अहंकेंद्रित भाषण (Egocentric speech)​ (3 – 7 वर्ष)

यह ज्यादातर स्वयं के बारे में बात करना है और आमतौर पर जोर से बोला जाता है। बच्चे के अपने व्यवहार को नियंत्रित और निर्देशित करने में इसकी भूमिका होती है। 

3) आंतरिक भाषण (Inner speech) (7 वर्ष से अधिक)

यह विचार और व्यवहार को नियंत्रित करने वाले अनकहे शब्दों द्वारा चिह्नित है। वायगोत्स्की स्कूलों में भाषा संबंधी गतिविधियों और कक्षा के अंदर और बाहर पाठ्यचर्या संबंधी बातचीत में सांस्कृतिक तत्वों को शामिल करने के लिए जोरदार तर्क देते हैं।


Sigmund Freud (सिग्मंड फ्रायड)

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मानव विकास का मनोविश्लेषण सिद्धांत (Psychoanalytic Theory of Human Development)

सिग्मंड फ्रायड ने मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत का प्रतिपादन किया था जो कि एक ऑस्ट्रिया के निवासी थे | इस सिद्धांत में मध्य मस्तिष्क का विश्लेषण किया जाता है |

सिग्मंड फ्रायड ने तीन तरह के मन बताए है –

  1. चेतन मन (Conscious Mind)
  2. अर्द्ध चेतन मन (Subconscious Mind)
  3. अचेतन मन (Unconscious Mind)

(1) चेतन मन (Conscious Mind 10%) – यह मन वर्तमान के विचारों से संबंधित है | चेतन मन एक ऐसा स्तर है जिसके तहत व्यक्ति अपने विचारों भावनाओं और समरी को से अवगत होता है |

(2) अर्द्ध चेतन मन (Subconscious Mind) – अर्द्ध चेतन मन में हमें तुरंत ज्ञान नहीं होता है लेकिन कुछ समय देकर याद किया जा सकता है ऐसा मन जिसमें याद होते हुए भी याद ना आए कोई भी चीज, पर जब मन पर ज्यादा जोर दिया जाए तो यह ( कोई भी चीज) याद आ जाता है। अर्द्ध चेतन मन एक ऐसा स्तर है जिसके तहत एक व्यक्ति अपनी भावनाओं और संभागों के संबंध में जागरूकता प्राप्त करता है यदि वह इसे निकट से देखता है तो |

(3) अचेतन मन (Unconscious Mind 90%)  –  इसमें भी बातें होती हैं जो हम भूल चुके हैं और हमारे याद करने पर भी याद नहीं आती है और जो मन चेतना में नहीं होता, यह दुखी, दम्भित इच्छाओं का भंडार होता है। अचेतन मन एक ऐसा स्तर है जिसके तहत व्यक्ति अपनी मानसिक गतिविधियों से अनभिज्ञ होता है सिगमंड फ्रायड के अनुसार यह स्तर उन सभी विचारों या भावनाओं के भंडार के रूप में काम करता है जो दमित है या सचेत जागरूकता से छिपे हुए हैं क्योंकि वह मनोवैज्ञानिक असंतोष का कारण बन सकते हैं |

सिग्मंड फ्रायड ने व्यक्तित्व को तीन भागों में बांटा है –

  • Id (इदम्)
  • Ego (अहम्)
  • Super-ego (पराहम्)
  1. Id (इदम्) – इसमें व्यक्ति की शारीरिक और मूल आवश्यकता होती है जैसे कि भूख प्यास सेक्स आदि को संतुष्ट करना होता है यह सामाजिक आवश्यकता हूं और नैतिक मूल्यों की चिंता किए बिना इच्छाओं की पूर्ति पर बल देता है |
  • इदम् मानव व्यक्ति का अचेतन हिस्सा है जो बुनियादी इच्छाओं को पूरा करने का काम करता है
  •  इदम् आनंद सिद्धांत पर आधारित है जो असामाजिक इच्छाओं की संतुष्टि की आकांक्षा रखता है
  •  इदम् मूल व्यक्ति घटक है जो जन्म से मौजूद है और यौन इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करता है
  1. Ego (अहम्) –  यह आवश्यकताएं यह इच्छाओं की संतुष्टि की योजना का निर्माण करता है और उसका कार्यान्वयन करता है या फिर परिणाम की चिंता करता है |
  • अहम्  नियमों और नैतिकता की तलाश करता है और अचेतन मन में निवास करता है
  •  अहंकार हमेशा इच्छा को स्थगित करता है और तनाव को तब तक मुक्त करता है जब तक कि उसे वांछित वस्तु नहीं मिल जाती जिसके लिए वह प्रयास कर रहा है
  • अहम्  व्यक्ति का पहलू है जो तार्किक और तर्कसंगत होने और वास्तविकता की दुनिया से निपटने का प्रयास करता है
  1. Super-ego (पराहम्) –  यह समाज द्वारा नैतिक सूत्रों के अनुसार काम करता है यानी कि जिस व्यक्ति के अंदर सुपर ईगो ज्यादा होगी वह बुरे कामों से उतना ही दूर होगा जैसे कि चोरी ना करना या झूठ ना बोला आदि |
  • पराहम् व्यक्ति का नैतिक हिस्सा है जिसे विवेक भी कहा जाता है यह आनंद के बजाय पूर्णता का प्रतीक है
  • पराहम्  इदम् और अहम् के बीच संतुलन के रूप में कार्य करता है यह समाधान खोजने की कोशिश करता है जो ना तो इदम् या अहम् को चोट पहुंचाता है
  • माता पिता द्वारा अपनाए गए पुरस्कार और दंड के प्रति प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप बच्चे के दिमाग में अति अहंकार विकसित होता है 

सिग्मंड फ्रायड ने मानसिक स्तरों, मनोवृत्तियाँ, रक्षा युक्तियों, व्यक्तित्व घटकों और मनोलैंगिक विकास की अवस्थाओं को बताया है –

  • मानसिक स्तरों (Level of Mental Life) – सिगमंड फ्रायड ने मन के चेतन, पूर्व चेतन और अचेतन स्तर बनाए हैं बताएं हैं जो व्यक्ति के विचारों और भावनाओं की जागरूकता की मात्रा पर आधारित होते हैं मन का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण स्तर अचेतन मन होता है जिसमें हमारी सभी दमित विचार अनुभव और भावनाएं होती हैं सिगमंड फ्रायड के अनुसार यह अचेतन हमारे व्यवहार और अनुभवों को लगातार प्रभावित करता रहता है जिसके प्रभाव के बारे में हम जानते भी नहीं है |
  • मनोवृत्तियाँ (Instincts) – यह मनोवृति हमारी आंतरिक उत्तेजनाए होती हैं हमारे अंदर अनेकों मनोवृत्तियाँ होती हैं जिन्हें जीवन और मृत्यु में वर्गीकृत कर सकते हैं प्रत्येक मनोवृति की अपनी मानस ऊर्जा होती है जीवन मनोवृति की ऊर्जा को लिबिडो ऊर्जा कहते हैं यह जीवन ऊर्जा लैंगिकीय  संतुष्टि से तुष्ट होती है जब की मृत्यु। मनोवृति आक्रामकता, हत्या, आत्महत्या जैसी क्रियाएं दर्शाती है कि दोनों मनोवृत्तियाँ समान रूप से महत्वपूर्ण है |
  • सुरक्षा युक्तियां (Defence Mechanism) – मानव में संघर्ष तनाव और भग्नासा आदि जीवन में अनिवार्य है रक्षा युक्तियां जीवन की इस भग्नासा और कष्टदायक स्थिति को कम करने का कार्य करती है भग्नासा का कारण है कि समस्या का कोई वास्तविक समाधान नहीं हो रहा है तो यह सुरक्षा युक्तियां व्यक्ति की खतरे से रक्षा करते हैं |

निम्नलिखित रक्षा युक्तियां मानव द्वारा काम में ली जाती है –

  • तर्क संगती (Rationality)  – इसमें आपको विवेकपूर्ण व्यवहार के लिए तर्कपूर्ण कारण बताया जाता है | जैसे कि अपराधी को अपने व्यवहार का कारण बुरी संगत बताना और किसी कोर्स में प्रवेश ना मिलने पर उसे व्यवसाय के लिए अच्छा नहीं बताना इसे अपराध वह परिवर्तन के लिए प्रयोग किया जाता है |
  • दमन (Repression) – इस युक्ति में अवांछनीय या अस्वीकार विचारों भावों, यादो और अचेतन में धकेल देना क्योंकि इसे याद करना कष्ट पूर्ण या भय पैदा करने वाला होता है कई महिलाएं गंदी गालियों को दमन कर देती है |
  • प्रतिस्थापन (Replacement) – इसमें सांवेगिक प्रतिक्रियाओं को एक व्यक्ति या परिस्थिति से दूसरे स्थान पर प्रतिस्थापित कर देना होता है जैसे की – माता से दंड मिलने पर बालक क्रोधित होकर अपना क्रोध अपने खिलौने या अपने छोटे भाई बहनों पर निकाल देता है |
  • प्रक्षेपण (Launch) – व्यक्ति अपनी गलती से उत्पन्न चिंता को बाहरी वातावरण या संसार पर प्रक्षेपित कर देता है |
  • जैसे कि – मैं उसे घृणा करता हूं के बजाय वह मुझसे घृणा करती है कहा जाता है |
  • प्रतिक्रिया निर्माण (Response Build) – अपनी भावनाएं व्यवहार के बिल्कुल विपरीत प्रतिक्रिया विकसित करना | जैसे कि – ज्ञान के स्थान पर प्रेम करना |

मनोलैंगिक विकास (Psycho Sexual Development)

सिगमंड फ्रायड के अनुसार मानव का जीवन पर्यंत व्यवहार अपनी आधारभूत प्रेरणा की संतुष्टि की आवश्यकताओं द्वारा अभी प्रेरित होता है बालक के मनो लैंगिक विकास की अवस्थाएं इस जीवन ऊर्जा लिबिडो के संतुष्टि करण के प्रकार पर निर्भर करती है सिगमंड फ्रायड  के अनुसार इस मानव लैंगिक अवस्थाओं को निम्नलिखित अवस्था में वर्गीकृत किया गया है

1. मुख अवस्था / मौखिक चरण (Oral Stage) (0 -18 Months)

  • बालक के विकास के प्राथमिक अवस्था मुख अवस्था है जो जन्म से 18 माह तक की अवधि तक होती है मुख क्रिया हैं जिनमें होठ, जीव और सहायक अंग मुख्य भाग होते हैं | जैसे कि – चूसना, निगलना, दबाना, काटना, बालक को खुशी देता है
  • अधिक संतुष्टि या कम संतुष्टि से वह निर्धारण हो सकता है जिसके परिणाम स्वरूप वेस्ट में अधिक खाने शराब पीने या धूम्रपान करने का विकास होता है 

2. गुदीय अवस्था /  गुदा चरण (Anal Stage) (18 Months  – 3 Years)

  • बालक के विकास की यह अवस्था 18 महीने से 3 वर्ष तक की होती है जिसमें जीवन ऊर्जा मुख से गुदा क्षेत्र में स्थानांतरित हो जाती है बालक को खुशी का अनुभव मुख्य रूप से त्यागने की क्रिया और उससे संबंधित क्रियाओं से होती है जैसे कि – मल त्याग की क्रिया उसे तनाव से मुक्त और खुशी देती है
  • बहुत कटोरिया बहुत हल्का शौचालय प्रशिक्षण निर्धारण का कारण बन सकता है जिसके परिणाम स्वरूप विकास या तो गंदा हो सकता है या कम आत्म नियंत्रण लेकिन उधार या साफ-सुथरा व्यवस्थित लेकिन मतलबी हो सकता है 

3. फॉलिक चरण (Phallic Stage) (3 Years – 5 Years)

  • यह अवस्था 3 से 5 वर्ष की होती है जिसमें बालक का संतुष्टि करण जननांगों पर केंद्रित होता है सिगमंड फ्रायड के अनुसार बालक अपनी माता तथा बालिका अपने पिता से प्रेम करते हैं और उसे दूसरे में बांटना नहीं चाहते हैं 
  • बालक विपरीत लिंगीय अभिभावक से लगाव और सामान  लिंगीय अभिभावक से द्विवेष रखता है सिगमंड फ्रायड ने इसे ओडिपस कांपलेक्स का नाम दिया है | इसी तरह बालिका का अपनी माता से रूढ़पन और पिता से प्रेम इलेक्ट्रा ग्रंथि कहलाता है
  • इंदु पर इस कारों के सफल समाधान में से एक परिपक्व जान पहचान विकसित होती है 

ईडिपस कॉन्प्लेक्स – लड़के का अपनी मां के प्रति स्नेह की भावना

इलेक्ट्रा कंपलेक्स –   लड़की का अपने पिता के प्रति स्नेह की भावना 

अहंकार (Narcissism) – शैशवावस्था में बालक अपने रूप पर मोहित हो जाता है और स्वयं से प्रेम करने लगता है इस आत्मा प्रेम की भावना को सिगमंड फ्रायड ने स्वमोह कहा है यह किशोरावस्था में अधिक होता है

4. विलंबित चरण (Latency Period) (6 Years – 12 Years)

  • बालक की व्यवस्था 5 वर्ष से योन आरंभ तक होती है जिसमें लैंगिकता कम महत्वपूर्ण होती है यह अवस्था सम्मानित शांत होती है इस काल में बालक संज्ञानात्मक कौशल और सांस्कृतिक मूल्यों को ग्रहण करता हुआ अपने क्षेत्र विस्तृत करता है |
  • इस अवस्था के दौरान यौन ऊर्जा होती है शैक्षिक खेल कूद और सामाजिक गतिविधियां की ओर अग्रसर होता है इससे विपरीत लिंग में कोई दिलचस्पी नहीं है या कम है

5. जननांग चरण (Genital Stage) (13 Years – Adult)

किशोरावस्था काल में जिसमें लैगिक ऊर्जा पूरे बल के साथ दोबारा प्रकट होती है इस काल में व्यक्ति का प्रेम अधिक परोपकारी होता है व्यक्ति का व्यक्तित्व तीन मुख्य घटनाओं से बनता है जिनके नाम निम्नलिखित हैं | 

  1. Id (इदम्)
  2. Ego (अहम्)
  3. Super-ego (पराहम्)

प्रत्येक घटक के अपने कार्य सिद्धांत और गतिशीलता होती है यह एक दूसरे से संबंधित होते हैं व्यक्ति का व्यवहार इन तीनों घटनाओं की अंतः क्रियाओं का परिणाम होता है |

पिछले चरणों को सफलतापूर्वक पूरा करने के विपरीत लिंग के साथ एक परिपक्व अंतर्गत संबंध विकसित करने में मदद मिलेगी |

समायोजन (Adjustment)

परिस्थिति के अनुसार अपने आपको डाल लेना समायोजन कहलाता है ताकि अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट किया जा सके |

  •  व्यक्तित्व का स्थाई समायोजन प्रकृति जीवन और पर्यावरण के साथ होता है |

परिभाषाएं –

  •  स्किनर के अनुसार समायोजन एक अधिगम प्रक्रिया है |
  •  गेट्स के अनुसार समायोजन निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिससे प्राणी अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है और वह अपने और अपने वातावरण के बीच अधिक संतुलित संबंध बनाता है |
  •  कॉल मैन के अनुसार समायोजन अपनी आवश्यकता को पूरा करने तथा दबाव से निपटने के लिए किए गए प्रयासों का परिणाम है |

कुसमायोजन (Maladjustment)

यदि कोई व्यक्ति वातावरण में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाता है तो वह कुसमायोजन को दर्शाता है |

 कुसमायोजन के तत्व निम्नलिखित हैं –

  •  तनाव –  जब व्यक्ति वातावरण और मांग के अनुरूप कार्य नहीं कर पाता है तो वह तनाव में आ जाता है |
  •  द्वेष चिंता –  जब व्यक्ति वातावरण और परिस्थिति के अनुसार अपने आप को बदल नहीं पाता है तो उसमें द्वेष और चिंता जागृत हो जाती है |
  •  दबाव –  दबाव प्रतियोगिता के कारण होता है आत्मसम्मान के लिए व्यक्ति दबाव में आ जाता है |
  •  कुंठा –  किसी भी इच्छा में बाधा आने से उसकी उम्मीद खत्म हो जाना कुंठा कहलाती है |
  •  कनफ्लिक्ट –  जब एक ही समय में दो शक्तियां जागृत हो जाती है तब व्यक्ति के अंदर कनफ्लिक्ट उत्पन्न हो जाता है |

सुरक्षा युक्तियां (Defence Mechanism)

 यह ऐसी युक्तियां होती हैं जिनमें व्यक्ति विशेष परिस्थिति में अपनी चिंता और कमियों से मुक्ति पाने के लिए एक अस्थायी कवच को साधन के रूप में इस्तेमाल करता है |

 समायोजन करने के लिए व्यक्ति जिन रक्षात्मक युक्तियों का सहारा लेता है वह दो प्रकार की होती हैं उनके नाम निम्नलिखित हैं |

  1. प्रत्यक्ष विधि (Direct Method)
  2. अप्रत्यक्ष विधि (Indirect Method)

 प्रत्यक्ष विधि (Direct Method) – तनाव को कम करने के प्रत्यक्ष उपाय वह हैं जिन्हें व्यक्ति चेतन रूप में अपनाता है |

अप्रत्यक्ष विधि (Indirect Method) – तनाव को कम करने के अप्रत्यक्ष उपाय हुए हैं जिन्हें व्यक्ति अचेतन रूप में अपना आता है |

  1. तर्कसंगत –  इसमें कोई व्यक्ति अपनी बात को सही ठहराने के लिए झूठे कारण और प्रतिक्रिया देता है जैसे कि पेपर पास ना होने पर अध्यापक को दोष देना
  2. दमन –  इसमें व्यक्ति के कष्टदायक यादें विचार या भावना अचेतन मन में चली जाती हैं
  3. शमन  –  जब व्यक्ति की कोई इच्छा पूरी नहीं होती तो वह मजबूरन उसको भुला देता है 
  4. क्षति पूर्ति –  इसमें व्यक्ति ए क्षेत्र की कमियों या सफलताओं को दूसरे क्षेत्र में पूरा करता है जैसे कि कम लंबाई वाली लड़की द्वारा ऊंची हील की सैंडल पहनना आदि
  5. आत्मीकरण / तादात्मीकरण – इसमें व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर खुद को उसके व्यक्तित्व में डालने का प्रयास करता है जैसे कि शाहरुख खान को देखकर लोग हाथ फैलाना शुरू कर देते हैं उसी के स्टाइल में और सलमान खान को देखकर लड़के बॉडी बनाना शुरू कर देते हैं आदि
  6. प्रतिस्थापन –  जब व्यक्ति अपने संवेग विचार और इच्छाओं को व्यक्त करने में असमर्थ होता है तब वह किसी अन्य पर अपनी भावना अभिव्यक्त करके समायोजन स्थापित करता है – जैसे कि ऑफिस में बॉस की डांट पड़ने पर घर आकर बच्चों पर गुस्सा निकालना आदि
  7. प्रतिगमन –  जब किसी व्यक्ति को कोई तनाव होता है तो वह उससे बचने के लिए अतीत में चला जाता है जैसे कि गुस्सा आने पर बच्चों की तरह चिल्लाना या तोड़फोड़ करना
  8. अंतः छेपण (Introjection) –  इसमें व्यक्ति वातावरण के गुणों को अपने व्यक्तित्व में सम्मिलित कर लेता है जैसे कि घर वालों को दुखी देखकर खुद भी दुखी होना
  9. उदात्तीकरण –  इसमें व्यक्ति अपने अनैतिक इच्छा हो प्रेरणा ओं की संतुष्टि समाज के स्वीकृत उद्देश्यों के अनुसार करता है जैसे कि बचपन में गुस्सैल बच्चे का बड़े होकर बॉक्सर बनना आदि |

Erik Erikson (एरिक एरिक्सन)

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एरिक एरिक्सन का व्यक्तित्व विकास के सिद्धांतों में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है एरिक एरिकसन का एक प्रसिद्ध सिद्धांत है जिसका नाम है मनोसामाजिक विकास का सिद्धांत जो व्यक्तित्व के विकास को समझने की कोशिश करता है और जो बचपन से ही कई चरणों में होता है मनोसामाजिक विकास का सिद्धांत पूरे जीवन काल में सामाजिक अनुभव के प्रभाव का वर्णन करता है |

एरिक एरिकसन के मनोसामाजिक सिद्धांत 8 चरणों के माध्यम से व्यक्तियों की वृद्धि और विकास पर विचार करते हैं और यह आठ चरण विकास के चरण है जो एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं यह चरण आपस में प्रभावित होते हैं जैसे कि – विकास के पहले चरण में क्या हुआ था और विकास और वर्तमान चरण में क्या चल रहा है इस सिद्धांत में इस बात पर ध्यान केंद्रित किया जाता है कि व्यक्ति स्वयं को समझने के तरीके और साधन कैसे सीखते हैं और वह पर्यावरण में दूसरों को कैसे समझते हैं साथ ही यह भी जानते हैं कि व्यक्ति के लिए उनका क्या अर्थ है वे एक दूसरे को क्या समझते हैं आदि |

  • एरिक एरिकसन के प्रत्येक चरण में एक संकट या कार्य जरूर होता है जिसे हमें हल करने की आवश्यकता होती है और एक अनसुलझा संकट बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है
  • एरिक एरिकसन ने अपने पूरे जीवन काल में जैविक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कार्य को से प्रभावित व्यक्तिगत मानव विकास के अनु क्रमिक 8 क्रमिक चरणों का प्रस्ताव किया है जो आज तक कभी नहीं बदले |
  • एरिक एरिकसन के अनुसार स्वयं की यह भावना बदल ही जाती है, एरिक एरिकसन का मानना है कि व्यक्ति व्यक्तित्व विकास के विभिन्न चरणों से होकर गुजरता है जीवन के प्रत्येक चरण में नई जानकारी और अनुभव का एहसास होता है और जो किसी के जीवन में मौजूद होते हैं यह ऐसे मुद्दे हैं जो स्वयं या अहंकार की पहचान की भावना का सामना करते हैं |
  • एरिक एरिकसन में अहंकार की पहचान के अलावा यह भी माना है कि क्षमता की भावना गुणात्मक रूप से विभिन्न व्यवहार रूप स्वरूप और कार्यों को प्रेरित करती है और एरिक एरिकसन के सिद्धांत के प्रत्येक चरण का संबंध जीवन के क्षेत्र में समक्ष बनने से है
  • यदि एरिक एरिकसन के सभी चरण को अच्छी तरीके से संभाला जाता है तो व्यक्ति को महारत की भावना महसूस होगी जिससे कभी कभी अहंकार शांति यह अहंकार की गुणवत्ता के रूप में संदर्भित किया जाता है और यदि मंच को खराब तरीके से प्रबंधित किया जाता है तो व्यक्ति अपर्याप्तता की भावना के साथ उतरेगा |

मनोसामाजिक सिद्धांत (Psychosocial Theory)

यह सिद्धांत एरिक एरिकसन द्वारा प्रतिपादित किया गया था उनका मुख्य उद्देश्य बच्चों में व्यक्तिगत पहचान कैसे होती है उस पर था इसके अनुसार पूरा जीवन 8 चरणों से होकर गुजरता है | जो की बाल अवस्था से लेकर वयस्कता तक होती है |

1. विश्वास  बनाम अविश्वास (Trust vs Mistrust) (0 वर्ष – 1.5/2 वर्ष) – जिन बच्चों को माता-पिता से प्यार, सहयोग, सहायता आदि मिलता है तब उनमे  विश्वास का भाव विकसित होता है दूसरी तरफ जिन माता पिता को प्यार, सहयोग, सहायता आदि नहीं मिलता है तो वह रोना, बिलखना शुरू कर देते हैं | और इस क्रिया से बच्चों में आत्मविश्वास उत्पन्न होना शुरू हो जाता है |

  • विश्वास बनाम अविश्वास के दौरान शिशु उस विश्व के बारे में अनिश्चित होता है जिसमें वह रहते हैं और देखभाल की स्थिति के लिए अपने प्राथमिक देखभाल करता की ओर देखते हैं |
  • शिशु में आत्मविश्वास चिंता और संध्या की भावना विकसित हो सकती है यदि देखभाल असंगत अप्रत्याशित और अविश्वसनीय रहा तो |

2. स्वायत्ता बनाम शर्म/संदेह (Autonomy vs Shame/Doubt) (1.5/2 वर्ष  – 3 वर्ष) – ऑटोनॉमी का अर्थ है स्वयं स्वयं से मतलब है जब बच्चे खुद से खाना कपड़ा पहनना ज्यादा पसंद करने लगते हैं तब वह दूसरों पर निर्भर रहना नहीं चाहते हैं तो वह स्वयं स्वायत्तता कहलाता है  दूसरी ओर बहुत ही सख्त माता-पिता जब काम करने पर डांटते हैं तब वह बच्चे अपने ही अंदर शक का अनुभव करने लगते हैं

  • एरिक एरिकसन के अनुसार स्वायत्ता बनाम शर्म के स्तर पर बच्चे शारीरिक कौशल और स्वतंत्रता की भावना पर व्यक्तिगत नियंत्रण की भावना विकसित करने पर केंद्रित होते हैं
  • इस अवस्था में यदि बच्चों की आलोचना की जाती है और अत्यधिक नियंत्रित किया जाता है उन्हें नियंत्रण में रखा जाता है या स्वयं को मुखर करने का अवसर नहीं दिया जाता है तो वह जीवित रहने की अपनी क्षमता में अपर्याप्त महसूस करने लगते हैं और फिर दूसरों पर अत्यधिक निर्भर हो सकते हैं और उनमे आत्म सम्मान की कमी भी हो सकती है

3. पहल बनाम दोष / अपराध  (Initiative vs Guilt) (3 वर्ष – 6 वर्ष) – जब बच्चे में समझ की क्षमता का थोड़ा विकास हो जाता है तब उसमें जिज्ञासा बढ़ जाती है और वह बहुत ज्यादा उत्सुक हो जाता है उत्सुक होने की वजह से वह पहल करता है दूसरी तरफ जब मां-बाप उसकी उत्सुकता को दबा देते हैं या उसे डांट देते हैं तब उनके अंदर द्वेष भाव उत्पन्न होना शुरू हो जाता है |

  • इस अवस्था के दौरान बच्चे निर्देशन खेल तथा अन्य सामाजिक तंत्र क्रियाओं के माध्यम से खुद को अधिक बार मुखर करते हैं
  • बच्चे गतिविधियों की योजना बनाना खेल खेलना और दूसरे के साथ गतिविधियां करना शुरू कर देते हैं अगर उन्हें यह अवसर दिया जाता है तो बच्चे पहले की भावना विकसित करते हैं और दूसरों का नेतृत्व करने और निर्णय लेने की अपनी क्षमता में सुरक्षित महसूस करते हैं इसके विपरीत यदि आलोचना या फिर नियंत्रण के माध्यम से इस प्रवृत्ति को दबाया जाता है तो बच्चों में अपराध की भावना विकसित हो जाती है

4. परिश्रम/उद्योग  बनाम अपराध/हीनता (Industry vs Inferiority) (6 वर्ष – 12 वर्ष) – इस आयु में बच्चा मां बाप का हर काम करने की कोशिश करता है अतः इसे परिश्रम कहते हैं  दूसरी तरफ अगर आपने बच्चे को कोई काम दिया और उस बच्चे की काम करने की क्षमता कम है तो वह  उस काम को नहीं कर पाएगा इसलिए उसमें हीनता आनी शुरू हो जाती है | 

  • इस अवस्था में 5 से 12 वर्ष की आयु के बीच वाले अवस्था में हीनता उत्पन्न हो जाती है |
  • इस अवस्था में बच्चों को उनकी पहल के लिए प्रोत्साहित और मजबूत किया जाता है इस वजह से वहअपने आप को मेहंदी महसूस करने लगे आते हैं और लक्ष्य को प्राप्त करने की अपनी क्षमता में आत्मविश्वास महसूस करने लगते हैं और अगर इस पहल को प्रोत्साहित नहीं किया जाता है तो इसे माता-पिता या शिक्षकों द्वारा प्रतिबंधित किया जाता है जिससे बच्चा हीन महसूस करने लगता है और अपनी क्षमताओं पर संदेह करता है और इसलिए अपनी संतानों तक नहीं पहुंच पाता है |

5. पहचान बनाम भ्रांति / भूमिका भ्रम (Identity vs Confusion) (12 वर्ष – 18 वर्ष) – इस अवस्था में बच्चों में अपनी पहचान बनाने की बहुत ज्यादा उत्सुकता होती है और दूसरी तरफ जो बच्चे उद्देश्यपूर्ण काम नहीं करते है तो उनके पास बहुत सारे रास्ते खुल जाते हैं | 

  • इस अवस्था में किशोर व्यक्तिगत मूल्य विश्वासों और लक्ष्य की गहन खोज के माध्यम से स्वयं और व्यक्तिगत पहचान की भावना की खोज करते हैं
  • पहचान बनाम भूमिका भ्रम विकास का एक प्रमुख चरण है जहां बच्चे को उन भूमिकाओं को सीखना होता है जो की एक वयस्क के रूप में ग्रहण करेंगे |

6. आत्मीयता बनाम अलगाव (Intimacy vs Isolation) (18 वर्ष – 35 वर्ष) – इस अवस्था में आत्मीयता में आदमी दूसरों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाता है घनिष्ठ संबंध होने की वजह से वह दूसरों के साथ मिलजुल कर रहता है जिससे आत्मीयता कहते हैं दूसरी तरफ जब आदमी दूसरों के साथ घनिष्ठ संबंध नहीं बना पाता है जिससे वह सबसे अलग रहता है और इसी को अलगाव कहते हैं |

  • आत्मीयता बनाम अलगाव अवस्था से बचना प्रतिबद्धता और संबंधों से डरना अलगाव अकेलापन और कभी-कभी अवसाद का कारण बन सकता है
  • आत्मीयता बनाम अलगाव चरण में सफलता प्रेम के गुणों की ओर ले जाती है

7. जननात्मकता/उत्पादकता बनाम स्थिरता  (Generativity vs Stagnation) (35 वर्ष – 65 वर्ष) – जननात्मकता/उत्पादकता बनाम स्थिरता मैं हम दूसरे लोगों के बारे में ज्यादा सोचते हैं दूसरों का भला करने की सोचते हैं जबकि दूसरी तरफ जब लोगों में इस सोच का विकास नहीं होता तो उसमें स्थिरता आ जाती है

  • उत्पादकता बनाम स्थिरता के माध्यम से हम बड़ी तस्वीर का भाग होने की भावना विकसित कर सकते हैं
  • उत्पादकता बनाम स्थिरता के योगदान करने का तरीका खोजने में विफल रहने से हम स्थिर हो जाते हैं और अनुत्पादक महसूस करते हैं

8. संपूर्णता/ईमानदारी  बनाम निराशा (Integrity vs Despair) (65 वर्ष से आगे) – संपूर्णता/ईमानदारी  बनाम निराशा की उम्र में आदमी की अधिकतम इच्छाएं पूर्ण हो जाती है वह अब अपने भविष्य की बजाए अपने बीते दिनों को याद करता है कि उसकी कितनी सफलताएं हुई और कितनी असफलताएं हुई उसने जीवन में क्या किया, क्या कमाया, क्या पाया और क्या खोया आदि यदि उसकी सफलताएं ज्यादा मिलती हैं तो उसे संपूर्णता कहते हैं अगर किसी ने ज्यादा सफलता हासिल नहीं की है तो उसमें निराशा आ जाती है |

  • संपूर्णता/ईमानदारी  बनाम निराशा – इस दौरान हम अपनी उपलब्धियों पर विचार करते हैं और हम थोड़ा ठहर कर सोचते हैं कि हमने अपने जीवन में क्या कमाया क्या पाया और क्या खबर खोया और अगर हम स्वयं को एक सफल जीवन जीने के रूप में देखते हैं तो हम ईमानदारी विकसित कर सकते हैं
  • एरिक एरिकसन का यह मानना था कि यदि हम अपने जीवन को उत्पादक के रूप में देखते है तो अपने अतीत या फिर बीते हुए पल के बारे में अपराध बोध महसूस करते हैं या फिर महसूस करते हैं कि हमें अपने जीवन के लक्ष्य को पूरा नहीं किया था तो हम जीवन में असंतुष्ट हो जाते हैं और निराशा का विकास हो जाता है जो अक्सर अवसाद और निराशा की ओर ले जाता है |

एरिक एरिकसन ने 8 चरणों की श्रृंखला में मानव व्यक्तित्व विकास का आवरण किया है | जो की जन्म के समय से  व्यक्ति के संपूर्ण जीवन में जारी रहता है।

मनोसामाजिक संकट मूल गुण / आयु लक्षण
विश्वास बनाम vs  अविश्वास आशा / शिशु (0 से 1½) यदि जरूरतें भरोसेमंद

रूप से पूरी होती

हैं, तो शिशुओं में बुनियादी विश्वास

की भावना

विकसित हो

जाती है।

स्वायत्तता vs लज्जा मर्ज़ी / प्रारंभिक बचपन (1½ से 3) बच्चे अपने लिए

चीजें करना

सीखते हैं,

या वे अपनी

क्षमताओं

पर शक/

संदेह कर

सकते हैं |

पहल vs अपराधबोध उद्देश्य / खेलने की आयु (3 से 5) या तो वे स्वतंत्र

होने के प्रयासों

के बारे में दोषी महसूस करते

हैं। या फिर वे पूर्वस्कूली

कार्यों को

शुरू करना

सीखते हैं |

परिश्रम vs हीनता क्षमता / स्कूल की आयु (5 से 12) बच्चे खुद को

कार्य में व्यस्त

कर लेंगे या

तो वे खुशी

महसूस करेंगे

या फिर वे हीं

महसूस कर

सकते हैं |

अहम् पहचान vs भूमिका भ्रम सत्य के प्रति निष्ठा / किशोरावस्था (12 से 18) या तो किशोर

अपनी पहचान

को लेकर भ्रमित

होंगे या फिर

कुछ और

भूमिका है

पर आकर

स्वयं की भावना

को निखारने

का काम कर

सकते हैं |

अंतरंगता vs अलगाव प्रेम / युवा व्यस्क (18 से 40) या तो युवा

व्यस्त सामाजिक

रूप से

अलग-थलग

रहना महसूस

करते हैं या फिर

वह निकट संबंध बनाने के लिए

संघर्ष कर

सकते हैं |

उत्पादन vs गतिहीनता देखभाल / प्रोढ़ावस्था (40 से 65) मध्य आयु वर्ग

के लोग या

तो उद्देश्य

की कमी

महसूस करते हैं

या फिर उनको

दुनिया में

योगदान की

भावना का

पता चलता है |

अहंकार अखंडता vs निराशा बुद्धिमता / परिपक्वता (65) अपने खुद के

जीवन को देखने

से या तो वे संतुष्टि

या फिर विफलता

की भावना महसूस कर सकते हैं |

 


Edward Thorndike (एडवर्ड थार्नडाइक)

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एडवर्ड थार्नडाइक (1874 – 1949) एक प्रसिद्ध अमेरिकी वैज्ञानिक थे | जिन्होंने अधिगम के सिद्धांत पर अपने कार्य के लिए प्रसिद्ध हासिल की थी जोकि व्यवहारवाद के साथ क्रिया प्रसूत अनुबंधन के विकास की ओर ले जाता है और उनका कहना  खाकी अधिगम उद्दीपक और प्रतिक्रिया के बीच संबंध का परिणाम है |

त्रुटि एवं प्रयास का सिद्धांत (Trial and Error Theory)

  • थॉर्डाइक एक अमेरिकी वैज्ञानिक थे और एक पशु वैज्ञानिक भी थे |
  • एडवर्ड थार्नडाइक को शिक्षा मनोवैज्ञान में अधिगम का सिद्धांत के लिए जाना जाता है |
  • उन्होंने एक भूखी बिल्ली पर प्रयत्न और त्रुटि द्वारा सीखने के बारे में नियमों के एक श्रंखला विकसित की थी
  • अधिगम के सबसे पहले नियम थॉर्डाइक ने ही दिए थे |
  • उन्होंने उद्दीपन अनुक्रिया अनुभव प्रतिपादित किया था और वे  विलियम जेम्स के शिष्य थे |
  • थॉर्डाइक को प्रथम शैक्षिक मनोवैज्ञानिक कहा जाता है |
  • एक प्रसिद्ध पुस्तक Educational Psychology and Animal Intelligence थॉर्डाइक के द्वारा लिखी गई थी
  • थॉर्डाइक ने प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत दिया था वह सोचते थे कि अगर किसी की उत्तेजना बढ़ा दे तो वह उसके प्रति अनुक्रिया करेगा और वह जब बार-बार अनुक्रिया को  दोहराएगा तो वह कुछ ना कुछ जरूर सीखेगा
  • एडवर्ड थार्नडाइक के अनुसार अधिगम एक ऐसी घटना है जो एक घटना से दूसरी घटना के भी संबंध से बढ़ती है और जिसे उद्दीपन प्रतिक्रिया के साथ कहा जाता है जिससे उद्दीपन प्रतिक्रिया बनता है
  • त्रुटियां व्यक्तियों को सिखाती है यह कथन प्रयत्न और त्रुटि सिद्धांत पर आधारित है

एडवर्ड ली थार्नडाइक के प्रयोग –

थॉर्डाइक ने एक पिंजरे में भूखी बिल्ली को बंद कर दिया और बाहर एक मरी मछली |

रख दी | और पिंजरे में एक लीवर लगा होता है | प्रयत्न और त्रुटि विधि में भोजन तक पहुंचने के लिए विभिन्न प्रयास किए जैसे कि ऊपर और नीचे कूदना सलाखों पर चढ़ना पिंजरे को खरोच करना सलाखों को धक्का देने की कोशिश करते हुए चारों ओर घूमना हिलना और पिंजरे के कुछ हिस्सों को हिलाना आदि लेकिन यह सभी प्रयास व्यर्थ रहे अंतः  संयोग से उसका पंजा रस्सी के फंदे पर पड़ा और फिर दरवाजा खुल गया | बिल्ली भूख के मारे छटपटा रही थी इधर उधर घूम रही थी और अचानक उसका पैर उस लीवर पर पड़ जाता है और इस वजह से गेट खुल जाता है और बिल्ली अपने लक्ष्य तक पहुंच जाती है यानी कि मृत मछली तक पहुंच जाती है | बिल्ली ने तुरंत बाहर कूदकर मछली खा ली |

अब अगले दिन बिल्ली को फिर से बॉक्स में रखा गया था तो इस बार उसे बाहर आने में कम समय लगा |

  • प्रयोग के सफल होने पर और बिल्ली की सही प्रतिक्रिया आने पर उन्हें तुरंत पुरस्कृत किया गया था और इस तरह धीरे-धीरे उद्दीपन और प्रतिक्रिया की भी संबंध मजबूत हुआ था |
  • यह प्रयोग बताता है कि जब हम प्रयास करेंगे तो त्रुटियां होंगी लेकिन अंत में हम अपने लक्ष्य तक जरूर पहुंच जाएंगे यानी सीख जाएंगे और अगर हम प्रयास ही नहीं करेंगे तो हम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएंगे |

असल जीवन में –

  •  यदि आप अध्ययन अच्छे से करते हैं और फिर अपनी परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं इससे आप का मनोबल बढ़ता है और आपके अगली परीक्षा के लिए अध्ययन करने की अधिक संभावनाएं  होगी और आपको यकीन होगा कि आप फिर से अच्छे अंक प्राप्त कर लेंगे |
  • और अगर आप बहुत मेहनत करते हैं और फिर एक पदोन्नति प्राप्त कर लेते हैं जिससे आपका वेतन बढ़ जाता है तो आपका अपने कार्य पर अधिक प्रयास करना जारी रखने की अधिक संभावनाएं होंगी |

थॉर्डाइक के 2 नियम निम्नलिखित हैं –

  1.  मुख्य नियम (Primary Law)
  2.  गौड़ नियम (Secondary Law)

थॉर्डाइक के प्राथमिक नियम

  • अभ्यास का नियम (Rule of Practice)–  यह नियम हमें बताता है कि किसी काम का हम जितना अभ्यास करेंगे उससे उतना ज्यादा ही सीखेंगे |अभ्यास का नियम लंबी अवधि के लिए कुछ सीखने के लिए अभ्यास पर आधारित होता है |इस सिद्धांत का नियम बताता है कि उन चीजों को सबसे अधिक बार दोहराया जाता है जिन्हें सबसे अच्छी तरीके से याद किया जाता है  |
  • तत्परता का नियम (Law of Readiness)–  यह नियम हमें बताता है कि किसी काम को करने के लिए हम जितने तत्पर रहेंगे उसे उतना ही जल्दी सीख पाएंगे | रुचि, परिपक्वता, पूर्व ज्ञान, आदि से तत्परता आती है |तत्परता का नियम कुछ नया सीखने के लिए उत्सुकता और जिज्ञासा का परिमाण को संदर्भित करता है 
  • प्रभाव का नियम (Law of Effect) –  यह नियम हमें बताता है कि यदि सीखना संतोषजनक हो तो सीखना तीव्र हो जाता है यदि सीखना संतोषजनक हो तो सीखना संभव नहीं होता है थार्नडाइक ने इस नियम में पुरस्कार और दंड का महत्व भी दिया है |प्रभाव का नियम सीखने के अनुभव को शिक्षार्थियों के लिए सुखद बनाने के लिए प्रेरणा और पुनर्बलन पर आधारित होता है |

एडवर्ड ली थार्नडाइक के सिद्धांत में संशोधन

एडवर्ड ली थार्नडाइक के नियम को संशोधित किया जाना था जिसका नाम था प्रभाव का नियम उस प्रभाव के नियम में बताया गया था कि सीखना तब होता है जब प्रतिक्रिया का पर्यावरण पर कुछ प्रभाव पड़ता है और यह बताता है कि जब उद्दीपक प्रतिक्रिया के बीच परिवर्तनीय संबंध बनाया जाता है तो यह मजबूत हो गया और अगर यह संतुष्टि से परिणत हुआ और इसे झनझनाहट के कारण कमजोर कर दिया गया लेकिन बाद में इसे बदल दिया गया 1932 में उन्होंने अपने पहले के प्रभाव के नियम को संशोधित किया जिसमें उन्होंने लिखा था  कि ”  संतोष बंधन को मजबूत करता है लेकिन झुंझलाहट बंधन को कमजोर नहीं करती है “

थॉर्डाइक के गौड़ नियम

  • मनोवृत्ति अभिवृत्ति का नियम (Law of attitude attitude) – यह नियम हमें बताता है कि किसी भी काम को करने के लिए जितनी हमारी पॉजिटिव अभिवृत्ति होगी उतना ही ज्यादा हम उस काम को सीखेंगे और अगर अभिवृत्ति कम हुई तो उस काम को कम सीखेंगे |
  • आंशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Action)– इस नियम के अनुसार हम अपने पूरे कार्य को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करके करें तो यह अधिक शीघ्र और सरल हो जाता है |
  • आत्मिक करण का नियम (The law of Spiritualization) – इस नियम के अनुसार हम नए ज्ञान को अपने पुराने ज्ञान के साथ जोड़कर इसे स्थाई बना लेते हैं  इससे अधिगम अधिक सुगम और सरल हो जाता है |
  • साहचर्य क्रिया का नियम (Associative Verb Rule) – इस नियम का अभिप्राय यह है कि पहले की गई क्रिया को अन्य परिस्थिति में भी उसी प्रकार करना होता है |
  • बहु प्रतिक्रिया का नियम (Multiple Reaction Law) – इस नियम के अनुसार हम नया कार्य सीखते समय अनेक प्रतिक्रिया एवं प्रयास करते हैं तथा उसके बाद उस कार्य को करने की सही विधि मालूम हो जाती है |
  • सादृश्य का नियम (Law of Analogy) – इस नियम में अतीत की समान परिस्थितियों में की गई अनु क्रियाओं के आधार पर नई स्थिति के प्रति अनुक्रिया की जाती है |

Ivan Pavlov (इवान पावलोव)

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Pavlov Theory of classical conditioning (इवान पावलोव का शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत)

पावलोव का पूरा नाम इवान पत्रोविच पावलोव है वह एक रूसी मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने शास्त्रीय अनुबंधन के सिद्धांत को प्रतिपादित किया था | जो इस बात पर जोर देता है कि एक आदत के रूप में अधिगम साहचर्य और प्रतिस्थापन के सिद्धांत पर आधारित होता है | 

  • पावलोव (1849 – 1936) का पूरा नाम इवान पत्रोविच पावलोव है और वह एक रूसी वैज्ञानिक थे |
  • इवान पावलोव को 1904 में नोबेल पुरस्कार मिला था |
  • इवान पावलोव के अनुसार किसी की उत्तेजना से समानांतर अगर कोई संकेत निर्धारित कर दें तो वह सामान प्रतिक्रिया करेगा जितना वह उत्तेजना बढ़ने पर करता है |
  • शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत – शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत हमें यह बताता है कि अधिगम की प्रक्रिया तब होती है जब एक अनुक्रिया नए उद्दीपक के साथ जुड़ जाती है और एक नए उद्दीपक के प्रति अनुक्रिया की इस प्रक्रिया को अनुबंधन के रूप में जाना जाता है
  • इवान इवान पावलोव में 1904 में फिजियोलॉजी या मेडिसिन के लिए नोबेल पुरस्कार जीता था |

इवान पावलोव का कुत्ते पर प्रयोग –

पावलोव ने अपना प्रयोग एक कुत्ते पर किया था उसने कुत्ते को एक पिंजरे में भूखा रखा था फिर उसने उसे खाना दिया खाना देखते ही कुत्ते के मुंह से लार टपकने शुरू हो गई थी जो वह कुत्ते को खाना देता था तो खाना देने से पहले वह एक घंटी जरूर बजाता था कुछ दिन बाद कुत्ते को लगने लगा कि जब घंटी बजेगी तभी खाना मिलेगा अब जैसे ही घंटी बजती थी तो कुत्ते के मुंह से लार टपकने शुरू हो जाती थी अब उत्तेजना बढ़ाने का काम घंटी कर रही है इस तरह कुत्ता घंटे के साथ संबंध स्थापित कर लेता है |

  • इवान पावलव ने कुत्ते के जठ स्त्राव को अध्ययन किया था उन्होंने एक बार कुत्ते के मुंह में मास पाउडर रखकर पता किया था कि वह कितनी लार टपका ता है उसकी लार का मापन किया था |
  • पावलम ने एक घंटी बजाई और उसके तुरंत बाद कुत्ते को भोजन परोसा गया जिसमें कुत्ते को मास पाउडर खिलाया गया था और कुत्ते को इसे खाने की अनुमति थी |
  • वह कुत्ते के मुंह में मास पाउडर तब डालते थे जब कोई सिग्नल होता था जैसे कि प्रकाश या ध्वनि का सिग्नल देने के बाद ही वह कुत्ते को खाना देते थे |
  • इवान पावलव में कई प्रकार के परीक्षण किए जिसमें सबकुछ पिछले परीक्षणों के समान था सिवाय इसके कि कोई भोजन घंटी की आवाज का पालन नहीं करता था |
  • भोजन देने के बाद सभी कुत्तों की लार  इस स्त्रावित होती थी इस प्रकार भोजन एक स्वाभाविक उद्दीपक और लाल जो इसका अनुसरण करती है एक स्वाभाविक प्रक्रिया है |
  • अनुबंधन के बाद घंटे की आवाज की उपस्थिति में लार उत्पन्न होने लगी थी घंटी एक स्वाभाविक उद्दीपक और लार स्त्राव एक अस्वभाविक प्रतिक्रिया बन जाती है इस तरह के अनुबंधन को शास्त्रीय अनुबंधन कहा जाता है |
  • Unconditioned stimulus – UCS (असुविधाजनक प्रोत्साहन / स्वभाविक उद्दीपन) प्राकृतिक उद्दीपक वह होता है जो एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया प्राप्त करता है जैसे कि पावलव के प्रयोग में मांस का चूर्ण स्वभाविक उद्दीपन था |
  • Unconditioned response – UCR (बिना शर्त प्रतिक्रिया / स्वाभाविक प्रतिक्रिया) प्राकृतिक उद्दीपक के लिए प्राकृतिक प्रक्रिया प्राप्त हुई थी जैसे कि पावलव के प्रयोग में लार स्वभाविक प्रक्रिया थी |
  • Conditioned stimulus – CS (वातानुकूलित उत्तेजना / अस्वाभाविक उद्दीपन) – तथास्तु उद्दीपन वह है जो स्वाभाविक रूप से लक्ष्य प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं करती है लेकिन कई बार स्वभाविक उद्दीपन से जुड़े होने के बाद ऐसा कर सकती है जैसे कि पावलव के प्रयोग में घंटी की रोशनी या आवाज अस्वाभाविक उद्दीपन थी |
  • Conditioned response -CR (वातानुकूलित प्रतिक्रिया / स्वाभाविक प्रतिक्रिया) – लक्ष्य प्रतिक्रिया स्वाभाविक प्रतिक्रिया के समान है जो मूल रूप से केवल स्वभाविक उद्दीपन में है लेकिन अस्वाभाविक उद्दीपन के साथ अनुबंधित होने के बाद स्वभाविक उद्दीपन की अनुपस्थिति में भी होने लगती है पावलोव के प्रयोग में प्रकाश या घंटी की प्रतिक्रिया में स्त्रावित होने वाली लार अस्वाभाविक प्रतिक्रिया है |

शास्त्रीय अनुबंधन (Classical Conditioning)

  • इसकी खोज एक रूसी शरीर विज्ञानी इवान पावलव द्वारा की गई थी | शास्त्रीय अनुबंधन को पावलोवियन अनुबंधन के रूप में भी जाना जाता है शास्त्रीय अनुबंधन साहचर्य के माध्यम से सीखना होता है |
  • शास्त्रीय अनुबंधन एक प्रकार का अधिगम है जो अनजाने में होता है |
  • अगर हम इसे सरल शब्दों में जाने तो यह है कि किसी व्यक्ति या जानवर में एक नई सी की गई प्रतिक्रिया बनाने के लिए दो युवकों को एक साथ जोड़ा जाता है और उन में तरह तरह के बदलाव समय-समय पर करके उनका परिणाम  सामने वाले पर क्या हुआ हैजाना जा सकता है |
  • इवान पावलव मुख्य रूप से पाचन के शरीर विज्ञान में रुचि रखते थे और अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने देखा था कि जिन कुत्तों पर वह अपने प्रयोग कर रहे थे उन्होंने जैसी ही खाली थाली में खाना परोसा उन्होंने लार टपका ना शुरू कर दिया था |
  • इस प्रक्रिया को विस्तार से समझने के लिए इवान पावलव ने एक प्रयोग तैयार किया जिसमें एक बार फिर कुत्तों का इस्तेमाल किया गया था |

 शास्त्रीय अनुबंधन के तीन चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में उद्योगों और अनु क्रियाओं को विशेष वैज्ञानिक शब्द दिए जाते हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं –

  1.  चरण 1:  अनुबंधन से पहले
  2.  चरण 2:  अनुबंधन के दौरान
  3.  चरण 3:  अनुबंधन के बाद

Note – अनुबंधन मतलब क्रम या सिलसिला होता है | 

शास्त्रीय कंडीशनिंग के चरण (Stages of Classical Conditioning)

[ DOG AND FOOD IMAGE STIMULUS BELL ETC ]

  1. उद्दीपक सामनीयकरण (stimulus generalization) – जब व्यक्ति Unconditional stimulus की प्रतिक्रिया सीख लेता है तो वह उस उद्दीपक से मिलते जुलते अन्य अतिथि उद्दीपन ओ की प्रति भी वैसा ही response करता है जैसे कि अलग-अलग घंटियों की आवाज आने पर भी कुत्ता लटकाना शुरू कर देता है 
  2. विलोपन (deletion)-  अगर Conditioned stimulus  के बाद Unconditioned stimulus  प्रधान ना करें तो कुछ समय बाद response  आना बंद हो जाता है जैसे कि घंटी की आवाज के बाद अगर खाना ना दिया जाए तो कुत्ते की लार आना बंद हो जाएगी
  3. विभेद –  इसमें व्यक्ति Original Unconditioned stimulus  और  दूसरे उद्दीपक के बीच विभवांतर करना शुरू कर देता है जैसे की बहुत सारी घंटियां बजने के बावजूद कुत्ता यह पहचान जाता है कि किस घंटे के बाद के बाद खाना मिलेगा

Extra Information – (कौन किसके जनक थे)

  • जेबी वाटसन व्यवहारवाद के जनक थे |
  • जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत के जनक थे |
  • लेव वाइगोत्सकी सामाजिक विकास के सिद्धांत के जनक थे |

Wolfgang Köhler (वोल्फगैंग कोह्लर)

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वोल्फगैंग कोहलर एक जर्मन मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने अंतर्दृष्टि और सूझ का सिद्धांत का प्रस्ताव दिया था कोहलर यह सिद्ध करना चाहते थे कि अधिगम संज्ञानात्मक कार्यविधि है |

गेस्टाल्ट मनोविज्ञान में कोहलर के संस्थापकों में से एक को देखते हुए अंतर्दृष्टि अधिगम से तात्पर्य समस्या के समाधान की अचानक प्राप्ति से है वोल्फगैंग कोहलर ने प्रस्तावित किया था कि सभी प्रकार के शिक्षा परीक्षण त्रुटि या अनुकूलन पर निर्भर नहीं होती है हम सीखने के लिए अपनी संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का उपयोग भी करते हैं |

सूझ अथवा अंतर्दृष्टि का सिद्धांत (Kohler insight theory)

गेस्टाल्टवादियों का सिद्धांत (Gestalt Theory)

गेस्टाल्टवाद – गेस्टाल्ट शब्द जर्मन भाषा का शब्द है जिसका मतलब है आकृति का समग्रता अथवा संपूर्ण होना |

उदाहरण – मान लीजिए जब हम कोई गाड़ी देखते हैं तो उसे पूरा देखते हैं ना कि सिर्फ उसके हिस्से को देखते हैं |

 इस सिद्धांत (सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धान्त) के प्रतिपादक वर्दीमर, कोफ्का, कोहलर को माना जाता है –

  • अंतर्दृष्टि अधिगम सिद्धांत देने का श्रेय कोहलर को जाता है  इस सिद्धांत में  कोफ्का ने भी सहयोग दिया था सूझ का सिद्धांत संज्ञानात्मक कार्य पर बल देता है |
  • किसी समस्या पर अचानक से दिमाग में आया समाधान सूझ द्वारा ही होता है |

इसे गेस्टाल्ट क्यों सिद्धांत कहा जाता है – (कोहलर का चिंपैंजी पर प्रयोग)

कोहलर ने अपना प्रयोग सुल्तान नाम के वनमानुष चिंपैंजी पर किया था | उसने चिंपैंजी को एक खाली कमरे में बंद कर दिया था और फिर छत पर कुछ केले लटका दिए थे | शुरुआत में उस केले को प्राप्त करने के लिए कुछ असफल प्रयासों के बाद चिंपांजी ने अपना समय बिताने के लिए खेलना और बैठना शुरू कर दिया था | भूखा होने की वजह से चिंपैंजी उछलकर के केलो को पकड़ने का प्रयास करता था लेकिन केले ऊंचाई पर होने की वजह से चिंपैंजी केले को नहीं पकड़ पाता था फिर कोहलर द्वारा वह एक छड़ी/डंडी रख दी गई | चिंपैंजी की नजर छड़ी पर गई तो वह केले को तोड़ने का प्रयास फिर से करने लगा लेकिन दोबारा ऊंचाई की वजह से नहीं पहुंच पाता था फिर कोहलर ने वहां एक डब्बा रख दिया फिर चिंपैंजी ने उस डब्बे को देखा और उस पर चढ़कर छड़ी की सहायता से केले तोड़ लिए प्रयोग के अनुसार चिंपैंजी ने जब मानसिक क्रियाएं की तभी वह डब्बे और छड़ी का इस्तेमाल करके केलो को तोड़ पाया | इस प्रयोग से यह निष्कर्ष निकलता है कि जब चिंपैंजी ने केले उतारे तो उसने छड़ी और बॉक्स का समग्र रूप से प्रयोग किया  इसलिए इसे गेस्टाल्ट सिद्धांत कहा जाता है |

प्रतिपादक सिद्धांत मुख्य विचार
एडवर्ड थार्नडाइक संबंधवाद का सिद्धांत /

S -R संबंध सिद्धांत

अधिगम  उद्दीपक को और 

अनु क्रियाओं के बीच साहचर्य के गठन का एक परिणाम है

बी॰एफ॰ स्किनर क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत का तात्पर्य यह है कि अ

धिगम एक निश्चित व्यवहार को पुरस्कृत करने का आवाज ने

व्यवहार के लिए पुरस्कार को वापस लेने के माध्यम से होता है

इवान पावलोव शास्त्रीय अनुकूलन का सिद्धांत शास्त्रीय अनुकूलन सिद्धांत इस बात पर बल देता है

कि व्यवहार प्रतिक्रिया और उद्दीपन के बीच

एक पुनरावृति संबंध द्वारा सीखा जाता है

कोहलर अंतर्दृष्टि द्वारा अधिगम अधिगम का /

 गेस्टाल्ट वाद सिद्धांत

अंतर्दृष्टि द्वारा अधिगम /  अधिगम का गेस्टाल्ट सिद्धांत

इस बात पर बल देता है कि

अंतर्दृष्टि के रूप में  समस्या का अचानक समाधान व्यवहार

या अवलोकन पर निर्भर नहीं करता है

कर्ट लेविन क्षेत्रवादी सिद्धांत चित्र वादी सिद्धांत के अनुसार कोई भी वस्तु

या वस्तु के रूप में विचार करने योग्य

या बोधगम्य में नहीं है और अन्य चीजों के बारे में

सब कुछ माना जाता है या कल्पना की जाती है

कर्ट लेविन के अनुसार हमारा व्यवहार हमारे मनोवैज्ञानिक व्यक्ति

और हमारे मनोवैज्ञानिक वातावरण से निर्धारित होता है


B. F. Skinner (बी.एफ. स्किनर)

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  • बीएफ स्किनर एक प्रसिद्ध अमेरिकी वैज्ञानिक और उनका पूरा नाम – (Burrhus Frederic Skinner) बरहस फ्रेडरिक स्किनर है |
  • बी.एफ. स्किनर ने कहा था कि मनोवैज्ञानिक शिक्षा का सबसे बुनियादी विज्ञान है |
  • बी.एफ. स्किनर को क्रिया प्रसूत अनुबंधन के सिद्धांत को विकसित करने के लिए जाना जाता है जो कि व्यवहार को बदलने के लिए पुनर्बलन या परिणामों का उपयोग करते हैं |
  • एक सकारात्मक पुनर्बलन वह होता है जिसकी उपस्थिति प्रतिक्रिया की संभावना को बढ़ाती है भोजन धन या मौखिक प्रशंसा जैसे कि पुरस्कार को सकारात्मक पुनर्बलन माना जाता है एक नकारात्मक पुनर्बलन वह है | जिसके अनुपस्थिति से प्रतिक्रिया की संभावना बढ़ जाती है |

बी.एफ स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत (Operant Conditioning Theory)

बीएफ स्किनर (1904 – 1990) एक प्रसिद्ध अमेरिकी वैज्ञानिक व्यवहारवादी लेखक आविष्कारक और सामाजिक दार्शनिक थे उन्होंने व्यवहार विश्लेषण विकसित किया था विशेष रूप से कट्टरपंथी व्यवहारवाद का दर्शन विकसित किया था बीएफ स्किनर जॉन बी वाटसन और इवान पावलव को आधुनिक व्यवहारवाद का अग्रदूत माना जाता है |

क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बीएफ स्किनर द्वारा किया गया था |

 क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत के अन्य नाम निम्नलिखित हैं –

  1. नैमित्तिक अनुबंधन का सिद्धांत
  2. कार्यात्मक प्रतिबद्धता का सिद्धांत
  3. सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांत
  4. अभिक्रमित अनुदेशन का सिद्धांत
  • बीएफ स्किनर ने सबसे अधिक अनुक्रिया पर जोर दिया था इसलिए इसे क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत कहा जाता है |
  • बीएफ स्किनर ने अपने  प्रयोग चूहे पर फिर उसके बाद कबूतर पर अपना प्रयोग किया था |

क्रिया प्रसूत का अनुबंधन सिद्धांत किसे कहते हैं? (बीएफ स्किनर का चूहे पर प्रयोग)

  • बीएफ स्किनर ने एक बॉक्स लिया और उसमें एक चूहे को बंद कर दिया बॉक्स में एक लीवर लगा हुआ था उसमें एक छेद भी था जब लिवर दबता था तब खाना आ जाता था उस छेद के द्वारा जब चूहे को भूख लगती तो वह इधर उधर घूमने लगा अचानक उसका पैर लीवर में लगा और उसके लिए एक छिद्र से खाना आ गया | उसके बाद उसने इस क्रिया को दोहराया और खाना दोबारा आ गया | इसमें चूहा जब भी प्रतिक्रिया करता तो उसको खाना मिल जाता था इसे ही क्रिया प्रसूत का अनुबंधन सिद्धांत कहते हैं |
  • इस प्रयोग से यह निष्कर्ष निकलता है कि पहले अनुक्रिया होती है बाद में उद्दीपक मिलता है जैसे जैसे पुनर्बलन मिलता है वैसे वैसे सही अनुक्रिया करने और लक्ष्य तक पहुंचने की प्रक्रिया में तीव्रता आ जाती है सीखने की अनुक्रिया में पुनर्बलन का विशेष महत्व होता है |

बीएफ स्किनर का कबूतर पर प्रयोग –

  • स्किनर ने एक प्रयोग किया था चूहे के ऊपर और एक प्रयोग किया था कबूतर के ऊपर |
  • इस प्रयोग में कबूतर लाल गेंद को चोट मारता है और फिर अपना भोजन प्राप्त करता है भोजन के कारण कबूतर एक ही गेंद को बार-बार जांच मार सकता है World War II के दौरान स्किनर ने योजना कबूतर नाम का एक कार्यक्रम पर काम किया था | जिसे योजना ऑर्कॉन शॉर्ट फॉर कार्बनिक नियंत्रण के रूप में भी जाना जाता है जो कि कबूतर निर्देशित मिसाइल बनाने के लिए एक प्रायोगिक परियोजना थी |
  • पुनर्बलन –  जिस उद्दीपक को देने से अनुप्रिया करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं पुनर्बलन कहलाता है जैसे कि पेपर पास करने पर माता-पिता द्वारा  बच्चे को कोई उपहार दिया जाता है  साइकिल, मोबाइल आदि |

 पुनर्बलन दो प्रकार के होते हैं –

  1. सकारात्मक पुनर्बलन (Positive Reinforcement) चूहे ने लीवर को दबाकर भोजन प्राप्त किया इसे हम सकारात्मक सुदृढीकरण कहेंगे | सकारात्मक पुनर्बलन जैसे कि भोजन पानी प्रशंसा नौकरी आदि
  2. नकारात्मक पुनर्बलन (Negative Reinforcement)यदि पिंजरे में चूहे को हर पल पैरों को बिजली का झटका मिलता है जब चूहा लीवर को दबाता है तो झटका 10 सेकंड के लिए हटा दिया जाता है इससे प्रतिक्रिया की दर बढ़ जाती है इस प्रक्रिया को नकारात्मक सुदृढीकरण कहा जाता है | नकारात्मक पुनर्बलन जैसे कि दंड देना डांटना या मना करना आदि |

यदि किसी व्यक्ति को सकारात्मक पुनर्बलन दिया जाता है तो वह क्रिया को दोहराता है और यदि नकारात्मक पुनर्बलन दिया जाता है तो वह क्रिया को नहीं दोहराता है |

पुनर्बलन अनुसूची दो प्रकार की होती हैं – 

  1. सतत पुनर्बलन अनुसूची (Continuous Reinforcement Schedule) –  इसमें जब-जब क्रिया होती है तो पुनर्बलन दिया जाता है जैसे कि प्रत्येक सवाल हल करने पर बच्चे की तारीफ की जाती है |
  2. आंशिक पुनर्बलन अनुसूची (Partial Reinforcement Schedule) –  इसमें हर  क्रिया के लिए पुनर्बलन नहीं दिया जाता है बल्कि कुछ क्रियाओं के लिए दिया जाता है जैसे कि सभी सवालों की जगह सिर्फ कुछ सवाल पर तारीफ करना |
क्रिया प्रसूत अनुबंधन क्रिया प्रसूत अनुबंधन एक अधिगम के प्रतिमान को संदर्भित करता है जहां पर सही प्रतिक्रियाओं को मजबूत करने के लिए भेदभाव पूर्ण व्यवहार द्वारा जीव को वांछित व्यवहार सिखाया जाता है
व्यवहार का कार्यात्मक विश्लेषण व्यवहार का कार्यात्मक विश्लेषण एक छोटी इकाइयों में जटिल व्यवहार का टूटना होता है और व्यवहार की प्रत्येक इकाई को उसके पूर्व काल और परिणामों से संबंधित करना होता है
पुनर्बलन की अनुसूची पुनर्बलन की अनुसूची सही प्रतिक्रियाओं के जवाब में दिए गए पुनर्बलन की दर को संदर्भित करता है
सतत पुनर्बलन सतत व पुनर्बलन हर बार सही प्रतिक्रिया होने पर पुनर्बलन देने के लिए संदर्भित करता है

Noam Chomsky (नोआम चाम्सकी)

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नोआम चाम्सकी एक अमेरिकी प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थे | जिन्होंने भाषा अर्जन का सिद्धांत प्रस्तावित किया था | उनको आधुनिक भाषा विज्ञान का जनक कहा जाता है उन्होंने मनोविज्ञान से संबंधित बहुत से विचारों और तथ्यों का प्रतिपादन किया था जिनमें से उनकी भाषा पर की गई टिप्पणी विश्व विख्यात है और वह एक अमेरिकी भाषाविद, संज्ञानात्मक वैज्ञानिक, दर्शन विशेषज्ञ, सामाजिक आलोचक, इतिहासकार और प्रसिद्ध रूप से आधुनिक भाषा विज्ञान के जनक कहे जाते हैं |

भाषा अर्जन सिद्धांत मुख्य रूप से इस बात पर जोर देता है कि बच्चों के पास एक सहज सार्वभौमिक व्याकरण होता है जो उन्हें इसमें सीखने में मदद करता है निम्नलिखित बातों से आप अच्छे से समझ पाएंगे |

  • सभी भाषाओं के बीच मौजूद अभिनेताओं के बावजूद भी आधार के रूप में कार्य करना |
  • संवेदी अनुभव की स्वतंत्रता व्याकरणिक वाक्य संरचनाओं को विकसित करना
  • व्याकरण को प्राप्त करना और उसे समझना इस बात की परवाह किए बिना कि वह कहां से लिए गए हैं या कैसे लिए गए हैं |
  • चोम्स्की के अनुसार बालक में व्याकरण एवं भाषा को सीखने की क्षमता जन्मजात से ही होती है 

भाषा विकास का सिद्धांत (theory of language development (Inborn Theory))

  • नोआम चाम्सकी अमेरिका के रहने वाले थे और इनका मानना है कि बच्चों में भाषा सीखने की जन्मजात क्षमताएं होती हैं |
  • नोआम चाम्सकी कहते हैं कि बच्चे के मस्तिष्क में एक यंत्र ( LAD Device) होता है जिससे बच्चा भाषा सीखता है |

भाषा अधिग्रहण युक्ति (language acquisition device) – LAD

  • L= Language
  • A =  Acquisition
  • D = Device

उदाहरण –  यदि बच्चा भारतीय है तब भी वह बोलना सीखे गा और इंसानों की भाषा बोलेगा यदि बच्चा विदेशी है तब भी वह इंसानों की भाषा ही बोलेगा यदि बच्चे को मोगली की तरह जंगल में छोड़ दिया जाए तो वह जानवरों की भाषा तो बोलेगा ही लेकिन फिर उसे वापस शहर में लाया जाए तो वह इंसानों की भाषा बोलना शुरू कर देगा |

नोआम चाम्सकी के दृढ़ विश्वास को आप निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं से आप समझ सकते हैं –

  •  बच्चों में भाषा अर्जन की क्षमता जन्मजात से ही होती है |
  •  बच्चों में भाषा अर्जित करने की शहजाद  योग्यता होती है |
  •  बच्चे भाषा अर्जन क्षमता के कारण ही भाषा सीख पाते हैं |
  •  बच्चों की भाषा अर्जन क्षमता ही भाषा अधिग्रहण में आधार बनती है |
  •  बच्चों में भाषाई विकास एक काल्पनिक भाषा अधिग्रहण उपकरण द्वारा होता है जिसका नाम है लैंग्वेज एक्विजिशन डिवाइस जिसे हम शार्ट में LAD बोलते हैं |

नोआम चाम्सकी ने भाषा के दो स्तर बताए हैं – 

  1. सतही संरचना –  इसमें बच्चा सिर्फ ध्वनियों/ शब्दों को जानता है लेकिन उनके अर्थ नहीं जानता है जैसे कि मम्मी, पापा, खाना, पीना, आदि |
  2. गहरी संरचना –  इसमें शब्दों के अर्थ का ज्ञान होता है

नोआम चाम्सकी कुछ बातों का समर्थन नहीं करते थे जिनकी  बातें  कुछ मुख्य बिंदुओं में निम्नलिखित है –

  • भाषा केवल सीखी जाती है और यह अर्जित नहीं की जा सकती |
  • भाषा का विकास अधिकांश बच्चों में समान आयु के आस पास हो जाता है |
  • बच्चे द्रुत गति से भाषा अर्जित करते हैं |

Benjamin Bloom (बेंजामिन ब्लूम)

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Bloom’s taxonomy of educational objectives (ब्लूम की शैक्षिक उद्देश्यों की वर्गीकरण)

डॉ. बेंजामिन ब्लूम एक अमेरिका के निवासी थे | ब्लूम का वर्गीकरण संज्ञानात्मक भावात्मक मनु क्रियात्मक पक्ष का एक श्रेणी पद क्रम है और प्रत्येक डोमेन में कुछ उद्देश्य है |  जो कि शिक्षकों को पढ़ाने और छात्रों को सीखने में मदद कर सकते हैं |

इन्होंने शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण किया था जिनके नाम निम्नलिखित हैं –

  1. संज्ञानात्मक पक्ष (Cognitive Domain)
  2. भावात्मक पक्ष (Affective Domain)
  3. मनोक्रियात्मक पक्ष (Psychomotor Domain)

1. संज्ञानात्मक पक्ष (Cognitive Domain)– संज्ञानात्मक पक्ष का वर्गीकरण बेंजामिन ब्लूम ने 1956 में किया था | यह मानसिक क्षमताओं के संबंधित होता है | इसके उद्देश्य को सरल से कठिन और शिक्षण अधिगम के निम्न स्तर से ऊंचे स्तर तक ले जाने की दृष्टिकोण को 6 भागों में बांटा हुआ है | इस पक्ष में मूल्यांकन, विश्लेषण, आवेदन करना, समझना, याद रखना, आदि सीखता है 

  • ज्ञान –  इसमें बच्चे को आंकड़े/ जानकारी को याद करना  प्रत्यास्मरण आदि करने का प्रयास किया जाता है और इसमें बच्चा ज्ञान के साथ व्यवहार करता है
  • बोध / समझ –  इसमें बच्चे को ज्ञान कराया जाता है उसकी समझ विकसित की जाती है जैसे कि अर्थ को समझना समस्याओं की व्याख्या करना आदि
  • अनुप्रयोग –  इसमें आत्मसात किए गए ज्ञान को परिस्थितियों के अनुसार प्रयोग किया जाता है जैसे कि जांच करना प्रदर्शित करना गणना करना आदि
  • विश्लेषण –  इसमें आत्मसात किए गए हुए ज्ञान को भिन्न-भिन्न भागों में अलग करने की क्षमता होती है ताकि उसके तथ्यों और निष्कर्षों को समझा जा सके
  • संश्लेषण –  इसमें नए अर्थ पर जोर देकर हिस्सों को जोड़कर संपूर्ण बनाया जाता है यानी कि कांसेप्ट और नियम के आधार पर उसमें से कोई अपने अनुसार कांसेप्ट निकालना जैसे कि तर्क देना वाद विवाद करना निष्कर्ष देना आदि
  • मूल्यांकन –  इसमें सीखे गए ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता है कि कितना सीखा है

2. भावात्मक पक्ष (Affective Domain) – भावनात्मक पक्ष में वे तरीके शामिल होते हैं जिनसे हम भावनात्मक रूप से सामना करते हैं जैसे की तारीफ करना उत्साह प्रेरणा दी | इस पक्ष में प्रतिक्रिया करना, ग्रहण करना, मूल्यांकन करना, आयोजन करना, चित्रण करना आदि शामिल है

(Affective Domain) भावनात्मक पक्ष को 5 भागों में बांटा गया है –

  1. आग्रहण या ध्यान करना
  2. अनुक्रिया
  3. आकलन
  4.  संगठन
  5.  मूल्यों का चरित्र करण या विशेषीकरण

3. मनोक्रियात्मक पक्ष (Psychomotor Domain)– मनोक्रियात्मक पक्ष में शारीरिक हलचल मोटर स्किल्स के क्षेत्र आदि शामिल होते हैं | इस पक्ष में नकल हेरफेर स्पष्टीकरण और प्राकृतिक करण आदि शामिल है |

(Psychomotor Domain) क्रियात्मक पक्ष को 6 भागों में बांटा गया है – 

  1.  सहज क्रियात्मक अंग संचालन
  2.  आधारभूत अंग संचालन
  3.  शारीरिक योग्यताएं
  4.  प्रत्यक्षीकरण योग्यताएं
  5.  कौशल युक्त अंग संचालन
  6. सुसम्बद्ध या संकेतिक संप्रेषण 

Albert Bandura (अल्बर्ट बंडूरा)

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अल्बर्ट बंडूराअल्बर्ट बंडूरा एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे और अपने सामाजिक अधिगम सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध हैं |

अल्बर्ट बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Albert Bandura’s Social Learning Theory)

अल्बर्ट बंडूरा कनाडा के निवासी थे और उन्होंने सामाजिक अधिगम का सिद्धांत दिया था | इस सिद्धांत में दूसरों के व्यवहार को देखकर सीखा जाता है | समाज के माननीय व्यवहार को अपनाया जाता है और अमान्य व्यवहार को नकारा जाता है |

  1. अवलोकनात्मक अधिगम का सिद्धांत (Theory of Observational Learning)
  2. अनुकरण करना (Emulate/Simulate)
  3. मॉडलिंग (Modeling)

इनके प्रयोग अल्बर्ट बंडूरा ने बोबो डॉल पर प्रयोग किया इसमें इन्होंने बच्चों को तीन फिल्में दिखाई थी |

  • पहली फिल्म में दिखाया जाता है कि एक बच्चा डॉल के प्रति प्रेम पूर्वक भावना रखता है |
  • दूसरी फिल्म में दिखाया जाता है की एक बच्चा अपनी डॉल के साथ सामाजिक क्रिया करता है जैसे कि घर-घर खेलना डॉक्टर बनाना तभी डॉल को इंस्पेक्टर बनाना आदि |
  • तीसरी फिल्म में दिखाया जाता है कि एक बच्चा डॉल के साथ हिंसा करता है उसके साथ हिंसक व्यवहार रखता है |

प्रयोग करने के बाद पता चलता है कि बच्चे भी अपने डॉल के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं जैसा कि उन्होंने फिल्म में देखा था |

कई बार व्यक्तियों को खुद यही पता नहीं होता कि कैसा व्यवहार करना है वे दूसरों का निरीक्षण करते हैं और अपने व्यवहार का अनुकरण करते हैं जिससे मॉडलिंग कहा जाता है |

अल्बर्ट बंडूरा के अनुसार सामाजिक अधिगम के सिद्धांत में 4 चरण होते हैं जिनके नाम निम्नलिखित है –

  1. Attention (ध्यान)
  2. Retention (प्रतिधारण)
  3. Reproduction (प्रजनन)
  4. Motivation (अभिप्रेरणा)
  • Attention (ध्यान) – ध्यान क्रम में निरीक्षण करने के लिए मॉडल पर ध्यान देने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है |
  • Retention (प्रतिधारण) – प्रतिधारण बाद में उपयोग के लिए सीखी गई गतिविधियों को वापस बुलाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है |
  • Reproduction (प्रजनन) – प्रजनन क्रिया को करने या पुनः प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है |
  • Motivation (अभिप्रेरणा) – अभिप्रेरणा अवलोकन आत्मक अधिगम को डराने के लिए शिक्षार्थियों को प्रेरित करने की प्रक्रिया को संदर्भित करती है |

किसने क्या सिद्धांत दिया उस पर मुख्य बिंदुओं में कुछ विचार निम्नलिखित है –

  • व्यवहारवादी सिद्धांत जेबी वाटसन द्वारा दिया गया था  उनका मानना यह था कि बाहरी अवलोकन  व्यवहार पर केंद्रित होते हैं और यह व्यवहारवाद का सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि पर्यावरण एक व्यक्ति के व्यवहार को आकार देने में मुख्य कारक साबित होता है
  •  संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत जीन पियाजे द्वारा दिया गया था और इनका मानना था कि आंतरिक मानसिक प्रक्रिया पर केंद्रित होता है और यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि सीखना सोचने की एक प्रक्रिया है यानी के अर्थ निर्माण के लिए अनुभूति है
  •  मनो लैंगिक विकास का सिद्धांत सिगमंड फ्रायड द्वारा दिया गया था और इनका मानना था कि व्यक्तित्व बचपन में अच्छी तरीके से स्थापित हो जाता है और मुख्यतः 5 वर्ष की आयु से पहले हो जाता है साथ ही उन्होंने मनोवैज्ञानिक विकास के पांच चरणों का प्रस्ताव भी रखा था

John B. Watson (जॉन बी वाट्सन)

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जॉन बी वाटसन (9 जनवरी, 1878 – 25 सितंबर, 1958) एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने व्यवहारवाद के सिद्धांत को प्रतिपादित किया था जिसमें उन्होंने बताया था कि पर्यावरण बच्चे के व्यवहार और कार्यों को आकार देने का प्रमुख कारक होता है |

जॉन बी वाटसन के अनुसार मनुष्य कुछ प्रतिरोधों के साथ पैदा होता है जो प्रेम, भय और क्रोध की भावनात्मक प्रतिक्रियाएं हैं |

जॉन बी वाटसन कि मूल अवधारणाएं निम्नलिखित है –

  • आदत गठन
  • भावनाओं का अध्ययन
  • पर्यावरण वाद
  • उद्दीपन अनुक्रिया
  • यूजिनिक्स आंदोलन
  • सामाजिक हस्तक्षेप
  • व्यवहारिक अनुप्रयोग

जॉन बी वाटसन ने स्वयं अपने 11 माह के बेटे अल्बर्ट के साथ एक प्रयोग किया था उसने उसे खेलने के लिए एक खरगोश दिया था | बच्चे को उस खरगोश के नरम नरम बालों पर हाथ फेरना अच्छा लगता था |  जॉन बी वाटसन ने बच्चे को कुछ दिनों तक ऐसा करने दिया लेकिन कुछ समय बाद वाटसन ने ऐसा किया कि जब बच्चा खरगोश को छूता था  तो जॉन बी वाटसन एक तरह की डरावनी आवाज पैदा करने लगा था |   ऐसा जॉन बी वाटसन  ने कुछ दिनों तक किया | परिणाम यह हुआ कि डरावनी आवाज के ना किए जाने पर भी बच्चे को खरगोश को देखने से ही डर लगने लगा था इस तरह की अनुक्रिया खरगोश के साथ अनुबंधित हो गई थी और इस अनुबंधन के फल स्वरुप उसने खरगोश से डरना सीख लिया था | प्रयोग को आगे बढ़ाने पर देखा गया कि बच्चा खरगोश से ही नहीं बल्कि ऐसी सभी चीजों से डरने लगा था उसमें खरगोश के बाल जैसी नरमी और कोमलता हो |

परिणाम यह हुआ कि उस बच्चे के मन में भय बैठ गया था लेकिन उसके भय को निकालना भी था तब उसका इलाज कराया गया और फिर उस बच्चे के भय को खत्म किया गया |


अभिवृद्धि एवं विकास (Growth and Development)

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अभिवृद्धि (Growth)

 जब हमारे शरीर की संरचना या आकार बढ़ना शुरू हो जाता है उसे वृद्धि कहते हैं |

  1. वृद्धि बाहरी स्तर है |
  2. हम वृद्धि को नाप सकते हैं बच्चे की ऊंचाई वजन और लंबाई में वृद्धि होती है |
  3. वृद्धि कुछ समय के बाद रुक जाती है जैसे की लंबाई चौड़ाई |
  4. वृद्धि क्रम के अनुसार नहीं चलती है | जैसे कि कभी हमारी लंबाई बढ़ जाती है तो कभी हमारा भार बढ़ जाता है |
  5. वृद्धि दिशाहीन होती है | जरूरी नहीं है कि वृद्धि एक ही दिशा में हो |
  6. वृद्धि का हम मापन कर सकते हैं  जैसे कि हम अपना वजन और लंबाई को नाप सकते हैं |
  7. वृद्धि केवल परिमाणात्मक होती है |
  8. वृद्धि जीव को सीए पर आधारित होती है क्योंकि हमारे शरीर में बहुत सारी कोशिकाएं होती हैं जो शरीर का निर्माण करती है |
  9. वृद्धि होने से विकास हो वह भी सकता है और नहीं भी हो सकता है जैसे कि जब कोई आदमी मोटा होता जा रहा है तो उसकी भी रहती हो रही है परंतु यह जरूरी नहीं है कि मोटा होने से उसका क्रियात्मक विकास भी बढ़ेगा |

 विकास (Development)

जो हमारे मानसिक संवेगात्मक सामाजिक तथा बौद्धिक पक्ष में  परिपक्वता आती है तो उसे विकास कहते हैं |

विकास के कई सिद्धांत होते हैं जिनमें से एक सिद्धांत का नाम है क्रमिकता का सिद्धांत –

  • सिफेलोकोडल प्रवृत्तियह प्रवृत्ति दर्शाती है कि विकास  सिर से पैर की ओर बढ़ता है यही कारण है कि बच्चा चलने से पहले सिर को नियंत्रित करना सीख जाता है |
  • समीप से दूर प्रवृत्ति (प्रोक्सिमोडिस्टल)यह प्रवृत्ति निकट से दूर की ओर बढ़ती है और केंद्रीय बिंदु के निकट वाले शरीर के अंगों को विकास सबसे पहले होता है और फिर हाथ पैर का विकास होता है इसलिए विकास के पहले चरण में बच्चा छोटी मांसपेशियों के कौशल के बजाय मौलिक मांसपेशियों पर अभ्यास करता है |

विकास जो कि एक निरंतर परिवर्तन की एक घटना है जिसका अवलोकन गुणवत्ता और मात्रा दोनों के संदर्भ में किया जाता है |

मानव विकास के सिद्धांत को उस रूप में परिभाषित किया जाता है जिस तरीके में एक व्यक्ति विकसित होता है |

  1.  विकास का स्वरूप आंतरिक एवं बाहर दोनों का होता है जैसे कि मस्तिष्क और भाषा ज्ञान
  2.  विकास जीवन भर चलता रहता है
  3.  विकास में निश्चित क्रम होता है जैसे कि हमें अपना जितना विकास करना होता है उतना हो जाता है मानसिक विकास हो सामाजिक विकास आदि जितना हम चाहेंगे उतना ही होगा
  4.  विकास की एक निश्चित दिशा होती है |
  5.  विकास का हम सीधे सीधे माफ नहीं कर सकते हैं जैसे की हम सामाजिक विकास नैतिक विकास का मापन नहीं कर सकते हैं हम केवल मानसिक विकास का मापन कर सकते हैं
  6.  विकास  परिमाणात्मक गुणात्मक दोनों होते हैं
  7.  विकास संगठनात्मक तरीके से होता है क्योंकि विकास सभी विकास का एक संगठन होता है
  8.  विकास वृद्धि के बिना भी संभव है क्योंकि कुछ व्यक्तियों का आकार ऊंचाई या भार नहीं बढ़ता परंतु उनमें नैतिक विकास, सामाजिक  विकास, बौद्धिक विकास अवश्य होता है
  9. फिलहाल ऐसी कोई मशीन नहीं है जिससे हम पता कर सके की व्यक्ति का इतना % विकास हुआ है |

विकास के आयाम (Dimensions of Development)

  • शारीरिक विकास (Physical Development)
  • गत्यात्मक विकास (Dynamic Development)

1. शारीरिक विकास (Physical Development) – इसमें शरीर का विकास होता है |

2. गत्यात्मक विकास (Dynamic Development) – गत्यात्मक विकास बालक के शारीरिक विकास से जुड़ा होता है यह विकास मांसपेशियों, हड्डियों की क्षमता और उन पर नियंत्रण करने से संबंधित होता है |

गामक विकास – गामक विकास में बालकों के चलने दौड़ने कूदने भोजन करने आदि विषय को शामिल किया गया है उन को दो भागों में बांटा गया है |

  • Fine Motor Skills (सूक्ष्म गतिक कौशल)
  • Gross Motor Skills (स्थूल गतिक कौशल)

1. Fine Motor Skills (सूक्ष्म गतिक कौशल) – इसमें मांसपेशियों का कम इस्तेमाल होता है जैसे कि लिखना रंग भरना कागज काटना रोटी बनाना आदि |

2. Gross Motor Skills (स्थूल गतिक कौशल) – इसमें मांसपेशियों का ज्यादा इस्तेमाल होता है जैसे की तैराकी  करना कूदना दौड़ना आदि |

  • मानसिक विकास / संज्ञानात्मक विकास
  • सामाजिक विकास
  • सांवेगिक विकास 
  • नैतिक विकास

बाल विकास के सिद्धांत (Principles of Child Development)

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  • समान प्रतिमान का सिद्धांत (Same Pattern Principle) –  इसके अनुसार प्रत्येक जाति अपनी जाति के अनुरूप के विकास के प्रतिमान का अनुसरण करती है जैसे कि मानव और हाथी |
  • विकास की दिशा का सिद्धांत (Development Direction Theory) –  विकास की दिशा सिर से पैर की तरह चलती है जब हमारी विकास की दिशा सिर से पैर की तरह होती है तो इसे मस्का दो मुखी भी कहते हैं दूसरी तरफ जो हमारे विकास का क्रम मध्य से शुरू होकर बाहर की तरफ होता है तो यह समीप दूर भी मुख कहलाता है अतः कह सकते हैं कि विकास क्रमिक होता है |
  • निरंतरता का सिद्धांत (Principle of Continuity) –  विकास कभी ना रुकने वाली एक प्रक्रिया है और यह जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है केवल इसकी मंद और तेज प्रक्रिया होती है | विकास निरंतरता के सिद्धांत का पालन करता है जोकि गर्भाधान से शुरू होता है और मृत्यु के साथ ही समाप्त होता है यह जीवन में कभी ना खत्म होने वाली एक प्रक्रिया है यानी कि यह जीवन पर्यंत (जीवन रहने तक) वाली एक प्रक्रिया है |
  • सामान्य से विशिष्ट क्रियाओं का सिद्धांत (General to Specific Action theory) –   हमारा विकास सदैव सामान्य से विशिष्ट क्रियाओं की ओर चलता है ना कि विशिष्ट से सामान्य की ओर जैसे कि उठना बैठना चलना दौड़ना | एक बच्चा ऐसी ध्वनि का उच्चारण कर सकता है जो हर वस्तु और व्यक्ति के लिए सामान्य है एक जैसी है | 
  • पूर्वानुमान का सिद्धांत (Forecasting Theory) –  विकास पूर्वानुमान होता है क्योंकि हम पहले ही अनुमान लगा सकते हैं कि विकास किस दिशा में ज्यादा होगा | हम कुछ हद तक व्यवहार की भविष्यवाणी कर सकते हैं विकास के स्वरूप और अनुक्रम की एकरूपता की सहायता से हम किसी बच्चे के विकास और विकास के एक विशेष चरण में एक या अधिक पहलू में 
  • एकीकरण का सिद्धांत (Principle of Integration) –  बच्चों में एकीकरण का गुण पाया जाता है जब हम किसी एक काम को करने के लिए अपने हाथ पैरों को एक साथ मिलाकर काम करते हैं तो वह  एकीकरण कहलाता है | एकीकरण का सिद्धांत सामाजिक, भावनात्मक, मानसिक, भौतिक, और नैतिक जैसे विकास को विभिन्न पहलुओं के एकीकरण को संदर्भित करता है |
  • व्यक्तिगत भिन्नता का सिद्धांत (Theory of Individual Difference) –   बच्चों का विकास व्यक्तिगत भिन्नता के अनुसार चलता है किसी भी विकास में गति तेज तो किसी में  धीमी हो सकती है | यह सिद्धांत कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वयं में अद्वितीय है क्योंकि अनुवांशिकता और पर्यावरण कारक उसे दूसरों से अलग बनाते हैं |
  • वर्तुल आकार बनाम रेखीय प्रगति का सिद्धांत (Circular Shape Vs. Theory of Linear Progression) –  विकास कभी भी रेखीय नहीं होता  अर्थात वह कभी भी सीधी रेखा में नहीं चलता है कभी उसकी गति धीमी होती है तो कभी तेज होती है |
  • अंतर संबंधित विकास का सिद्धांत (Theory of Interrelated Development) –  शारीरिक संवेगात्म बौद्धिक सामाजिक और अन्य प्रकार के विकास अंतर संबंधित और परस्पर निर्भर करते हैं |

बाल विकास और अवस्थाएं (Stages of Child Development)

  • प्रसव पूर्व अवस्था (गर्भधारण अवधि)
  • शैशवावस्था (2 से 6)
  • प्रारंभिक बाल्यावस्था की अवधि (2 से 6 वर्ष)
  • बाल्य अवस्था (6 – 12)
  • किशोरावस्था (12 – 18)
  • परिपक्वता (18 – 24)
  • पूर्व या युवा वयस्क (19 से 40 वर्ष)
  • मध्य वयस्कता (40 से 65 वर्ष)

विकास के चरण निम्नलिखित है –

  • प्रारंभिक बाल्यावस्था (पूर्व विद्यालयी वर्ष) (जन्म से 6 वर्ष) 
  • मध्य बाल्यावस्था (विद्यालय के वर्ष) (6 से 12 वर्ष)
  • उत्तर बाल्यावस्था (11 से 14 वर्ष की आयु)
  • किशोरावस्था (12 से 18 वर्ष)

1. प्रसव पूर्व अवस्था (गर्भधारण अवधि)

  •  यह अवस्था माता के गर्भाधान अवस्था से शुरू होती है | 

2. शैशवावस्था / प्रारंभिक बाल्यावस्था की अवधि (2 से 6)

  • शैशवावस्था में शिशु पूर्ण रूप से माता-पिता पर निर्भर रहता है तथा उसका व्यवहार मूल प्रवृत्तियों पर आधारित होता है 
  • इस अवस्था में जिज्ञासा बहुत ज्यादा होती है
  • इस अवस्था में आत्म प्रेम की भावना भी उत्पन्न होती है
  • इसे खिलौने की आयु, प्राक्-टोली आयु, और समन्वेशी आयु आदि के रूप में भी जाना जाता है।
  •  इसमें बच्चा अनुकरण द्वारा सीखता है यानी कि  दूसरों को नकल करता है
  •  इसे अतिरिक्त चिंतन की अवस्था भी कहा जाता है

3. बाल्य अवस्था (6 – 12)

  • बाल्य अवस्था को तार्किक चिंतन की अवस्था भी कहा जाता है
  • इसे आरंभिक स्कूल की उम्र कहा जाता है
  • इसे गंदी अवस्था भी कहा जाता है
  • इसे समर्थन की अवस्था या होशियारी की उम्र भी कहा जाता है
  • इसे खेलों की अवस्था कहा जाता है
  • इस अवस्था में संग्रहण की प्रवृत्ति विकसित होने लगती है
  • इसे टोली  समूह गैंग की अवस्था कहा जाता है
  • इसे जीवन का अनोखा काल भी कहा जाता है

4. किशोरावस्था (12 – 18)

  • इसे जीवन का सबसे कठिन काल कहा जाता है
  • इसे तनाव आंधी तूफान संघर्ष और उलझन की अवस्था भी कहा जाता है
  • इसमें विषव लिंगी आकर्षक होता है
  • इस अवस्था को स्वर्ण काल कहा जाता है
  • इस अवस्था में वीर पूजा की भावना होती है
  • इस अवस्था में बच्चा अमूर्त चिंतन करते हैं

5. परिपक्वता (18 – 24)

  • युवा वयस्क अपने आत्मिक कार्य करते हैं या इस अवस्था में उच्च स्तर की आत्म-समझ का निर्माण करते हैं साथ ही वित्तीय स्वतंत्रता की प्रबल इच्छा होती है |

बुद्धि (Intelligence)

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बुद्धि – बुद्धि एक व्यक्ति को उसके जीवन की वास्तविक समस्याओं को सुलझाने में मदद करती है बुद्धि के माध्यम से ही व्यक्ति अपनी हर समस्या का समाधान करता है बुद्धि से ही सोच विचार करके  फैसला लिया जाता है |

बुद्धि की परिभाषाएं  निम्नलिखित हैं –

  • Alfred Binet (अल्फ्रेड बिनेट) – बिने का कहना है कि बुद्धि में चार चीजें आती हैं
  1. ज्ञान
  2. अविष्कार 
  3. निर्देश 
  4. आलोचना (सकारात्मक या नकारात्मक आलोचना)
  • Lewis Terman (लुईस टर्मन) – लुईस टर्मन का मानना है कि अमूर्त विचारों की योग्यता बुद्धि है
  • Amanda Woodward (अमांडा वुडवर्ड) – अमांडा वुडवर्ड का मानना है कि चीजों को पहचानने की योग्यता बुद्धि कहलाती है
  • Francis Galton (फ्रांसिस गाल्टन) – फ्रांसिस गाल्टन का मानना है कि अमूर्त विचारों की योग्यता बुद्धि कहलाती है

 बुद्धि के प्रकार (Types of Intelligence)

Henry Garrett (हेनरी गैरेट) और Edward Thorndike (एडवर्ड थार्नडाइक) के अनुसार बुद्धि के तीन प्रकार होते हैं –

1.मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence) – मूर्त बुद्धि मूर्त बुद्धि से अभिप्राय है जो चीजें हमारे सामने होती हैं जिन्हें हम छू सकते हैं मूर्त का मतलब प्रत्यक्ष जिन चीजों को देखकर हम कार्य करते हैं मूर्त बुद्धि के अंतर्गत आती है |

  • इसको  गामक या यांत्रिक बुद्धिजीवी कहते हैं |
  •  इंजीनियर मकैनिक कारीगर मूर्त बुद्धि के ही उदाहरण हैं |

2. अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) – जो बुद्धि हमें दिखाई नहीं देती है और जो भावनाओं और विचारों से संबंधित होती है इसमें किताबी ज्ञान होता है जैसे कि कवि डॉक्टर चित्रकार अमूर्त बुद्धि के ही उदाहरण हैं |

3. सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) – जो समाज सेवी होते हैं और समाज के लिए कार्य करते हैं सामाजिक बुद्धि में आते हैं जैसे कि नेता व्यवसाय समाजसेवी अध्यापक आदि सामाजिक बुद्धि के ही उदाहरण है |

  • 1885 ईस्वी में सर्वप्रथम इंग्लैंड के फ्रांसीसी गार्डन ने बुद्धि शब्द का प्रयोग किया था |
  •  1890 ईस्वी में कैटल ने पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय में मेंटल टेस्ट एवं मैनेजमेंट मानसिक परीक्षण एवं मापन नामक पुस्तक का प्रकाशन किया था |
  •  1890 ईस्वी में कैटल ने ही मानसिक परीक्षण शब्द का प्रयोग किया था |
  •  1905 ईस्वी में सबसे पहला बुद्धि परीक्षण बिने साइमन बुद्धि परीक्षण तैयार किया गया था |
  • 1908 में अल्फ्रेड बिने में मानसिक आयु शब्द का प्रयोग किया था |
  •  19/12 ईस्वी में सर्वप्रथम स्तन और कुहलमान के द्वारा बुद्धि लब्धि का सूत्र दिया गया था इन्होंने 192 में बुद्धि लब्धि का सूत्र दिया था |

 सूत्र =  मानसिक आयु /  वास्तविक आयु 

  • 1916 में टर्मन के द्वारा बुद्धि लब्धि (IQ) का संशोधित सूत्र में इन्होंने संशोधन किया था |

 सूत्र =  मानसिक आयु /  वास्तविक आयु x 100

और यही हमारा वर्तमान में IQ नापने का सूत्र है

बुद्धि लब्धि और उसकी स्थिति निम्नलिखित हैं –

बुद्धि लब्धि स्थिति
0 -24 जड़ बुद्धि या महामूर्ख
25 – 49 मूर्ख  बुद्धि
50 – 69 मंद बुद्धि
70 – 79 क्षीण बुद्धि

या सुस्त

80 – 89 औसत से कम
90 – 109 औसत
110 – 119 औसत से ऊपर बुद्धि
120 – 129 बेहतर बुद्धि
130 – 139 बहुत श्रेष्ठ बुद्धि
140  से अधिक प्रतिभाशाली

या मेघावी बुद्धि

 

  • बेसल आयु (Basal Age) –  बेसल वर्ष उसे कहते हैं जिस में अधिकतम आयु स्तर के प्रश्नों को बालक हल कर देता है |
  • टर्मिनल आयु (Terminal Age) –  टर्मिनल वर्षों से कहते हैं जिस आयु स्तर के प्रश्नों को बालक हल नहीं कर पाता है |

बुद्धि के सिद्धांत (Theory of Intelligence)

एक कारक सिद्धांत (One Factor Theory) –  एक कारक सिद्धांत का प्रतिपादन अल्फ्रेड बिने ने किया था उन्होंने बताया था कि सभी व्यक्तियों में एक ही प्रकार की बुद्धि होती है जो सभी कार्यों में कार्य करती है

द्वि कारक सिद्धांत (Two Factor Theory) – इस कार्य को स्पीयर मैन के द्वारा दिया गया था उन्होंने बताया था कि बुद्धि दो तत्वों से मिलकर बनी है और उन तत्वों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. सामान्य तत्व (Common Elements)
  2. विशिष्ट तत्व (Specific Element)

सामान्य तत्व (Common Elements) –  इसमें हर व्यक्ति में सामान्य बुद्धि जनजाति से होती है और यह हर किसी में अलग-अलग पाई जाती है

विशिष्ट तत्व (Specific Element) –  इस तत्व में दूसरों से अर्जित करने वाली बुद्धि होती है

त्रि कारक सिद्धांत (Three factor theory) – इसका प्रतिपादन  स्पीयर मैन द्वारा किया गया था स्पीयर मैंने बताया था कि सामान्य तत्व एवं विशेष तत्व के अलावा तीसरा तत्व समूह तत्व भी होता है समूह तत्व सामान्य तत्व और विशिष्ट तत्व का मिश्रण होता है और इसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता है

बहु कारक सिद्धांत (Multi factor theory) –  बहु कारक सिद्धांत का प्रतिपादन थॉर्डाइक ने किया था इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि कई तत्वों का समूह है उनके अनुसार सामान्य बुद्धि नाम की कोई चीज नहीं होती है बुद्धि में कई स्वतंत्र योग्यताएं होती हैं जो  विभिन्न कार्य करती हैं

समूह तत्व कारक सिद्धांत (Group element factor theory) –  समूह तत्व कारक सिद्धांत का प्रतिपादन थर्स्टन द्वारा किया गया था इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि के प्रकार की योग्यताओं का मिश्रण होती है जो विभिन्न समूहों में पाई जाती है बुद्धि साथ मानसिक योग्यता ओं से मिलकर बनी है जिनके नाम निम्नलिखित हैं – 

  1. प्राथमिक समाज (primary society)
  2. संख्यात्मक योग्यता (numerical ability)
  3. प्रत्यक्षीकरण गति (perception speed)
  4. स्थान संबंधी योग्यता (location qualification)
  5. तर्कशक्ति (rationality)
  6. शब्द प्रवाह (word flow)
  7. स्मृति (memory)

प्रतिदर्श सिद्धांत (Sampling Theory) –  प्रतिदर्श सिद्धांत के प्रतिपादक जीएच थॉमसन हैं इनके अनुसार एक ही समूह की योग्यताओं में परस्पर समानता पाई जाती है व्यक्ति या प्रत्येक कार्य निश्चित योग्यताओं का प्रतिदर्श होता है इस सिद्धांत में उन्होंने सामान्य कार्य को की व्यवहारिकता को महत्व दिया है थॉमसन के अनुसार व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार उनके स्वतंत्र योग्यताओं पर निर्भर करता है

पदानुक्रमिक बुद्धि का सिद्धांत (Theory of Hierarchical Intelligence) – पदानुक्रमिक बुद्धि का सिद्धांत का प्रतिपादन बर्ट द्वारा किया गया था | इस सिद्धांत में मानसिक योग्यताओं को क्रमिक महत्व प्रदान किया गया था इसके अनुसार मानसिक योग्यता में सामान्य मानसिक योग्यता को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है और इसे दो वर्गों में विभाजित किया गया है

  1. के.एम वर्ग –  इसमें प्रयोगशाला या अंतरिक्ष स्थान संबंधी तथा शारीरिक योग्यताओं को शामिल किया जाता है
  2. वी.डि वर्ग –  इस वर्ग में मौखिक संख्या संबंधी तथा शैक्षिक योग्यता ओं को शामिल किया जाता है

त्रिआयामी सिद्धांत (Three Dimensional Theory) –  त्रिआयामी सिद्धांत का प्रतिपादन जेपी गिल्फोर्ड ने किया था इस सिद्धांत को बुद्धि संरचना सिद्धांत भी कहते हैं गिलफोर्ड के अनुसार मानसिक योग्यता प्रमुख रूप से तीन तत्वों से निर्मित है जिनके नाम निम्नलिखित हैं

  1. विषय वस्तु
  2. संक्रियाएं
  3. उत्पाद

बुद्धि “क” तथा बुद्धि “ख” का सिद्धांत – इस सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया था इस सिद्धांत में बुद्धि वंशानुगत एक पर्यावरण कारकों का प्रतिफल है वंशानुगत बुद्धि 

क – व्यक्ति के जन्मजात गुण

वातावरण बुद्धि ख – अधिगम अनुभव

बेंजामिन ब्लूम का सिद्धांत (Benjamin Bloom’s theory)-  बेंजामिन ब्लूम इस सिद्धांत के प्रतिपादक हैं उनके अनुसार बुद्धि नाम की कोई चीज नहीं होती है और बुद्धि का अस्तित्व नहीं होता है बल्कि अधिक महत्वपूर्ण कारक समय है |

विकास का सिद्धांत (Theory of Evolution) –  इस विकास का सिद्धांत का प्रतिपादन पियाजे द्वारा किया गया था जीन पियाजे के अनुसार बुद्धि एक प्रकार की अनुकूल प्रक्रिया है जिसमें जैविक परिपक्वता तथा वातावरण के साथ होने वाली  अंतः  क्रियाएं शामिल होती हैं  इनके अनुसार जैसे जैसे बच्चों में संज्ञानात्मक प्रक्रिया का विकास होता है वैसे वैसे उनका भौतिक विकास भी होता है जैसे बच्चों को 

  • प्रकृति के नियम को समझना 
  • व्याकरण के नियम को समझना
  • गणित के नियमों को समझना आदि

त्रि चापिय / त्रि घटकीय सिद्धांत (Three Factor Theory) –  त्रि चापिय सिद्धांत का प्रतिपादन स्टर्न्बर्ग ने किया था इन्होंने इसका प्रतिपादन अपनी प्रसिद्ध पुस्तक बियोंड आईक्यू में किया था और इसे एक महत्वपूर्ण सूचना संसाधन सिद्धांत माना गया था स्टर्न्बर्ग के अनुसार बुद्धि विभिन्न प्रकार के मूल कौशल्या घटकों में  बटी  होती है  प्रत्येक घटक के आधार पर व्यक्ति को कुछ विशेष सूचना ही मिलती हैं जिनको वह संसाधित करता है उनके गुण अवगुण की परख करता है और समस्या का समाधान करता है

Robert Sternberg (रॉबर्ट स्टर्नबर्ग) ने बुद्धि को तीन भागों में बांटा है जिनके नाम ने मिलकर –

  • अनु भावात्मक बुद्धि
  • घटकीय बुद्धि 
  • सन्दर्भात्मक बुद्धि

Robert Sternberg (रॉबर्ट स्टर्नबर्ग) के सिद्धांत के मुख्य पांच चरण हैं –

  1. कूट संकेत (Code Sign)-  यह उपलब्ध सूचनाओं को मस्तिष्क में सेट करता है और उनकी पहचान करता है 
  2. अनुमान (Estimate) – प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अनुमान लगाया जाता है
  3. व्यवस्था (Management) –  पुरानी परिस्थिति और वर्तमान परिस्थिति में संबंध स्थापित करना
  4. उपयोग (Use) –  जो संबंध स्थापित किया है उसका वास्तविक उपयोग करना
  5. अनुक्रिया (Response) – संभावित समस्या का सबसे उत्तम उपाय खोजना

Howard Gardner (हार्वर्ड गार्डनर)

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हावर्ड गार्डनर का बहुबुद्धि सिद्धांत (Howard Gardner’s theory of Multiple Intelligences)

हावर्ड गार्डनर ने 1983 में बहु बुद्धि का सिद्धांत दिया था जिसमें उन्होंने 7 तरह की बुद्धि के बारे में बताया था इनके अनुसार बुद्धि कोई एक तत्व नहीं है बल्कि कई अलग-अलग प्रकार की भूमि यादव का अस्तित्व होता है प्रत्येक बुद्धि एक दूसरे से स्वतंत्र रहकर कार्य करती है |

हार्वर्ड गार्डनर के बुद्धि के प्रकार निम्नलिखित हैं –

  1. शाब्दिक भाषाई बुद्धि (verbal language intelligence) –  इसके माध्यम से शब्दों और भाषा का ज्ञान होता है जिन व्यक्तियों में इसका विकास अधिक हो तो वह वकील, कवि, पत्रकार आदि बन जाते हैं |
  2. तार्किक गणितीय बुद्धि (Logical Mathematical Intelligence) –  इसमें तार्किक योग्यता गणित की समस्या का समाधान अधिक होता है जिन व्यक्तियों में इनका विकास अधिक होता है वह बैंकर, साइंटिस्ट, अकाउंटेंट आदि बनते हैं |
  3. स्थानिक बुद्धि (Spatial Intelligence)– यह बुद्धि जगह अंतरिक्ष मानसिक कल्पनाओं से संबंधित होती है जिन व्यक्तियों में इनका विकास अधिक होता है वह मूर्तिकार, चित्रकार, आर्किटेक्चर आदि बनते हैं |
  4. शारीरिक गतिक बुद्धि (Physical Dynamic Intelligence) –  शरीर को गति देने वाली बुद्धि जिन व्यक्तियों में इनका विकास अधिक होता है वह अभिनेता अभिनेत्री डांसर एथलीट आदि बनते हैं |
  5. संगीत आत्मक बुद्धि (Music Spiritual Intelligence) –  इस बुद्धि के अंतर्गत संगीत की बुद्धि अधिक होती है जिन व्यक्तियों में इनका विकास अधिक हो तो वे सिंगर और कलाकार आदि बनते हैं |
  6. अन्तर्वैयक्तिक (Interpersonal) – इसके द्वारा दूसरे व्यक्ति के साथ कैसे इंटरेक्ट किया जाए यह पता चलता है जिन व्यक्तियों में इनका विकास अधिक होता है वह नेता सामाजिक कार्यकर्ता दी बनते हैं |
  7. अंतः वैयक्तिक बुद्धि (Introspective Intelligence)–  इसके द्वारा खुद के साथ इंट्रस्ट किया जाता है जिन व्यक्तियों में इसका विकास अधिक होता है वे आध्यात्मिक गुरु बनते हैं
  8. प्रकृतिवाद बुद्धि (Naturalism Intelligence) – इस बुद्धि के व्यक्ति प्रकृति के नजदीक होते हैं जिन व्यक्तियों में इनका विकास अधिक हो तो वह किसान आदि बनते हैं |
  9. अस्तित्व वादी बुद्धि (Existential Intelligence) –  इस बुद्धि के व्यक्ति हर चीज में अस्तित्व के बारे में सोचते हैं  जैसे कि हम इस दुनिया में क्यों आए हैं भगवान कौन हैं हम इस धरती पर कर क्या रहे हैं जिन व्यक्तियों में अंतर विकास अधिक होता है वह साधु संत और फिलॉस्फर बन जाते हैं |

 बुद्धि के सिद्धांत (Principles of Intelligence)

एक कारक का सिद्धांत Alfred Binet

(अल्फ्रेड बिनेट)

दो कारक का सिद्धांत Charles Spearman

(चार्ल्स स्पीयरमैन)

समूह कारक का सिद्धांत Louis Leon Thurstone

(लुई लियोन थरस्टोन)

बहु कारक का सिद्धांत Edward Thorndike

(एडवर्ड थार्नडाइक)

प्रतिदर्श का सिद्धांत J. J. Thomson

(जे॰ जे॰ थॉमसन)

त्रिआयामी का सिद्धांत J. P. Guilford

(जे० पी० गिलफोर्ड)

सात बुद्धि का सिद्धांत / 

बहु बुद्धि का सिद्धांत

Howard Gardner

(हार्वर्ड गार्डनर)

सरल एवं ठोस

बुद्धि का सिद्धांत

रेमंड कैटेल

(Raymond Cattell)

 


Heredity and Environment (आनुवंशिकता और पर्यावरण)

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Heridity (वंशागति) – जब अनुवांशिक गुण आंख नाक रंग चिंतन लंबाई बुद्धि आदि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर होते हैं उसे अनुवांशिकता या वंशानुक्रम कहते हैं |

Environment  (पर्यावरण) –  इससे अभिप्राय यह है कि हमारे चारों तरफ का माहौल जैसे कि घर स्कूल परिवार पड़ोसी भोजन आदि जींस यह सब पर्यावरण में आते हैं |

मानव विकास में  अनुवांशिक और पर्यावरण दोनों का का महत्वपूर्ण योगदान है |

Development = Heredity + Environment

विकास = वंशानुक्रम + पर्यावरण

 परिभाषाएं –

  • डगलस और हॉलैंड (Douglas and Holland) – वंशानुक्रम के अंतर्गत सभी रचनाएं भौतिक विशेषताएं कार्य क्षमता है जो उन्होंने अपने माता-पिता से तथा पूर्वजों से अर्जित के होते हैं सभी शामिल होते हैं
  • रूट बेनेडिक्ट (root benedict) –  इनके अनुसार माता-पिता से संतान को हस्तांतरित होने वाले गुणों को वंशानुक्रम कहते हैं
  • जेम्स डेवर (James Dever) – माता-पिता की शारीरिक व मानसिक विशेषताओं का  संतानों में हस्तांतरण होना वंशानुक्रम होता है
  • रॉबर्ट एस॰ वुडवर्थ (Robert S. Woodworth) – वातावरण में सभी बाहरी तत्व आ जाते हैं जिन्होंने व्यक्ति को जीवन आरंभ करने के समय से प्रभावित किया है

Sex Determination (लिंग निर्धारण)

XY = लड़का

XX =  लड़की

  • हमारे शरीर में दो तरह के के सेक्स क्रोमोजोम पाए जाते हैं X और Y
  • हमारे शरीर में कुल 23 जोड़े क्रोमोजोम्स होते हैं 23 जोड़ी मतलब 46 क्रोमोजोम्स 

Principle of Heredity (आनुवंशिकता का सिद्धांत)

  1. प्रत्यागमन का सिद्धांत (principle of regress) –  विपरीत कोणों का उत्पन्न होना यानी तेज बुद्धि वाले मां-बाप के कम बुद्धि के बच्चे होना या कम बुद्धि वाले के तेज बुद्धि के बच्चे होना ही प्रत्यागमन का सिद्धांत है |
  2. गाल्टन  का सिद्धांत (Galton’s theory) – इस सिद्धांत के अनुसार जब बच्चे में गुण पिछली पीढ़ी से भी ट्रांसफर होते हैं जैसे दादा-दादी से तो यह गाल्टन का सिद्धांत या जीव गणना सिद्धांत कहलाता है |
  3. बीजमैन का सिद्धांत (Jos Bijman theory) –  इसके अनुसार माता-पिता से प्राप्त बीज कोष कभी खत्म नहीं होते हैं यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में निरंतर चलता रहता है |
  4. ग्रेगर मेंडल (Gregor Mendel) –  इन्हें अनुवांशिकता का जनक कहा जाता है इन्होंने मटर के दानों पर प्रयोग करके अनुवांशिकता के नियम निर्धारित किए थे |

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005

NATIONAL CURRICULUM FRAMEWORK 2005 (NCF 2005)

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भारत में NCF-2005 को NCERT द्वारा वर्ष 1975, 1988, 2000, 2005 में प्रकाशित किया गया था | यह राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा विद्यालय में पाठ्यक्रम,  पाठ्य पुस्तक और शिक्षण प्रथाओं को प्रदान करने वाली एक रूपरेखा है | राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें ऐसे विषय पर चर्चा की गई है जिससे बच्चों का भविष्य उज्जवल हो सकता है जैसे कि बच्चों को क्या पढ़ाना है किस प्रकार पढ़ाना चाहिए और कितना पढ़ाना चाहिए आदि विषयों पर चर्चा की गई है | 

  • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (NCF-2005) की उत्पत्ति रवीना टैगोर के एक निबंध से हुई थी जिसका  निबंध का नाम था सभ्यता और प्रगति |
  • Ncf-2005 को प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में तैयार किया गया था |
  • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (NCF-2005) का अनुवाद संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई भाषाओं में भी किया गया है |
  • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (NCF-2005) के अनुसार स्कूली शिक्षा पाठ्यपुस्तक केंद्रित ना हो पर बाल केंद्रित होनी चाहिए 
  • NCF विद्यालय शिक्षा का अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है 
  • इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षाविदों वैज्ञानिकों विषय  विशेषज्ञों व अध्यापकों ने मिलकर तैयार किया है |
  • (Ministry of Human Development Resources) मानव विकास संसाधन मंत्रालय की पहल पर प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में देश के चुने हुए 23 विद्वानों ने शिक्षा को नई राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा |

भारत में NCERT द्वारा चार NCF  प्रकाशित किए हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं –

  1. NCF 1975
  2. NCF 1988
  3. NCF 2000
  4. NCF 2005
  • NCF 1975 के अनुसार स्कूली शिक्षा के विभिन्न चरणों के लिए विस्तृत पाठ्यक्रम विकसित  किया गया था
  • NCF 1988 के अनुसार सभी स्तरों पर विषयों की सूची से (GAME)  शब्द को छोड़कर छोड़ने का प्रस्ताव दिया था
  • NCF 2000 के अनुसार विभिन्न वर्गीकरण विषय क्षेत्रों के माध्यम से सीखने के अनुभवों का प्रस्ताव रखा था
  • NCF 2005 के अनुसार  स्कूली शिक्षा के विभिन्न चरणों के लिए विस्तृत पाठ्यक्रम विकसित करने का आधार प्रदान किया गया था

NCF पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धांत निम्नलिखित हैं –

  1. ज्ञान को स्कूल के बाहर ही जीवन से जोड़ा जाए
  2. पढ़ाई को रिटर्ंस प्रणाली से मुक्त किया जाए 
  3. पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक केंद्रित ना रह जाए
  4. कक्षा कक्ष को गतिविधियों से भी जोड़ा जाए राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार हो 

NCF 2005 के कुछ प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं –

  1. बालक को हमें सक्रिय समझना है वह स्वयं से जाने और सीखें और नई नई चीजों को आजमाएं जोड़-तोड़ करें गलती करें और स्वयं उसमें सुधार करें 
  2. शिक्षण सूत्रों – जैसे कि ज्ञात से अज्ञात की ओर मूर्त से अमूर्त की ओर आदि का अधिकतम प्रयोग होना चाहिए
  3. सीखना सक्रिय और सामाजिक गतिविधि है
  4. सूचना को ज्ञान मानने से बचा जाना चाहिए
  5. सीखने में यांत्रिक ता यानी कि बार-बार दोहराना बंद नहीं होना चाहिए
  6.  सीखने को डर और अनुशासन की जगह आनंद एवं संतोष से जोड़ा जाना चाहिए
  7.  विशाल पाठ्यक्रम व मोटी किताबें शिक्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक है
  8.  बालक को स्कूल घर समुदाय आदि सब जगह महत्वपूर्ण माना जाए और उसकी भाषा संस्कृति को भी सम्मान दिया जाना चाहिए
  9.  मूल्यों को उपदेश देकर नहीं वातावरण देकर स्थापित किया जाना चाहिए
  10.  प्राथमिक स्तर पर पाठ्यक्रम की सभी गतिविधि में भाषा में गणित का महत्वपूर्ण स्थान माना गया है
  11.  अच्छे विद्यार्थी की धारणा में बदलाव आवश्यक है मतलब अच्छा विद्यार्थी वह है जो तर्कपूर्ण बहस के द्वारा अपने मौलिक विचार शिक्षक के सामने प्रस्तुत करता है |
  12.  त्रिभाषा सूत्रबहुभाषी कक्षा शिक्षण 3 भाषाओं की वकालत करता है ( हिंदी भाषा,  अंग्रेजी भाषा, क्षेत्रीय भाषा, )
  13.  इसमें भाषा के चार कौशलों की बात की गई है – सुनना,  बोलना,  पढ़ना,  लिखना (LSRW)
  14. अभिभावकों को सख्त संदेश दिया जाना चाहिए कि बच्चों को छोटी उम्र में निपुण बनाने की आकांक्षा रखना गलत बात है
  15. बालकों के चहुंमुखी विकास पर आधारित पाठ्यचर्या होनी चाहिए
  16.  शांति शिक्षा को बढ़ावा मिलना चाहिए महिलाओं के प्रति आदर एवं जिम्मेदारी का दृष्टिकोण विकसित करने की कार्यक्रम का आयोजन होना चाहिए
  17.  सभी विद्यार्थियों हेतु समावेशी वातावरण तैयार होना चाहिए
  18.  बच्चों को स्कूल के बाहरी जीवन से तनाव मुक्त वातावरण प्रदान  करना चाहिए
  19.  कक्षा में “शांति का नियम” बार-बार ठीक नहीं मतलब जीवंत कक्षा गत वातावरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए
  20. सह शैक्षिक गतिविधियों में बच्चों के अभिभावकों को भी जोड़ा जाए
  21.  समुदाय को मानवीय संसाधन के रूप में प्रयुक्त होने का अवसर दें
  22.  खेल आनंद व सामूहिक ताकि भावना के लिए है रिकॉर्ड बनाने व तोड़ने की भावना को ज्यादा  महत्वता ना दें
  23.  बच्चों की अभिव्यक्ति में मातृभाषा महत्वपूर्ण स्थान रखती है शिक्षक अधिकतम परिस्थितियों में इसका उपयोग करें
  24. पुस्तकालय में बच्चों को स्वयं पुस्तक चुनने का अवसर दें जिससे वह अपनी रुचि अनुसार पुस्तक पढ़ सके
  25.  वह पाठ्यपुस्तक के महत्वपूर्ण होती है जो अंतर क्रिया का मौका देती है
  26.  कल्पना वह मौलिक लेखन के अधिकाधिक अवसर प्रदान कराएं
  27.  सजा व पुरस्कार की भावना को सीमित रूप से प्रयोग करना चाहिए
  28. बच्चों के अनुभव और सूअर को प्राथमिकता देते हुए बाल केंद्रित शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए
  29.  सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मनोरंजन के स्थान पर सौंदर्य बोध को महत्वता भी दे
  30.  शिक्षक प्रशिक्षण व विद्यार्थियों के मूल्यांकन को सतत प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाना चाहिए
  31.   शिक्षकों को अकादमिक संसाधन वह नवाचार आदि समय पर पहुंचाए जाने चाहिए

खुली किताब परीक्षा (Open Book Exam) – यह एक परीक्षा को संदर्भित करता है जिसमें छात्रों को सवालों के जवाब देते हुए अपनी किताबों या नोटों परीक्षा में लाने और अपनी किसी भी किताबों से परामर्श करने की अनुमति देता है इसका मुख्य उद्देश्य रिटर्न क्रिया को और रट्टू तोता किधर है रखने के बोझ को खत्म करना है

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation) – सतत और व्यापक मूल्यांकन स्कूल आधारित प्रणाली को संदर्भित करता है जो कि बच्चों के विकास के विद्वानों और शहर विद्वानों दोनों के मूल्यांकन की निरंतरता नियमितता पर जोर देता है

समूह कार्य मूल्यांकन (Group work Evaluation) – समूह कार्य मूल्यांकन में बच्चों को समूह में कार्य दिया जाता है और शिक्षार्थियों के मूल्यांकन की प्रतिक्रिया को संदर्भित करता है | सामूहिक रूप से सीखने का मुख्य उद्देश्य बातचीत करना, कक्षा के अनुभवों को साझा करना और बच्चों के अनुभव, ज्ञान को एक संसाधन के रूप में इस्तेमाल करना होता है |

  •  NCF-2005 में शिक्षक के प्रति दृष्टिकोण शिक्षक ज्ञान का स्त्रोत्र नहीं अपितु एक ऐसा सुगमकर्ता है जो सूचना को अर्थबोध में बदलने की प्रक्रिया में विविध उपायों द्वारा बच्चों हेतु सहायक हो |
  • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (NCF-2005) का निर्माण NCERT द्वारा किया गया था और इसको पूरा करने का कार्य निदेशक प्रोफेसर कृष्ण कुमार के नेतृत्व में किया गया था इसका प्रमुख लक्ष्य आत्मज्ञान मतलब विद्यार्थियों को अलग-अलग अनुभवों का अवसर देकर उन्हें स्वयं ज्ञान की प्राप्ति करनी होती  है 
  •  राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के अनुसार हर विद्यार्थी की अपनी क्षमता और कौशल होते हैं और हर विद्यार्थी को उसे व्यक्त करने का मौका प्रदान किया जाना चाहिए

NCF-2005 का प्रमुख सूत्र है – बिना भार के अधिगम (Learning Without Burden)

NCF-2005 5 विधाओं पर जोर देता है जिनके नाम निम्नलिखित हैं –

  • करके सीखना
  • निरीक्षण विधि
  • परीक्षण विधि
  • सामूहिक विधि
  • मिश्रित विधि

सुविधा दाता (Facilitator)

  • NCF की फुल फॉर्म – National curriculum framework (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा)
  • NCF-2005 के अनुसार अंग्रेजी सीखने का उद्देश्य बहुभाषावाद है |
  • NCF-2005 करके सीखने पर बल देता है |

RTE 2009 (Right to Education)

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009

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RTE 2009 धारा 3 (1)  के अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा दी जाएगी |  और स्कूल आसपास के पड़ोस के क्षेत्र में होना चाहिए जिसमें एक आयु उपयुक्त कक्षा में 8 साल की प्रारंभिक शिक्षा प्रदान की जाएगी |

  • वर्ष 2002 में संविधान के 86 व संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21a के भाग 3 के माध्यम से 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया था 
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के क्रियान्वयन के बाद कक्षा कक्ष आयु के अनुसार अधिक समजातीय है
  •  शिक्षा के अधिकार को प्रभावी बनाने के लिए 4 अगस्त 2009 को लोकसभा में यह अधिनियम पारित किया गया था जो 1 अप्रैल 2010 से पूरे देश में लागू हो गया था
  • आरटीआई का पूरा नाम –  Right to Education / The right of children to free and compulsory Education Act 2009 / बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 है |
  •  धारा 12 आरटीई 2009 के अनुसार प्राइवेट स्कूलों में 25% सीटें गरीब विद्यार्थियों के लिए आरक्षित होती हैं |
  •  धारा 13 के अनुसार प्रति व्यक्ति फीस लेने पर शुल्क का 10 गुना जुर्माना देना होगा |
  •  धारा 14 के अनुसार किसी बालक के पास जन्म प्रमाण पत्र ना होने की स्थिति में विद्यालय में प्रवेश लेने से इनकार नहीं किया जा सकता
  •  धारा 15 के अनुसार बच्चों को शैक्षणिक वर्ष के आरंभ में प्रवेश दिया जाएगा
  •  धारा 16 के अनुसार विद्यार्थियों को ना तो कक्षा में रोका जाएगा और ना ही विद्यालय से निकाला जाएगा
  •  धारा 17 के  अंतर्गत बच्चों को शारीरिक दंड देना और प्रताड़ित करना सख्त मना है
  •  धारा 24 के अंतर्गत शिक्षण के कर्तव्य आते हैं
  •  धारा 27 के अंतर्गत आरटीई 2009 के अनुसार शिक्षक को गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाया जा सकता जैसे कि जनगणना चुनाव आपदा प्रबंधन आदि
  •  धारा 28 के अनुसार शिक्षक प्राइवेट ट्यूशन नहीं पढ़ा सकता है
  • RTE 2009 के अनुसार प्राथमिक कक्षाओं में छात्र एवं शिक्षक का अनुपात 30:1 होना चाहिए 
  • RTE 2009 के अनुसार उच्च प्राथमिक स्तर पर छात्र एवं शिक्षक का अनुपात 35:1 होना चाहिए
  • कक्षा 1 से 8 तक यदि प्रवेश दिए गए सदस्यों की संख्या 200 से अधिक है तो विद्यार्थी एवं शिक्षक का अनुपात 40:1 होगा’
  • यदि प्राथमिक स्तर पर डेढ़ सौ से अधिक बच्चे हो तो इसके लिए प्रावधान है कि एक प्रधानाध्यापक और 5 शिक्षक होने चाहिए
  • RTE 2009 के अनुसार  शिक्षक के लिए 1 सप्ताह में न्यूनतम 45 घंटे  कार्य के होने चाहिए
  • RTE 2009 के अनुसार प्राथमिक स्तर पर न्यूनतम शैक्षणिक घंटे व कार्य दिवस 1000 घंटे और 220 दिन होने चाहिए
  • RTE 2009 के अनुसार  – कक्षा 8 तक बालक को निष्कासित नहीं किया जा सकता है | कोई भी बच्चा आठवीं कक्षा तक स्कूल से असफल या निष्कासित नहीं किया जाएगा उसे फेल भी नहीं किया जाएगा |
  • RTE 2009 के अनुसार  –  कक्षा एक से पांच तक के बालकों के घर से विद्यालय की दूरी 1 किलोमीटर की होनी चाहिए | 
  • RTE 2009 के अनुसार स्कूल मैनेजमेंट कमेटी का अध्यक्ष अभिभावक होता है
  • इस अधिनियम के अनुसार स्कूल के विकास के अनुदान एवं खर्च का उत्तरदायित्व विद्यालय प्रबंधन समिति का होगा
  • RTE 2009 के अनुसार  विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को समावेशी व्यवस्था शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत पढ़ाना चाहिए
  • RTE 2009 के अनुसार  दिव्यांग बच्चों के लिए 18 वर्ष तक मुफ्त शिक्षा देनी होगी
  • भारत शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित करने वाला विश्व का 135 वा देश बन गया है
  • RTE 2009 के अनुसार – अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए मानकों का विकास में लागू करने का अधिकार केंद्र सरकार को होगा

RTI Act 2009 तो शिक्षा का अधिकार अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है जिसका उद्देश्य अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा प्रदान कराना होता है यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आता है यह अनुच्छेद कहता है कि 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देनी है 

शैक्षिक अवसरों को समान  करने के लिए RTI  प्राइवेट स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए 25 % सीटों के आरक्षण की सिफारिश करता है |

RTI Act 2009 की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित है – Article 21a  के तहत

एक शैक्षणिक वर्ष में अनुदेशात्मक घंटे (एक शिक्षक को 1 साल में कितने घंटे विद्यालय में कम से कम पढ़ाना चाहिए)

  • कक्षा (1st – 5th) एक से पांचवीं तक आपको 800 घंटे की कक्षा करानी होगी (200 Days)
  • कक्षा (6th – 8th) छठवीं से आठवीं तक आपको 1000 घंटे कक्षा करानी होगी (220 Days)

एक शैक्षणिक वर्ष में कार्य दिवस ( एक शिक्षक को 1 साल में विद्यालय में कम से कम कितने दिन की कक्षा लेनी चाहिए)

  • कक्षा (1st – 5th) एक से पांचवीं तक आपको  कम से कम 200 दिन की कक्षा लेनी होगी (800 Hours)
  • कक्षा (6th – 8th) छठवीं से आठवीं तक आपको कम से कम 220 दिन की कक्षा लेनी होगी (1000 Hours)

बच्चे के घर और विद्यालय की दूरी 1 किलोमीटर से लेकर 3 किलोमीटर की दूरी के भीतर होनी चाहिए |

  •  शिक्षकों के लिए एक नियम है कि वह ट्यूशन नहीं पढ़ा सकते हैं क्योंकि इससे भेदभाव बढ़ने की स्थिति पैदा हो सकती है
  •  शिक्षक को हर हफ्ते तैयारी के घंटे सहित काम के घंटे की न्यूनतम संख्या के रूप में 45 घंटे देने होंगे
  •  शिक्षक बच्चों से कोई दूसरा काम नहीं करवा सकता है जैसे कि कोई शिक्षक का निजी काम आदि

शिक्षकों से निम्नलिखित काम करवा सकते हैं |

  • चुनाव के काम
  • जनसंख्या गणना का काम
  • आपदा राहत से जुड़े काम  आदि 
  • इनके अलावा गैर शैक्षणिक कार्यों में शिक्षक को नियुक्त नहीं करना है

शिक्षा समिति एवं शिक्षा आयोग (Education Committee and Education Commission)

भारत में शिक्षा से संबंधित प्रमुख समितियों एवं आयोगों का गठन / Constitution of major committees and commissions related to education in India 

 शिक्षा से जुड़ी विभिन्न समस्याओं पर विचार करने के लिए समय-समय पर कई आयोगों का गठन किया गया था मगर जिस आयोग ने शिक्षा से जुड़े मुद्दे पर समग्रता से विचार किया था उसमें 14 जुलाई 1964 में बने कोठारी कमीशन का जिक्र  किया जाता है |  साल 1948 –  1949  में बनी राधा कृष्ण कमीशन ने केवल उच्च शिक्षा पर विचार किया  वही मुदालियर  कमीशन ने केवल माध्यमिक शिक्षा पर विचार किया |

 भारत में स्वतंत्रता पूर्व बनी शिक्षा समितियों का योग निम्नलिखित है – 

  •  कोलकाता विश्वविद्यालय परिषद – कोलकाता विश्वविद्यालय परिषद का गठन 1818 में हुआ था |
  • चार्ल्स वुड समिति –  चार्ल्स वुड समिति का गठन 1824 में 40 फुट द्वारा किया गया था इसे भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा भी कहा जाता है (‘मैग्नाकार्टा’ अधिकारों का वह प्रपत्र है और यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित पहला लिखित प्रपत्र था। जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा सन 1215 में सामंतों के दबाव में जारी किया गया था।
  •  हंटर शिक्षा आयोग –  हंटर शिक्षा आयोग का गठन 1882 –   1883  में किया गया था |  हंटर शिक्षा आयोग का उद्देश्य भारत में महिला शिक्षा का विकास करना था |
  •  सर थॉमस रैली आयोग –  सर थॉमस रैली आयोग का गठन सन 1902  में हुआ था इसी आयोग की रिपोर्ट पर 1904 में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया था |
  •  सैंडल आयोग –  सैडलर आयोग का गठन सन 1917 में हुआ था इसमें स्कूली शिक्षा को 12 वर्ष करने का सुझाव दिया गया था |
  •  हर्टोग समिति – हर्टोग समिति  का गठन 1929 में किया गया था इसमें व्यवसायिक वह औद्योगिक शिक्षा पर  जोर दिया गया था |
  •  सार्जेंट  समिति –  सार्जेंट समिति का गठन व 944 में किया गया था इसमें 6 से 11 वर्ष के उम्र तक के सभी बच्चों को निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा की बात कही गई है |

भारत में स्वतंत्रता के बाद बनी शिक्षा समितियों और आयोगों के नाम व उनके काम निम्नलिखित हैं

(Following are the names and functions of education committees and commissions formed after independence in India)

  • डॉ एस राधाकृष्णन आयोग –  डॉ एस राधाकृष्णन आयोग समिति का गठन सन  1948 –  1949  में किया गया था इस आयोग द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गई थी यूजीसी की स्थापना की गई थी |
  •  मुदालियर शिक्षा आयोग –  मुदालियर शिक्षा आयोग का गठन सन 1952 –  1953  में किया गया था इसे माध्यमिक शिक्षा आयोग भी कहा जाता है यह समिति के द्वारा केवल माध्यमिक शिक्षा पर ही विचार किया जाता है |
  •  डॉ डीएस कोठारी आयोग –  डीएस कोठारी आयोग का गठन  1964  में किया गया था इसमें सामाजिक उत्तरदायित्व और नैतिक शिक्षा पर ध्यान दिया जाता है |
  •  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 –  राष्ट्रीय शिक्षा नीति को 1986 में लागू किया गया था इसे 1992 में संशोधित किया गया था |  और इसे आचार्य राममूर्ति समिति ( 1990) भी कहा जाता है |
  • एम. बी हुड समिति – एम. बी हुड समिति का गठन 1989  में किया गया था दूरस्थ शिक्षा यानी के डिस्टेंस लर्निंग के लिए इस समिति का गठन किया गया था |
  •  जी राम रेड्डी समिति –  जी राम रेड्डी समिति साल 1992  में गठित किया गया था इसे दूरस्थ शिक्षा पर केंद्र परामर्श समिति भी कहा जाता है |
  •  प्रोफेसर यशपाल समिति  – प्रोफेसर यशपाल समिति का गठन सन 1992  में किया गया था इस समिति में बच्चों के बस्ते के बोझ को कम करने की बात की गई थी और बच्चों को भोज मुक्त शिक्षा की संकल्पना पर जोर दिया गया था |
  • राम लाल पारेख समिति –  रामलाल पारेख समिति 1993  में गठित किया गया था इस समिति के माध्यम से B.Ed पत्राचार समिति शुरू की गई थी B.ed को पत्राचार के माध्यम से भी कर सकते हैं |
  • प्रोफेसर खेरमा लिंगदोह समिति – प्रोफेसर खेरमा लिंगदोह समिति का गठन सन 1994  में किया गया था इसमें पत्राचार बीएड अवधि 14 महीने तक तय की गई थी |
  • प्रोफेसर आर टकवाले समिति –  प्रोफेसर टकवाले समिति का गठन सन 1995  में किया गया था इस समिति में सेवारत अध्यापकों हेतु पत्राचार में B.ed को शामिल किया गया था |
  • राष्ट्रीय ज्ञान आयोग –  राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का गठन 2005  में किया गया था इसमें ज्ञान आधारित समाज की संकल्पना और प्राथमिक स्तर से अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा को अनिवार्य करने की सिफारिश की गई थी |
  • जस्टिस जेएस वर्मा समिति –  जस्टिस जेएस वर्मा समिति  को साल 2012  में गठित किया गया था  इस समिति का गठन शिक्षकों की क्षमता की समय-समय पर जांच के लिए किया गया था |

 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2017 –  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2017 का मसौदा तैयार करने के लिए प्रख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिक एवं पद्मभूषण डॉ  के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 9 सदस्य समिति का गठन किया गया था |

  • बेसिक शिक्षा योजना / बुनियादी शिक्षा योजना / वर्धा योजना / नई तालीम / बुनियादी तालीम
  • Basic Education Scheme / Basic Education Scheme / Wardha Scheme / Nai Talim / Basic Education

वर्धा योजना (  बेसिक या बुनियादी शिक्षा ) –  बेसिक शिक्षा योजना वर्धा योजना के प्रतिपादक महात्मा गांधी जी हैं इन्होंने हरिजन में अनेक लेख लिखकर शिक्षा की खामियों को दर्शाया एवं वर्धा में अक्टूबर सन 1937 में एक अखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन का आयोजन किया था और इस सम्मेलन में शिक्षक की एक विस्तृत योजना तैयार की थी जिसे बुनियादी शिक्षा योजना  या वर्धा शिक्षा योजना के नाम से भी जाना जाता है

 वर्धा योजना की कुछ  महत्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं –

  •  7 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था
  •  शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए जिससे विद्यार्थी स्वावलंबी बना सकें
  •  विद्यार्थियों को उनकी अभिरुचि के अनुसार व्यवस्थित शिक्षा दी जानी चाहिए
  •  कृषि एवं हस्तशिल्प की शिक्षा दी जानी चाहिए

ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड (Operation Black Board)

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ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड 1987  में आरंभ हुआ था ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड प्राथमिक शिक्षा से संबंधित है ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड का मुख्य उद्देश्य प्राथमिक विद्यालयों में न्यूनतम सुविधाओं को देना है जैसे कि चौक डस्टर पुस्तकें खेल सामग्री फर्नीचर अन्य सुविधाएं आदि

 ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के तहत स्कूल में  जरूरी चीजें निम्नलिखित है –

  1.  दो कमरे
  2.  2 शिक्षक और एक बरामदा
  • ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड का अर्थ है युद्ध स्तर पर अधिगम चलाकर किसी कार्य को शीघ्रता से पूरा करना
  •  ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के अनुसार एक स्कूल में 2 शिक्षक अनिवार्य है उसमें से एक महिला शिक्षा होना जरूरी है
  •  ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड  एक सातवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू हुआ था
  •  ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986  के सुझाव पर शुरू किया गया था

कक्षा 1 से 5 वी के लिए कितने बच्चों पर कितने शिक्षक होने चाहिए?

  • 60 तक नामांकित बच्चों के लिए 2 शिक्षक होने चाहिए
  • 61 – 90  तक बच्चों के लिए 3 शिक्षक होने चाहिए
  • 91 – 120  तक बच्चों के लिए 4 शिक्षक होने चाहिए
  • 121 – 200  तक बच्चों के लिए 5 शिक्षक होने चाहिए

यदि नामांकित बच्चों की संख्या डेढ़ सौ से अधिक है तो 5 शिक्षकों के अलावा एक प्रधान शिक्षक  होना चाहिए

यदि नामांकित बच्चों की संख्या 200 के ऊपर है तो प्रधान शिक्षक (PTR:Pupil-Teacher Ratio) के अलावा 40 से अधिक नहीं होगी | यानी के 200 से अधिक छात्र होने पर कक्षा 1 से लेकर पांचवी के लिए छात्र और शिक्षक का अनुपात 40:1  होना चाहिए | 

एक अध्यापक 40 छात्रों को पढ़ा सकता है वह भी एक कक्षा में | यदि 40 से ऊपर एक भी छात्र होता है जैसे कि 45 छात्र  तो उसके लिए 2 शिक्षक होने अनिवार्य है |


बाल केंद्रित शिक्षा तथा प्रगतिशील शिक्षा (Child Centered Education and Progressive Education)

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John Dewey (जॉन डिवी) एक प्रसिद्ध अमेरिकी दार्शनिक थे | जिन्होंने प्रगतिशील शिक्षा की अवधारणा का प्रस्ताव दिया था | रूढ़िवादी शिक्षा इस बात पर जोर देती है कि शिक्षण केवल करके सीखना दृष्टिकोण से होता है | इसीलिए छात्रों को अपने वातावरण के साथ अनुकूल और सीखने के लिए बातचीत करनी चाहिए |

बाल केंद्रित शिक्षा (Child Centered Education) – बाल केंद्रित शिक्षा के समर्थक John Dewey (जॉन डिवी) थे | बाल केंद्रित एक ऐसी शिक्षा है जिसमें हम बच्चों को केंद्र बिंदु मानकर शिक्षा प्रदान करते हैं यानी के बच्चों को केंद्र में रखते हैं और उसके चारों तरफ टीचर्स या सहयोगी होते हैं बाल केंद्रित शिक्षा के अंतर्गत बालक की सूचियों प्रवृत्तियों तथा क्षमताओं का ध्यान में रखते हुए शिक्षा प्रदान की जाती है जब हम बच्चों को बाल केंद्रित शिक्षा प्रदान करते हैं तो शिक्षण रुचिकर होता है |

प्रगतिशील शिक्षा (Progressive Education) – जब हम बच्चों को उनकी अभी व्रतियों इच्छाओं के अनुसार पढ़ाते हैं तो उनका शिक्षा स्तर बढ़ जाता है जिसे प्रगतिशील शिक्षा कहते हैं |

  • प्रगतिशील शिक्षा के अनुसार शिक्षा  बच्चों के लिए बनी है ना कि बच्चे शिक्षा के लिए बना है |
  •  प्रगतिशील शिक्षा से बच्चों का सर्वागीण विकास होता है |
  •  प्रगतिशील शिक्षा करके सीखने पर बल देती है |

प्रगतिशील शिक्षा में संयुक्त राज्य अमेरिका के मनोवैज्ञानिक John Dewey (जॉन डिवी) का अहम योगदान है |

जॉन डीवी ने शिक्षा को त्रिध्रुवीय प्रणाली (Tripolar System) बताया है |

त्रिध्रुवीय प्रणाली (Tripolar System)

  1. Teacher (शिक्षक) > independent variable (स्वतंत्र चर)
  2. Student (छात्र) > dependent variable (निर्भर चर)
  3. Curriculum (पाठ्यक्रम) > intermediate variable (मध्यवर्ती चर)

भारत में बाल केंद्रित का श्रेय गिजूभाई को दिया जाता है |

प्रगतिशील शिक्षा की विशेषताएं निम्नलिखित है |

  • शिक्षा समाज और लोकतंत्र के लिए भी होनी चाहिए |
  • प्रगतिशील शिक्षा के लिए सहयोगात्मक और सहकारी शिक्षण होना चाहिए |
  • प्रगतिशील शिक्षा के लिए ज्ञान को रखने के विपरीत रखना चाहिए |
  • प्रगतिशील शिक्षा के लिए आजीवन सीखने और सामाजिक कौशल पर जोड़ देना चाहिए |
  • प्रगतिशील शिक्षा के लिए समय सारणी लचीली होनी चाहिए और बैठने की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए |
  • प्रगतिशील शिक्षा के लिए एकीकृत पाठ्यक्रम विषय गत इकाइयों पर केंद्रित होनी चाहिए |
  • प्रगतिशील शिक्षा के लिए समस्या के समाधान और आलोचनात्मक सोच पर जोर देना चाहिए |
  • प्रगतिशील शिक्षा के लिए पाठ्यपुस्तक पर जोर देना चाहिए और कई संसाधनों का ध्यान रखना चाहिए |

अधिगम अक्षमता (Learning Disabilities)

Dyslexia पढ़ने से संबंधित कठिनाई को डिस्लेक्सिया कहते हैं |
Dysgraphia लिखने से संबंधित कठिनाई को डिसग्राफिया कहते हैं |
Discalculia गणितीय गणना से संबंधित समस्या को डिस्केलकुलिया कहते हैं |
Dismorphia भ्रम वाली स्थिति को डिस्मोरफ़िया कहते हैं |
Disphasia बोलने से संबंधित विकार को डिस्फेसिया कहते हैं |
Dyspraxia शारीरिक कौशल से संबंधित विकार को डिस्प्रेक्सिया कहते हैं |
Dysthemia तनाव से संबंधित विकार डिस्थीमिया कहते हैं |

 


शिक्षण की विधियाँ (Methods of Teaching)

Teaching method (शिक्षण विधियाँ): शिक्षकों द्वारा छात्रों की आवश्यकताओं के अनुसार विभिन्न शिक्षण विधियों का उपयोग किया जाता है  किसी एक को चुनने के लिए शिक्षक अपनी क्षमताओं के आधार पर छात्रों को वर्गीकृत कर सकता है यानी की कैटेगरी बना सकता है या फिर वह विषय की अनुकूलता के आधार पर इसे चुन सकता है |

व्याकरण शिक्षण की प्राचीन विधियाँ जिनके बारे में निम्नलिखित बिंदुओं में बताया गया है |

1. आगमन विधि (Inductive Method)

आगमन विधि के जनक प्रतिपादक अरस्तु हैं इस विधि में सीधे अनुभवों उदाहरणों तथा प्रयोगों का अध्ययन कर के नियम निकाले जाते हैं यह शिक्षण विधि छात्र केंद्रित विधि है जो विद्यार्थियों को करके सीखने पर बल दे दी है यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है |

आगमन विधि में पहले उदाहरण दिए जाते हैं फिर नियम बताए जाते हैं | Example – Rule (उदाहरण – नियम)

इस आगमन विधि में तर्क करते हुए निम्नलिखित बातें मुख्य बिंदुओं में लिखी है –

  1.  उदाहरण के नियम की ओर
  2.  स्थूल से सूक्ष्म की ओर
  3.  विशिष्ट से सामान्य की ओर
  4.  ज्ञात से अज्ञात की ओर
  5.  मूर्त से अमूर्त की ओर
  6.  प्रत्यक्ष से  प्रमाण की ओर आगे बढ़ते हैं |
2. निगमन विधि (Deductive Method)

निगमन विधि के जनक प्रतिपादक अरस्तु है इस विधि में सर्वप्रथम विद्यार्थियों को नियमों का ज्ञान दे दिया जाता है इसके पश्चात उदाहरण देकर उन नियमों को समझाया जाता है यह विधि एक शैक्षिक केंद्रित विधि कहलाती है इसमें शिक्षक की सारी नियम सिखाए जाते हैं निगमन विधि आगमन विधि के ठीक विपरीत कार्य करती है |

निगमन विधि में पहले नियम बताए जाते हैं फिर उदाहरण दिए जाते हैं | Rule – Example (नियम – उदाहरण)

इस निगमन विधि में तर्क करते हुए निम्नलिखित बातें मुख्य बिंदुओं में लिखी गई हैं –

  1.  प्रमाणिक से प्रत्यक्ष की ओर
  2.  सूक्ष्म से स्थूल की ओर
  3.  सामान्य से विशिष्ट की ओर
  4.  अज्ञात से ज्ञात की ओर
  5.  नियम से उदाहरण की ओर आगे बढ़ते हैं |
3. सूत्र विधि (Formula Method)

इस विधि में गंभीर तथ्यों को सूक्ष्म रूप से रूप में बताना ही सूत्र कहलाता है व्याकरण के गंभीर तथ्यों को सूत्र  विवाद से ही पढ़ाया जाता है जैसे कि संस्कृत में कोई श्लोक बोल दिया और छात्रों ने उसे  कंठस्थ कर लिया, ऐसे ही दोहरा दिया यानी कि उसे बिना समझे ही रट लिया |

4. पारायण विधि (Parayan Method)

इस विधि में कंठसस्ती करण पर बल दिया जाता है पाठ की सरलता कठिन ता के अनुसार इसकी संख्या पर आने की संख्या होती है \

5. अव्याकृति विधि (Misrepresentation Method)

अव्याकृति विधि को संसर्ग विधि बी कहते हैं इस विधि में बालक परिवार में रहकर नियमों को सीखे बिना ही संस्कृत भाषा का ग्रहण कर लेता है |

6. अर्थबोध विधि (Semantic Method)

इस विधि में छात्र को या बालक को सूत्र रखने के बजाय उसके सही अर्थ को समझाने का प्रयास किया जाता है |

7. अन्वय व्यतिरेक विधि (Other Cross Method)

इस विधि में काव्य शिक्षण के अन्वय को आधार मानकर प्रत्येक शब्द व्याकरण दृष्टि से खंड करके व्याकरण शिक्षण करते हैं |

विधियाँ (Method)

1. परियोजना विधि (Project Method)

इसके  प्रवर्तक किलपैट्रिक थे  यह विधि अनुभव केंद्रित होती है यह बालकों के समाजीकरण पर विशेष बल देती है इस विधि में विद्यार्थी  स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और अपनी समस्याओं का हल अपने स्वयं के विचारों के आधार पर करता है प्रोजेक्ट विधि वास्तविक के सिद्धांत पर कार्य करती है क्योंकि यह विद्यार्थियों को इस प्रकार की शिक्षा प्रदान करती है जिससे वे अपने जीवन की समस्याओं का भी समाधान कर सकें यह एक बाल केंद्रित शिक्षा है इस विधि में विद्यार्थी सक्रिय/ क्रियाशील रहते हैं समूह में रहकर कार्य करना सीखते हैं और इससे उनमें आत्मविश्वास भी पैदा होता है |

2. प्रत्यक्ष विधि (Direct Method)

 प्रत्यक्ष विधि में बालक को बिना व्याकरण के नियमों का ज्ञान कराए भाषा सिखाई जाती है इस विधि में जो बालक की मातृभाषा होती है उसे बिना  मध्यस्थ बनाएं उसे अन्य भाषा सिखाई जाती है यानी कि मातृभाषा की  सहायता ना लेकर बल्कि विद्यार्थियों को सीधे बार-बार मौखिक एवं लिखित अभ्यास द्वारा सीधे नई भाषा सिखाई जाती है इसमें क्षेत्रीय भाषा का भी प्रयोग नहीं किया जाता है इस विधि में वार्तालाप के माध्यम से अधिक से अधिक सीखने पर बल दिया जाता है जिससे वह प्राकृतिक रूप से सीख सकें इस विधि में श्रव्य दृश्य सामग्री का भी प्रयोग किया जाता है प्राथमिक कक्षाओं हेतु यह विधि अत्यधिक उपयोगी साबित होती है इस पद्धति का मुख्य सिद्धांत यह है कि जिस प्रकार बालक श्रवण एवं अनुकरण द्वारा मातृभाषा सीख लेता है उसी प्रकार वह दूसरी भाषा को भी सीख लेता है |

3. विश्लेषण विधि (Analysis Method)

 विश्लेषण विधि के जनक हेनरी एडवर्ड आर्मस्ट्रांग है इस विधि में समस्या को छोटे-छोटे भागों में बांट कर उनका अध्ययन व समीक्षा करते हुए उसे हल किया जाता है इस विधि में उपयुक्त गणितीय प्रक्रिया अपनाते हैं |

4. संश्लेषण विधि (Synthesis Method)

 इस विधि के जनक हेंड्री एडवर्ट आर्मस्ट्रांग है विश्लेषण तथा संश्लेषण विधि एक दूसरे से पूरक होती है विश्लेषण कर लेने के पश्चात ही संश्लेषण का कार्य होता है इस विधि में किसी समस्या के छोटे-छोटे भागों को जोड़ते हुए समस्या का हल किया जाता है इस विधि का प्रयोग प्राय जमेट्री में किया जाता  है  प्रोफेसर यंग के अनुसार संश्लेषण विधि द्वारा सूखी घास  से तिनका निकाला जा सकता है परंतु विश्लेषण विधि में स्वयं तिनका घर से बाहर निकलना चाहता है |

5. अनुकरण विधि (Simulation Method)

 अनुकरण विधि में बालक अनुकरण करके सीखता है इसलिए इस विधि को अनुकरण विधि कहा जाता है इस विधि में बालक अपने शिक्षक को अनुकरण करके लिखना पढ़ना व नवीन रचना करना सीखता है इस विधि के अंतर्गत बालक शिक्षक के उच्चारण को सुनकर वाचन करना सीखते हैं पहले शिक्षक बोलता है और फिर बच्चे उसका अनुकरण करते हैं इस विधि के आधार पर ही शुद्ध उच्चारण को ही भाषा शिक्षक का सर्वश्रेष्ठ गुण माना जाता है |

6. व्याख्यान विधि (Lecture Method)

व्याख्यान विधि में किसी तथ्य विषय की व्याख्या की जाती है व्याख्यान विधि को शिक्षण की सबसे प्राचीन विधि माना जाता है और इस विधि में शिक्षक की भूमिका प्रमुख होती है इसलिए इसे शिक्षक केंद्रित शिक्षण विधि माना जाता है यह विधि स्मृति स्तर का शिक्षण अधिगम कराती है सामाजिक विज्ञान में व्याख्यान विधि का प्रयोग सबसे अधिक होता है व्याख्यान शिक्षण विधि में पाठ्य पुस्तक एवं विषय वस्तु के प्रस्तुतीकरण पर अधिक बल दिया जाता है |

7. मारिया मांटेसरी विधि (Maria Montessori Method)

 मारिया मांटेसरी इटली की एक चिकित्सक तथा शिक्षा शास्त्री थे जिनके नाम से शिक्षा की मांटेसरी पद्धति प्रसिद्ध हुई थी यह पद्धति ढाई वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चों हेतु प्रयोग में ली जाने वाली पद्धति है इसका विकास डॉ मौर्य द्वारा रूस विश्वविद्यालय में मंदबुद्धि बालकों की चिकित्सा हेतु उनकी शिक्षा हेतु किया गया था जो कुछ समय के बाद सामान्य बुद्धि के बालकों के लिए भी शिक्षा में उपयोग में लाई गई थी डॉक्टर मारिया का मानना था कि शिक्षा का मूल उद्देश्य बालक का सर्वागीण विकास होना चाहिए |

8. डाल्टन विधि (Dalton Method)

 डाल्टन पद्धति के जनक/ प्रतिपादक  कुमारी हेलेन पर्खास्ट को माना जाता है इस विधि का निर्माण कक्षा में होने वाले शिक्षण के दोषों को दूर करने के लिए किया गया था इस विधि में अध्यापक द्वारा छात्रों को कुछ निर्धारित कार्य असाइनमेंट के रूप में दिए जाते हैं जिन्हें विद्यार्थियों को दिए हुए समय के भीतर  इस प्रकार इस विधि द्वारा कार्य करने में बालकों को पूर्ण स्वतंत्रता दे दी जाती थीकरके देना होता था |

9. भाषा संसर्ग  विधि (Language Contagion Method)

यह एक व्याकरण शिक्षा की विधि है इस विधि को अभिकृति विधि के नाम से भी जाना जाता है इस विधि में रचनाओं के माध्यम से व्याकरण का ज्ञान दिया जाता है और प्राथमिक कक्षाओं हेतु यह विधि काम में ली जाती है क्योंकि यह भाषा की शुद्धता के प्रयोग पर बल देती है इस विधि के द्वारा छात्रों को अच्छे लेखन की पुस्तकों के माध्यम से व्याकरण का ज्ञान दिया जाता है |

परिचर्चा विधि (Discussion Method) –  यह विधि सबसे पुरानी विधियों में से एक है यूनानी विद्वान और नालंदा विश्वविद्यालय के विद्वानों द्वारा इसे इस्तेमाल में लिया जाता था |  इस विधि को हम ( Group Discussion Method) भी कहते हैं |  इस विधि के माध्यम से हम सामूहिक वाद विवाद प्रक्रिया कर सकते हैं इस प्रक्रिया  के माध्यम से छात्र अपनी समस्याओं का समाधान विभिन्न दृष्टिकोण से विचार-विमर्श करके प्राप्त कर लेता है | इस प्रक्रिया में विद्यार्थियों व शिक्षक के मध्य होने वाले पारस्परिक वाद विवाद और विचारों के आदान-प्रदान को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का मुख्य आधार बनाने का प्रयत्न किया जाता है |


समाजीकरण (Socialization)

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समाजीकरण (Socialization) – सामाजिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज अपने सदस्यों को सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीके से व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है सामाजिकरण जीवन की एक लंबी प्रक्रिया है और यह पूरे जीवन काल तक निरंतर चलती रहती है |

सामाजिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक व्यक्ति को जन्म से मृत्यु तक उस समाज के  बारे में बताया जाता है | जिस समाज में वह रहता है सदस्य के रूप में उनके सभी रीति-रिवाजों मूल्यों मानदंडों और भूमिकाओं को सिखाया जाता है |

समाजीकरण की प्रक्रिया (Socialization Process)

पालन पोषण (Upbringing) –  बालक के समाजीकरण में  पालन पोषण का ज्यादा प्रभाव पड़ता है क्योंकि अगर बच्चे का पालन-पोषण अच्छे तरीके से नहीं होता है तो बच्चा समाज के साथ  पालन पोषण का ज्यादा प्रभाव पड़ता है क्योंकि अगर बच्चे का पालन-पोषण अच्छे तरीके से नहीं होता है तो बच्चा समाज के साथ समायोजन करने में कठिनाइयां महसूस करता है |

सहयोग (Help) –  बच्चा समाज के सहयोग से ही समाज का हिस्सा बनता है जैसे-जैसे बालक अपने साथ अन्य व्यक्तियों का सहयोग पाता है वैसे वैसे वह दूसरे लोगों के साथ अपना सहयोग भी प्रदान करना आरंभ कर देता है |

अनुकरण (Simulation) –  अनुकरण का अर्थ होता है नकल करके सीखना बच्चा बड़ों की बातों का अनुकरण करके सीखता जाता है और समाज का एक हिस्सा बन जाता है वह किसी की भी नकल कर सकता है |

पुरस्कार एवं दंड (Rewards and Punishments) –  जब बालक समाज के आदर्शों तथा मान्यताओं के अनुसार व्यवहार करता है तो लोग उसकी प्रशंसा करते हैं इसके विपरीत  जब बालक असामाजिक व्यवहार करता है तो उसे दंड मिलता है जिसके वैसे वह ऐसा कार्य दोबारा नहीं करता है |

  • सामाजिकरण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें कई एजेंसियां बच्चों को उनके जीवनकाल में कई बार अलग-अलग तरह से प्रभावित करती हैं |
  • समाजीकरण के प्रतिनिधि या एजेंसी वे संस्थाएं होती है  जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के समाजीकरण की प्रक्रिया में योगदान दिया जाता है |
  • हर एक संस्था जिसमें एक बच्चा भाग लेता है जैसे कि परिवार में, विद्यालय में,  उसके पास पड़ोसी को सामाजिकरण के एजेंट के रूप में माना जाता है  एजेंट को हम प्रतिनिधि कह सकते हैं |

सामाजिकरण के एजेंटों / प्रतिनिधिको मुख्य रूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है –

  • समाजीकरण के प्राथमिक एजेंट (Primary Agents of Socialization) – परिवार सामाजिकरण का प्राथमिक एजेंट है | इसमें वे संस्थाएं शामिल है जो बच्चों को उसके प्रारंभिक सामाजिकरण में मदद करती हैं या यह वही संस्थान है जिनके साथ बच्चे जन्म से ही अंतर क्रिया करते हैं |  इसमें परिवार के सदस्य और रिश्तेदार शामिल होते हैं क्योंकि बच्चा अपने जन्म के बाद से ही उनके साथ अंतर क्रिया करना शुरू कर देता है |
  • समाजीकरण के द्वितीयक एजेंट (Secondary Agents of Socialization) – इसमें वे संस्थाएं शामिल होती हैं जो एक बच्चे को उसके जीवन के बाद के वर्षों में उसके सामाजिकरण में मदद करती हैं और जीवन भर चलती रहती है जैसे कि विद्यालय पड़ोस सोशल मीडिया सरकार सहकर्मी समाज के नियम आदि आपकी मदद करते हैं |  यह सभी  एजेंट बच्चों को सीखने में मदद करते हैं कि सार्वजनिक में कैसे व्यवहार करना है और घर में कैसे व्यवहार करना है और उन्हें अलग-अलग परिस्थितियों में लोगों के सामने कैसे व्यवहार करना चाहिए |

समाजीकरण इकाइयों के प्रकार (Types of Socialization Units)

बच्चों के समाजीकरण के मुख्यतः दो तरह की एजेंसी काम करती हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं –

  1.  सक्रिय एजेंसी / प्राथमिक समाजीकरण
  2.  निष्क्रिय एजेंसी / माध्यमिक समाजीकरण
  • सक्रिय एजेंसी / प्राथमिक समाजीकरण – प्राथमिक सामाजिकरण जीवन में जल्दी जगह लेता है इसका बच्चे पर सीधा सीधा प्रभाव पड़ता है | जैसे कि परिवार, दोस्त, पड़ोसी, रिश्तेदार, आदि |
  • निष्क्रिय एजेंसी / माध्यमिक समाजीकरण – माध्यमिक समाजीकरण किसी के पूरे जीवन काल के दौरान जगह लेता है  इसका बच्चे पर सीधा सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है जैसे कि पुलिस स्टेशन, सार्वजनिक पुस्तकालय, रेलवे स्टेशन एयरपोर्ट, आदि |

समाजीकरण की इकाइयां (Units of Socialization)

  1. परिवार –  सामाजिकरण का आरंभ परिवार से होता है और यह सामाजिकरण की पहली इकाई होती है |
  2. विद्यालय –  विद्यालय में बच्चा इसमें सहयोग कर्तव्यनिष्ठा दूसरे के साथ समायोजन करना सीख जाता है |
  3. अध्यापक –  अध्यापक बच्चे के सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है बच्चे अपने अध्यापक को आदर्श मानते हैं तो छात्रों में भी शिष्टता धैर्य तथा सहकारिता के गुण विकसित हो जाते हैं |
  4. खेल –  खेल बच्चों के मानसिक शारीरिक संवेगात्मक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास में भी योगदान देते हैं एक टीम में रहकर बच्चे सहयोग की भावना विकसित करते हैं उनको अनुशासन में रहना पड़ता है और हारने के बाद भी उनको अपने सबवे को यानी कि अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना पड़ता है और विजय टीम को बधाई देनी पड़ती है |

मूल्यांकन, आकलन, मापन (Evaluation, Assessment, Measurement)

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मापन (Measurement)–  मापन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा परीक्षणों को संख्यान आत्मक रूप से व्यक्त किया जाता है | नंबर के हिसाब से ही बच्चों की योग्यता निर्धना करना ही मापन कहलाता है और यह मात्रात्मक पहलू से संबंधित होता है |

आकलन (Assessment)–  किसी के बारे में जानकारी खट्टा  करने की प्रक्रिया आकलन कहलाती है यह टीचिंग लर्निंग प्रोसेस के दौरान निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है |

आकलन दो प्रकार के होते हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं –

  1.  रचनात्मक आकलन (Formative Assessment)
  2.  योगात्मक आकलन (Summative Assessment)
  • रचनात्मक आकलन (Formative Assessment)–  पढ़ाने के दौरान किया गया आकलन ही रचनात्मक आकलन कहलाता है यह बच्चों के बारे में जानने का सबसे अच्छा आकलन का तरीका है
  • योगात्मक आकलन (Summative Assessment) – साल के अंत में किया जाने वाला आलम योगात्मक आकलन कहलाता है |

आकलन और मूल्यांकन (Assessment and Evaluation)

Types of Assessment (आकलन के प्रकार)

  • Summative assessment (सारांशित / योगात्मक मूल्यांकन)
  • Self-assessmen/ Interim Assessment (आत्म मूल्यांकन / अंतरिम मूल्यांकन)
  • Formative assessment (रचनात्मक आकलन)

Three Types of Assessment (तीन प्रकार के आकलन)

  • Assessment for learning (सीखने के लिए आकलन / अधिगम के लिए आकलन) – यह आकलन शिक्षकों द्वारा किया जाता है | यह एक ऐसा आकलन है जो शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दौरान लगातार चलता रहता है और इसी दौरान शिक्षक बच्चों का आकलन करते हैं और यह पता करने की कोशिश करते हैं कि शिक्षण प्रक्रिया में किसी प्रकार की सुधार की आवश्यकता है या नहीं और यह भी पता लगाएंगे कि बच्चों का कांसेप्ट क्लियर हो रहा है या नहीं उनको जो पढ़ाया जा रहा है वह समझ में आ रहा है या नहीं | हम यह आकलन इसलिए करते हैं कि जो हम पढ़ा रहे हैं उसको अच्छे से सीखे और इसीलिए इसका नाम है सीखने के लिए आकलन |
  • Assessment of learning (सीखने  का आकलन / अधिगम का आकलन) – यह आकलन शिक्षकों द्वारा किया जाता है |  सीखने का आकलन से मतलब है कि बच्चे ने कितना सीखा हमने उसे जितना पढ़ाया है क्या उसे उतना समझ में आया या नहीं | और यह सब शिक्षक कैसे पता लगाएगा शिक्षक पता लगाएगा उनके साप्ताहिक मासिक त्रैमासिक अर्धवार्षिक या वार्षिक  किसी भी पाठ्यक्रम की समाप्ति होने पर | विद्यार्थी के सीखने के बारे में व्यापक जानकारी प्रदान करने के लिए पाठ्यक्रम के सभी पहलुओं पर इस आकलन का प्रयोग किया जाता है और इस आकलन के आधार पर विद्यार्थियों की प्रगति रिपोर्ट बनाई जाती है साथ ही इस आकलन का प्रयोग विद्यार्थी के प्रदर्शन में तुलना करने के लिए भी किया जाता है
  • Assessment as learning (सीखने  के रूप में आकलन / अधिगम के रूप में आकलन) – यह आकलन बच्चों के द्वारा स्वयं किया जाता है | यह आकलन शिक्षकों द्वारा किया जाता है | जब आप विद्यार्थी को स्वयं आकलन स्वयं विचार और विश्लेषण करने के लिए अवसर देते हैं या स्थान देते हैं तब यह आकलन सीखने के रूप में आकलन कहलाता है |

मूल्यांकन (Evaluation)– मूल्यांकन (परीक्षण और मापन) की सहायता से होता है | मूल्यांकन से छात्र की प्रगति, उपलब्धि के साक्ष्य एकत्र करने की, विश्लेषण की और व्याख्या करने की एक व्यवस्थित प्रक्रिया होती है |

मूल्यांकन किसी विषय वस्तु व्यक्ति आदि के गुण व दोष का विवेचन करके उसके संबंध में सही निर्णय करना मूल्यांकन कहलाता है यह मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों होता है |

निम्नलिखित वाक्य मूल्यांकन को इंगित करते हैं –

  • श्याम को 200 में से 50 अंक मिले हैं (मात्रात्मक मूल्यांकन)
  • रोहन को अंग्रेजी में 40% अंक मिले हैं (मात्रात्मक मूल्यांकन)
  • मुख्य परीक्षा में सरला में प्रथम श्रेणी प्राप्त की है (मात्रात्मक और गुणात्मक मूल्यांकन)

परीक्षण (Testing) –  परीक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रतिक्रिया या अभी क्रमांक होता है और जिसका उपयोग किसी पदार्थ या घटक की पहचान या विशेषता के लिए किया जाता है |  किसी भी व्यक्ति यह समूह के कौशल बुद्धि क्षमता ज्ञान या योग्यता को मापने के लिए परीक्षण किया जाता है जैसे कि प्रश्न या अभ्यास की एक श्रंखला |

परीक्षण एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग छात्रों की उपलब्धि के मापन के लिए किया जाता है और यह मूल्यांकन का पर्याय नहीं होता है |

CCE: Continuous Comprehensive Evaluation (सतत व्यापक मूल्यांकन)

C = Continuous (सतत) 

C = Comprehensive (व्यापक)

E = Evaluation (मूल्यांकन)

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE) – राष्ट्रीय शिक्षा नीति 186 के अनुसार सतत एवं व्यापक मूल्यांकन, जिसमें मूल्यांकन के शैक्षिक और गैर शैक्षिक दोनों पहलू शामिल हो और जो शिक्षा की संपूर्ण अवधि के लिए हो उस पर जोर देती है |

Comprehensive

  1. Scholastic (Academic) – विद्यालय 
  2. CO – scholastic (Non Academic) – खेलकूद

All over Development (सर्वांगीण विकास) = Scholastic + Co-Scholastic (शैक्षिक + सह-शैक्षिक)

Eg. Mental, Physical, Social (उदा. मानसिक, शारीरिक, सामाजिक)

आकलन

  • मूल्यांकन पठन-पाठन प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा है  और यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है आकलन और मूल्यांकन दोनों का उद्देश्य बच्चों की क्षमता अनुभूति तथा अधिगम का मापन करना होता है |
  • मूल्यांकन के द्वारा तीनों पक्षों जैसे कि ज्ञानात्मक भावनात्मक क्रियात्मक के उद्देश्यों का मापन किया जाता है |
  • मूल्यांकन में गुणात्मक तथा परिणाम मत दोनों ही प्रकार के निर्णय किए जाते हैं |
  • आकलन की प्रक्रिया मूल्यांकन करने के लिए की जाती है मतलब आकलन मूल्यांकन के दौरान होने वाली एक प्रक्रिया है आकलन एक संक्षिप्त रिपोर्ट या है और मूल्यांकन एक व्यापक प्रक्रिया है मूल्यांकन का अर्थ है मूल्य का अंकन करना मतलब किसी वस्तु का मूल्य निर्धारित करना |
  •  आकलन के बाद मूल्यांकन किया जाता है |

मूल्यांकन की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं –

  • वैधता –  वेद मूल्यांकन वह होता है जो वास्तव में उसी बात का परीक्षण करता है जिसके बारे में जानना चाहता है |
  • विश्वसनीयता –  विश्वसनीयता विभिन्न परंतु एक जैसी परिस्थितियों में किसी प्रश्न परीक्षण या परीक्षा का उत्तर  पूर्णता है एक ही प्रकार का होगा तो ऐसा मापन विश्वसनीयता कहलाता है |
  • व्यवहारिकता –  मूल्यांकन की प्रक्रिया लागत समय और प्रयोग सरलता की दृष्टि से वास्तविक व्यवहारिक और कुशल होना चाहिए |
  • वस्तुनिष्ठता –  जिस मूल्यांकन में एक ही उत्तर हो और परीक्षक का प्रभाव ना पड़ता हो उसे वस्तुनिष्ठता कहते हैं |
  •  व्यापकता –  व्यापकता में सारे गुणों का मापन होता है |

Portfolio (पोर्टफोलियो)

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Portfolio (पोर्टफोलियो) – समय की एक निश्चित अवधि में छात्रों या बच्चों द्वारा किए गए कार्यों का संग्रह पोर्टफोलियो के अंतर्गत आता है और यह एक निश्चित अवधि में छात्र के शैक्षणिक कार्य के साक्ष्य का एक संग्रह होता है |

  • पोर्टफोलियो एक प्रकार की फाइल होती है यह दिखने में सामान्य फाइल जैसी होती है जिसमें किसी बच्चे के एक निश्चित अवधि में किए गए शैक्षणिक कार्य के साक्ष्य का संग्रह होता है |
  • पोर्टफोलियो में बच्चे की उपलब्धियों प्रगति और कमियों को भी रखा जाता है |
  • पोर्टफोलियो में सिर्फ कुछ विशिष्ट कार्य जो विशिष्ट कारण के लिए चुने जाते है सिर्फ और सिर्फ उन्हीं को रख सकते हैं इसमें छात्र के काम की सभी वस्तुओं को नहीं रखा जाता है सिर्फ और सिर्फ कुछ चुनिंदा चीजें ही इसमें रखी जा सकती है |
  •  पोर्टफोलियो से बच्चों की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती हैं जैसे कि व्यक्तिगत पारिवारिक शैक्षणिक सांस्कृतिक सामाजिक जानकारी आदि |
  •  बच्चों के पोर्टफोलियो बनाने से उनका मूल्यांकन करना आसान हो जाता है |

रिकॉर्ड (Record)

रिकॉर्ड 2 तरीके के होते हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं –

  • Anecdotal record (उपाख्यानात्मक रिकॉर्ड)
  • Cumulative record (संचयी रिकॉर्ड)

1. Anecdotal record (उपाख्यानात्मक रिकॉर्ड) – किस में बच्चे के सभी तरह के रिकॉर्ड रखे जाते हैं जैसे कि उसका व्यवहार उसके कौशल उसका एटीट्यूड आदि |

इस उपाख्यानात्मक रिकॉर्ड का उपयोग तब किया जाता है जब कभी कोई व्यक्ति किसी ऐसी कहानी के बारे में बताना चाहता है जो सप्ताहांत में हुई | यानी कि सप्ताह के अंत में घटी हो, हो या कुछ प्यारा घटित हुआ हो या फिर वह मजेदार हो |

2. Cumulative record (संचयी रिकॉर्ड) – इसमें बच्चे के किला से संबंधित सभी रिकॉर्ड रखे जाते हैं जैसे की अकादमिक रिकॉर्ड, अटेंडेंस रिकॉर्ड, अचीवमेंट रिकॉर्ड आदि |

इस संचयी रिकॉर्ड से बच्चे के जीवन में घटी घटनाओं और उनके व्यवहार के कारणों के बारे में जानना आसान हो जाता है और कक्षा में होने वाले प्रत्येक कार्यक्रम के रिकॉर्ड को बनाए रखना असंभव होता है इसलिए कुछ ही घटनाओं को दर्ज किया जाता है और बच्चों के सामाजिक पसंद नापसंद भावात्मक और रिश्तो के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |

कॉग्निशन इमोशन एंड माइंड मैपिंग (Cognition Emotion and Mind Mapping)

संज्ञान (Cognition) –  संज्ञान का मतलब होता है कि सूचनाओं का संग्रहण करना यानी कि मनुष्य जिस पर्यावरण में रहता है उसमें वस्तुओं व्यक्तियों घटनाओं आदि के प्रति जो अवधारणा बना लेते हैं उसे ही संज्ञान कहते हैं संज्ञान के अंदर बहुत सी मानसिक क्रिया आती हैं जैसे की कल्पना चिंतन तर्क आदि |

संज्ञान उन शब्दों को संदर्भित करता है जिससे विचार निर्णय लेने, भाषा जैसी मानसिक प्रक्रियाओं का संबंध होता है संज्ञान ज्ञान के अर्जन, संगठन और उपयोग को जानने की गतिविधि होती है

  • संज्ञान एक ऐसी जानने की प्रक्रिया होती है जिसमें घमंड या अभिमान सम्मिलित नहीं होता है |
  • विचार, अवधान और अनुभूति संज्ञान के घटक होते है |

 संज्ञान विकास के चरण निम्नलिखित हैं –

  1. अवधान (Attention) – अवधान एक संज्ञानात्मक घटक होता है जो कि लोगों को पर्यावरण में एक विशिष्ट दीपक पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है | संज्ञान का प्रयोग करते समय बच्चा पहले अवधान करता है |
  2. स्मृति (Memory) –  स्मृति एक महत्वपूर्ण संज्ञानात्मक घटक होता है जो कि लोगों को जानकारी सांकेतिक करने संग्रहित करने और उन्हें प्राप्त करने की अनुमति देता है | जब बच्चे अपने वातावरण के चारों ओर चीजों को अब धारण कर लेता है तो वह उसे संबंधित सूचनाओं को अपने दिमाग में इकट्ठा कर लेता है | 
  3. मेटाकॉग्निशन / परासंज्ञान (Metacognition) –  इसमें सूचनाओं को वर्गीकरण करके सही समय पर सही सूचना को प्रस्तावित किया जाता है |

मन मानचित्रण (Mind Mapping)

इसके द्वारा हम सूचनाओं को अपने संज्ञान में चित्र बनाते हैं इसे मन की क्रियाशीलता या अनुसंधान भी कहते हैं क्योंकि इसमें हम अपने मन क्रियाशील में रखते हैं और खोजबीन करते रहते हैं |

माइंड मैपिंग का एक उदाहरण – मान लीजिए आप पेडागोजी याद करने बैठे हैं लेकिन आपके दिमाग में उथल-पुथल मची हुई है कि मैं शुरुआत कहां से करूं, पढू कहां से और याद कहां से करूं | तो उसके लिए सबसे पहले आपको माइंड मेपिंग करनी होगी यानी कि आपको एक कागज लेना होगा और एक कलम लेनी होगी उस पर आप सभी मुख्य व महत्वपूर्ण विषय मुख्य बिंदुओं में लिख देंगे फिर आप उन सभी बिंदुओं को देखेंगे और फिर उनके भी मुख्य बिंदु पर लिखेंगे | उनके दाएं या बाएं पर बॉक्स बनाएंगे और उसमें कुछ और मुख्य विशेष बिंदु लिखेंगे यानी कि आप सब-टॉपिक लिखेंगे | जिससे आपके दिमाग में एक क्लियर इमेज बन जाएगी और सब कुछ सुलझता चला जाएगा | तो अभी-अभी जो आपने किया वह आपने माइंड मेपिंग किया | 


 संवेग (Emotions)

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संवेग वह स्थिति है होती है जिसमें व्यक्ति उत्तेजित हो जाता है | संवेग व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो कि अलग-अलग शारीरिक परिवर्तनों द्वारा पहचाना जा सकता है | संवेग कई प्रकार के होते हैं  जैसे कि खुशी, कुंठा, भय, क्रोध, शर्म, चिंता आदि

संवेगों के प्रकार (Types of Emotions)

मैक्डूगल को संवेग का जनक भी कहा जाता है इन्होंने 14 प्रकार की मूल प्रवृत्तियां बताइ जो समय से जुड़ी होती हैं |

मूल प्रवृत्तियां संबंधित संवेग
पलायन भय
युयुत्सा क्रोध
निवृत्ति घृणा 
जिज्ञासा आश्चर्य
शिशु रक्षा वात्सल्य
शरणागति विशाल
रचनात्मक संरचनात्मक भावना
संजय प्रवृत्ति स्वामित्व की भावना
सामूहिकता एकाकीपन
काम कामुकता
आत्म गौरव श्रेष्ठा की भावना
देने आत्म हीनता
भोजन

अन्वेषण

भूख
हर्ष आमोद

 

किसी भी व्यक्ति में 14 प्रकार की वृद्धि देखी जा सकती है जिनके नाम निम्नलिखित हैं |

  1. मुकाबला
  2. माता पिता के प्रति
  3. काम
  4. प्रस्तुत करना
  5. झुंड वृत्ति
  6. अधिग्रहण
  7. हंसी
  8. निर्माण
  9. भोजन की तलाश
  10. आत्म परिचय
  11. जिज्ञासा
  12. अपील
  13. प्रतिकर्षण
  14. बचना

अभिप्रेरणा (Motivation)

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अभिप्रेरणा (Motivation) – अभिप्रेरणा एक ऐसी आंतरिक शक्ति, बल, जोश जुनून होता है जो व्यक्ति को लक्ष्य की ओर ले जाता है | जो प्रतिक्रिया या व्यवहार को अंदर से तेज कर देता है | जैसे कि विद्यार्थी परीक्षा को पास करने के लिए जो शक्ति लगाते हैं वह भी एक अभिप्रेरणा है |

  • अभिप्रेरणा से व्यवहार में परिवर्तन आता है और अभी प्रेरित व्यवहार छात्रों की आवश्यकताओं और संतुष्टि के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है  |
  • अभिप्रेरणा से हौसला व उम्मीद फिर से जागृत हो जाती है |  जिससे लक्ष्य को प्राप्त करने की जिज्ञासा, उमंग के साथ फिर से तैयार हो जाती है | 
  • अभिप्रेरणा एक ऐसी चीज है जो किसी भी व्यक्ति को कार्य करने और एक निर्दिष्ट तरीके से व्यवहार करने के लिए मजबूर कर देती है |

Motivation शब्द (Latin) लैटिन भाषा (Movers) मूवर्स और (Mottum) मोट्टम से बना है |

अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है जिनके नाम निम्नलिखित हैं –

  • आंतरिक अभिप्रेरणा (Inner Motivation)
  • बाहरी अभिप्रेरणा (External Motivation)
  1. Internal Motivation (आंतरिक अभिप्रेरणा)  –  जब कोई व्यक्ति किसी काम को करने के लिए आंतरिक रूप से अभी प्रेरित होता है तो वह आंतरिक  अभिप्रेरणा कहलाती है जैसे कि अगर कोई अपनी मर्जी से शिक्षक बनना चाहता है तो वह आंतरिक रूप से प्रेरित होता है
  2. . External Motivation ( बाहरी अभिप्रेरणा) – जब कोई व्यक्ति किसी काम को करने के लिए बाहरी रूप से या दूसरों के द्वारा भी प्रेरित होता है तो वह बाहरी अभिप्रेरणा कहलाती है जैसे कि बच्चे को सरकारी अध्यापक बनने के लिए उसे पुरस्कार दंड प्रशंसा, लालच (शादी का लालच) देना आदि

अभिप्रेरणा का सिद्धांत ( Principle of Motivation)

मैस्लो का आवश्यकता पदानुक्रम – Maslow’s hierarchy of needs theory or self-actualization theory / मास्लो के पदानुक्रम की आवश्यकता सिद्धांत या आत्म-प्राप्ति सिद्धांत –

अब्राहम मैस्लो (1968 – 1970) इस सिद्धांत के प्रतिपादक थे |

अब्राहम मैस्लो के अनुसार हमारे पास 5 तरह की आवश्यकता होती है जिनके नाम निम्नलिखित है –

  1. दैनिक आवश्यकता (daily requirement)
  2. सुरक्षा की मांग (security demands)
  3. आत्मीयता की आवश्यकता (need for intimacy)
  4. सम्मान की आवश्यकता (need for respect)
  5. आत्मसिद्धि की आवश्यकता (need for self-realization)
  • मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत मैकडॉगल ने दिया था |
  • उपलब्धि अभिप्रेरणा सिद्धांत –  यह सिद्धांत है डेविड मैक्लेइलैंड ने दिया था चुनौतीपूर्ण और कठिन कार्यों में संतोषजनक निपुणता प्राप्त करने की आशा ही उपलब्धि अभिप्रेरणा है जैसे कि सरकारी नौकरी पाने के लिए मदद करना क्योंकि इससे हमें अच्छी सैलरी और सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है
  • अभिप्रेरणा स्वास्थ्य सिद्धांत –  यह सिद्धांत बेड रिकॉर्ड्स वर्ग ने दिया था इसके अनुसार अगर बच्चा मेंटली और फिजिकली रूप से स्वास्थ्य स्वस्थ है यानी के दिमागी तौर से और शारीरिक रूप से स्वस्थ है तो वह बच्चा रुचि के साथ काम करेगा लेकिन अगर वह अस्वस्थ है तो वह कार्य करने में रुचि नहीं लेगा
  • प्रोत्साहन का सिद्धांत –  इस सिद्धांत के प्रतिपादक बाउल्स एंड कौफमैन थे इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति किसी बाहरी उद्दीपक से प्रेरित होकर काम करता है
  • क्षेत्रीय सिद्धांत –  यह सिद्धांत कोर्ट लेविन ने दिया था व्यक्ति का व्यवहार उन सभी कार्य को द्वारा प्रभावित होता है जो उसके क्षेत्र के वातावरण में उपस्थित होते हैं 

अभिप्रेरणा का चक्र (Circle of Motivation)

  1. आवश्यकता (Need)
  2. प्रबल प्रेरणा (Strong Inspiration)
  3. उत्तेजना (Excitement)
  4. लक्ष्य निर्दिष्ट व्यवहार (Target Specified Behavior)
  5. उपलब्धि (Achievement)
  6. उत्तेजना की कमी (Lack of Motivation)

भाषा और चिंतन (Language and Thinking)

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भाषा (Language) – अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाना ही भाषा कहलाती है भाषा और विचार में गहरा संबंध होता है भाषा संप्रेक्षण विचारों को एक दूसरे तक पहुंचाने का  एक अच्छा साधन है |

 भाषा के प्रकार निम्नलिखित हैं –

मौखिक भाषा (Spoken language) –  बोल कर अपने विचारों का आदान प्रदान करना मौखिक भाषा कहलाती है

लिखित भाषा (Written language) –  अपने विचारों को लेकर एक दूसरे तक पहुंचाना लिखित भाषा कहलाती है

सांकेतिक भाषा (Sign language) –  संकेतों प्रतीकों या चिन्हों के माध्यम से विचारों का आदान प्रदान करना ही संकेतिक भाषा कहलाती है

 भाषा का स्वभाव एवं क्रम (Nature and Sequence of Language)

 मनोवैज्ञानिक क्रम: L>S>R>W

  1.  सुनना (Listining)
  2.  बोलना (Speaking)
  3.  पढ़ना (Reading)
  4.  लिखना (Writing)

Maria Montessori (मारिया मांटेसरी) के अनुसार: L>S>W>R

  1.  सुनना (Listining)
  2.  बोलना (Speaking)
  3.  लिखना (Reading)
  4.  पढ़ना (Writing)

परिपक्वता –  किसी भी चीज का पूर्ण रूप से विकसित होना ही परिपक्वता कहलाता है |

 भाषा विकास के सिद्धांत निम्नलिखित हैं –

  1. परिपक्वता का सिद्धांत (Principle of Maturity) –  प्रवक्ता से अभिप्राय है की भाषा अवयवों एवं  स्वरों पर नियंत्रण होना |  जैसे कि बोलने में जीव गला तालु कोर्ट दास तथा स्वर यंत्र आदि परिपक्व होते हैं तो भाषा पर अच्छा नियंत्रण होता है और अभिव्यक्ति यानी के विचारों का आदान-प्रदान भी अच्छा होता है
  2. अनुबंधन का सिद्धांत (Principle of Contract) –  सरसों अवस्था में बच्चों को शब्दों की जानकारी मूर्त वस्तुओं से जोड़ कर दी  जाती है यदि बच्चों को किसी चीज या वस्तु को दिखाया है तो बच्चा जल्दी सीख जाता है
  3. अनुकरण का सिद्धांत (Principle of Imitation) –  मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बालक अपने परिवारजनों  तथा साथियों की भाषा का अनुकरण करके सीखता है
  4. चोमस्की का भाषा सिद्धांत (Chomsky’s Language Theory) –  चोम्स्की भाषा को जन्मजात मानते थे मतलब बच्चे भाषा सीखने की क्षमता के साथ पैदा होते हैं जैसे कि रोना सांकेतिक आदि

 भाषा के भाग निम्नलिखित हैं –

  1. स्वनिम (Phoneme) – भाषा की सबसे छोटी इकाई यानी कि वर्ण स्वनिम कहलाती है –  जैसे कि  क ज प
  2. रूपिम (Morpheme) –  शब्द का छोटा रूप रूप इन कहलाता है जैसे की पेन कॉपी राम रावण आदि
  3. वाक्य विन्यास (Syntax) –  भाषा के नियम को वाक्य विन्यास कहते हैं भाषा को उपयोग करने के नियम वाक्य विन्यास कहलाते हैं जैसे कि कर्ता ने कर्म को करण से आदि
  4. अर्थ विन्यास (Semantic Configuration) –  वाक्य विन्यास में जो वाक्य दिया गया है उसका अर्थ सही होना चाहिए उसे अर्थ विन्यास कहते हैं जैसे कि 
  • मोहन के पास एक पुस्तक है यह सही अर्थ है ✔
  • मोहन के पास है एक पुस्तक गलत अर्थ है ❌

चिंतन (Thinking)

स्वलीन चिंतन (Self Reflection) – ऐसी कल्पना करना जिसका कोई वास्तविक स्वरूप ना हो स्वलीन चिंतन कहलाता है |

यथार्थवाद चिंतन (Realism Thinking) – यह चिंतन वास्तविकता से संबंधित होता है |

तीन प्रकार की यथार्थवादी सोच (3 Types of realistic thinking)

  1. अभिसारी चिंतन (Convergent Thinking) – इसमें समस्याएं एक ही बिंदु पर केंद्रित होती हैं और समस्या का एक ही समाधान होता है जैसे कि भारत की राजधानी दिल्ली है |

 इसके द्वारा खोजा हुआ समाधान एकांत वाला होता है यानी के बंद अंत वाला होता है |

  1. अपसारी चिंतन (Divergent Thinking) – इसमें समस्या एक ही बिंदु पर केंद्रित नहीं होती है इसमें समस्या को कल्पना शक्ति एवं सृजनात्मक का प्रयोग करके कई प्रकार से हल किया जा सकता है जैसे कि दिल्ली की विशेषताओं का वर्णन करें आदि

 इसके द्वारा खोजा हुआ समाधान मुक्त अंत यानी कि खुले अंत वाला होता है |

  1. आलोचनात्मक चिंतन (Critical Thinking) – गुण और दोषों को देखते हुए किसी बात को स्वीकार करना आलोचनात्मक चिंतन कहलाता है |

 चिंतन के सामान्य प्रकार निम्नलिखित हैं |

  1. प्रत्यक्षात्मक चिंतन (मूर्त) Perceptual Thinking (Tangible) –  जो चीजें दिखाई देती हैं उनके बारे में चिंतन करना प्रत्यक्षात्मक चिंतन  कह लाता है यह चिंतन निम्न स्तर  का होता है |
  2. प्रत्यात्मक चिंतन (अमूर्त) Reflexive Thinking (Abstract)–  जो चीजें दिखाई नहीं देती उनके बारे में विचार करना प्रत्यात्मक  चिंतन  कहलाता है |
  3. काल्पनिक  चिंतन (Imaginary Contemplation) –  पूर्व अनुभव के आधार पर जो हम कल्पना करते हैं काल्पनिक चिंतन कहलाता है |
  4. तार्किक चिंतन (Logical Thinking) –  किसी चीज या वस्तु के बारे में तर्क लगाना विचार करना तार्किक चिंतन के अंतर्गत आता है यह चिंतन का सर्वोत्तम स्तर होता है |

निदानात्मक और उपचारात्मक शिक्षण (Diagnostic and Remedial Teaching)

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निदानात्मक शिक्षण (Diagnostic Learning)–  निदान का अर्थ होता है कारण जानना यानी के इसमें बच्चों की असफलता कमियों कठिनाइयों का पता लगाया जाता है |

उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) –  बच्चों की कमियों का पता लगाने के बाद उसका समाधान करना या फिर दोबारा से शिक्षण करवाना उपचारात्मक शिक्षण कहलाता है |

Tag Words (टैग शब्द)

Negative words (नकारात्मक शब्द)

  • लैंगिक असमानता
  • केवल / मात्र / सिर्फ / ही ONLY
  • रटना / याद करना / कंठस्त करना (ROTE)
  • बालको को वर्गीकृत करना
  • दंड / सजा / समस्या / बोझ / हतोत्साहित करना
  • पुस्तक केंद्रित / शिक्षक केंद्रित
  • बालको को खाली स्लेट या कोरी पट्टियां कहना
  • रोजगार / व्यवसायिक / उच्च / ग्रेड की शिक्षा
  • तकनीकी / वैज्ञानिक शब्दावली
  • सीमित
  • व्याख्या
  • लैंगिक असमानता
  • बच्चे के विचार / मात्र भाषा / त्रुटियों को महत्व
  • निष्क्रिय

Positive words (सकारात्मक शब्द)

  • सर्वागीण विकास
  • करके सीखना / हस्तपरक अनुभव
  • सम्मान / लगाव / प्रोत्साहन
  • समावेशी अवधारणा
  • बाल केंद्रित
  • बालक की जिज्ञासा जागृत करना
  • व्यावहारिक कुशलता
  • वास्तविक व दैनिक जीवन से जोड़ना
  • लोकतांत्रिक व प्रजातांत्रिक वातावरण
  • समावेशी कक्षा व शिक्षा
  • दृश्य और श्रव्य सामग्री
  • संसाधन
  • विभिन्न सन्दर्भों में भाषा का प्रयोग
  • त्रुटियों को महत्व देना

शिक्षण अधिगम सामग्री (Teaching Learning Material)

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  • शिक्षण प्रक्रिया को सरल रोचक आकर्षक बनाने के लिए जिन साथियों या माध्यमों का प्रयोग किया जाता है उन्हें शिक्षण अधिगम  सहायक सामग्री कहते हैं |
  • इनसे प्रभावशाली रुचिकर और स्थाई अधिगम होता है |
  • इनसे कठिन एवं भूतकाल की घटनाओं को आसानी से स्पष्ट किया जा सकता है  इनसे समय की बचत भी होती है |

 शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रकार में मिले करते हैं (Types of TLM)

  1. इंद्रियों के आधार पर तीन प्रकार की सामग्री होती हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं –
  • श्रव्य सहायक सामग्री (Audio Aids)
  • दृश्य सामग्री (Visual Material)
  • श्रव्य दृश्य सामग्री (Audio Visual Material)
  1. श्रव्य सहायक सामग्री (Audio Aids) – इस प्रकार की सामग्री से बच्चे सुनकर ज्ञान को अर्जित कर सकते हैं जैसे कि रेडियो टेप रिकॉर्डर ग्रामोफोन चलचित्र आदि
  2. दृश्य सामग्री (Visual Material) –  इस प्रकार की सामग्री से बच्चे देखकर ज्ञान को अर्जित करते हैं जैसे कि श्यामपट्ट बुलेटिन बोर्ड क्लेनिल बोर्ड मानचित्र ग्लोब चित्र रेखा चित्र कार्टून मॉडल पोस्टर लाइट्स फिल्म्सट्रिप  आदि
  3. श्रव्य दृश्य सामग्री (Audio Visual Material) –  इस प्रकार की सामग्री से बच्चे एक साथ सुनकर और देखकर ज्ञान को अर्जित करते हैं जैसे कि मोबाइल फोन टेलीविजन कंप्यूटर चलचित्र नाटक आदि
  4. तकनीक के आधार पर उपागम के नाम निम्नलिखित हैं
  • कठोर उपागम (Hardware Approach)
  • मधु उपाध्याय (Software Approach)
  1. परिक्षेपण के आधार पर सामग्री के नाम निम्नलिखित हैं – 
  • प्रक्षेपी सामग्री –  जिन चीजों के प्रदर्शन के लिए मशीनों की जरूरत होती है वह परिचय भी सामग्री होती है जैसे कि स्लाइड प्रोजेक्टर फिल्म आदि
  • अप्रक्षेपी सामग्री –  जिन चीजों के प्रथम के लिए मशीनों की जरूरत नहीं होती है वह अप्रक्षेपी सामग्री होती हैं जैसे कि श्यामपट्ट चार्ट पुस्तक आदि
  1. NCERT  के अनुसार
  • (Graphic picture) ग्राफिक चित्र जैसे की – कॉमिक्स कार्टून
  • (Display material) डिस्प्ले सामग्री जैसे कि – ब्लैक बोर्ड बुलिटिन बोर्ड आदि
  • (Three dimensional material) त्रिआयामी सामग्री जैसे कि – मॉडल
  • (Audio material) श्रव्य सामग्री जैसे कि – रेडियो टेप रिकॉर्डर आदि
  • (Projectile material) प्रक्षेपी सामग्री जैसे की – स्लाइड फिल्म आदि
  • (Process Materials) प्रक्रिया सामग्री जैसे कि – अभिनय और क्षेत्र भ्रमण

आशा है कि आपको यह नोट्स पसंद आए होंगे यदि आपके मन में किसी भी प्रकार का कोई प्रश्न है तो कृपया कमेंट करें हम उसका उत्तर जल्दी देने का प्रयास करेंगे और यदि आपको इसमें किसी भी प्रकार की कोई त्रुटि लगती है तो उसके बारे में भी आप हमें बता सकते हैं |

– धन्यवाद


समाप्त


[ NOTE ]

छात्रों की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए हम निस्वार्थ भाव की सेवा से यह नोट्स फ्री में दे रहे हैं ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो सके |

पूर्व ज्ञान, एनसीईआरटी, इंटरनेट और अन्य किताबों की सहायता से हमने यह नोट्स खुद से तैयार किए हैं | इन नोट्स को बनाने में लगभग 2 महीने का समय लग गया |

यह एक कठोर सत्य है कि आपका हर एक पसंदीदा यूट्यूब टीचर ( जिस पर आप आंख बंद करके भरोसा करते हो ) वह सिर्फ और सिर्फ अपना कोर्स बेचने के लिए तैयार रहता है यूट्यूब पर तो सिर्फ वह अपनी एडवर्टाइजमेंट करता / करती है यह भी एक कठोर सच है कि आप उनके ग्राहकों हो |

इंसान को पता है कि वह क्या कर रहा है लेकिन फिर भी वह दोनों हाथ से लूटने के लिए तैयार बैठा है इस धरती से कुछ भी ना ले जाने के लिए 🙂

– धन्यवाद


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